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व्रत करने के नियम!

व्रत करने के नियम होते हैं। यह जीवन में अनुशासन की एक प्रक्रिया है।कभी कभी ऐसा हो जाता है कि उस दिन को ही भूल जाते हैं।

तब मन मे बड़ा पछतावा होता है। किंतु आज ऐसी ही समस्याओं के लिए समाधानपूरित यह लेख प्रस्तुत है।

इस लेख में आप पाएंगे –

  1. व्रत और उपवास में क्या अंतर है।
  2. ये कितने प्रकार से किये जाते हैं।
  3.  अन्य प्रकार।
  4.  कब शुरू करें।
  5.  क्या खाएं।
  6.  कौन से नियम हैं।
  7.  क्या न करें।
  8. प्रमुख व्रत व उनकी अवधि।
  9. व्रत छूटने पर क्या करें।
  10. विशेष।

1- व्रत और उपवास में क्या अंतर है! What is the difference between vrat and upvas!

  • व्रत करने के नियम जानने से पहले जाने की व्रत क्या है। निराहार एवं निर्जला रहकर किया गया संकल्प व्रत कहलाता है।
  • उपवास का अर्थ है उप यानी पास में और वास यानि निवास करना। अर्थात पास में निवास करना।
  • उपवास में देवता के पास में निवास करते हुए जो जप किया जाता है उसे ही उपवास कहा जाता है।
  • व्रत में फलाहार एवं दूध, पानी, जूस आदि पिया जाता है । वृत्त के अनेक प्रकार होते हैं ।
  • उपवास में निर्जला एवं निराहार रहकर भगवान की उपासना की जाती है । तथा निरंतर जप किया जाता है।

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2- व्रत कितने प्रकार से किये जाते हैं ! How many fasts are done!

  • कायिक व्रत– इसमेंं नियमित व उचित भोजन किया जाता है। एवं ब्रम्हचर्य का पालन किया जाता है ।
  • वाचिक व्रत– इसमे सत्य व मधुर बोलना एवं निंदा और कटुता का त्याग करना तथा मौन रहना होता है।
  • मानसिक व्रत- राग द्वेष का त्याग कर वैराग्य का अभ्यास, भक्ति,मानसिक जप, सदग्रंथों का अध्ययन होता है।
  • नित्य व्रत- पुण्य संचय हेतु एकादशी आदि के व्रत नित्य व्रत की श्रेणी में आते हैं।
  • नैमित्तिक व्रत– पापों के नाश के लिए व मन के स्वामी चंद्रमा की प्रसन्नता हेतु चांद्रायण व्रत किये जाते हैं।

3- व्रत के अन्य प्रकार! Other types of fasts!

  • काम्या या कामिक व्रत- जो किसी प्रकार की कामना विशेष से प्रोत्साहित होकर किए जाते हैं वे कामिक व्रत हैं।
  • एकभुक्त व्रत– इस व्रत मैं दिन के आगे, पीछे, या कभी भी भोजन किया जाता है।
  • नक्त व्रत- इसमें रात्रि होनेेे पर भोजन किया जाता है किंतुु सन्यासी और विधवा सूर्य के रहनेेे पर ही भोजन करते हैं।
  • अयाचित व्रत– बिना मांगे जो कुछ भी मिले निषेधकाल को बचाकर दिन या रात में केवल एक बार ही भोजन करें।
  • मितभुक्त व्रत- इसमें प्रतिदिन एक नियमित मात्रा (लगभग 10 ग्राम) में भोजन किया जाता है ।

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4- व्रत कब शुरू करें ! When to start the fast!

  • कभी कभी व्रत या पूजा की तिथि दो दिन पड़ती है। ऐसे में हमेशा पहले पड़ने वाली तिथि पर ही पूजा करनी चाहिए।
  • पहली तिथि में पूजा की शुरुवात व समाप्ति दोनों तिथि में ही सम्पन्न हो जाती है।
  • इस पहली तिथि को उदयातिथि कहते हैं। एवं दूसरे दिन की तिथि को अस्त तिथि कहते हैं।
  • गृहस्थों को हमेशा उदयातिथि में ही पूजा करनी चाहिए। व्रत के नियम के अनुसार प्रत्येक पूजा का मुहूर्त अलग अलग होता है।
  • अतः जिस समय(सुबह या शाम) पूजा का मुहूर्त पड़ रहा हो उसी तिथि को व्रत व पूजा करनी चाहिए।

5- व्रत में क्या खाएं! What to eat during the fast!

  • व्रत में फलाहार किया जाता है। अतः केवल रसीले फल, दूध, सूखे मेवा, जूस आदि का का ही सेवन करें।
  • इस दिन अन्न का त्याग इसलिए किया जाता है ताकि शरीर अंदर से शुद्ध हो एवं हल्का रहे ।
  • जब शरीर शुद्ध रहेगा तब किसी भी प्रकार के तामसिक विचार मन में नहीं आते। जो व्रत को सफल बनाते हैं ।
  • अतः किसी भी प्रकार के तैलीय पदार्थ तथा तले भूंजे, चटपटे खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए ।
  • फल, दूध, चाय या पानी किसी भी चीज को बार बार नहीं लेना चाहिए इससे भी व्रत भंग होता है। अतः व्रत के नियम मालूम होना चाहिए।

6- व्रत करने के नियम क्या हैं! What are the rules of fasting?

  • व्रत के 10 आवश्यक नियम है क्षमा,सत्य,दया,दान,संतोष शौच, इंद्रिय-निग्रह, देव-पूजा, हवन और चोरी ना करना।
  • व्रत हमेशा संकल्प लेकर ही प्रारंभ करें। व्रत का संकल्प सूर्योदय से सूर्यास्त तक निराहार रहना चाहिए।
  • रजोदर्शन पर व्रत ना करें किंतु बीच मे होने पर किसी अन्य के द्वारा भोजन बनाकर व्रत का पारण करें।
  • रजस्वला होने पर व्रत की संख्या नहीं गिनी जाती । अतः ऐसी स्थिति में व्रत करें किंतु पूजन ना करें।
  • सूतक की स्थिति में भी व्रत शुरू नहीं करना चाहिए । व्रत का उद्यापन अवश्य करें। उद्यापन के बिना व्रत अपूर्ण होता है।

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7- व्रत में क्या ना करें! What not to do during the fast!

  • व्रत में रहते हुए दिन में सोना तथा तंबाकू, शराब आदि चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • अनेक बार पानी पीने व पान खाने से भी उपवास दूषित हो जाते हैं अतः इन चीजों का निषेध करें।
  • प्रातः काल एवं सायं काल के समय सोना आवश्यक रूप से निषेध माना गया है।
  • किसी भी प्रकार की हिंसा ना करें। किसी की निंदा असत्य भाषण और कटुता का त्याग करना चाहिए।
  • इस समय अशुद्ध स्थानों का त्याग करें तथा अशुद्ध व अपवित्र लोगों से ना मिले जुले।

8-प्रमुख व्रत व उनकी अवधि क्या है ! What are the major vrat and their duration?

  • सत्य व अहिंसा पालन के व्रत संपूर्ण जीवन चलते हैं। एवं महाव्रत 16 वर्षों में पूर्ण होते हैं ।
  • वेदव्रत व ध्वज व्रत की समाप्ति 12 वर्षों में होती है । अरुंधति व्रत वसंत ऋतु में होते हैं।
  • पंचमहाभूत व्रत एवं संतान अष्टमी व्रत, शकव्रत और शीलावाप्ति व्रत 1 वर्ष तक किए जाते हैं।
  • शास्त्रों में पांच महाव्रत बताए हैं । संवत्सर(चैत्रशुक्ल-प्रतिपदा, रामनवमी(चैत्रशुक्ल नवमी),
  • कृष्ण-जन्माष्टमी (भाद्रपद अष्टमी), शिवरात्रि (फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी) और दशावतार (भाद्रपदशुक्ल दशमी) ।

9- व्रत छूटने पर क्या करें! What to do if you miss the fast!

  • किसी कारणवश यदि व्रत भूल जाएं या कोई शास्त्र विरुद्ध कर्म हो जाए तो पहले व्रत के लिए प्रायश्चित करें।
  • विशेष रुप से देवता को आमंत्रित कर व्रत का संकल्प ले, भगवान का पंचोपचार पूजन कर व्रत को प्रारंभ कर दें।
  • उचित समय मुहूर्त पर भगवान की पूजा कर प्रार्थना करें कि उपरोक्त भूल चूक के लिए क्षमा करें ।
  • वृत्त के विभिन्न प्रकार होते हैं अतः यदि व्रत के दिन कुछ भोजन कर लिया है तो अन्य प्रकार से उसे को पूर्ण करें।
  • अंत में भूल चूक हेतु क्षमा प्रार्थना करते हुए देवता के निमित्त दान अवश्य करें।

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10- विशेष! special

  • किसी भी व्रत के अनुष्ठान के लिए देश और स्थान की शुद्धि अपेक्षित है।
  • इसीलिए हमेशा उत्तम स्थान में किया हुआ अनुष्ठान शीघ्र तथा अच्छे फल को देता है।
  • अतः किसी भी अनुष्ठान के शुरुआत में संकल्प करते समय सर्वप्रथम काल तथा देश का उच्चारण अवश्य करें।
  • व्रत के आचरण से देवता, ऋषि, पितृ और मानव प्रसन्न होते हैं और वे आशीर्वाद देते हैं।
  • जिससे सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं एवं जीवन में सुख और शांति का आगमन होता है।

अंत में किसी भी व्रत को करते हुए व्रत करने के नियम का पालन दृढ़ता से करें। क्योंकि व्रत से संकल्प शक्ति जागृत होती है ।

और यही संकल्प शक्ति हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। किसी व्रत में यदि किसी देवता की पूजा ना भी हो तो,

अपने इष्टदेव का, देवताओं का, पूर्वजों का व पितरों का स्मरण अवश्य करें। इससे व्रत में सिद्धि होती है।

आशा है व्रत के सम्बंन्ध में आपके सभी भ्रम दूर हो चुके होंगे। व्रत करने के नियम संबंधी जानकारी आपको अच्छी लगी हो तो अपने मित्रों को शेयर करें। 

ऐसी ही अन्य आवश्यक जानकारी के लिए अवश्य देखें।??

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✍️श्रीमती रेखा दिक्षित एडवोकेट सहस्त्रधारा रोड देवदर्रा मंडला।? यह आलेख मेरे अध्ययन पर आधारित पूर्ण अतः स्वरचित एवं मौलिक है ।

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