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महाशिवरात्रि व्रत पर्व; भोलेनाथ की प्रसन्नता के लिए करें तीन काम! जानिये पूजा विधि व पूजन मुहूर्त।

महाशिवरात्रि व्रत पर्व भगवान शिव की प्रिय रात्रि कहलाती है। इस दिन भगवान शिव का महादेवी मां पार्वती से विवाह संपन्न हुआ था। ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन जो जागरण करता है वह भगवान शिव को प्रसन्न करता है।

भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता है। अथवा पूर्ण भक्ति और श्रद्धा के साथ जो भी शिव का ध्यान करता है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मां भगवती की कृपा और भोलेनाथ का आशीर्वाद दोनों ही प्राप्त हो जाते हैं।

आज हम आपको महाशिवरात्रि व्रत में किए जाने वाले तीन ऐसे कार्य बताएंगे जो शिव की प्रसन्नता प्रदान करते हैं।

महाशिवरात्रि व्रत पर्व पर भोलेनाथ की प्रसन्नता के लिए करें तीन काम !

1- भगवान शिव का मूल मंत्र पंचाक्षरी मंत्र है जो “ओम नमः शिवाय” है। महाशिवरात्रि व्रत के दिन और निशीथ काल में भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए अधिक से अधिक संख्या में ओम नमः शिवाय का जप करना चाहिए । इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामना को पूर्ण करते हैं।

2- भगवान शिव को भगवान राम के भक्त अति प्रिय होते हैं। भगवान स्वयं श्री राम की आराधना करते हैं। भगवान शिव को चढ़ाए जाने वाली बेल पत्री में राम नाम लिखकर उन्हें समर्पित करना चाहिए। महाशिवरात्रि व्रत के दिन बेलपत्र चढ़ाते समय निम्न मंत्र का स्मरण बोलकर करना चाहिए

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम्

त्रिजन्मपाप संहारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥

बिल्वपत्र समर्पण मंत्र

अर्थ- इस मंत्र का अर्थ है कि 3 गुण और तीन नेत्रों वाले और त्रिशूल को धारण करने वाले, 3 जन्मों के पापों का संहार करने वाले, हे भगवान शिव आपको यह बिल्वपत्र समर्पित करती/ करता हूँ।

3- भगवान शिव की पूजा में बालू की शिवलिंग का बहुत महत्व होता है। अतः अपनी सामर्थ्य अनुसार अधिक से अधिक संख्या में ( कम से कम 108) शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करनी चाहिए। शिवलिंग बालू के बनाने चाहिए।

शिवलिंग का निर्माण कैसे करें

शिवलिंग बनाने के लिए किसी सुरक्षित स्थान से बालू लाएं। उस में गंगा जल व अष्टगंध, कपूर इत्यादि मिलाकर बालू को सुगंधित और पवित्र बना लें। इसके पश्चात छोटी-छोटी शिवलिंग का निर्माण करें । शिवलिंग का निर्माण करते समय ओम नमः शिवाय पंचाक्षरी मंत्र का जप करना चाहिए।

महाशिवरात्रि पर शिवजी का पूजन कब करें

महाशिवरात्रि के दिन सुबह से स्नान कर भगवान शिव को जल अर्पित कर व्रत करने का संकल्प लें। शिवरात्रि की पूजा रात्रि में ही होती है

शिवजी को अतिप्रिय प्रदोष काल से ही शिवरात्रि की पूजन प्रारम्भ करें। प्रदोष काल सूर्यास्त से एक घण्टे पूर्व का होता है। भगवान शिव की रात्रि के चार प्रहर में चार पूजा करनी चाहिए। 24 घण्टो में आठ प्रहर होते हैं 3 घण्टे का एक प्रहर होता है।

रात्रि का प्रथम प्रहर 6 से 9 बजे का होता है, इस प्रकार पूजा भी प्रथम प्रहर 6-9, द्वितीय प्रहर 9- से 12, तीसरा प्रहर 12 से 3 और चौथा प्रहर ब्रम्हमुहूर्त में 3 से 6 बजे सुबह करनी चाहिए।

रात्रि जागरण व कीर्तन का बहुत महत्व है। अतः शिवरात्रि में जाग कर कीर्तन करना चाहिए। भगवान भोलेनाथ की कृपादृष्टि पाने का यह सर्वोत्तम समय होता है।

महाशिवरात्रि व्रत पर्व पर पूजा के पश्चात क्या करना चाहिए

चार पहर शिवजी ( महाशिवरात्रि व्रत) की पूजा के पश्चात, घर पर ही एक टब में सुगंधित जल भर कर, पुष्प पत्र डालकर उसमें समस्त शिवलिंग का विसर्जन कर देना चाहिए। उक्त बालू को घर के ही बगीचे में डाल दें।

इस प्रकार से विसर्जन करने से आसपास का वातावरण भी सकारात्मक व पवित्र हो जाता है। भोलेनाथ तो सदा से ही आशुतोष (थोड़े में प्रसन्न होने वाले ) हैं। इस प्रकार की गई भक्ति भावना सहित पूजा अवश्य ही फलदायी होती है। जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भरने के लिए ईश्वर की आराधना करते रहना चाहिए।

दो शब्द

भक्ति के अनेक रूप होते हैं उनके नाम जिस तरह की सेवा श्रद्धा और भक्ति में आपका मन प्रसन्न हो उठता हो वही भक्ति करें। क्योंकि आपकी प्रसन्नता ही ईश्वर की प्रसन्नता होती है। भक्ति में किसी भी प्रकार की बाध्यता नहीं होनी चाहिए।

गीता में कहा है कि भगवान के पास पहुंचने की तीन मार्ग है जिसमें भक्ति मार्ग सबसे प्रथम है फिर ज्ञान मार्ग और अंत में कर्म योग है । सच्ची भाव से लिया गया भगवान का नाम ही संपूर्ण पूजा का फल प्रदान करता है।

आशा है आपको हमारा यह महाशिवरात्रि व्रत पर्व से संबंधित आर्टिकल अवश्य पसंद आया होगा। अपने विचार हमें कमेंट के माध्यम से अवश्य प्रेषित करें। अपने मित्रों व परिजनों को अवश्य शेयर करें।

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