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श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ करने से वाणी आपकी दास हो जाती है !

श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ करने वाले कि वाणी उसकी दास हो जाती है । बहुत ही सरल और आसान उपायों से प्रसन्न होने वाले देवता श्री गणेश समस्त विघ्नों को हर लेते हैं। बुधवार का दिन विद्या-बुध्दि प्रदाता श्रीगणेश जी का दिन है। तथा गणेश चतुर्थी पवित्र तिथि है।

आज हम बुध्दि के देवता को प्रसन्न करने हेतु श्री गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ व उसका हिंदी अर्थ के सम्बंध में जानकारी देंगे। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति नियमित इसका पाठ करता है वह मेधावान, बुध्दिमान हो जाता है। अतः अवश्य पढ़ें व इसका हिंदी अर्थ भी जानें ।

!श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ !

श्रीगणेशाय नमः !

ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि ।।त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्तासि ।।

त्वमेव केवलं हर्ताऽसि ।त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि ।।त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्। ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि ।।

अव त्वं मां ।। अव वक्तारं ।।अव श्रोतारं । अवदातारं ।।अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।। अव पश्चातात्।।अव पुरस्तात्।।

अवोत्तरातात्।। अव दक्षिणात्तात्।। अव चोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात।।

सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।। त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय। त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममयः।। त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि ।

त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ।। सर्व जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।

सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।। सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति ।। त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभः।। त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।

त्वं गुणयत्रयातीतः त्वमवस्थात्रयातीतः ।त्वं देहत्रयातीतः त्वं कालत्रयातीतः। त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं ।

त्वं शक्ति त्रयात्मकः। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्। गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं ।। अनुस्वारः परतरः।।

अर्धेन्दुलसितं।। तारेण ऋद्धं ।। एतत्तव मनुस्वरूपं ।।नादः संधानं ।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या ।।

त्वं शक्तित्रयात्मकः।। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं ।त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।

वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम् ।।गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं ।

अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं ।।गणक ऋषि: निचृद्रायत्रीछंदः ।। गणपति देवता ।।

ॐ गं गणपतये नमः।।

एकदंताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नोदन्ति प्रचोदयात ।एकदंत चतुर्हस्तं पाशामंकुशधारिणम् ।।

रदं च वरदं च हस्तै र्विभ्राणं मूषक ध्वजम् ।।रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।।

रक्त गंधाऽनुलिप्तागं रक्तपुष्पै सुपूजितम् । भक्तानुकंपिन देवं जगत्कारणमच्युतम्।।

आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृतैः पुरुषात्परम ।। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनांवरः ।।

नमो व्रातपतये नमो गणपतये।। नमः प्रथमपत्तये।। नमस्तेऽस्तु लंबोदारायैकदंताय विघ्ननाशिने शिव सुताय ।

श्री वरदमूर्तये नमोनमः ।।

श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ का महात्म्य (महत्व)

एतदथर्वशीर्षं योऽधीते । स ब्रह्मभूयाय कल्पते ।स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते, स सर्वतः सुखमेधते ।

स पञ्चमहापापात् प्रमुच्यते ।सायमधीयानो दिवसकृतम्
पापन् नाशयति ।प्रातरधीयानो रात्रिकृतम्पापन् नाशयति ।

सायम् प्रातः प्रयुञ्जानोऽअपापो भवति सर्वत्रा धीयानोऽ पविघ्नो भवति ।धर्मार्थकाममोक्षञ् च विन्दति ।

इदम् अथर्वशीर्षम् अशिष्याय न देयम्।यो यदि मोहाद्दास्यति
स पापीयान् भवति । सहस्रावर्तनात् ।

यं यङ् काममधीते तन् तमनेन साधयेत् ।।

अनेन गणपतिमभिषिञ्चति । स वाग्मी भवति ।
चतुथ्र्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति ।

इत्यथर्वणवाक्यम् । ब्रह्माद्यावरणम् विद्यात् ।
न बिभेति कदाचनेति ।।

श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ करने के लाभ

यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति । स वैश्रवणोपमो भवति ।
यो लाजैर्यजति, स यशोवान् भवति ।

स मेधावान् भवति ।

यो मोदकसहस्रेण यजति । स वाञ्छितफलमवाप्नोति ।
यः साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते, स सर्वं लभते ।।

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा, सूर्यवर्चस्वी भवति ।
सूर्यग्रहे महानद्याम् प्रतिमासन्निधौ वा जप्त्वा, सिद्धमन्त्रो भवति ।

महाविघ्नात् प्रमुच्यते। महादोषात् प्रमुच्यते। महापापात् प्रमुच्यते। स सर्वविद् भवति, स सर्वविद् भवति।य एवम् वेद ।।

शान्तिमन्त्र

ॐ भद्रङ् कर्णेभिः शृणुयाम देवाःभद्रम् पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः व्यशेम देवहितं यदायुः ।।

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्योऽअरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ का हिंदी में अर्थ ! Meaning of Shri Ganesh Atharvashirsh in Hindi!

हे ! गणेश भगवान तुम्हे प्रणाम, तुम ही सजीव प्रत्यक्ष रूप हो, तुम ही कर्म और कर्ता भी तुम ही हो,

तुम ही धारण करने वाले, और तुम ही हरण करने वाले संहारी हो ।

और तुम में ही समस्त ब्रम्हांड में व्याप्त तुम्ही एक पवित्र साक्षी हो । ज्ञान कहता हूं सच्चाई कहता हूं।

तुम मेरे हो मेरी रक्षा करों, मेरी वाणी की रक्षा करो। मुझे सुनने वालो की रक्षा करों ।

मुझे देने वाले की रक्षा करों, मुझे धारण करने वाले की रक्षा करों ।

वेदों उपनिषदों एवम उसके वाचक की रक्षा करों, साथ ही उससे ज्ञान लेने वाले शिष्यों की रक्षा करों ।

चारो दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर, एवम दक्षिण से सम्पूर्ण रक्षा करों ।

तुम वाम हो, तुम ही चिन्मय हो, तुम ही आनन्द ब्रह्म ज्ञानी हो, तुम ही सच्चिदानंद, अद्वितीय रूप हो ,

प्रत्यक्ष कर्ता हो तुम ही ब्रह्म हो, तुम ही ज्ञान विज्ञान के दाता हो । इस जगत के जन्म दाता तुम ही हो,

तुमने ही सम्पूर्ण विश्व को सुरक्षा प्रदान की हैं सम्पूर्ण संसार तुम में ही निहित हैं पूरा विश्व तुम में ही दिखाई देता हैं ।

तुम ही जल, भूमि, आकाश और वायु हो , तुम चारों दिशा में व्याप्त हो । तुम सत्व,रज,तम तीनो गुणों से भिन्न हो |

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तीनो कालो भूत, भविष्य और वर्तमान से तुम भिन्न हो | तुम तीनो देहो से भिन्न हो ,तुम जीवन के मूल आधार में

विराजमान हो, तुम में ही तीनो शक्तियां धर्म, उत्साह, मानसिक व्याप्त हैं ।

योगि एवम महा गुरु तुम्हारा ही ध्यान करते हैं | तुम ही ब्रह्म,विष्णु,रूद्र,इंद्र,अग्नि,वायु,सूर्य,चन्द्र हो,

तुम मे ही गुणों सगुण, निर्गुण का समावेश हैं।“गण” का उच्चारण करके बाद के आदिवर्ण अकार का उच्चारण करें

ॐ कार का उच्चारण करे । यह पुरे मन्त्र ॐ गं गणपतये नम: का भक्ति से उच्चारण करें ।

एकदंत, वक्रतुंड का हम ध्यान करते हैं ,हमें इस सद मार्ग पर चलने की भगवन प्रेरणा दे।

भगवान गणेश एकदन्त चार भुजाओं वाले हैं जिसमे वह पाश,अंकुश, दन्त, वर मुद्रा रखते हैं ।

उनके ध्वज पर मूषक हैं, यह लाल वस्त्र धारी हैं | चन्दन का लेप लगा हैं । लाल पुष्प धारण करते हैं ।

सभी की मनोकामना पूरी करने वाले जगत में सभी जगह व्याप्त हैं श्रृष्टि के रचियता हैं ।

जो इनका ध्यान सच्चे ह्रदय से करे वो महा योगी हैं |
व्रातपति, गणपति को प्रणाम, प्रथम पति को प्रणाम,

एकदंत को प्रणाम, विध्नविनाशक, लम्बोदर, शिवतनय श्री वरद मूर्ती को प्रणाम ।

श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ का महत्व

इस अथर्वशीर्ष का पाठ करता हैं वह विघ्नों से दूर होता हैं वह सदैव ही सुखी हो जाता हैं ।

वह पंच महा पाप से दूर हो जाता हैं सन्ध्या में पाठ करने से दिन के दोष दूर होते हैं ।

प्रातः पाठ करने से रात्रि के दोष दूर होते हैं |हमेशा पाठ करने वाला दोष रहित हो जाता हैं ।

और साथ ही धर्म, अर्थ, काम एवम मोक्ष पर विजयी बनता हैं ।

इसका 1 हजार बार पाठ करने से उपासक सिद्धि प्राप्त कर योगी बनेगा ।

श्री गणेश अथर्वशीर्ष का लाभ

जो इस मन्त्र के उच्चारण के साथ गणेश जी का अभिषेक करता हैं उसकी वाणी उसकी दास हो जाती हैं ।

चतुर्थी के दिन जो उपवास कर जप करता हैं विद्वान बनता हैं ।

जो ब्रह्मादि आवरण को जानता है वह भय मुक्त होता हैं ।

दूर्वांकुरों द्वारा जो पूजन करता हैं वह कुबेर के समान बनता हैं ।

लाजा (लाई) के द्वारा जो पूजन करता हैं वह यशस्वी बनता हैं मेधावी बनता हैं।

जो मोदको के साथ पूजन करता हैं वह मन अनुसार फल प्राप्त करता हैं ।

एवं जो घृतात्क समिधा के द्वारा हवन करता हैं वह सब कुछ प्राप्त करता हैं ।

जो आठ ब्राह्मणों को उपनिषद का ज्ञाता बनाता हैं वे सूर्य के सामान तेजस्वी होते हैं ।

सूर्य ग्रहण के समय नदी तट पर अथवा अपने इष्ट के समीप इस उपनिषद का पाठ करे तो सिद्धी प्राप्त होती हैं |

जिससे जीवन की रूकावटे दूर होती हैं पाप कटते हैं वह विद्वान हो जाता हैं, यह ऐसी ब्रह्म विद्या हैं

शांति प्रार्थना

हे ! गणपति हमें ऐसे शब्द कानो में पड़े जो हमें ज्ञान दे और निन्दा एवम दुराचार से दूर रखे ।

हम सदैव समाज सेवा में लगे रहे था बुरे कर्मों से दूर रहकर हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहें ।

हमारे स्वास्थ्य पर हमेशा आपकी कृपा रहे और हम भोग विलास से दूर रहें ।

हमारे तन मन धन में ईश्वर का वास हो जो हमें सदैव सुकर्मो का भागी बनाये । यही प्रार्थना हैं ।

चारो दिशा में जिसकी कीर्ति व्याप्त हैं वह इंद्र देवता जो कि देवों के देव हैं उनके जैसे जिनकी ख्याति हैं,

जो बुद्धि का अपार सागर हैं जिनमे बृहस्पति के सामान शक्तियाँ हैं ,

जिनके मार्गदर्शन से कर्म को दिशा मिलती हैं जिससे समस्त मानव जाति का भला होता हैं |

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https://youtu.be/VpATv_6pCPE

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