Sapta rishiyon ki kahani ; सप्तऋषि कौन थे, ऋषिपंचमी में करें इनकी पूजा ! मत्स्यपुराण में सप्तऋषियों का उल्लेख मिलता है। जब सारी धरती जलमग्न हो गई थी। जल प्रलय से सारी सृष्टि डूब गई थी तब मात्र सप्तऋषियों को भगवान ने मत्स्य अवतार लेकर सभी वेदों, वनस्पतियों सहित बचाया था। तथा नई सृष्टि निर्माण हेतु वेदों का ज्ञान दिया था।
मनुष्यों को सब कुछ देने की सामर्थ्य रखने वाले ये सातों सप्तर्षि आकाश में तारामंडल के रूप में पाए जाते है। ऐसी मान्यता है कि प्रतिदिन इनका नाम जप करना चाहिए इससे व्यक्ति के जीवन की हर कठिनाई हल हो जाती है। समस्त ज्ञान, धन, ऐश्र्वर्य, स्वास्थ्य आदि को देने वाले सप्तर्षि ही हैं।
जाने अनजाने में मनुष्यों से जो भी अपराध होते हैं वे सभी दोषों को दूर करने के लिए Rishi panchami vrat करना चाहिए। आज हम इन्ही सप्तऋषियों के सम्बंध में संक्षिप्त जानकारी देंगे । आइये जानते हैं Sapta rishiyon ki kahani ; सप्तऋषि कौन थे, ऋषिपंचमी में करें इनकी पूजन !
Sapta rishiyon ki kahani ;
सप्तऋषि कौन थे, ऋषिपंचमी में करें इनकी पूजा !
सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज थे।
इसके अलावा भी पुराणों के अनुसार क्रमशः क्रतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ट तथा मरीचि सप्तऋषि है।
महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं। इनमें पहला अवतार मत्स्य का था।
कथा है कि मत्स्य अवतार के समय इस धरती जल प्रलय आया था।
उस समय राजा मनु के साथ सप्तऋषि एक विशाल नाव में सवार थे ,
और मत्स्य अवतार में भगवान विष्णु ने इन सभी के प्राणों की रक्षा की थी।
सप्तऋषियों के नाम का जाप रोज करना चाहिए, ऐसी परंपरा प्रचलित है।
Sapta rishiyon ki kahani ;
- 1- वसिष्ठ ऋषि
- 2- विश्वामित्र ऋषि
- 3- शौनक ऋषि
- 4- वामदेव ऋषि
- 5- अत्रि ऋषि
- 6 भारद्वाज ऋषि
- 7- कण्व ऋषि
1- ऋषि वशिष्ठ !
वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के चारों पुत्रों भगवान राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के गुरु थे।
उन्होंने चारों राजकुमारों को राजा दशरथ से राक्षसों का वध करने के लिए मांगा था।
यह वैदिक काल के प्रमुख ऋषि थे। उन्हें ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान हुआ था।
एक बार ऋषि विश्वामित्र वशिष्ठ के आश्रम में आए। उनका सत्कार उन्होंने कामधेनु गाय के द्वारा दिए गए भोजन,
फल और दूध से किया। कामधेनु गाय को देखकर ऋषि विश्वामित्र लोभी बन गए।
वे मन ही मन कामधेनु गाय को प्राप्त करना चाहते थे। उन्होंने वशिष्ठ से कामधेनु गाय मांगी ,
किंतु ऋषि वशिष्ठ को अपने लिए आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति के लिए कामधेनु गाय की बहुत आवश्यकता थी ।
इसलिए उन्होंने गाय देने में मना कर दिया। तब वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच कामधेनु गाय के लिए युद्ध हुआ था।
2- ऋषि विश्वामित्र !
विश्वामित्र ऋषि वैदिक काल के प्रसिद्ध ऋषि थे। उनकी तपस्या मेनका ने भंग की थी।
इन्होंने ही गायत्री मंत्र की रचना की है जो आज भी चमत्कारिक मंत्र माना जाता है।
कामधेनु गाय के लिए विश्वामित्र का युद्ध ऋषि वशिष्ठ से हुआ था।
ब्रह्मा जी ने ऋषि विश्वामित्र की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें ब्राह्मण की उपाधि प्रदान की थी।
3- ऋषि शौनक !
विष्णु पुराण के अनुसार शौनक ऋषि ग्रतसमद के पुत्र थे ।इन्होंने एक बड़े गुरुकुल की स्थापना की थी।
जिसमें 10000 से अधिक विद्यार्थी पढ़ते थे। वो कात्यायन और अश्वलायन के गुरु माने जाते है।
उन्होने ऋग्वेद की बश्कला और शाकला शाखाओं का एकीकरण किया।
ये संस्कृत व्याकरण, ऋग्वेद प्रतिशाख्य, बृहद्देवता, चरण व्यूह तथा ऋग्वेद की 6 अनुक्रमणिकाओं के रचयिता थे।
4- ऋषि वामदेव !
इन्होने संगीत की रचना की थी। यह गौतम ऋषि के पुत्र थे। इन्होने इंद्र से तत्वज्ञान पर चर्चा की थी।
जब ये अपनी माता के गर्भ में थे तब इन्हें अपने पिछले 2 जन्मों का ज्ञान हो गया था।
ऐसा उल्लेख मिलता है कि ऋषि वामदेव सामान्य रूप से माता के गर्भ से पैदा नहीं होना चाहते थे।
इसलिए इनका जन्म इनकी माता के पेट को फाड़कर हुआ था।
5- अत्रि ऋषि ! (Sapta rishiyon ki kahani )
ऋषि अत्रि वैदिक काल के ऋषि थे। ये ब्रह्मा के पुत्र थे। इनकी पत्नी अनुसुइया थी।
एक बार त्रिदेव (ब्रह्मा विष्णु महेश) अनुसूइया के आश्रम में गए थे। ऋषि अत्रि वहां पर नहीं थे।
देवी अनुसूइया ने त्रिदेव को बालक बना दिया था।
उन्होंने इंद्र अग्नि और अन्य देवताओं को भजन लिखने की प्रेरणा दी थी।
इनका ऋग्वेद में सबसे अधिक उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के पांचवे मंडल को अत्री मंडल कहा जाता है।
6- ऋषि भारद्वाज !
भारद्वाज ऋषि बृहस्पति के पुत्र थे। इनकी माता का नाम ममता था। इनका जन्म श्री राम के जन्म के पूर्व हुआ था।
इन्होंने वेदों के कई मंत्रों की रचना की है। तथा भारद्वाज स्मृति भारद्वाज संहिता की रचना की है।
चरक संहिता के अनुसार ऋषि भारद्वाज आयुर्वेद के ज्ञाता हैं और उन्होंने आयुर्वेद का ज्ञान इंद्र से पाया था।
वे ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद के चौथे व्याकरण-प्रवक्ता थे।
महर्षि भरद्वाज व्याकरण, आयुर्वेद संहिता, धनुर्वेद, राजनीति शास्त्र, यंत्रसर्वस्व, अर्थशास्त्र, पुराण, शिक्षा
आदि पर अनेक ग्रंथों के रचयिता हैं।
7- ऋषि कण्व !
कण्व ऋषि वैदिक काल के प्रसिद्ध ऋषि थे।
इन्होंने हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन पोषण किया था।
सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर शृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित है।
कण्व ऋषि की तपस्थली को जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है।
Sapta rishiyon ki kahani ;
धन-धान्य, विद्या, समृद्धि, तरक्की व अच्छा स्वास्थ्य अर्थात सभी कुछ देने वाले तथा समस्त दोषों का निवारण करने वाले सप्तऋषियों का प्रतिदिन नाम स्मरण करने से जाने अनजाने में किये गए सभी अपराधों व पापों का नाश होता है।
ऋषिपंचमी के दिन सप्तऋषियों की सम्पूर्ण विधि विधान से पूजा की जाती है। तथा इस दिन व्रत रखा जाता है। शाम को एक समय बिना नमक का भोजन करते हैं। ऋषिपंचमी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाते हैं।
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