Panchtantra ki kahani – Mitrata ; Shri Vishnu Sharma. कहानियां जो मन को सुकून व स्वस्थ मनोरंजन देती हैं। साथ ही मस्तिष्क को मानसिक खुराक भी प्राप्त होती है जिससे मन प्रसन्न हो जाता है। कहानियां पढ़ने व सुनने से मानसिक तनाव भी दूर होता है। ऐसी ही मनोरंजन से भरपूर Panchtantra ki kahani – Mitrata शिक्षाप्रद कहानी है। जो श्री विष्णु शर्मा जी द्वारा लिखित अमर ग्रंथ पंचतंत्र की कहानी है।
Panchtantra ki kahani – Mitrata
महिलारोप्य नाम का एक शहर था। वहाँ बरगद के एक पेड़ पर लघुपतनक नाम का एक कौआ रहता था।
एक दिन वह भोजन की खोज में जा रहा था तभी जाल लेकर एक शिकारी को पेड़ की ओर आता देखा।
शिकारी ने पेड़ के नीचे जाल फैलाकर अनाज के दाने बिखेर दिए।
उसी समय चित्रग्रीव नाम का एक कबूतरों का राजा, अपने कबूतर दल के साथ, उड़ता हुआ वहाँ आया।
बिखरे हुए अनाज के दानों को देखकर कबूतर अपना लोभ न रोक सके और दाने चुगने नीचे उतर आए।
पेड़ के पीछे छुपे हुए शिकारी ने जाल को खींचा लिया और सभी कबूतर जाल में फँस गए।
चित्रग्रीव बहुत ही चतुर था। उसने शेष कबूतरों से कहा, “मित्रों डरो मत!
हमलोग एक साथ जाल लेकर उड़ जाएँगे और सुरक्षित स्थान पर चले जाएँगे जहाँ शिकारी न आ पाए।
तैयार हो जाओ, एक…दो…तीन।” सभी कबूतर एकसाथ जाल लेकर उड़ गए।
Panchtantra ki kahani – Mitrata
शिकारी ने काफ़ी दूर तक उनका पीछा किया पर वे आँखों से ओझल हो गए।
शिकारी के लौट जाने पर चित्रग्रीव ने कबूतरों से कहा, “चलो हमसब महिलारोप्य शहर चलें।
जहाँ मेरा मित्र हिरण्यक चूहा रहता है। इस जाल के बाहर निकलने में वह हमारी सहायता करेगा।”
वहाँ पहुंचकर चित्रग्रीव ने आवाज़ दी “मित्र हिरण्यक, कृपया बाहर आओ।
मैं तुम्हारा मित्र चित्रग्रीव कठिनाई में हूं, हमारी सहायता करो।”
हिरण्यक अपने मित्र….
हिरण्यक अपने मित्र को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और बोला, ठीक है,
तुम राजा हो इसलिए मैं पहले तुम्हें बाहर निकलने में सहायता करूँगा फिर शेष कबूतरों को।
चित्रग्रीव ने हिरण्यक को मना करते हुए कहा, “कृपया, पहले मेरे मित्रों के बंधन काटो ।
अपने लोगों का ख्याल रखना राजा का प्रथम कर्तव्य है।”
चित्रग्रीव का प्रेम देखकर हिरण्यक बहुत प्रसन्न हुआ और बोला
“मैं राजा का कर्म और कर्तव्य जानता हूं। मैं सभी के बन्धन काट दूंगा।”
हिरण्यक ने अपने साथी चूहों के साथ मिलकर, अपने तीखे दाँतों से पूरे जाल को काट डाला
और सभी कबूतरों को आज़ाद कर दिया। चित्रग्रीव ने हिरण्यक और उसके साथियों का धन्यवाद किया
और अपने दल के साथ उड़ गया।
शिक्षा ( Story’s Moral):
आवश्यकता पड़ने पर सहायता करने वाला मित्र ही सच्चा मित्र है। तथा एकता में बड़ा बल होता है।
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