अनन्त की सैर पर टीटू और छात्रवृत्ति दो लघुकथाएं श्रीमती मनोरमा दीक्षित (पूर्व प्राचार्या) मण्डला द्वारा लिखी गई है। जो उनके कहानी संग्रह कथालोक में संकलित हैं। कथालोक में अत्यंत मनोरंजक ,शिक्षप्रद व प्रेरक कहानियां लिखी गई हैं ।
ये कहानियां बच्चों को बातों ही बातों में संस्कार व प्रेरणा के साथ साथ जानकारी भी बढ़ाती हैं। तथा बालमन की जिज्ञासाओं को पूरा करती है। अवश्य पढ़ें व बच्चों को भी सुनाएं। इससे बच्चों में साहित्य के प्रति रुचि बढ़ेगी और स्वस्थ मानसिकता पनपेगी।
26 कहानियों की इस श्रृंखला की दो लघुकथायें “छात्रवृत्ति” और ” अनन्त की सैर पर टीटू ” प्रस्तुत है।
छात्रवृत्ति एक लघु कथा !
सोहनसिंह वल्द मोहनसिंह जब लगातार विद्यालय से अनुपस्थित रहने लगा
तो कक्षा शिक्षक महोबिया जी चिन्तित हुए। न जाने कौन सी तकलीफ में फस गया है बेचारा ।
बार-बार खबर भेजने पर भी शाला नहीं आ रहा है। अब तो वार्षिक परीक्षा भी पास आ गयी
और छात्रवृत्ति के बिल भी भेजने हैं जो उपस्थिति के अनुसार ही बनेंगे।
आखिर हारकर उन्होंने तीन दिन के अन्दर विद्यालय में उसे उपस्थित होने का नोटिस भेजा।तीसरे दिन आसुओं से डूबी आवाज लिए मुडे सिर पर गमछा बांध सोहन शाला पहुंचा।
गुरूदेव ने उसकी हालत समझ उपस्थिति रजिस्टर में उसकी उपस्थिति सुधारी। वह संतुष्ट हो घर चला गया।
अगले सप्ताह के छात्रवृत्ति के चैक काट ही रहे थे तभी उनकी आँखों के सामने अंधेरा छा गयाऔर चैकबुक कलम सहित नीचे जा गिरी क्योंकि छात्रवृत्ति की राशि जानने सोहनसिंह के पिता मोहनसिंह उसके सामने खड़े थे।
“अनन्त की सैर पर टीटू”
आज सारा परिवार, आर्यमा तथा ज्ञानू के दोस्त बहुत उदास थे।
आज उनका “टीटू” संसार के बंधन को तोड़ अनन्त यात्रा पर जा चुका था।
उसका घर, उसके बरतन, सब एकदम शांत थे उसकी खड़खड़ नहीं हो रही थी।
कोई आर्यमा, ज्ञानू, दादी से “नमस्ते राम राम और “नर्मदे हर” नहीं कर रहा था।
उनके पिताजी ने साथ जाकर एक केले के पत्ते में टीटू को रखकर उस पर गुलाल, फूलमाला चढ़ा, इत्र छिड़का था।
अब “टीटू” को गंगाजल एवं भूमि शयन दिया गया था। सभी ने वहां से आकर स्नान किया और उसे अर्घ्य दिया।
उसकी याद रोज होती थी।
आज “टीटू” की तेरहवीं थी।
ज्ञानू पहले ही “टीटू” की फोटो (जिसमें वह अपनी लाल चोंच में मिर्च दबाये है, कैद की थी) उसे फ्रेम करवाकर छत में रखा आया था।
उसमें सुगंधित पुष्प की माला चढ़ी थी। उसकी आत्मा की शांति हेतु पखेरुओं का निमंत्रण था।
सभी दोस्त मोनू, सोनू, ज्ञानू, आर्यमा, अनुष्का, भोज की सामग्री को तेरह कटोरियों में सजा रहे थे
और तेरह छोटी कटोरियों में पानी रखा गया था।
भीगी चने की दाल, हरी मिर्च, अमरूद के टुकड़े और बिस्किट उनकी “भोज सामग्री”
छत पर केले के पत्ते बिछाकर सारी कटोरियों में रखी गयी थी।
“टीटू” का घर भी (अर्थात् पिंजड़ा) अच्छी तरह धोया गया था।
दादाजी ने जल फेरकर मंत्र पढ़ा, उसमें सभी ने साथ दिया (ॐ सहनाववतु…) अब वे सब समवेत स्वर में गा रहे थे
हरे रंग का है यह तोता,
हरे रंग का है यह तोता,
जाने कब जागता कब सोता।
चोंच लाल है और नुकीली,
आँखें है उसकी चमकीली ।।
भींगे चने चाव से खाता,
मिरच देखकर चोंच बढ़ाता…
अब यह नहीं कभी डरता है;
राम राम सबसे करता है।
“अनन्त की सैर पर टीटू”
अब सब बच्चे दादी के साथ नीचे उतर आये सभी के कानों में केवल टीटू की पैनी आवाज गूंज रही थी।
“नमस्ते नमस्ते, सीताराम नर्मदे हर”। उनकी आँखों में उसका रूप झूल रहा था।
वे अब उस भूरी बिल्ली को बिल्कुल नहीं आने देते थे जिसने “टीटू” की इहलीला समाप्त कर दी थी।
दिनभर सबने भजन कीर्तन और मानस का पाठ किया।
शाम को जब वे छत पर गये तो क्या देखते हैं कि सारी कटोरिया खाली थीं।
सब ने भोज स्वीकार लिया था और “टीटू” को याद करते हुए अपने घर गये होंगे।
दादी जी ने सभी बच्चों को एवं पड़ोसियों को समझाया कि उसे पिजड़े में कैद करना गलत था।
आज सभी जन ने शपथ ली कि वे मुक्त गगन और हरे भरे वनों की सैर करने वाले पखेरूओं को स्वतंत्र मनमौजी जीवन देंगे।
अब सब शांति का अनुभव कर रहे थे और दिन भर बाद व्रत तोड़ भोजन कर रहे थे।
ॐ शांति शांति शांति ।।
अनन्त की सैर पर टीटू (कथालोक) (श्रीमती मनोरमा दीक्षित पूर्व प्राचार्या, मण्डला।
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