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श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध-भाग-1

 श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध भाग-1 की कथा वेदों और उपनिषदों का सार है। इसका सत्संग जीव के सम्पूर्ण पापों को तत्काल नष्ट कर देता है। व जीवन को उन्नत बनाता है।इसका अध्ययन स्वर्ग को प्राप्त कराने वाला है, अतः मानव जीवन को सार्थक करने हेतु, अवश्य पढ़ें।

इसमें भगवान की लीलाओं का वर्णन है, व विदुर जी द्वारा मैत्री जी से सृष्टि क्रम वर्णन के संबंध में प्रश्न किए गए हैं।

1-शुकदेवजी व परीक्षित संवाद! Shukdev ji and Parikshit’s dialogue!

  • श्री शुकदेवजी से परीक्षित ने पूछा; भगवान मैत्रेयजी से विदुर जी का समागम कहां और किस प्रकार हुआ था?
  • श्री शुकदेवजी कहते हैं; जब अंधे धृतराष्ट्र ने पुत्रप्रेम में पड़कर, दुष्टपुत्रों के साथ मिलकर लाक्षागृह में आग लगाई,
  • भरी सभा में पुत्रवधू द्रौपदी का अपमान किया, युधिष्ठिर से अन्याय से जुए में राज्य को जीत उन्हें वन में भेज दिया ।
  • वन से लौटने पर प्रतिज्ञानुसार उन्हें संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया,श्रीकृष्ण के समझाने पर भी उनकी बातें नहीं सुनी।

2- विदुर द्वारा हस्तिनापुर का त्याग! Abandonment of Hastinapur by Vidur!

  • विदुरजी ने जब युदिष्ठिर को उनका हिस्सा देने की बात समझाई तो दुर्योधन ने विदुरजी का अपमान बहुत किया।
  • तथा विदुर को सभा से निकाल दिया, तब विदुरजी राज द्वार पर अपना धनुष रखकर हस्तिनापुर से चले गए।
  • अतः भारतवर्ष में विचरते हुए जब वे प्रभास क्षेत्र पहुंचे वहां पर युदिष्ठिर अपना एकछत्र राज्य कर रहे थे ।
  • वहां उन्हें कौरवों के विनाश का पता लगा। जिससे भी बहुत दुखी हुए ।तथा तीर्थों के दर्शन करने चल दिये। (श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध भाग-1)

3- विदुरजी की उद्धवजी से भेंट! Vidurji’s meeting with Uddhavji!

  • चलते चलते विदुरजी यमुनातट पर पहुंचे वहाँ उनकी उद्धवजी से भेंट हुई। विदुरजी ने उद्धव से,
  • श्रीकृष्ण और अपने स्वजनों का कुशल क्षेम पूछा तो उद्धवजी भगवान की बाल लीलाओं को याद कर रो पड़े।
  • उद्धव जी बोले श्री कृष्ण के पास ना होने से वे श्रीहीन हो गए हैं। कृष्ण का मधुर मनोहारी रूप अद्भूत है।
  • वसुदेव जी के घर जन्म लेना और बाल सुलभ क्रीडा करना भी अत्यंत विलक्षण व अविस्मरणीय है। (श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध भाग-1)

4-श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन! Description of the pastimes of Shri Krishna!

  • उद्धवजी श्रीकृष्ण की लीलाओं को याद करते हुये कहतें है कि
  • शिशुपाल वध करने वाले तीनों लोकों के अधीश्वर,कभी उग्रसेन के सामने खड़े होकर प्रार्थना करते हैं।
  • तो कभी पूतना का वध करते हैं, कहीं ग्वालों के साथ गाय चराते हैं।
  • वे कहीं कंस द्वारा भेजे गए असुरों को खेल-खेल में ही मार डालते हैं।
  • और कहीं कलियानाग दमन करते हैं।कहीं गोवर्धन पूजारूप गोयज्ञ कराया,
  • उन्होंने गोवर्धनपर्वत को अपनी अंगुली में उठाकर इंद्र का मानमर्दन किया।
  • तो कहीं गोपियों के साथ शरदचंद्रमा की चांदनी में रासलीला करते हैं ।

5-श्रीकृष्ण की अन्य लीलाएं! Other Leelas of Shri Krishna!

  • उद्धवजी कहते हैं कि; मथुरा पहुंचकर श्री कृष्ण ने कंस का वध कर,अपने माता-पिता को मुक्त कराया।
  • अपने गुरु सांदीपनि के द्वारा एक बार उच्चारण किए हुए सांगोपांग वेद का अध्ययन कर दक्षिणा में,
  • उनके मरे हुए पुत्र को पंचजन राक्षस के पेट से (यमपुरी से) लाकर दे दिया।

6- श्रीकृष्ण विवाह! Shri Krishna wedding!

  • रुक्मिणीजी के निवेदन पर उनका हरण कर, विवाह किया।
  • सात बिना नथे हुए बैलों को नथकर,सत्या से विवाह किया।
  • सत्यभामा के लिए स्वर्ग से कल्पवृक्ष उखाड़ लाये।भौमासुर का वध कर बन्दी राजकन्याओं को मुक्त कराया।
  • तथा उनके निवेदन पर उन सभी से अलग-अलग रूप धर कर , विवाह किया ।
  • और उनसे 10-10 पुत्र उत्पन्न किए। (श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध भाग-1)

7- पांडवों की रक्षा करना! Protect the Pandavas!

  • उद्धवजी कहते हैं; कालयवन, जरासंध, शाल्वादी, शम्बर, द्विविध, बाणासुर, मोर, बल्बल व दन्तवक्त्र का वध किया।
  • कुरुक्षेत्र में कौरव पांडव युद्ध में कर्ण, दुशासन, शकुनी, अठारह अक्षौहिणी सेना का संहार किया।
  • युधिष्ठिर को राजगद्दी में बिठाया ।उत्तरा के गर्भ को जो अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से नष्ट हो चुका था उसे बचाया।
  • युधिष्ठिर को तीन अश्वमेघ यज्ञ कराए ।इस प्रकार कृष्ण की लीलाओं का बखान करते हुए उद्धव जी बताने लगे ,

8- यादव वंश के विनाश का कारण! The reason for the destruction of the Yadav dynasty!

  • एक बार द्वारकापुरी में यदुवंशी और भोज वंशी बालकों ने खेल-खेल में मुनिश्वरों को चिढ़ा दिया।
  • जिससे कुपित हो ऋषियों ने बालकों को शाप दे दिया।
  • इस श्रापवश कुछ महीने बाद जब यादव प्रभास क्षेत्र को गए।
  • वहां उन्होंने ब्राह्मणों के सत्कार कर उनकी आज्ञा लेकर भोजन व वारुणी मदिरा का पान किया ।
  • जिससे उनकी बुद्धि नष्ट हो गई । वे आपस में ही लड़ने-मरने लगे। और इस तरह यादव वंश का नाश हो गया ।

9-श्रीकृष्ण द्वारा उध्दव को भागवत उपदेश! Bhagwat preaches to Uddhava by Shri Krishna!

  • श्री कृष्ण सरस्वती नदी के तट पर बैठे यादवों का विनाश देख रहे थे, तभी वहां मैत्रेयजी पहुंचे ।
  • वहीं पर श्री कृष्ण ने मुझे भागवत का उपदेश दिया तथा अपने स्वरूप स्थिति का उपदेश दिया।
  • किंतु अब उनकी विरह से व्यथित होकर मैं उनके क्षेत्र बद्रिकाश्रम जा रहा हूं।

10- उद्धवजी कैसे जीवित रहे! How did Uddhavji survive!

  • श्री शुकदेव जी कहते हैं; कि उद्धव जी के मुख से अपने प्रिय जनों का विनाश सुनकर बहुत दुखी हुए।
  • परीक्षित ने पूछा; यादव कुल और स्वयं श्रीकृष्ण के उस रूप की समाप्ति के बाद उद्धव जी कैसे जीवित रहे?
  • श्री शुकदेवजी ने कहा; परीक्षित! श्रीकृष्ण ने लीला से विग्रह प्रकट किया और लीला से ही उसे अंतर्धान किया।
  • तथा उद्धव जी को आदेश दिया कि वे लोगों को श्रीकृष्ण के परमज्ञान की शिक्षा देने के लिए यहीं रहें।

9- मैत्रेय जी द्वारा सृष्टि क्रम वर्णन!

The creation sequence by Maitreya Ji!

  • श्री शुकदेव जी कहते हैं; गंगातट पर पहुंचकर विदुरजी ने, मैत्रेयजी से प्रश्न किया!
  • संसार में सभी लोग सुख के लिए ही कर्म करते हैं किंतु फिर भी दुख ही प्राप्त होता है, ऐसा क्यों है?
  • मैत्रेयजी बोले; सृष्टि रचना के पूर्व न दृष्टा था, न दृश्य।
  • दृश्य और अदृश्य की खोज करने वाली शक्ति ही कार्य कारण स्वरूपा माया है ।
  • माया के द्वारा ही भगवान ने विश्व का निर्माण किया है।(श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध भाग-1)

10- विराट शरीर की उत्पत्ति! The origin of the great body!

  • श्री मैत्रेयजी ने कहा सर्वशक्तिमान भगवान ने जब देखा कि आपस में संगठित ना होने के कारण महत्तत्व आदि,
  • शक्तियां विश्व रचना के कार्य में असमर्थ हो रही हैं तब वे काल शक्ति को स्वीकार करके,एक साथ ही महत्तत्व,
  • अहंकार, पंचभूत,पँचतन्मात्रा, मन सहित 11 इंद्रियां-
  • इन 23 तत्वों के समुदाय में प्रविष्ट हो गए और अदृष्टको जागृत कर,
  • अपनी क्रिया शक्ति के द्वारा उस तत्व समूह को आपस में मिलाकर अपने अंश द्वारा,
  • आदि पुरुष विराट को उत्पन्न किया, जिसमें चराचर जगत विद्यमान है।

11-विदुर जी के प्रश्न ! Question of Vidur ji!

  • विदुरजी ने पूछा ; प्रभु की लीला से गुण और क्रिया का संबंध कैसे हो सकता है?
  • यह सुनकर मैत्री जी ने कहा ;”जो आत्मा सबका स्वामी है।
  • व सर्वथा मुक्त रूप है वही दीनता और बंधन को प्राप्त हो ;
  • यह बात युक्ति विरुद्ध अवश्य है किंतु यही भगवान की माया है।
  • विदुरजी ने कहा आपके ज्ञान पूर्ण वचनों से मेरा अज्ञान अंधकार दूर हो गया है।
  • इस संसार में दो ही प्रकार के लोग प्रसन्न हैं।
  • एक तो जो अधिक मूढ़ हैं या जो भगवान को प्राप्त कर चुके है।

अवश्य पढ़ें-  श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध

श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध

12- पुराण श्रवण का क्रम! The order of Purana listening!

  • श्री शुकदेवजी कहते हैं राजन!  विदुर जी द्वारा श्री मैत्रेयजी से पुराण विषय प्रश्न किए जाने पर
  • मैत्रीय जी ने कहा; क्षुद्र विषय सुख की कामना से,
  • महान दुखों को मोल लेने वाले पुरुषों की दुख निवृत्ति का उपाय श्रीमद्भागवत पुराण है।
  • इसे स्वयं भगवान संकर्षण में सनत कुमार जी को तथा सनत कुमार जी ने सांख्यायन मुनि को, तथा
  • सांख्यायन मुनि ने श्री पाराशर जी और बृहस्पति जी को तथा बृहस्पति जी ने
  • यह आदि पुराण मुझसे कहा; वही पुराण मैं तुम्हें सुनाता हूं।…..क्रमश:………
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा!

श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध भाग-1 का शेष भाग अगले लेख में प्रस्तुत किया जाएगा। देखें

http://Indiantreasure.in

 

यह आलेख श्रीमद्भागवत महापुराण से संकलित कर मेरे द्वारा संक्षिप्तीकरण किया गया है। जो भी त्रुटियां हो क्षमा करें।।

श्रीमद्भागवत कथा महात्म्य| जया किशोरीजी 

https://youtu.be/eENjSM9g1ao

 

 

!जय श्री कृष्णा!

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8 thoughts on “श्रीमद्भागवत कथा तृतीय स्कन्ध-भाग-1

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय..🙏💐 सुंदर जानकारी..👌💞

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