एकादशी व्रत व नियम ; वर्ष की 26 एकादशियों के नाम – आज हम आपको एकादशी के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं। जो विष्णु भक्तों के लिए अवश्य उपयोगी होगी।
वर्ष की समस्त एकादशियों के नाम मास के नाम सहित जानकारी दी जा रही है। इन पवित्र तिथियों के उच्चारण श्रवण व पठन पाठन से भी पुण्यलाभ होता है।
एकादशी व्रत का महत्व
‘व्रत’ शब्द संकल्प का पर्याय है। मन को निश्चित दिशा देने के लिये दृढ़ता लाने का जो विधि-विधान है, वही शुभसंकल्प व्रत है। भारतीय संस्कृतिमें व्रतों की लम्बी शृङ्खला है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने धार्मिक व्रतों के अनुपालन का आदेश दिया है। ताकि मानव मात्र व्रतों के पालन से अनेक प्रकार के रोगों से मुक्त होकर स्वस्थ जीवन यापन करते हुए भगवत्प्राप्ति का सहज सुलभ साधन कर सके।
सभी व्रतोंका विधान अलग होते हुए भी ध्येय सबका समान ही है। मन पर नियन्त्रण और शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य की प्राप्ति व्रत का प्रतिफल है। मन सभी क्रियाकलापों का आधार है, संकल्प विकल्प का उद्गम स्थान है।
व्रत का उद्देश्य
व्रत के विधान के अनुसार लंघन या स्वल्पाहार से आँतों का अवशिष्ट मल निष्कासित होता है। फलस्वरूप आँतें अधिक सक्रिय हो जाती हैं जो स्वास्थ्य का आधार है।
व्रत के परिणाम में जीवात्मा में पारमात्मिक ऐश्वर्य प्रकट होने लगते हैं। आत्मा परमात्मा की निकटता की ओर आगे बढ़ती है। व्रत में शुद्ध सात्त्विक आहार लिया जाता है जिससे मन शुद्ध होता है, सत्त्व की शुद्धि होती है।
सत्त्वकी शुद्धि से अखण्ड भगवत्स्मृति बनी रहती है और यही ध्रुवा स्मृति सभी ग्रन्थियों के विमोचन में हेतु बनती है। ‘आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः ।’(छान्दोग्योपनिषद् ७ । २६ । २)
व्रत इस शुद्धिक्रम की पहली सीढ़ी है। आत्मशुद्धि के लिये व्रतों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। ऋषि-मुनियों के विचार हैं कि यदि महीने में मात्र दोनों एकादशियों का व्रत विधि विधान से किया जाय तो मनुष्य की प्रकृति पूर्णतया शुद्ध एवं सात्त्विक हो जाती है।
काम्पिल्य नगर के राजा वीरबाहु के पूछने पर महर्षि भारद्वाज ने एकादशी व्रत का विधान उन्हें बतलाया था। संक्षेप में वह यहाँ प्रस्तुत है-
एकादशी व्रत व नियम
दशमी तिथि से व्रत का संकल्प लें
- व्रत हेतु दशमी तिथि को सूर्यास्त के पूर्व भोजन कर लें। रात्रि में भोजन न् करें
- दशमी को कांसे के बर्तन में भोजन न करें। उड़द, मसूर, कोदो, चना, साग, शहद, दूसरे का अन्न, दो बार भोजन का त्याग करें।
- मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की दशमी के दिन देवपूजा के बाद जल से अर्घ्य दें और प्रार्थना करें –
- ” कमल के नेत्रों के समान भगवान अच्युत! मैं एकादशी को निराहार रहकर दूसरे दिन भोजन करूंगा। मेरे आप ही रक्षक हैं।
- प्रार्थना कर रात्रि में ” ॐ नमो नारायणाय ” मंत्र का जप करे।
- इस दिन बार बार जलपान, हिंसा, अपवित्रता, असत्य भाषण, पान, दातुन, दिन में सोना, जुआ खेलना, रात में सोना, आवश्यक बातचीत न् करें। ऐसी 11 क्रियाओं का त्याग करें।
एकादशी तिथि में
- स्नान पूजन आदि नित्यकर्मसे निवृत्त होकर भगवान से प्रार्थना करे-
- ‘हे केशव! आज आपकी प्रसन्नता के लिये दिन और रात में संयम-नियम का मेरे द्वारा पालन हो।
- मेरी सोयी हुई इन्द्रियों के द्वारा कोई विकलता, भोजन या मैथुन की क्रिया हो जाय या
- मेरे दाँतोंमें पहले से अन्न सटा हुआ हो तो है पुरुषोत्तम ! आप इन सब बातोंको क्षमा करें।’
एकादशी की रात्रि में
- रात्रि में जागरण कर एकादशी – कथा का श्रवण करना चाहिये।
- आलस्य त्यागकर प्रसन्नता पूर्वक उत्साह सहित षोडशोपचार से भगवान का पूजन, प्रदक्षिणा, नमस्कार करे।
- प्रत्येक पहर में आरती करे। गीत, वाद्य तथा नृत्य के साथ जागरण कर ‘गीता’ और ‘विष्णुसहस्रनाम’ का पाठ करे।
- दशमी और एकादशी को त्यागी हुई क्रियाओं सहित द्वादशी को शरीर में तेल भी न मले।
द्वादशी के दिन ये करें
- द्वादशीको शुद्धचित्त होकर भगवान् से प्रार्थना करे-
- ‘हे गरुडध्वज! आज सब पापों का नाश करने वाली पुण्यमयी पवित्र द्वादशी तिथि मेरे लिये प्राप्त हुई है, इसमें पारण करूँगा। आप प्रसन्न होइये।’
- तदनन्तर ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन कराकर स्वयं भोजन करे।
- इस प्रकार वर्ष पर्यन्त एकादशी का व्रत करता रहे।
- वर्ष की चौबीस एकादशियों के नाम और विधान में थोड़ा अन्तर अवश्य है।
- जैसे आमला एकादशी को आँवले की पूजा होती है और देवशयनी को जलशायी विष्णु भगवान की। परंतु सामान्य विधि समान है।
वर्ष की 26 एकादशियों के नाम
प्रत्येक माह में दो एकादशी पड़ती है। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष एकादशी। इज़के अलावा पुरुषोत्तम मास की दो एकादशी होती है। जिनके मास व एकादशी के नाम निम्न हैं –
क्रमांक | माह के नाम | एकादशी के नाम |
01. | चैत्र | पापमोचनी |
02. | चैत्र | कामदा |
03. | वैशाख | वरूथनी |
04. | वैशाख | मोहिनी |
05. | ज्येष्ठ | अपरा |
06. | ज्येष्ठ | निर्जला |
07. | आषाढ़ | योगिनी |
08. | आषाढ़ | विष्णुशयनी |
09. | श्रावण | कामिका |
10. | श्रावण | पुत्रदा |
11. | भाद्रपद | अजा |
12. | भाद्रपद | पद्मा |
13. | आश्विन | इन्दिरा |
14. | अश्विन | पापांकुशा |
15. | कार्तिक | रम्भा |
16. | कार्तिक | प्रबोधिनी |
17. | मार्गशीर्ष | उतपन्ना |
18. | मार्गशीर्ष | मोक्षदा |
19. | पौष | सफला |
20. | पौष | पुत्रदा |
21. | माघ | षटतिला |
22. | माघ | जया |
23. | फाल्गुन | विजया |
24. | फाल्गुन | आमलकी |
25. | पुरुषोत्तम | कमला |
26. | पुरूषोत्तम | कामदा |
लेखक – श्री श्यामलाल जी सिंहवाल
अंत मे
आशा है एकादशी व्रत व नियम ; वर्ष की 26 एकादशियों के नाम सम्बंधित लेख आपको अवश्य अच्छा लगा होगा।
अपना कीमती समय निकालकर इसे पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।
नमस्कार! मैं रेखा दीक्षित एडवोकेट, मैं एडवोकेट ब्लॉगर व युट्यूबर हूं । अपने प्रयास से अपने पाठकों के जीवन की समस्याओं को दूर कर ,जीवन में उत्साह लाकर खुशियां बांटना चाहती हूँ। अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर मैंने अपने ब्लॉक को सजाया संवारा है, जिसमें आपको योग ,धार्मिक, दर्शन, व्रत-त्योहार , महापुरुषों से संबंधित प्रेरक प्रसंग, जीवन दर्शन, स्वास्थ्य , मनोविज्ञान, सामाजिक विकृतियों, सामाजिक कुरीतियां,धार्मिक ग्रंथ, विधि संबंधी, जानकारी, स्वरचित कविताएं एवं रोचक कहानियां एवं स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां उपलब्ध हो सकेंगी । संपर्क करें : info.indiantreasure@gmail.com
बहुत बहुत धन्यवाद आपका… आवश्यक जानकारी….💞👌 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय..🙏
धन्यवाद तृप्तिजी 🙏
बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाभी.. बहुत ही आवश्यक जानकारी..🙏😘👑💐💞 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय.. हरि बोल..💝
धन्यवाद तृप्तिजी 🙏
बहुत सुंदर मेम… पुनः पढ़कर बहुत अच्छा लगा..ॐ नमो भगवते वासुदेवाय.. जय जय लक्ष्मी नारायण..🙏👑❣️💐
बहुत बहुत धन्यवाद तृप्ति🙏