Jai jai girivar raj-kishori ; जय जय गिरिवर राज किशोरी… अद्भुत और चमत्कारी फल देने वाली यह स्तुति सीता माता द्वारा पार्वती जी से भगवान राम को वर के रूप में पाने के लिए की गई थी । इसका उल्लेख श्रीरामचरितमानस में बालकांड में कवि तुलसीदास जी द्वारा किया गया है।
इसी स्तुति से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने सीता जी को मनचाहा वर भगवान राम के रूप में पाने का वरदान दिया था। अतः हरितालिका व्रत तीजा के दिन माता पार्वती से सभी सुहागन व कुंवारी कन्याओं को सर्वश्रेष्ठ वर की कामना के लिए यह स्तुति अवश्य करनी चाहिए। जिससे प्रसन्न होकर माता पार्वती मनचाहा वर प्रदान करती हैं।
अचल सुहाग की कामना करने के लिए भी सुहागिनों को माता पार्वती से यह स्तुति अवश्य करनी चाहिए। अचल होय अहिवातु तुम्हारा । इस प्रकार अखंड सुहाग का वरदान प्राप्त करने के लिए करें यह पार्वती मां से स्तुति Jai jai girivar raj-kishori ; जय जय गिरिवर राज किशोरी… इस स्तुति के बिना हरितालिका व्रत महादेव और पार्वती की पूजा अधूरी मानी जाती है।
Jai jai girivar raj-kishori ; जय जय गिरिवर राज किशोरी…
1- जय जय गिरिबरराज किसोरी।
जय महेश मुख चंद चकोरी।।
जय गजबदन षडानन माता।
जगत जननि दामिनि दुति गाता।।
2- नहिं तव आदि मध्य अवसाना।
अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।।
भव भव विभव पराभव कारिनि।
बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।
[दोहा]
3- पतिदेवता सुतीय महुँ,
मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि,
सहस शारदा सेष ।।
4- सेवत तोहि सुलभ फल चारी।
बरदायिनी पुरारि पिआरी।।
देवि पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।
5- मोर मनोरथु जानहु नीकें।
बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।।
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं।
अस कहि चरन गहे बैदेहीं।।
6- विनय प्रेम बस भई भवानी।
खसी माल मूरति मुसुकानी।।
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ।
बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।।
7- सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।
नारद बचन सदा सुचि साचा।
सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।
[छंद]
8- मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु,
सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु,
सनेहु जानत रावरो।।
9- एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय,
सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि,
मुदित मन मंदिर चली।।
[सोरठा]
10- जानि गौरि अनुकूल सिय,
हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल,
बाम अंग फरकन लगे।।
Jai jai girivar raj-kishori ; जय जय गिरिवर राज किशोरी…हिंदी अर्थ सहित !
1- हे श्रेष्ठ पर्वतों के राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती! आपकी जय हो, जय हो,
हे महादेव के मुखरूपी चंद्रमा की (ओर टकटकी लगाकर देखनेवाली) चकोरी! आपकी जय हो,
हे हाथी के मुखवाले गणेश और छह मुखवाले स्वामिकार्तिक की माता!
माँ जगज्जननी! हे बिजली की-सी कांतियुक्त शरीरवाली! आपकी जय हो
2- आपका न आदि है, न मध्य है और न अंत है। आपके असीम प्रभाव को वेद भी नहीं जानते।
आप संसार को उत्पन्न, पालन और नाश करने वाली हैं।
विश्व को मोहित करने वाली और स्वतंत्र रूप से विहार करने वाली हैं।
[दोहा]
3- पति को इष्टदेव माननेवाली श्रेष्ठ नारियों में हे माता! आपकी प्रथम गणना है।
आपकी अपार महिमा को हजारों सरस्वती और शेष भी नहीं कह सकते॥
4- हे (भक्तों को मुँहमाँगा) वर देनेवाली! हे त्रिपुर के शत्रु शिव की प्रिय पत्नी!
आपकी सेवा करने से चारों फल सुलभ हो जाते हैं।
हे देवी! आपके चरण कमलों की पूजा करके देवता, मनुष्य और मुनि सभी सुखी हो जाते हैं।
5- मेरे मनोरथ को आप भली-भाँति जानती हैं; क्योंकि आप सदा सबके हृदयरूपी नगरी में निवास करती हैं।
इसी कारण मैंने उसको प्रकट नहीं किया। ऐसा कहकर जानकी ने उनके चरण पकड़ लिए।
6- गिरिजा सीता के विनय और प्रेम के वश में हो गईं। उन (के गले) की माला खिसक पड़ी और मूर्ति मुसकराई।
7- सीता ने आदरपूर्वक उस प्रसाद (माला) को सिर पर धारण किया। गौरी का हृदय हर्ष से भर गया और वे बोलीं –
8- जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से ही सुंदर साँवला वर (राम) तुमको मिलेगा।
वह दया का खजाना और सुजान (सर्वज्ञ) है, तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है।
9- इस प्रकार गौरी का आशीर्वाद सुनकर जानकी समेत सब सखियाँ हृदय में हर्षित हुईं।
तुलसीदास जी कहते हैं – भवानी को बार-बार पूज कर सीता प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं।
10- गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के हृदय को जो हर्ष हुआ, वह कहा नहीं जा सकता।
सुंदर मंगलों के मूल उनके बाएँ अंग फड़कने लगे ।
माता पार्वती की स्तुति सभी मनोकामना को पूरी करने वाली तथा स्त्रियों को अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाली तथा कन्याओं को मनचाहा वर प्रदान करने वाली है।
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