नमस्कार दोस्तों ! हिंदी कहानी – लघु कथा !वर ठाड़ होय तब जानी ! – श्रीमती मनोरमा दीक्षित ! दादी और नानी की मीठी कहानियों का संसार इतना सुन्दर और लुभावना है कि बालमन उससे बाहर निकलना ही नहीं चाहता। हर नन्हीं पौध यही चाहती है कि बस कहानी चलती ही रहे। कहानियां जो बाल मन को सुन्दर विचार एवं कल्पना को ऊंची उड़ान दे और भावनात्मक रूप से घर परिवार पड़ोस पशु, पक्षी, वृक्ष, जंगल, नैतिक मूल्यों से सतत् जोड़े. रखे, वही उनकी सार्थकता है। आइये पढ़ते है – हिंदी कहानी-लघु कथा – “वर ठाड़ होय तब जानी” !
हिंदी कहानी-लघु कथा – वर ठाड़ होय तब जानी !
बात है उन्नीसवीं सदी की। उस समय बेटा बेटी के लिए लड़का लडकी खोजने का काम नाई करते थे।
आज मोबाइल टी. व्ही. पत्र पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में सभी समाज के विवाह योग्य वर-वधू की जानकारी
सहज ही मिल जाती है। उस समय एक सक्रिय मीडिया का कार्य ये नाई ही करते थे।
इसके लिए उन्हें इनाम में अच्छी पोशाक और रूपये दिये जाते थे।
इसमें नाई और पंडित दोनों का महत्व था। पंडित जी कुण्डली देखकर शादी करने की स्वीकृति देते थे।
अब समय के साथ कान्तिकारी परिवर्तन हो गया है।
बात उत्तरप्रदेश के औरइया कस्बे की है। (हिंदी कहानी-लघु कथा)
शिवदयाल तिवारी की बेटी अनसुइया की एक आँख खराब थी।
शिवदयाल जी उसके विवाह के लिए बहुत चिन्तित रहते थे।
आखिर उन्होंने अपनी चिंता अपने नाई से बतायी और अच्छा लड़का खोजने का कार्य सौंपा।
बेटी अनुसुइया गोरी चिट्टी थी। नाक-नक्शा भी तीखा था। घर का काम-काज करने में काफी चतुर भी थी।
जब नाई चाचा आते थे तो अनुसुइया ही उन्हें बढ़िया मसालेदार चाय और गरमागरम पकौड़े खिलाती थी।
प्रेमलाल नाई का उनके परिवार में काफी मान था ।बहरहाल नाई प्रेमलाल सत्तू और लोटा डोर रख
आसपास के गांव में बिटिया अनुसुइया के लिए वर खोजने निकला।
कई ब्राह्मण परिवार में गया पर उस परिवार के नाई को साथ लेकर ही जिस गांव में नाई प्रेमलाल जाता,
वहां ही उसका कोई न कोई रिश्तेदार मिल जाता। फिर क्या था कहीं भाई की ससुराल, कहीं भतीजे के ससुराल,
कहीं ममेरा भाई. कहीं फुफेरे जीजा- कोई न रिश्तेदार मिल ही जाता था।
क्योंकि उस समय पाँच-दस मील के दायरे में ही रिश्तेदारी होती थी।
( हिंदी कहानी-लघु कथा – वर ठाड़ होय तब जानी – श्रीमती मनोरमा दीक्षित !)
आज प्रेमलाल की यात्रा सफल हो गयी थी..
क्योंकि बाबूपुरवा के मिश्रा जी ने बिटिया के रूप गुण के बारे में सुनकर अपने बेटे के लिए रिश्ता स्वीकार किया।
प्रेमलाल ने उनके बेटे रामकुमार को देखना चाहा, परन्तु पता लगा कि वह मामा के घर गया है।
उस गांव के नाई ठाकर छकौड़ी से पूछताछ की प्रेमलाल ने तो उसे पता चला कि रामकुमार कोई नशा पत्ती,
जुआ जक्कड़ से दस हाथ दूर है। घर में पचीस एकड़ जमीन और आम का बगीचा है।
बस दो भाई है बड़ा भाई शक्कर मिल में नौकरी करता है, लखीमपुर खीरी में एक बहन है।
वह भी सीतापुर के जमींदार के यहाँ व्याही है। बस सब कुछ रामकुमार का ही है।
महतारी बाप अपने छोटे बेटे लल्लू (रामकुमार) को बहुत चाहते हैं। बिटिया यहाँ रानी बनकर रहेगी। फिर क्या था।
प्रेमलाल पूर्ण संतुष्ट हो गया और शिवदयाल तिवारी जी को सब खबरें बतायी ।
चतुर प्रेमलाल अपने साथ रामकुमार मिश्रा (वर की) कुण्डली भी ले आया था।
फिर क्या था पंडित दीनदयाल बुलाये गये।
कुण्डली देखकर पंडितजी ने बताया कि लड़का लड़की के 26 गुण मिलते हैं अतः इस विवाह में कोई दोष नहीं है।
अब पंडित जी ने शादी की तिथि तय की । नाई और पंडित दोनों ग्राम औरइया गये और
लेनदेन की सभी बात तय हो गयी। दोनों पक्षों में शादी की जोरदार तैयारी हुई निश्चित समय बारात आई,
शहनाई बजी, स्वागत सत्कार जोरदार हुआ और नेंग-दस्तूर निपटाकर भाँवर की तैयारी में भांवरे के बाजे बजने लगे।
उस समय न तो जयमाला होता था और न लड़की देखने की परम्परा थी, सब कुछ भाग्य भरोसे था ।
वर रामकुमार के पैर में पट्टी बंधी थी। बताया कि चोट लग गयी है अत: सहारा देकर भांवर हुई। (हिंदी कहानी-लघु कथा)
आज शादी निपट गयी तो …
नाई ठाकुर को दोनों ओर से बहुत इनाम मिला, अब दोनों पक्ष के नाई विदाई के समय गले मिलकर नाचने लगे।
कन्या पक्ष के नाई प्रेमलाल ने गाया ‘वर जीत लीन्ह मोरी कानी” तो ..
वर पक्ष का नाई भी नाच कर गाने लगा- “वर ठाढ होय तब जानी!
बात यह थी कि “कन्या अनुसुइया कानी थी जबकि वर” रामकुमार लगड़ा था।
पर अब क्या हो सकता था। विवाह तो हो ही चुका था।
हिंदी कहानी-लघु कथा – वर ठाड़ होय तब जानी – श्रीमती मनोरमा दीक्षित !
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