Santan saptami vrat katha ; संतान सातें व्रत कथा ! संतान की लंबी आयु के लिए किया जाने वाला यह व्रत मुख्य रूप से राजस्थान का त्योहार है। यह भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इसे स्त्रियाँ संतान की लंबी आयु व मंगलकामना के लिए करती हैं। इसमें एक लोककथा कही जाती है।
आज आपको santan saptami vrat katha व पूजन विधि के बारे में बताएंगे।
Santan saptami vrat ki pujan vidhi ( katha)
इस दिन दुबड़ी माता की पूजा की जाती है। एक लकड़ी के पटे पर दुबड़ी (कुछ बच्चों) की मूर्ति, सर्पों की मूर्ति,
एक मटका और एक औरत का चित्र मिट्टी से बना लिया जाता है।
उनको चावल, जल, दूध, रोली, आटा, घी और चीनी मिलाकर लोई बनाकर उनसे पूजा जाता है,
दक्षिणा चढ़ायी जाती है और भीगा हुआ बाजरा चढ़ाया जाता है।
मोठ बाजरे का बायना निकालकर सासजी के पैर छूकर दिया जाता है। फिर दुबड़ी सातें की कहानी सुनी जाती है।
इस दिन ठंडी रसोई खायी जाती है। इसमें पुए का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
जिसे खाकर ही स्त्रियां व्रत का पारण करती हैं। यदि इसी साल किसी लड़की का विवाह हुआ हो तो वह उजमन करे।
उजमन में मोठ बाजरे की तेरह कुड़ी एक थाली में लेकर तथा रुपया एवं साड़ी रखकर, हाथ फेरकर अपनी सासजी
को प्रणाम कर उन्हें दे दिया जाता है। इस व्रतकी कथा इस प्रकार है.
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किसी भी पूजा की तैयारी कैसे करें ?
Santan saptami vrat katha ; संतान सातें व्रत कथा !
एक साहूकार के सात बेटे थे, परंतु वह जिस भी बेटे का विवाह करता, वही मर जाता।
इस प्रकार उसके छः बेटे क्रमशः मर गये। अन्त में सातवें बेटे का भी विवाह तय हो गया।
सभी नाते-रिश्तेदारों को आमन्त्रित किया गया था। विवाह में शामिल होने के लिये लड़के की बुआ भी आ रही थी।
रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली। बुआ ने बुढ़िया के चरण स्पर्श किये तो उसने पूछा कि बेटी! कहाँ जा रही हो ?
बुआ के बताये जाने पर बुढ़िया ने कहा कि लड़का तो मर जायगा।
वह जैसे ही बारात के लिये घर से निकलेगा, की घर का दरवाजा गिर जायगा।
यदि उससे बचेगा तो भी जिस पेड़ के नीचे बारात रुकेगी, वह पेड़ गिर जायगा, वहाँ से बचने पर जब वह ससुराल में
प्रवेश करेगा तो वहाँ का भी से दरवाजा गिर जायगा, उससे भी यदि बच गया तो
सातवीं भाँवर पड़ते समय नाग आकर डँस लेगा।
बुआ बोली …
बुआ बोली- हे माता ! मेरा यह एक ही भतीजा बचा है, जब आपने इतने अनिष्टों की बात बतायी है तो
कृपा करके रक्षा का उपाय भी बतायें। बुढ़िया जो स्वयं दुबड़ी माता थीं, बोलीं- बेटी! उपाय तो है,
पर है बहुत कठिन। बुआने कहा- माता! कितना भी कठिन उपाय हो भतीजे की रक्षा के लिये मैं करूँगी।
बुढ़िया बोली-बेटी ! जब लड़का विवाह करने जाने लगे तो उसे दरवाजे से न निकाल कर दीवार फोड़कर निकलवाना,
उसके बाद रास्ते में किसी पेड़ के नीचे बारात को रुकने न देना, इसी प्रकार ससुराल में भी लड़के को दीवार फोड़कर
ही घर में प्रवेश कराना तथा भाँवरों के समय में कटोरे में दूध भरकर रख देना, जब नाग आकर दूध पीने लगे तो उसे
ताँत के फाँस में फँसा लेना। जब नागिन आकर अपने नाग को माँगे तो तुम उससे अपने छहों भतीजों को माँग लेना ।
इस तरह तुम्हारा यह भतीजा तो जीवित बच ही जायगा, पहले मरे हुए भतीजे भी जीवित हो जायँगे,
परंतु इस बात को ने किसी से बताना नहीं; अन्यथा सुनने और कहने वाले दोनों मर जायँगे और
भतीजे की भी मृत्यु हो जायगी।
दुबड़ी माता ने…
बुढ़िया बनी दुबड़ी माता ने जैसे कहा था मायके – आकर बुआ ने वैसे ही किया।
सभी घटनाएँ दुबड़ी माता ने जैसे बतायी थीं वैसे ही घटीं, परंतु रक्षा का उपाय बता देने के कारण
भतीजे की रक्षा हो गयी और पहले मर चुके छहों भतीजे भी जीवित हो गये।
दुबड़ी माताकी कृपासे सब कुछ आनन्दमय हो गया। बारात लौटने पर बुआने सप्तमी को दुबड़ी माता की पूजा करायी।
हे दुबड़ी मैया! जैसे तुमने बुआको सातों भतीजे दिये वैसे ही सबको संतान सुख देना।
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