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श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध

श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध भक्ति अमृत है। इसमें सती के प्राण त्याग एवं वीरभद्र द्वारा यज्ञ विध्वंस और दक्ष प्रजापति का वध करना एवं देवताओं की प्रार्थना पर दक्ष को पुनर्जीवित कर यज्ञ की पुनः पूर्ति करना, जैसे अत्यंत रोचक कथानक है।

 श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध भाग 1 में आप पाएंगे

  1. स्वयंभू मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन।
  2. देवहुति आदि कन्याओं का वंश वर्णन।
  3. अरुंधति आदि कन्याओं का वंश वर्णन।
  4. भगवान शिव और दक्ष का बैर।
  5. सती का यज्ञोत्सव में जाने का आग्रह।
  6. सती का अग्निप्रवेश।
  7. दक्षयज्ञ विध्वंश।
  8. वीरभद्र द्वारा दक्षवध।
  9. दक्ष यज्ञ की पूर्ति हेतु देवताओं द्वारा भगवान शिव की स्तुति!

1-स्वयंभू मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन! Description of the descent of daughters of Swayambhu Manu!

  • श्रीमैत्रेयजी कहते हैं; कि स्वयंभू मनु के महारानी शतरूपा से प्रियव्रत और उत्तानपाद के दो पुत्र थे।और
  • तीन कन्यायें क्रमशः आकूति,देवहुती और प्रसूति उतपन्न हुईं। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ हुआ।
  • प्रजापति रुचि भगवान के ब्रह्म तेज से संपन्न थे। उन्होंने आकुति के गर्भ से एक स्त्री-पुरुष का जोड़ा उत्पन्न किया।
  • उनमें जो पुरुष था वह साक्षात यज्ञस्वरूप धारी भगवान विष्णु और स्त्री लक्ष्मी जी की अंशरूपा दक्षिणा थी।
  • पुत्रीकाधर्म अनुसार आहुति के पहले पुत्र भगवान यज्ञ पुरुष को मनु ले गए व दक्षिणा को रुचि प्रजापति ने रखा।
  • यज्ञ पुरुष व दक्षिणा के से 12 पुत्र हुए-तोष,संतोष, प्रतोष भद्र ,शांति,इडस्पति,इध्म, कवि,विभू, स्वह्न सुदेव, रोचन।(श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध भाग 1)

अब स्वयं पढें; श्रीमद्भागवत महापुराण (एक संक्षिप्त विवरण) प्रथम स्कंध-भाग 2 Now read it yourself; Shrimad Bhagwat Mahapuran (A brief description) First Wing-Part 2

2-देवहूति आदि कन्याओं का वंश वर्णन! Descent description of the girls of Devahuti etc.

  • कर्दम जी की नौ कन्याएं, नौ ब्रह्मऋषियों से ब्याही गई थी। जिसमे कला व मरीचि ऋषि से कश्यप,पूर्णिमा दो पुत्र हुए।
  • अत्रि-अनुसूया से दत्तात्रेय दुर्वासा और चंद्रमा नाम के तीन परमयशस्वी पुत्र ब्रह्मा-विष्णु-महेश के अंश से उत्पन्न हुएथे।
  • अंजीरा व श्रद्धा की सिनिकाली, कुहू, राका और अनुमति 4 कन्याएं हुईं, व दो पुत्र उतथ्यजी व बृहस्पतिजी हुए।
  • पुलस्त्यजी व हविर्भू से महर्षि अगस्त्य और विश्रवा हुए इनमें अगस्त जी दूसरे जन्म में जठराग्नि हुए।
  • विश्रवा मुनि के इडविडा के गर्भ से यक्ष राज कुबेर का, व दूसरी पत्नी केशिनी से रावण कुंभकरण एवं विभीषण हुए।
  • महर्षि पुलह व गति से कर्मश्रेष्ठ, वरियान व सहिष्णु 3पुत्र व क्रतु व क्रिया से वालखिल्यादि 60000 ऋषि उतपन्न हुये।

3- अरुंधति आदि कन्याओं का वंश वर्णन! Descent of Arundhati etc. girls!

  • अरुंधति एवं वशिष्ठजी से चित्रकेतु,सुरोची,विरजा,मित्र, उल्बण, वसुभृध्यान व द्युमान पुत्र हुए ।
  • अथर्व व चिति से दध्यंग(दधीचि)(अश्वशिरा)हुए। भृगुजी व ख्याति से धाता,विधाता दो पुत्र व श्री नाम की कन्या हुई।
  • जिनका विवाह मेरुऋषि की पुत्रियों आयति और नियति से हुआ उनसे उनके मृकण्ड और प्राण नामक पुत्र हुए।
  • मृकण्ड के मार्कंडेय और प्राण के वेदशिरा का जन्म हुआ। भ्रुगूजी के कवि नामक पुत्र से उसना ( शुक्राचार्य) हुए।
  • ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति ने मनु पुत्री प्रसूति से विवाह किया जिससे उन्हें 16 कन्याएं उत्पन्न हुई ।
  • भगवान दक्ष ने उनमें से 13 धर्म को एक अग्नि को एक समस्त पितृगण को और एक भगवान शंकर को दी। (श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध भाग 1)

4- भगवान शिव एवं दक्ष प्रजापति का बैर! Hate Lord Shiva and Daksha Prajapati!

  • एक बार प्रजाप्रतियों के यज्ञ में सभी ऋषि,मुनि,देवता व अग्नि आदि एकत्र हुए। तभी दक्ष ने भी वहां प्रवेश किया।
  • उन्हें आया देख ब्रह्माजी और महादेवजी के अतिरिक्त अग्नि पर्यंत सभी सभासद अपने आसनों से उठकर खड़े हो गए।
  • परंतु महादेव जी को बैठा देख व उनसे कुछ भी आदर न पाकर दक्ष उनका यह व्यवहार सहन नहीं कर सके ।
  • तब क्रोध में आकर दक्ष ने भगवान शंकर को बहुत भला बुरा कहा । किंतु शिव ने इसका कोई प्रतिकार नहीं किया।
  • जिससे दक्ष का क्रोध और बढ़ गया और उन्होंने जल हाथ में लेकर भगवान शिव को शाप दे दिया।
  • कि “यह महादेव देवताओं में बड़ा ही अधम है अब से इसे इंद्र उपेंद्र आदि देवताओं के साथ यज्ञ का भाग ना मिले।”

अब स्वयं पढें; श्रीमद्भागवत महापुराण (एक संक्षिप्त विवरण) तृतीय स्कंध-भाग-5 Now read it yourself; Shrimad Bhagwat Maha Purana (A brief description) Third Wing-Part-5

5-सती का यज्ञोत्सव में जाने का आग्रह करना! Sati urging to go to Yajnotsava!

  • इस प्रकार ससुर व दामाद का आपस में बैर विरोध चला। ब्रह्माजी ने दक्ष कोसबप्रजापतियों का अधिपति बना दिया।
  • दक्ष ने पहले तो वाजपेययज्ञ किया फिर बृहस्पतिसव नाम का महायज्ञ आरंभ किया। जिसमें सभी ब्रह्मऋषि देवऋषि,
  • पितर देवता आदि अपनी पत्नियों के साथ जाने लगे। उनसे सती ने पिता के घर हो रहे यज्ञ की बात सुन ली।
  • जिसे सुन सती ने भगवान शंकर से यज्ञ में चलने का आग्रह किया।भगवान ने सती को वहां जाने से मना किया व कहा;
  • यदि तुम मेरी बात ना मान कर वहां जाओगी तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि जब किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति
  • का अपने आत्मीय जनों के द्वारा अपमान होता है तब वह तत्काल उनकी मृत्यु का कारण हो जाता है। (श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध भाग 1)

6- सती का अग्नि प्रवेश! Fire Entrance of Sati!

  • भगवान शंकर के मना करने पर सती अकेले ही अपने पिता के घर चली गई।मां-बहनों ने सती का स्वागत किया।
  • पिता द्वारा सती की अवहेलना की गई। सती ने देखा कि यज्ञ में भगवान शंकर के लिए कोई भाग नहीं दिया गया है।
  • और दक्ष उनका बड़ा अपमान कर रहा है। इससे उन्हें बहुत क्रोध हुआ। उन्होंने पिता की निंदा करते हुए क्रोध से कहा;
  • भगवान शंकर से बड़ा तो संसार में कोई भी नहीं है। आप भगवान शंकर का अपराध करने वाले हैं ।
  • अतः आपके शरीर से उत्पन्न इस निंदनीय देह को रखकर मुझे क्या करना है।
  • मैं आपके अंग से उत्पन्न इस शव तुल्य शरीर को त्याग दूंगी।और सती का शरीर तुरंत ही योगाग्नि से जल उठा।(श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध भाग 1)

7- दक्षयज्ञ विध्वंस! Daksha Yagya Demolition!

  • सती का प्राणत्याग देख शिवजी के पार्षद दक्ष को मारनेको उठखड़े हुए।जब महादेवजी ने सती के प्राणत्याग को सुना।
  • तो शिव ने उग्ररूप धारण कर क्रोध से ओंठ चबाते हुए अपनी एक जटा उखाड़ उसे पृथ्वी पर पटक दिया ।
  • उससे तुरंत ही एक भयंकर पुरुष उत्पन्न हुआ , उसने भगवान से पूछा मैं क्या करूं! भगवान ने कहा;
  • वीर रूद्र तू तुरंत ही जा और दक्ष तथा उसके यज्ञ को नष्ट कर दे । तब भगवान की परिक्रमाकर त्रिशूल हाथ में लेकर,
  • वीरभद्र दक्ष के यज्ञमंडप की ओर दौड़े,वहां पहुंचकर समस्त यज्ञशाला, मंडप,आग्नीध्रशाला,यजमान ग्रह,
  • पाकशाला सभी को तहस-नहस कर दिया।यज्ञपात्र फोड़ दिए,अग्नियों को बुझा दिया, व दक्षयज्ञ विध्वंस कर दिया।(श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध भाग 1)

आप स्वयं पढ़ें; श्रीमद्भागवत महापुराण (एक संक्षिप्त विवरण)- द्वितीय स्कंध- भाग-2 You read yourself; Shrimad Bhagwat Mahapuran (A brief description) – Second Wing – Part-2

8- वीरभद्र द्वारा दक्ष वध! Daksha slaughter by Virbhadra

  • यज्ञ के विध्वंस को देखते हुए ऋषि-मुनि,देवता,पितर सभी भागने लगे। वीरभद्र ने प्रजापति दक्ष को कैद कर लिया ।
  • फिर वीरभद्र दक्ष की छाती पर बैठकर एक तलवार से उसका सिर काटने लगे परंतु बहुत प्रयत्न करने पर भी 
  • वे उस समय उसे धड़ से अलग ना कर सकें। जब किसी भी प्रकार के अस्त्र शास्त्रों से दक्ष की त्वचा नहीं कटी।
  • तब वीरभद्र को बड़ा आश्चर्य हुआ तब उन्होंने यज्ञ मंडप में यज्ञ पशुओं को जिस प्रकार मारा जाता था उसे देखकर,
  • उसी प्रकार दक्ष रूप उस यजमानपशु का सिर धड़ से अलग कर दिया । वीरभद्र ने दक्ष के सिर को यज्ञ की ,(श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध भाग 1)
  • दक्षिणा अग्नि में डाल दिया और उस यज्ञशाला में आग लगा, यज्ञ को विध्वंस कर, कैलाश पर्वत को लौट गए।

9-दक्ष यज्ञ की पूर्ति हेतु देवताओं द्वारा भगवान शिव की स्तुति! Praise Lord Shiva to the gods for the fulfillment of Daksh Yagya!

  • दक्षयज्ञ विध्वंस एवं दक्षवध से भयभीत हो देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्हें सारा वृत्तांत बताया ।
  • जिसे सुनकर ब्रह्मा जी ने सभी को कैलाश पर्वत पर जाकर महादेव जी को मनाने के लिए कहा।
  • तब देवताओं ने विभिन्न प्रकार से महादेव जी की स्तुति की और उनसे पुनः यज्ञ की पूर्ति हेतु प्रार्थना करने लगे।
  • प्रसन्न होकर महादेव ने दक्ष को पुनर्जीवित कर दिया व दक्ष का सिर जल जाने से उसे बकरे का सिर लगा दिया ।
  • इस प्रकार भगवान शंकर से अपना अपराध क्षमा कराकर दक्ष ने ब्रह्मा जी के कहने पर यज्ञ कार्य आरंभ किया।
  • फिर दक्ष ने यज्ञ को पूर्ण कर भगवान शंकर को यज्ञशेष रूप उनके भाग से यजन कर यज्ञ की समाप्ति की।(श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध भाग 1)

महादेव जी का यह पावन चरित्र ( श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध भाग 1) यश और आयु को बढ़ाने वाला तथा पाप को नष्ट करने वाला है।

श्रीमद्भगवत महात्म्य श्री ज्याकिशोरी जी

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https://youtu.be/eENjSM9g1ao

जो व्यक्ति भक्ति भाव से इसका नित्य प्रति श्रवण और कीर्तन करता है वह अपनी पाप राशि का नाश कर देता है।क्रमशः…

जय श्री कृष्णा! चतुर्थ स्कंध का शेष भाग अगले लेख में प्रस्तुत किया जाएगा।

चतुर्थ स्कंध भाग 2👇👇

श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध

यह आलेख श्रीमद्भागवत महापुराण से संकलित कर मेरे द्वारा संक्षिप्तीकरण किया गया है । जो भी त्रुटियां हो क्षमा करें। 

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✍️ श्रीमती रेखा दिक्षित एडवोकेट सहस्त्रधारा रोड देवदर्रा मंडला।

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