नमस्कार दोस्तों! घोड़ों की खेती लघुकथा बच्चों की शिक्षाप्रद मनोरंजक कहानी है । जिसमें बातों ही बातों में बच्चों को अच्छी शिक्षा दी गई है। कहानी सुनते सुनते ही बच्चे संस्कारित होने लगते हैं । अतः इस तरह की कहानियां बच्चों को अवश्य सुनाई जानी चाहिए जिससे उनका मानसिक और दिमागी विकास होता है। उनकी सोच सकारात्मक होती है।
बच्चों के मन में उठते हुए बहुत से प्रश्नों का समाधान छोटी-छोटी मनोरंजक कहानियों के जरिए आसानी से किया जा सकता है।आज इसी कड़ी में हम आपको श्रीमती मनोरमा दीक्षित पूर्व प्राचार्य मंडला द्वारा लिखी गई बाल कहानी संग्रह “कथा लोक” की एक कहानी “घोड़ों की खेती लघुकथा” बताएंगे।
! घोड़ों की खेती लघु कथा !
अजमेर से पुष्कर के रास्ते में गहरी घाटी के अंदर बसे गाव “भुरभुरा” में अधिकांश लोग गौ पालन करते थे।
वहाँ पास में ग्राम चुडिया में कुछ अफीमची रहते थे। ग्राम में काफी जाग्रति थी।
राई, तिल तथा दलहन फसलों का थोक व्यापार होता था। सभी अपने काम में लगे रहते थे,
पर ये अफीमची रोज ही कुछ न कुछ उपद्रव खड़ा कर देते थे।
एक दिन किसी के समझाने बुझाने पर वे खेती करने को तैयार हुए।
उन्होंने आपस में सलाह की कि भाई अपने पास जमीन तो है नहीं ।
किसी दूसरे के खेत में काम करके हमें किसी का नौकर नहीं बनना ।
अपन ग्रामपंचायत में जाकर आवेदन दें और जमीन मांगे। बहरहाल वे पंचायत की बैठक में पहुँचे
और अपनी समस्या बताई कि वे घोड़े की खेती करना चाहते हैं पर उनके पास जमीन नहीं है।
उनकी बातें सुनकर पंच-सरपंच सभी एक दूसरे का मुँह देखने लगे।
सरपंच दादा ने सबसे सलाह की और निर्णय लिया कि जंगल के किनारे जो फालतू जमीन पड़ी है,
वहीं इन्हें देकर हम इनसे पीछा छुड़ायें। ये अफीमची कुछ न कुछ उपद्रव करते रहते हैं ।
अतः कुछ न कुछ में लगे रहें तभी भलाई है।
अब सचिव ने उनका ..
( घोड़ों की खेती लघुकथा )
आवेदन लेकर जंगल के किनारे की खाली पड़ी जमीन का पट्टा उन्हें बनवा दिया।
वे अब खुश हो घोड़ों की खेती करने के लिए जमीन को घेरने लगे।
मधवा अकाली, मंगल और सुनुआ अपनी जमीन को टट्टों से रूंधकर सामने एक मजबूत फटका बना,
उसे चैन से बांध, ताला लगा चैन की बंशी बजाने लगे।अच्छा दिन घडी नक्षत्र देखकर जुताई की गयी
और बीज बोने की तैयारी की जाने लगी। अकाली के पड़ोस में घोड़े पले थे।
आधी रात को मधवा घुड़साल में घुसकर एक घोड़ा चुपचाप से खोलकर ले आया।
अब सबने मिलकर घोड़े को काटकूटकर जुते खेत में बो दिया।
दूसरे दिन..
मुख्तारसिंह की घुड़साल से एक घोड़ा चोरी हो जाने की खबर पूरे गाँव में फैल गयी।
सभी चिन्तित हो गये थे । इस चोरी से रिपोटा-रिपोटी भी हुई पर कुछ पता ने लगा।
एक जागरूक नागरिक ने कहा- भैया, ये पुलिस की साठगांठ से हुआ है,
जब बारह चका के इतने बड़े ट्रक की चोरी आज तक नहीं पकड़ी गयी तो यह तो घोड़े की बात है।
हमेशा की तरह कुछ दिन में यह खबर पुरानी पड़ गयी ।
और पानी गिरते ही उस खेत में बढ़िया बड़ी-बड़ी हरी घास ऊगने लगी अफीमची आपस में बात करके खुश होने लगे
कि बस अब कुछ दिनों में घोड़े ऊगने लगेंगे। पूरी पंचायत खुश थी कि कम से कम काम में लगे हैं।
वे चारों रोज ताला खोलकर बाड़ी के अंदर जाते और वहीं बैठ गप्प सड़ाका लगाते।
घर के लोगों को भी शान्ति मिली कि अब कहीं से इन लोगों की शिकायत नहीं आती।
चार महिने की बरसात…
समाप्त हुई और उनके खेत की फसल कमर भर ऊँची हो गयी।
मौसम खुलते ही लोग व्यापार करने दिसावर जाने लगे। राजस्थान से घोड़े के व्यापारी घोड़े बेचने निकले।
इसी गांव में उन्होंने रात्रि विश्राम किया। जानवरों का सबसे बड़ा मेला पुष्कर में भरता है ।
अतः वहीं अपने तगड़े घोड़ों को बेच अच्छी खासी रकम उन्हें मिलने वाली थी।
रात्रि को उन्होंने जब हरा-भरा मैदान देखा तो अपने घोड़ों को उसी में चरने को छोड़ दिया और सराय में सोने चले गये।
घोड़े हरी हरी घास देखकर पेट भर चरे और वहाँ पूरा मैदान साफ हो गया जहाँ केवल घोड़े ही दिख रहे थे।
सुबह-सुबह जब अफीमची उठे तो अपनी खेती देखने गये तो वहाँ बड़े-बड़े घोड़े खा-पीकर आराम से बैठे थे।
अब क्या था अफीमची अपनी फसल देखकर फूले न समाये और फटका ताला लगाकर आराम से घर चले गये।
( घोड़ों की खेती लघुकथा )
जब दिन फैले…
सराय से नहा खाकर घोड़े के व्यापारी घोड़े लेने आये तो यह देखकर अचंभित हो गये,
कि जिस मैदान में उन्होंने घोड़े चरने को छोड़े थे वे सब ताले में बन्द हैं।
वे थाने में जाकर रिपोर्ट लिखाकर आये। पुलिस ने मधवा और उसके साथियों को बुलाया तो
उन्होंने अपना पट्टा दिखा दिया और बताया कि यह जमीन उन्हें पंचायत ने घोड़े की खेती करने को दी थी।
बात पंचायत में गयी तो पंचायत ने भी स्वीकारा कि यह जमीन उन्हें घोड़े की खेती के लिए दी थी।
चारों अफीमची थानेदार साहब के पैर पर गिर रो-रोकर बताने लगे कि यह कहाँ का न्याय है।
चार महिने पानी में भींग भींगकर हमने घोड़ों की खेती की और अब जब घोड़ों की फसल आ गयी
तो परदेसी व्यापारी हमारे घोड़ों को अपना बता रहे हैं। अंत में जब बात न्याय पंचायत में गयी तो
सभी सदस्यों ने निर्णय मधवा और उसके साथियों के पक्ष में दिया
और घोड़े के व्यापारी अपना सिर पीटकर घोड़ों को वहीं छोड़ वापस चले गये ।
बच्चो, यह अच्छा नहीं हुआ। नशा संपूर्ण समाज के लिए समस्या मूलक ही होता है।
घोड़ों की खेती लघुकथा श्रीमती मनोरमा दीक्षित पूर्व प्राचार्य मंडला द्वारा लिखी गई है।
ऐसी ही अन्य कहानियां पढ़ने के लिए देखते रहें आपकी अपनी वेबसाइट
अन्य कहानियां भी पढ़ें !
दादी कहे कहानी लघुकथा ; श्रीमती मनोरमा दीक्षित ( पूर्व प्राचार्या) मण्डला!
भूत पलाश के फूल ग्रामीण परिवेश से रँगी कहानी !!
बाबा जी का भोग (कथा कहानी) मुंशी प्रेमचंद की लघु कथाएं!
नमस्कार! मैं रेखा दीक्षित एडवोकेट, मैं एडवोकेट ब्लॉगर व युट्यूबर हूं । अपने प्रयास से अपने पाठकों के जीवन की समस्याओं को दूर कर ,जीवन में उत्साह लाकर खुशियां बांटना चाहती हूँ। अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर मैंने अपने ब्लॉक को सजाया संवारा है, जिसमें आपको योग ,धार्मिक, दर्शन, व्रत-त्योहार , महापुरुषों से संबंधित प्रेरक प्रसंग, जीवन दर्शन, स्वास्थ्य , मनोविज्ञान, सामाजिक विकृतियों, सामाजिक कुरीतियां,धार्मिक ग्रंथ, विधि संबंधी, जानकारी, स्वरचित कविताएं एवं रोचक कहानियां एवं स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां उपलब्ध हो सकेंगी । संपर्क करें : info.indiantreasure@gmail.com