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मत्स्येन्द्रासन करने की विधि व लाभ

मत्स्येन्द्रासन करने की विधि व लाभ मधुमेह और हर्निया रोग में मत्स्येन्द्रासन बहुत अधिक लाभकारी होता है। योगासन योगाभ्यास की प्रथम सीढ़ी है।

कोई भी आसान सरलता से किया जा सकता है। किंतु शुरुआत धीरे धीरे करें। जैसे जैसे शरीर लचीला होता जाता है, सभी तरह के आसन | योगासन सहजता से बनने लगते है।

यहाँ प्रत्येक आसन को सरलता पूर्वक करने की विधि बताई जा रही है। इसे समझकर करने से आप आसानी से सभी आसन कर सकते हैं। आज हम आपको मत्स्येन्द्रासन व अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन करने की विधि व उसके लाभ बता रहें हैं।

मत्स्येन्द्रासन करने की विधि

  • मत्स्येन्द्रासन करने के लिए दोनों पाँवों को फैलाकर फर्श पर बैठ जायें।
  • घुटने, एड़ियाँ तथा पंजे परस्पर मिले रहने चाहिए।
  • दोनों हाथों को जाँघों के ऊपर वाले भाग के समीप पृथ्वी पर रखें अर्थात् हथेलियाँ पृथ्वी पर टिकी रहें।
  • हाथों की अँगुलियों परस्पर मिली हुई तथा बाहर की ओर रहनी चाहिए।
  • अब, दाँये घुटने को मोड़कर पृथ्वी पर रखें तथा उसके तलवे को बार्थी जाँघ के मूल अर्थात् सबसे ऊपरी भाग में मजबूती से रखें
  • तथा बाँये पाँव के घुटने को ऊपर की ओर उठाकर उसके तलवे को दाँये घुटने की दायाँ ओर पृथ्वी पर रखें।
  • अब, दाँये हाथ को बाँये घुटने के बाँये पार्श्व से घुमाकर बाँये पाँव का अंगूठा पकड़े,
  • तथा बाँये हाथ को पीछे की ओर से लाते हुए दाँये पाँव की पिण्डली को पकड़ने का प्रयत्न करें।
  • इसके साथ ही सिर सहित सम्पूर्ण छाती को बायीं ओर थोड़ा सा घुमा लें ।
  • फिर, उपर्युक्त से विपरीत स्थिति में आयें अर्थात् दाँये घुटने की जगह बाँये घुटने को मोड़कर पृथ्वी पर रखें ,
  • तथा अन्य सभी क्रियाएं उल्टी दिशा में करें। इस अभ्यास को तीन बार तक दुहरा सकते हैं।

मत्स्येन्द्रासन करने के लाभ

  • उक्त अभ्यास से शरीर की पेशियों तथा जोड़ अधिक लचीले होते हैं तथा शक्ति एवं ओज की प्राप्ति होती है।
  • यह सम्पूर्ण शरीर को शुद्ध करता है तथा ‘कुण्डलनी’ को जगाने में सहायक बनता है।
  • कुण्डलनी एक शक्ति है।
  • इस आसन से बड़ी तथा छोटी आँते, जिगर, तिल्ली, मेदा, मूत्राशय तथा क्लोम-ग्रन्थि के सभी विकार दूर होते हैं।
  • मधुमेह और हार्निया रोग में यह विशेष लाभ करता है।

अर्द्ध-मत्स्येन्द्रासन करने की विधि

  • अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन करने के लिए मत्स्येन्द्रासन की तरह दोनों पाँवों को फैलाकर बैठे।
  • फिर बाँये पाँव को मोड़कर दाँये पाँव के बाहर, जाँघ से सटाकर रखें,
  • तथा दाँये पाँव को मोड़कर, दायीं एड़ी से गुदा तथा मूत्राशय के मध्य भाग वाले कोमल स्थान को दबायें ।
  • अब बाँये घुटने की टेक लगाते हुए, दाँये कन्धे को अड़ाकर, दाँये हाथ से बाँये पाँव का अंगूठा पकड़ें
  • तथा बाँये हाथ को पीठ के पीछे की ओर घुमाकर, दायीं जंघा सन्धि का स्पर्श करें।
  • सिर को बाय और ठोड़ी तथा कन्धे की सीध में तथा छाती को तना हुआ सीधा रखना चाहिए।

विशेष-

उक्त आसन ‘मत्स्येन्द्रासन’ जैसा ही है। केवल एक शरीर के मोडने को ‘अर्द्ध-मत्स्येन्द्रासन’ कहा जाता है ।

अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन करने के लाभ-

  • इस आसन के अभ्यास से कोष्ठबद्धता दूर होकर जठराग्नि प्रदीप्त होती है।
  • मेरुदण्ड में लोच आने से युवावस्था अधिक समय तक बनी रहती है।
  • पेट, पीठ, हाथ पाँव, गर्दन, कमर तथा वस्ति प्रदेश को भी यह विशेष लाभ पहुँचाता है।

(अर्द्ध-मत्स्येन्द्रासन ) विशेष-

इस आसन को हलासन, भुजङ्गासन तथा सर्वाङ्गासन का पूरक भी माना जाता ।

निष्कर्ष

आज आपने मत्स्येन्द्रासन करने की विधि व लाभ जाने। यह भी जाना कि उक्त आसन को करना कितना आसान है। अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन भी मत्स्येन्द्रासन की तरह ही है। जब मत्स्येन्द्रासन न बने तब शुरुआत में अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन करना चाहिए।

आशा है आपको स्वास्थ्य संबंधी मत्स्येन्द्रासन करने की विधि व लाभ का यह आर्टिकल अवश्य पसंद आया होगा । इसे अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद।

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