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Shri Radha janmaashtami vrat ; श्री राधा अष्टमी व्रत का महात्म्य !

Shri Radha janmaashtami vrat ; श्री राधा जन्माष्टमी व्रत का महात्म्य ! ‘नारदपुराण’ पूर्व भाग अध्याय 117 में श्रीराधा जन्माष्टमी व्रत का वर्णन करते हुए सनातन मुनि ने कहा है ‘भाद्र शुक्ल अष्टमी को मनुष्य ‘राधा-व्रत’ करे । आज के दिन कलश स्थापन करके उसके ऊपर श्रीराधा की स्वर्णमयी प्रतिमा का पूजन करना चाहिये। मध्याह्न काल में श्रीराधाजी का पूजन करके एकभुक्त व्रत करे। विधिपूर्वक राधाष्टमी व्रत करने से मनुष्य व्रज का रहस्य जान लेता है तथा राधा परिकरों में निवास करता है।’

इसी प्रकार आदिपुराण, तन्त्र और अन्य कई प्राचीन ग्रन्थों में भी राधा-प्राकट्य तथा व्रत का वर्णन आया है। आज आपको Shri Radha janmaashtami vrat के महात्म्य के विषय मे जानकारी देंगे जिसे जानकर आप श्रीराधा जी के नाम की तथा राधा जन्माष्टमी व्रत की महिमा को जानेंगे। ये भी जानेंगे कि श्रीराधा जी की पूजा क्यों करनी चाहिए। अतः अंत तक अवश्य पढ़ें।

Shri Radha janmaashtami vrat ; श्री राधा जन्माष्टमी व्रत व राधा नाम का महात्म्य !

जो मनुष्य ‘राधा-राधा’ कहता है तथा स्मरण करता है, वह सब तीर्थों के संस्कार से युक्त होकर सब प्रकार की विद्या की प्राप्ति में प्रयत्नवान् बनता है। जो ‘राधा-राधा’ कहता है, राधा-राधा कहकर पूजा करता है,

राधा-राधा में जिसकी निष्ठा है, जो राधा-राधा उच्चारण करता रहता है, वह महाभाग श्रीवृन्दावन में श्रीराधा की सहचरी होता है। इस विश्व ब्रह्माण्ड में यह पृथ्वी धन्य है, पृथ्वी पर वृन्दावनपुरी धन्य है।

वृन्दावन में सती श्रीराधाजी धन्य हैं, जिनका ध्यान बड़े-बड़े मुनिवर करते हैं।जो ब्रह्मा आदि देवताओं की परमाराध्या हैं, जिनकी सेवा देवता लोग दूर से ही करते रहते हैं। उन श्रीराधिकाजी को जो भजता है, उसको मैं भजता हूँ।

हे महाभाग ! उनका कथा कीर्तन करो, उनके उत्तम मन्त्र का जप करो और रात-दिन राधा-राधा बोलते हुए नाम-कीर्तन करो। जो मनुष्य कृष्ण के साथ राधा का (अर्थात् राधेकृष्ण, राधेकृष्ण) नाम-कीर्तन करता है,

उसके माहात्म्य का वर्णन मैं नहीं कर सकता और न उसका पार पा सकता हूँ। राधा-नाम-स्मरण कदापि निष्फल नहीं जाता, यह सब तीर्थों का फल प्रदान करता है।

श्रीराधाजी साक्षात लक्ष्मी हैं!

श्रीराधाजी सर्वतीर्थमयी हैं तथा सर्वैश्वर्यमयी हैं। श्रीराधा भक्त के घर से कभी लक्ष्मी विमुख नहीं होतीं। हे नारद! उसके घर श्रीराधाजी के साथ श्रीकृष्ण वास करते हैं।

श्रीराधाकृष्ण जिनके इष्ट देवता हैं, उनके लिये यह श्रेष्ठ व्रत है। उनके घर में श्रीहरि देह से, मन से कदापि पृथक् नहीं होते। यह सब सुनकर मुनिश्रेष्ठ नारदजी ने प्रणत होकर यथोक्त रीति से श्रीराधाष्टमी में यजन-पूजन किया।

जो मनुष्य इस लोक में यह राधाजन्माष्टमी व्रत की कथा श्रवण करता है, वह सुखी,मानी, धनी और सर्वगुण सम्पन्न हो जाता है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक श्रीराधा का मन्त्र जप करता है अथवा नाम स्मरण करता है, वह धर्मार्थी हो तो धर्म प्राप्त करता है, अर्थार्थी हो तो धन पाता है, कामार्थी पूर्णकाम हो जाता है,

और मोक्षार्थी को मोक्ष प्राप्त होता है। कृष्णभक्त वैष्णव सर्वदा अनन्य शरण होकर जब श्रीराधा की भक्ति प्राप्त करता है तो सुखी, विवेकी और निष्काम हो जाता है। (पद्मपुराण उ०ख० 162- 163 का कुछ अंश)

श्री राधा जी का जन्म

भविष्यपुराण के अनुसार –

“वैश्यकुल में वृषभानु नामसे प्रसिद्ध एक राजा थे, वे.सभी सम्पदाओं से सम्पन्न तथा सभी धर्मो के परायण थे। उन्होंने कीर्तिदा नाम की अनिन्ध सुन्दरी एक गोपकन्या से विवाह किया,

जो सम्पूर्ण शुभ लक्षणों से युक्त तथा तपाये हुए सोने की-सी कान्तिवाली थी। वृषभानु महान् भक्त थे। कीर्तिदा के तपोबल से तथा विनय की पराकाष्ठा से उनके राधिका नाम की कन्या हुई।

भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्याह्न काल में अभिजित् मुहूर्त और अनुराधा नक्षत्र के योग में कीर्तिदा रानी ने राजचिह्नों से सुशोभित इस कन्या को जन्म दिया।

उसके अङ्ग प्रत्यङ्ग अत्यन्त सुकुमार थे, जिनसे चन्द्रमा की सी ज्योति निकल रही थी, उसका सौन्दर्य त्रिलोकी में विलक्षण था और शरीर सब प्रकार के दोषों से सर्वथा मुक्त था।”

गर्गसंहिता के अनुसार – Shri Radha janmaashtami vrat ; श्री राधा अष्टमी व्रत का महात्म्य !

श्रीराधा प्राकट्य का कारण तथा प्राकट्य महोत्सव गर्गसंहिता में आता है– राजा बहुलाध के पूछने पर श्रीनारदजी कहते हैं- ‘तुम्हारा यह कुल धन्य है, क्योंकि इसमें राजा निमि हो चुके हैं।

वे भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र के सर्वश्रेष्ठ भक्त थे। फिर इसी कुल में तुम भी उत्पन्न हुए हो। अत: इसे पूर्णरूप से गौरव प्राप्त हो गया।

तुम्हारा स्वभाव बहुत ही विलक्षण है, क्योंकि तुम संसार से सम्बन्ध रखते हुए भी त्यागी हो।अब तुम उन पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की लीला का श्रवण करो। वह पवित्र एवं कल्याणस्वरूप है।

केवल कंस का संहार ही भगवान् के अवतार में हेतु नहीं है,
वे पृथ्वी पर संतजनो की रक्षा के लिये भी पधारे थे राजन् ।भगवान ने ही अपनी महाशक्ति को प्रेरणा दी।

अतः महाशक्ति ने वृषभानु की पत्नी के हृदय में प्रवेश किया और वे ही ‘राधिका’ नाम से प्रकट हुई। उनका अवतार एक भव्य भवन में हुआ।

Shri Radha janmaashtami vrat ; श्री राधा जन्माष्टमी व्रत का महात्म्य !

वह स्थान यमुना के तटपर निकुञ्ज घन में था। उस समय
भाद्रपद का महीना था। शुक्लपक्ष एवं अष्टमी तिथि थी।मध्याह (दोपहर) का समय था। आकाश में मेघ छाये हुए
थे। देवताओं ने उस समय फूलोंकी वर्षा की।

वे फूल नन्दनवन से उन्हें प्राप्त हुए थे। उस समय राधिका जी के पृथ्वी पर प्रकट होने पर नदियाँ स्वच्छ हो गयीं। सम्पूर्ण दिशाओं में आनन्द फैल गया। कमल की गन्ध से व्याप्त वायु चलने लगी, यह बड़ी ही शीतल, मनोहर और धीमी गति से बह रही थी। बाद में वृषभानु पत्नी कीर्ति को कन्या दिखायी दी।

शरत्कालीन चन्द्रमा की भाँति उसकी कान्ति थी। रूप
मन को हरनेवाला था। अतः वे अत्यन्त आनन्द में भर गयीं।तुरन्त उन्होंने मङ्गल विधान करवाया और पुत्री के कल्याण की कामना से दो लाख गौएँ ब्राह्मणों को दान की।

श्रेष्ठ देवताओं को भी जिनका दर्शन मिलना कठिन है, मनुष्य करोड़ों जन्म तक तप करते हैं, परंतु जिनका साक्षात नहीं कर पाते, वे ही श्रीराधिकाजी वृषभानु के यहाँ स्वयं प्रकट हुई। गोपियों ने उनका लालन-पालन किया। यह प्रायः सभी जानते हैं।

श्रीराधा जी की पूजा क्यों करनी चाहिए ?

श्रीराधा जी की पूजा की अनिवार्य आवश्यकता के सम्बंध में ‘श्रीमद्देवीभागवत’ में श्रीनारायण ने नारदजी के प्रति हे *श्रीराधायै स्वाहा* इस षडक्षर राधामन्त्र की अति प्राचीन
परम्परा तथा विलक्षण महिमा के वर्णन प्रसंग में श्रीराधा जी की पूजा की अनिवार्यता बताते हुए यह कहा है।

कृष्णार्चायां नाधिकारो यतो राधार्चनं विना।
वैष्णवैः सकलैस्तस्मात् कर्तव्यं राधिकार्चनम् ॥
कृष्णप्राणाधिदेवी सा तदधीनो विभुर्यतः ।
रासेश्वरी तस्य नित्यं तया हीनो न तिष्ठति ॥
राध्नोति सकलान् कामांस्तस्माद् राधेति कीर्तिता ॥

अर्थात – श्रीराधा की पूजा न की जाय तो मनुष्य श्रीकृष्ण की पूजा का अधिकार नहीं रखता। अतएव समस्त वैष्णवों को चाहिये कि वे भगवती श्रीराधाजी की अर्चना अवश्य करें।

ये श्रीराधा भगवान् श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं।
ने इसलिये भगवान् इनके अधीन रहते हैं। ये भगवान् के रास की नित्य अधीश्वरी हैं। श्रीराधा के बिना भगवान श्रीकृष्ण क्षणभर भी नहीं ठहर सकते।

ये सम्पूर्ण कामनाओं का राधन (साधन) करती हैं. इसी कारण इन देवी का नाम ‘श्रीराधा’ कहा गया है।’

इस प्रकार श्रीराधा जी के नाम की महिमा अनन्त है। भगवत्प्रेमियों के लिए ये कथा अत्यंत सुखद व पुण्यकारी है। अतः आज Shri Radha janmaashtami vrat के दिन भगवती लक्ष्मीस्वरूपा श्रीराधा जी का स्मरण अवश्य करें। जय श्री राधे ! जय श्रीकृष्णा !

http://Indiantreasure. in

https://youtu.be/4rURry0UFB8

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