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बच्चों को न बनाएं बोनसाई वृक्ष !!

आज की आवश्यकता धैर्य व अनुशासन है। 

जीवन बड़ा ही अनमोल है और हम कितने दुखी हैं, परेशान हैं, विचलित हैं। जरा सोचिये ? हम दुखी हैं अपने बनाये कारणों से, क्योंकि हमें सब कुछ जल्दी चाहिए। हमे सब कुछ किसी भी तरह चाहिए। जीवन बहुत आसान है किंतु हमारी अधीरता व गैर अनुशासन ने उसे बड़ा ही दुरूह बना दिया है।       

     एकओर जहां धैर्य व अनुशासन हमे उचाईयों पर ले जाते हैं वहीं इनकी अनुपस्थिति हमारे जीवन को कष्टप्रद बनाती है। प्रकृति हमे अनुशासन सिखाती है।प्रकृति ही हमें धैर्य भी सिखाती है। प्रकृति का अनुशासन देखें ,सूर्योदय चन्द्रोदय का समय व स्थान का नियमित होना जो हमे सिखाता है कि प्रत्येक कार्य अनुशासित व नियमित होने चाहिए। प्रकृति का धैर्य भी देखे की जब आप धरती पर बीज डालते हैं तब कुछ निश्चित दिनों के बाद ही बीज प्रस्फुटित होगा, ओर कुछ महीनों बाद पौधा तैयार होगा, फिर कुछ साल बाद ही पौधा वृक्ष बनेगा। 

             आप चाहकर भी एक निश्चित समय के पहले उस बीज को अंकुरित नही कर सकते और न ही समय से पहले उसे वृक्ष रूप में तब्दील कर सकते।आप सोचेंगे इसमें नई बात क्या है इसे तो सब जानते हैं। हाँ सही सोचा आपने ! आप सब कुछ जानते हैं पर नई बात यह है कि जब आपका बीज आपकी सन्तान को आप इस कर्मभूमि पर लाते हैं तब उसे अंकुरण ,पल्लवन व प्रस्फुटन का समय क्यों नही दे पाते। उस समय हमें प्रकृति के अनुशासन को याद रखना चाहिए।

आप कुछ न भी करें किन्तु एक स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया में लगने वाले समय की प्रतीक्षा जरूर करें। जिस प्रकार फसल के बोने और काटने का समय अलग अलग होता है। जब तक जमीन तैयार न हो बीज अंकुरण न होगा वैसे ही जब तक फसल पककर तैयार न हुई हो काटी नहीं जा सकती। अर्थात प्रत्येक कार्य को पूर्ण होने में एक निश्चित समय की आवश्यकता होती ही है, जिसमे धैर्य के साथ संरक्षण के साथ प्रतीक्षा करनी चाहिए।यही अनुशासन व धैर्य हमे अपने जीवन मे भी स्थापित करना चाहिए। 

आज की सबसे बड़ी समस्या बच्चों को लेकर ही है

हम सभी पैरेंट्स ने मिलकर ही अपने बच्चों की स्वाभाविकता छीनी है। बच्चों का अस्तित्व हमारे लिए समाज मे प्रतिष्ठा , प्रतिस्पर्धा का माध्यम बन गया और हम प्रतिष्ठा व प्रतिस्पर्धा के उस वायुयान में बैठकर उड़ने लगे। एक पल भी प्रकृति के उस अनुशासन व धैर्य के बारे में नही सोचा जिसे आज पढ़कर ये सोच रहें हैं कि ये तो सबको पता है, इसमें नई बात क्या है ? मैं विकास के उसी स्तर की बात कर रही हूं जिसमे बीज अंकुरित होता है, वृक्ष बनता है। किंतु हम बच्चों में न अंकुरण होने देते हैं न ही उसे वृक्ष बनने का समय देते हैं। 

                 बच्चे के जन्म से ही प्लान तैयार हो जाता है कि कौन सी नर्सरी भेजना है। जैसे तैसे दो ढाई वर्ष बीते नही की नर्सरी भेज दिए। जबकि खेत मे बीज डालने के लिए हम जमीन को कितना तैयार करते हैं, फिर वो बीज धरती के अंदर की गरमाहट से अंकुरित होता । किन्तु हमने अपने बच्चे के लिए जमीन तैयार नही की बल्कि उसे एक रेडिमेड प्लॉट दे दिया। फिर हम अपना धैर्य खोने लगते हैं, व अपनी उपस्थिति व प्यार की गर्माहट न देकर उस बच्चे के स्वाभाविक विकास व मासूमियत को भूल जाते हैं।हम ये भी भूल जाते हैं  कि जब बीज वृक्षरूप में आएगा तभी उसमे फल फूल लगेंगे।     

          हम तो अभी से अपने नन्हे मुन्नों में कलेक्टर, डॉक्टर, इंजीनियर, ऑफिसर आदि ढूंढने लगते हैं, हमने अभी से ही बच्चे को वृक्ष बना दिया एक बोनजाई बृक्ष !  हमने जड़ें काट दी उसकी !  उसकी वास्तविक अवस्था से पूर्व हम उससे फल फूल चाहने लगे। हम उन्हें प्राइमरी या मिडिल स्कूल में ही आईएएस, डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर या अन्य अधिकारी बनने की कोचिंग के लिए भेज रहें हैं । 

               स्वयं ही सोचिये एक बोनसाई पौधे और सामान्य पौधे की ग्रोथ में कितना फर्क होगा। जो फल फूल की गुणवत्ता ,व स्थायित्व नैसर्गिक पौधे  में होगा वो तो बोनसाई पौधे में नही हो सकता वो तो मात्र आपके गार्डन के गमले की शोभा बस बढ़ाएँगे । वो भी शोपीस की तरह,  जिनका आपसे कोई भावनात्मक सम्बन्ध नही रह जाएगा क्योंकि आप ही ने तो उसे उसकी जड़ से काटकर अलग कर दिया था। फिर आप दुखी होंगे परेशान होंगे कि इसी दिन के लिए बच्चों को पढ़ाया लिखाया था। पर आप सोचिये भी तो आपने सिखाया क्या था ? आपसे दूर रहना, सबकुछ छोड़कर अपनी पढ़ाई को ही महत्व देना, सामाजिकता को छोड़ कर स्वयं को महत्व देना ,तो वे आज अपनी पढ़ाई को ही महत्व दे रहें हैं । अपने आप को महत्व दे रहें हैं। 

                 काश आपने सोचा होता,  पीछे मुड़कर अपने जीवन को देखा होता, की आप क्या कर रहे थे इस उम्र में !  क्या आपने पढाई नहीं कि ? क्या आप सुखी नही हैं ?  और तब आप जानेंगे कि आपकी नींव क्यों मजबूत है ? क्योंकि आपकी जड़ें गहरी है। आप बोनसाई नही हैं आपकी जड़ें  आपके माता पिता ,परिवार, समाज से जुड़ीं हैं आपका तो नैसर्गिक विकास हुआ हैं किंतु बच्चे की जड़ें तो आप ने खुद काटी हैं। उसे बोनसाई  बना दिया। उसेे अपनी जड़ें फैलाने का अवसर ही नही दिया। उस नन्हे से पौधे में अपनी पसंद के फल लगाए उसे ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया। समाज से परिवार से दूर किया, उन्हें एकाकी जीवन दिया।

हमारे बच्चों को भी उनकी जमीन चाहिए। 

जिसमें वे खुलकर सांस ले सके, खुला आसमान चाहिए जिसमें वे अपनी स्वछंद उड़ान भर सकें। आपका साथ चाहिए , आपका दुलार चाहिए, वो तीखी आँखों की चुभती फटकार चाहिए, वो मीठी थपकी सी मार चाहिए, गलतियों पर प्यारा सा तिरस्कार चाहिए, अच्छे कार्यों पर सम्मान से पुरुस्कार चाहिए, आपके दुख दर्द चाहिए, उनकी खुशियों का संसार चाहिए। कच्ची उम्र से जबकि उन्हें आपका प्रेम चाहिए साथ और विश्वास चाहिए तब आठवीं और दसवीं से ही हम होस्टल भेज रहें हैं। क्यों ? क्या मिल पायेगा ये सब उन्हें हॉस्टल में ? 

                  आजकल बच्चे एक या दो ही होते हैं, इस पर भी बच्चों की परवरिश एक समस्या है। कहीं बच्चों को हॉस्टल भेजकर हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्त तो नही होना चाहते ? हॉस्टल में बच्चों की संख्या एक दो नही  दो सौ से पांच सौ औरअधिक भी हो सकती है । क्या हॉस्टल में आपके बच्चे की परवरिश आपकी तरह हो सकेगी ? एक तरफ हमने फार्मूला “बच्चे दो ही अच्छे ^ अपनाया ताकि हम अपने बच्चे को अपना पूरा समय व प्यार दे सकें , दूसरी ओर हम बच्चों को अपने पास भी नही रख पा रहे। यह एक विचारणीय प्रश्न है आपके विचार हेतु छोड़े जा रही हूँ, विचार करें व अपने नन्हे मुन्नों को नैसर्गिक रूप से अपनी जड़ें फैलाने दें । उन्हें बोनसाई न होने दें । आपकी सोच से भी ऊंचा मुकाम हासिल करेंगे आपके लाडले/लाडली । बस जरूरत है उनकी जड़ों को मजबूत करने की, ये अब आप पर है कि आप क्या निर्णय लेते हैं।

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