Hindi ki baal kahaniyan; ek kaur mahun ka de. एक कौर मंहूँ का दे! ; श्रीमती मनोरमा दीक्षित ! बाल मनोविज्ञान के जानकार सहज समझ सकते हैं कि कहानियों का बच्चों के मन पर जो चित्र बनता है वह दीर्घकालिक होता है।
बचपन में पढ़ी गई कहानियाँ बच्चे के चरित्र निर्माण में सहायक होती हैं व उसके ज्ञान कोष को समृद्ध करती हैं। इस संग्रह में पर्यावरण, वृक्षारोपण, स्वच्छता व अन्य ज्वलंत विषयों के कथानक शामिल कर आपने बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
आइये आपको इस कथालोक कि एक अन्य Hindi ki baal kAhaniyan; ek kaur mahun ka de. एक कौर मंहूँ का दे! बताते हैं।
Hindi ki baal kahaniyan;
ek kaur mahun ka de. एक कौर मंहूँ का दे!
मेकल की तलहटी में बसे ग्राम सहजपुर में धन्नूलाल और उसका बेटा डुमरा रहते थे। वे बहुत गरीब थे
और रोज जंगल से लकड़ी लाकर उसे बेच अपना गुजारा करते थे परन्तु कल उन्हें जंगल में रात हो गयी।
पास ही एक झोपड़ी देख वे उसमें जा पहुंचे। वे मन ही मन डर रहे थे कि न जाने कौन इसमें रहता होगा।
अतः वे कमरे में रखी बड़ी कुठिया के अंदर छुप गये। रात गहराने पर जमुनी बंदरिया झोपड़ी में आयी।
उसने चूल्हा में लार जलाकर खिचड़ी बनायी और उसे झमाक से छाँका पत्तल में परोसकर
ज्यों ही लपलप खाने लगी तो उसकी खूशबू से बाप-बेटे के मुह में पानी आ गया । वे दिन भर के भूखे थे।
अतः ‘डुमरा ने आवाज लगायी ‘एक कौर मैंहूँ का दे।” यह सुनते ही जमुनी बंदरिया भय से कांपने लगी
और सोचने लगी कि जरूर ही मेरी झोपड़ी में कोई भूतप्रेत घुस आया है। अब क्या करे बेचारी?
उसी समय उसे सियार पंडा गुनीराम की याद आयी। वह भागी भागी पंडा जी के द्वार पर पहुंची
और…(Hindi ki baal kahaniyan)
और दरवाजा खटखटाया इतनी रात गये कौन आया ! सोचते हुए पंडा ने द्वार खोला –
तो सामने जमुनी बहन को देखा- “अरे क्या हो गया बहन?” जमुनी ने उसकी झोपड़ी में भूतप्रेत घुसने की बात बतायी।
वह बार-बार हाथ पैर जोड़ रही थी कि पंड़ा जी जल्दी चलो। यहां बाप-बेटे ने भरपेट गरमागरम खिचडी खायी
और फिर कुठिया में जा छुपे पंडा गुनीराम जमुनी बंदरिया के घर में नहा धोकर, चन्दन लगा,
ज्यों ही मंत्र बोलने की तैयारी में था कि तभी किसी ने कसकर उसकी पूंछ पकड़ ली।
धन्नू के बेटे डुमरा ने कुठिया के छेद से सियार गनीराम की पूंछ पकड़ रखी थी।
पंडा गुनी ज्यों ही खड़े होने लगता त्यों ही बाप बेटे पूरी ताकत से उसकी पूंछ खींचने लगते,
यह देख बंदरिया जमुनी भी घबराने लगी। सियार पंडा द्वारा ज्यादा ताकत लगाने पर उसकी पूंछ से खून बहने लगा।
मरता क्या न करता, अतः इस बार ज्यों ही उसने जोर लगाकर भागने का प्रयास किया
तो सियार पंडा की पूरी पूंछ ही टूटकर बाप-बेटे के हाथ में आ गयी। खून से लथपथ वह जंगल की ओर भागा।
उसके पीछे जमुनी भी भागी और पूछने लगी “अरे पंडा जी, कुछ तो बता दो कौन भूत प्रेत झोपड़ी में घुसा है।”
बाल कहानी (Baal kahani)
दर्द से कराहता गुनी चिल्लाया- भाग जा यहां से तेरे घर में पूछखार” घुसा है।
फिर क्या था, भय से कांपती जमुनी बंदरिया भी सदा के लिए झोपड़ी छोड़कर घने जंगल में भाग गयी।
सुबह सबेरे बाप-बेटा गांव से एक बैलगाड़ी लेकर आये और उसमें सारा सामान, लकड़ी फाटा सभी कुछ
अपने घर ले गये। नानीजी से कथा सुनकर घर के सभी बच्चों को बहुत आनंद आया।
नानीजी ने उन्हें समझाया कि कभी भी विपत्ति के समय घबराना नहीं बल्कि धैर्य से उसका उपाय सोचना चाहिए।
जीवन में सफलता का यहीं मंत्र है। सभी बच्चे तालियां बजाते हुए अपने-अपने शयनकक्ष की ओर चले गये।
नमस्कार! मैं रेखा दीक्षित एडवोकेट, मैं एडवोकेट ब्लॉगर व युट्यूबर हूं । अपने प्रयास से अपने पाठकों के जीवन की समस्याओं को दूर कर ,जीवन में उत्साह लाकर खुशियां बांटना चाहती हूँ। अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर मैंने अपने ब्लॉक को सजाया संवारा है, जिसमें आपको योग ,धार्मिक, दर्शन, व्रत-त्योहार , महापुरुषों से संबंधित प्रेरक प्रसंग, जीवन दर्शन, स्वास्थ्य , मनोविज्ञान, सामाजिक विकृतियों, सामाजिक कुरीतियां,धार्मिक ग्रंथ, विधि संबंधी, जानकारी, स्वरचित कविताएं एवं रोचक कहानियां एवं स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां उपलब्ध हो सकेंगी । संपर्क करें : info.indiantreasure@gmail.com