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श्रावण शुक्ल पंचमी नागपंचमी ; कथा, पूजनविधि,व इस दिन क्या खाएं !

नमस्कार दोस्तों ! श्रावण शुक्ल पंचमी नागपंचमी की कथा सुनने का बड़ा महत्व है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी नागों को अत्यंत आनंद देने वाली है । पंचमी तिथि को नाग पूजा में गाय के दूध से स्नान कराने का विधान है।

कहा जाता है कि एक बार मातृ श्राप से नागलोक जलने लगा। इस दाह पीड़ा की निवृत्ति के लिए नाग पंचमी को गाय का दूध जहां नागों को शीतलता प्रदान करता है, वहां भक्तों को सर्प भय से मुक्ति भी देता है।

आज हम आपको नाग पंचमी की पूजा की विधि और नाग पंचमी की कथा , महत्व और इस दिन क्या खाना चाहिए के संबंध में बताएंगे । अतः इसे अंत तक ध्यानपूर्वक पढ़ें, यह जानकारी आपको नाग पंचमी की पूजा में अवश्य काम आएगी।

नागपंचमी की पूजा विधि !

  • इसी पंचमी को राजस्थान में सावन मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी मनाया जाता है।
  • हमारे धर्म ग्रंथों में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजा का विधान बताया गया है।
  • पूजा में व्रत के साथ एक बार भोजन करने का नियम है। पूजा में पृथ्वी पर नागों का चित्र बनाया जाता है।
  • सोना, चांदी, लकड़ी या मिट्टी से नाग बनाकर फूल, गंध, धूप, दीप एवं भोग लगाकर नागों का पूजन किया जाता है।
  • नाग पूजन में निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण कर नागों को प्रणाम करना चाहिए।

सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले ॥

ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः ।

०ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः ।

ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नमः ॥

(भविष्यपु०, ब्राह्मपर्व ३२।३३-३४

अर्थात ; जो नाग पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, सूर्य की किरणों, सरोवरों, वापी, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते हैं,

वे सब हमपर प्रसन्न हों, हम उनको बार बार नमस्कार करते हैं ।

श्रावण शुक्ल पंचमी नागपंचमी की कथा !!

एक बार देवताओं तथा असुरों ने समुद्र मन्थन द्वारा चौदह रत्नों में उच्चैःश्रवा नामक अश्वरत्न प्राप्त किया था।

यह अश्व अत्यन्त श्वेत वर्ण का था।

उसे देखकर नागमाता कद्रू तथा विमाता विनता- दोनोंमें अश्व के रंग के सम्बन्ध में वाद विवाद हुआ।

कद्रू ने कहा कि अश्व के केश श्याम वर्ण के हैं। यदि मैं अपने कथन में असत्य सिद्ध होऊँ तो मैं तुम्हारी दासी बनूँगी,

अन्यथा तुम मेरी दासी बनोगी।

कद्रू ने नागों को बाल के समान सूक्ष्म बनकर अश्व के शरीर में प्रवेश करने का निर्देश किया,

किंतु नागों ने अपनी असमर्थता प्रकट की। इस पर क़दू ने क्रुद्ध होकर नागोंको शाप दिया कि

पाण्डव वंश के राजा जनमेजय नाग यज्ञ करेंगे, उस यज्ञ में तुम सब जलकर भस्म हो जाओगे।

नागमाता के शाप से भयभीत नागों ने वासुकि के नेतृत्व में ब्रह्माजी से शाप निवृत्ति का उपाय पूछा।

तो ब्रह्माजी ने निर्देश दिया यायावर वंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारु तुम्हारे बहनोई होंगे।

उनका पुत्र आस्तीक तुम्हारी रक्षा करेगा। ब्रह्माजी ने पञ्चमी तिथि को नागों को यह वरदान दिया तथा

इसी तिथि पर आस्तीक मुनि ने नागों का परिरक्षण किया था ।

अतः सावन शुक्ल पंचमी नाग पञ्चमी का यह व्रत ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है।

नागपंचमी के दिन क्या खाना चाहिए !

  • श्रावण शुक्ल पंचमी नागपंचमी के दिन लोहे की कढ़ाई या तवा पर भोजन नहीं बनाया जाता है।
  • चना की सब्जी और गेहूं का मीठा बनाया जाता है जिसका नाग देवता को भोग लगाया जाता है।
  • खट्टा खाने का भी बहुत महत्व है। अतः किसी न किसी रूप में नींबू का सेवन अवश्य करना चाहिए ।
  • कहीं-कहीं मट्ठा या दही में चावल की खीर जैसे बनाकर भोग लगाया जाता है।

श्रावण शुक्ल पंचमी नागपंचमी का महत्व !

  • भविष्य पुराण के अनुसार जो व्यक्ति आज के दिन नागों की पूजा करता है वह नागों के भय से मुक्त हो जाता है।
  • सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए भी इस पूजा का विशेष महत्व है।
  • जिनकी कुंडली में कालसर्प दोष होता है उन्हें आज के दिन पूजा करने से इस दोष से मुक्ति मिल जाती है।
  • चांदी के नाग बना कर उनकी पूजा कर पवित्र नदियों में बहाने से भी कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
  • नागों की पूजा हमेशा भगवान शिव के साथ ही करनी चाहिए।
  • अकेले नागों की पूजा करने से उन पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता।
  • इसीलिए भगवान भोलेनाथ की साथ में पूजा अवश्य करनी चाहिए।

अंत में

हमारे देश में इस तरह व्रत और पर्वों के रूप में जीव, मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, पतंगा सभी में ईश्वर के वास होना बताता है। इससे जीवो के प्रति आत्मीयता और दया का भाव भी विकसित होता है । नाग हमारे लिए पूज्य और संरक्षणीय है । यह नाग हमारी खेती को नुकसान पहुंचाने वाले जीवो से रक्षा करते हैं।

और पर्यावरण रक्षा तथा वन संपदा में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है । श्रावण शुक्ल पंचमी नागपंचमी का पर्व नागों के साथ जीवो के प्रति सम्मान और उनके संवर्धन और संरक्षण की प्रेरणा देता है।

यह पर्व प्राचीन समय के अनुरूप आज भी उतना ही प्रासंगिक है। हमारे ग्रामों में ग्राम देवता के साथ-साथ नाग देवता का भी मंदिर होता है। जो हमें जीव मात्र से प्रेम करना सिखाता है। आप सभी को श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी नागपंचमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं!!

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