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जीवन स्वयं के लिए ही क्यों जियें ?

      ( मेरा यह अंक उन प्यारी बहनों को समर्पित है जो जीवन को जीतीं नहीं बल्कि जीवन को बिताती हैं।)                

   इस सृष्टि में मानव को छोड़कर शेष सभी प्राणी कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे,सभी स्वयं के लिए ही जीते हैं, किन्तु अनजाने ही बिना श्रेय लिए हुए कीट-पतंगे, पशु-पक्षियों का भोजन बन जाते हैं, पशु-पक्षी जंगल निर्माण कर देते हैं, जंगल मनुष्यों व प्राणियों की शरणस्थली बनते है , भूख मिटाते ओषधि बन जाते हैं। जबकि प्रत्येक मनुष्य ये दावा करता है कि मैं दूसरों के लिए जी रहा हूँ, स्वयं के लिए नहीं। किन्तु बहुत कम लोग ये जानते हैं कि हमे स्वयं के लिए ही जीना चाहिए। स्वयं के लिए जीवन जीने का मतलब स्वार्थी होने से नहीं है। आइये जानें कि हमे स्वयं के लिए क्यों जीना चाहिए ?  

                          हम पूर्व के युगों का अध्ययन करें तो देखेंगे कि सतयुग में लोग स्वयं के लिए ही जीवन जीते थे और इसीलिए उन्हें सारी सिद्धियाँ प्राप्त थी वे सुखी थे सब ओर शांति थी सद्भाव था, सभी ऋषि, मुनि, व देवता थे। उनके सारे कार्य स्वयं के लिए किए जाते थे जिसके लाभ स्वमेव सभी प्राणियों व पेड़-पौधों तक को प्राप्त होते थे।     

                       इसके विपरीत हम  अपने आस पास के समाज को देखें तो पाएंगे कि यहाँ माता पिता बच्चों के लिए जी रहें हैं, बच्चे माता पिता के लिए जी रहें हैं। पति, पत्नी के लिए और पत्नी पति के लिए जी रहें है।                         

    गम्भीर बातें हैं, हम जब भी किसी के लिए कुछ भी करते हैं तब हम उसकी सामर्थ्य को घटा देतें हैं, फिर पछतातें भी हैं कि इतना किया पर कुछ लाभ नही हुआ। न वह व्यक्ति आपके जैसा हुआ, न वह आपका हुआ, न आप उसके जैसे हो पाए, न आप उसके हो पाए। तब दुःख हुआ कि हम अपने लिए कुछ कर नही पाए।कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जिन्हें जानना हम सभी के लिये बहुत जरूरी है की हम अपने लिये क्यों जियें…..

1.                          जो हम स्वयं के लिए करतें है उसका सीधा लाभ हमारे परिवार व समाज को प्राप्त होता है, जैसे हम अच्छे भोजन के शौकीन हैं तो परिवार में भोजन सम्बन्धी व्यवस्था अति उत्तम रहेगी। उसी तरह शिक्षा, स्वास्थ्य, अध्यात्म,आदि जैसी भी हमारी अभिरुचि होगी हमारे परिवार में हम उसी माहौल को निर्मित करेंगे।

2.                          जैसे ही हम अपने लिए कुछ नियम व सिध्धांत बनाते हैं वैसे ही हम अपनी जीवन शैली से अपने आसपास के लोगों को प्रभावित करते हैं।और वे हमारा अनुकरण करतें हैं।3.                    जब हम अंतर्मुखी होकर अपनी निश्चित  दिनचर्या में अपने आप को बांध लेते हैं तो दूसरों के द्वारा उतपन्न तनावों से आप स्वमेव दूर हो जातें है।

4.                     जैसे ही आप तनावमुक्त होते हैं आपकी शक्तियाँ द्विगुणित हो जाती हैं और आप तेजी से उन्नति करने लगते हैं।

5.                         जैसे ही आप उन्नति करने लगते हैं आपका व्यवहार सभी के प्रति सकारात्मक और सहयोगात्मक हो जाता है।

6.                     आपके सकारात्मक होते ही आपके आसपास का पूरा वातावरण, और सारे लोग सकारात्मक होने लगते हैं।

7.                        .यही सकारात्मकता , आपके परिवार और समाज मे आपसे जुड़े सभी लोगों के लिए प्रेरणा बनकर सभी को उन्नति करने के लिए प्रेरित करती है।

8.                         यही प्रेरणा आपको  आपके परिवार और समाज में एक आदर्श व्यक्ति के रूप में  निरूपित करती है।

9.                     इसी आदर्श का आपके बच्चे अनुकरण करते हैं, और आपसे बड़े आपको उनका गौरव बढ़ाने के लिए आशीर्वाद देते हैं, तथा आपके मित्र आपकी योग्यता का सम्मान करतें है।

10.                         स्वयं के लिए जीकर भी आप बहुतों के प्रेरणास्रोत, बहुतों के आदर्श, बहुतों के गुरु बन गए, जो शायद, माता पिता, पति पत्नी या शिक्षक बनकर भी न हो पाते।   

                     इसलिए हमें स्वयं के लिए जीना चाहिए। दूसरों के लिए जीवन जीते हुए हम अपने कोई सिद्धान्त ही नही बना पाते, न ही हमारी कोई दिनचर्या निर्धारित हो पाती है और तब हम अपने परिवार में सबकुछ सबके लिए करते हुए भी एक सिद्धांतविहीन और दिनचर्या हीन, लक्ष्यहीन व्यक्ति होते हैं , और तब हमारी सन्तान भी हमारे जैसे जीवन को प्राप्त करती हैं। और परिवार और समाज मे जो काम आप स्वयं नहीं करते, वो कार्य आप दूसरों से भी नहीं करा सकते,इस तरह हम अपना अवमूल्यन भी खुद करातें है। अतः तपस्वी बनें स्वयं को निखारें । दूसरों के लिए जीने हम ये भूल गए कि हम ऋषियों की संतान हैं हमारे कृत्य ऋषियों की तरह होने चाहिए थे, ऋषियों के कार्य स्वाहितार्थ होते हुए भी परमार्थी होते थे।                               हम अपने लिए क्यों जिये ये जानने के लिए हमें उनको जानना होगा जो स्वयं के लिए  जिये ओर समाज को ,परिवार को सबकुछ दे गए। हमे उनका अनुसरण करना होगा, तभी हम अपने लिए जी सकेंगे। जो कार्य हम स्वयं नही करते वह दूसरों से करा भी नहीं सकते।अतः आप स्वयं अपने लिए जियें, और सभी को स्वयं के लिए जीना सिखाएं।               

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