कैसे रहें सदा प्रसन्न ; डालें केवल एक आदत ! एक ऐसा कथानक है, जो अत्यंत प्रेरक व रोचक प्रसंग है।
आप बदल सकते हैं अपने कुंडली का लिखा। दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलें। आइए जानें!
पड़ोस में बड़ी धूम मची थी। लोग आ जा रहे थे। सभी के चेहरे पर खुशी बिखरी पड़ी थी।
पूछने पर पता चला सामने वाले शुक्लाजी के बड़े बेटे को दो पुत्रियों का बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी।

उत्सुकतावश पड़ोसी धर्म निभाते खुशियों में शामिल होने बरबस ही मेरे कदम शुक्लाजी के घर चल पड़े।
जन्म लेते ही जन्म का समय नोट कर लिया गया । आज शुक्लाजी के घर खुशियाँ बरस रही थीं।
उनके एकलौते पोते ने जन्म लिया था। सभी खुश थे। कुल का तारणहार जो आया था। नाम था अनय।
अनय बहुत हँसमुख व प्यारा बच्चा था।सभी की गोद मे जाता और मुस्कुराता रहता।सभी उसे गोद लेना चाहते थे।
अनय धीरे धीरे बड़ा होने लगा , वह बड़ा होनहार व कुशाग्र बुद्धि था।
सभी सद्गुणों से युक्त ,सभी बहनों का दुलारा अनय बहुत आज्ञाकारी था। बाबा दादी का लाडला था।
एकलौता पुत्र संतान था। अतः सभी उसका बहुत ख्याल रखते थे।
हम सपरिवार बच्चों की पढ़ाई के लिए बाहर रहने लगे थे।आज बहुत सालों बाद शुक्लाजी के घर जाना हुआ।
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अब अनय 15 साल का हो चुका था।सभी की गोद मे खेलने वाला अनय बहुत ही मेहनती व विनम्र हो गया था।

वह बिना रुके लगातार सबकी सेवा में लगा हुआ था। झाड़ू सफाई से लेकर चाय नाश्ता देना।
फिर खाली बर्तन ले जाना सभी कार्य कर रहा था। मन ही मन सोच रही थी,
अकेली सन्तान है फिर भी उसी से सब काम कराया जा रहा है।वहीं बहनें भी अपने कार्य अनय से करा रहीं हैं।
अनय मुस्कुराकर सभी के सारे कार्य कर रहा था। मुझे अनय पर बड़ी दया आने लगी।
मैंने शुक्लाजी की बहु (अनय की माँ) से कहा अनय बहुत थक गया है। तुम उससे कितना काम करवाती हो।
ऐसे तो कोई अपनी इकलौती सन्तान से काम नहीं करवाता।
अनय की माँ ने मुस्कुराकर मुझे देखा और विनम्रतापूर्वक कहा! जी हाँ ! आप एकदम सही कह रहीं हैं।
अनय थक गया है। पर मैं अपने सभी बच्चों से बहुत काम लेती हूं। अभी अनय की बारी है। इसलिए वह कर रहा है।
यह सही है कि इतने कर्मचारी होकर भी मैं अपने बच्चों से बहुत काम लेती हूं।
दरअसल मैं अपने बच्चों को बिल्कुल भी दुखी नही देखना चाहती।
इसीलिए उनसे पढ़ाई के अलावा भी घर -बाहर के सभी कार्य करवाती हूँ।
इससे एक तो वह घर के सारे कार्य सीख जाएंगे। कर्मचारी नही आये तो भी उनका जीवन प्रभावित नहीं होगा।
दूसरा कार्य करते रहने से आत्मविश्वास पैदा होता है।जिससे बड़े-बड़े कार्य भी आसानी से किया जा सकता है।
कहा जाता है, खाली दिमाग शैतान का घर! इसलिए मैं बच्चों का दिमाग खाली ही नही रहने देती।
सबसे बड़ी बात यह है , आपने देखा होगा, अक्सर जब भी हम खाली होतें हैं हमें चिंताएं, दुख घेर लेती हैं ।
वहीं यदि आप व्यस्त हैं तो बड़ी से बड़ी चिंता भी आपको परेशान नही कर सकती।
व्यस्तता जीवन का सबसे बड़ा उपहार है। Busyness is the greatest gift of life.
सचमुच यदि हम स्वयं को व्यस्त रखना सीख लेते हैं ,तो समझिए हमने बहुत से बीमारियों और दुखों को अपने से अलग कर दिया।
व्यस्त व्यक्ति दुखों के बीच रहकर भी कभी दुखी नही रह सकता।
और अकर्मण्य व्यक्ति सुखों में रहकर भी सुखी नहीं रह सकता।
अकर्मण्यता एक अभिशाप है। Idleness is a curse.
जो माता पिता अपने बच्चों को अकर्मण्य बना रहे हैं ,वे अपने प्यार की आड़ में बच्चों को अपाहिज बना रहे हैं
वे निश्चित ही बच्चों के लिए दुखों की पोटली जीवन भर के लिए बच्चों के साथ रख रहें है।
कर्मठता के प्रभाव Effects of diligence
- कर्मठता यानी सक्रियता । ( कैसे रहें सदा प्रसन्न)
- हर समय कार्य करते रहने से शरीर व मस्तिष्क दोनों ही सक्रिय रहते हैं।
- हमारी कार्यक्षमता बढ़ती हैं।
- कार्य करने वाले व्यक्ति के मन मे हमेशा उत्साह बना रहता है।
- ऐसा व्यक्ति सभी का प्रिय होता है।
- सभी का प्रेरणा स्रोत होता है।
- परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हो कर्मठ व्यक्ति के पास हर समस्या का समाधान होता है।
अकर्मण्यता के दुुुष्प्रभाव effects of inactivity
- अकर्मण्यता यानि निष्क्रियता।
- अक्सर उच्च शिक्षित बच्चे अकर्मण्य हो जाते हैं।
- पढ़ाई के अलावा दूसरा कार्य नहीं कर पाते,फिर कर्मचारियों पर उनका जीवन निर्भर हो जाता है।
- ऐसे बच्चे बड़े होकर परिवार पर बोझ बन जाते हैं।
- वे कभी आत्मनिर्भर नही होते।
- अब आजकल की पढ़ाई भी ऐसी है कि पढ़ने के बाद भी बच्चे जॉब नही ले पाते।
- ऐसी स्थिति में जिन्होने पढ़ने के अलावा कुछ सीखा ही नहीं, वे बहुत जल्दी डिप्रेशन का शिकार हो जाते है।
- इसी अकर्मण्यता के चलते वे बेचारे आत्म हत्या जैसे आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं।
इन सबसे अपने बच्चों को बचाने के लिए सभी माता पिता को अपने बच्चों को घर बाहर सभी कामो को कराना चाहिए।
पहले गुरुकुल में शिक्षा के साथ साथ सारे कार्य भी सिखाये जाते थे।
पहले स्कूलों में भी एक पीरियड श्रमदान का हुआ करता था।
किंतु आज आधुनिक सुख सुविधाओं के चलते शारीरिक श्रम कम हो चुका है।
और जहां शारीरिक श्रम कम होगा वहाँ स्वास्थ्य, सुंदरता ,उत्साह ,खुशी ,आत्मविश्वास सभी कुछ समाप्त हो जाता है।
इसीलिए मैं बच्चों को शारीरिक श्रम भी करवाती हूँ। अनय की माँ रीना जो कि मुझसे काफी छोटी थी ।
उसके मुख से ऐसी ज्ञानवर्धक बातें सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ।
रीना स्वयं एक डॉक्टर थी, उच्च शिक्षित थी।
मैं सोच रही थी सचमुच आज के बच्चे पढ़ाई के बोझ से दबे जीवन के सुंदरतम पलों(खुशियों) को नही जी पाते जो छोटे छोटे कार्यों को करने से मिलती हैं।
अपने जीवन का आधे से ज्यादा समय अध्ययन में बिताने के बाद भी जब कभी बच्चे असफल होते हैं ।
तो फ्रस्टेशन व निराशा के अलावा कुछ नही मिलता। ओर तब जीवन अत्यंत दुरूह हो जाता है।
ऐसे में यदि बचपन मे विभिन्न कार्यों को करने की आदत सीखी हो तो मन में कभी भी निराशा नही आ सकती।
मैंने निश्चय किया कि मैं ऐसे बच्चों को जरूर कर्मठ होने के फायदे बताकर प्रेरित करूंगी।
और हमेशा सक्रिय रहने की इस आदत को बच्चों में डालने के लिए पेरेंट्स को भी प्रेरित करूंगी। ₹( कैसे रहें सदा प्रसन्न )
ताकि सभी नन्हे मुन्ने बच्चे जीवन मे हमेशा हर हाल में खुश रह सकें।
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