नमस्कार दोस्तों !! जब वृक्षों ने मनाई राखी – कहानी (पलाश के फूल- कहानी संग्रह से) श्रीमति मनोरमा दीक्षित मण्डला द्वारा लिखी गई है। कहानी अत्यंत रोचक व छोटी है। जिसे पढ़कर एक स्वस्थ व प्रेरणादायी मनोरंजन होगा। अतः इसे अंत तक अवश्य पढ़ें।
जब वृक्षों ने मनाई राखी- कहानी !!
(श्रीमती मनोरमा दीक्षित)
जाड़े के छोटे-छोटे दिन, बात कहते बीत जाते हैं।
हाथ में लाठी लिये सुन्दर और छोटेलाल तो रात होने की राह ही देख रहे थे।
उनके साथ बिस्नू, और नोहर बढ़ई, लकड़ी चीरने का बड़ा आरा और पुराने कोट के खीसे में दारु की बोतलें रखे
तेज कदमों से आगे बढ़ते जा रहे थे।
रास्ते के ढाबे में रुककर सबने दारू पी और खाना खाया, फिर लपकते हुये पान के ठेले में जा पहुंचे।
संयोग से वहीं ढाबे में वन रक्षा समिति के शिवकुमार और गोविंद भी चाय पी रहे थे।
चाय की चुस्कियों की आड़ में वे बिस्नू और नोहर बढ़ई की जोर जोर से चल रही बातों से
शिव और गोविंद सब कुछ समझ चुके थे। नोहर का नशा कुछ ज्यादा ही हो गया था।
अतः वह सब कुछ उगले जा रहा था। जाते जाते सिगरेट के पैकेट, नमकीन और पान बंधवाकर,
वे बड़ी टार्च के सहारे तुरंत ही घने जंगल में विलीन हो गये।
उनका जाना हुआ ही था कि शिवकुमार और गोविंद भी भागे-भागे डिप्टी रेंजर श्री माखीजा के पास जाकर
सारी स्थिति बयान करने लगे। अब क्या था वन रक्षा समिति के सदस्यों के साथ ही ड्रेस लगाये बंदूकधारी
वन विभाग का दल, दबे पैरों से पगडंडी के रास्ते ठीहा के पास पहुंच गये।
इसी अंधेरे की भागदौड़ में फारेस्ट गार्ड “सिंहानी” के पैर के नीचे सांप आ गया,
पर उसने भागकर फुफकारते सांप से अपने प्राण बचाये ।
सिगरेट के धुयें से छल्ले बनाते सुन्दर और छोटेलाल वहीं पेड़ के नीचे
बैठकर गप्पें लड़ा रहे थे। तेजी से चलते आरे की करें कर्र बता रही थी कि बड़ा मोटा
पेड़ काटा जा रहा है।
दूर से ही लालटेन का धीमा प्रकाश राह बता रहा था।
अचानक फारेस्ट गार्ड गुरुप्रसाद ने सबको संकेत देते हुये तेजी से दौड़कर घेरा बनाया
और कुछ ही क्षणों में जंगल माफिया और धरती माँ के दुश्मन पकड़े जा चुके थे।
पूरा श्रेय श्री माखीजा साहब “वन रक्षा समिति के सदस्यों को दे रहे थे।
अब सारे हरे-भरे बनों को ढूंठा बनाते इन लकड़ी चोरों से गांव के सभी लोगों ने मुंह मोड़ लिया था।
अभी कल ही रेंजर साहब के बंगले में चार दिन पहले जन्मे शेर के शावकों को देखने गांव भर की भीड़ लगी थी।
वहीं सामने मैदान में बन रक्षा समिति को ईनाम देने जंगल के बड़े साहब आये थे।
वहां सभी ग्रामवासी किसी भी पेड़ को न काटने देने का संकल्प ले रहे थे।
ग्राम पंचायत और तहसीली के मैदान में लगाये गये पेड़ों को उन सबने राखी बांधी
और उनकी सुरक्षा और सिंचाई की जिम्मेदारी ली।
सतरंगी रेशमी धागों से सजे झूमते वृक्ष, आज सुरक्षा के विश्वास से सबको धन्यवाद दे रहे थे।
आज सभी यह समझ चुके थे कि पेड़ो के रहने से ही पानी बरसेगा, और
पेड़ों के रहने से ही सबको ताजी शुद्ध हवा मिलेगी –
पेड़ लगाना पुण्य है, पेड़ काटना पाप।
शुद्ध वायु जल दे रहे, हरते तन का ताप ॥
जल, जंगल व जानवर, जन, जमीन है मीत।
सब मिल सबको पालते, करें इन्हीं से प्रीत ॥
रंग बिरंगे रेशमी धागे में बंधने के लिये आतुर वृक्ष, अपनी टहनि हिला हिलाकर मानो अपनी सहमति एवं पुलकन व्यक्त कर रहे थे।
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