घर का डॉक्टर- कहानी, श्रीमती मनोरमा दीक्षित! (पलाश के फूल)! Total Post View :- 1156

घर का डॉक्टर- कहानी, श्रीमती मनोरमा दीक्षित! (पलाश के फूल)!

नमस्कार दोस्तों!! घर का डॉक्टर- कहानी श्रीमती मनोरमा दीक्षित द्वारा रचित पलाश के फूल कहानी संग्रह से ली गई है। जिसमे पुरानी परम्पराओं को चित्रित कर जीवन के रहन सहन को बताया गया है।

घर का डॉक्टर- कहानी (श्रीमती मनोरमा दिक्षित)

परसादी साहू मलेरिया विभाग में लिपिक पद से सेवानिवृत्त हो अपने गाँव अंजनी में रहने लगे थे।

खेती बाड़ी की फसल और पेंशन से गुजारा चलता था। पिछले कुछ दिनों से परसादी के घर में सबके सब बीमार हो गये थे।

उनकी 7 वर्षीय नातिन शोभा बार बार दस्त और उल्टी से लस्त हो गयी थी।

वहीं 5 वर्षीय नाती रमण को ठंड देकर तेज बुखार आया था।

उसका चेहरा तमतमा गया था और माथा तवा सा तप रहा था।

बीमारी के कारण खुद परसादी का बैठना उठना, खाना पीना हराम था।

उनकी घरवाली के शरीर में होमोग्लोबिन केवल 5% पाया गया था। दवाओं के बाद भी कमजोरी दूर नहीं हो रही थी।

घर में सिर्फ बड़ा बेटा प्रकाश और बहू मधू भर ठीक थे। वे ही सबकी दवा दारू कर रहे थे।

जंगल में बसे इस गाँव में

पहिले बाजार के दिन डॉ. साहब आते थे, अब तो वह भी नहीं है।

इसी सोच में डूबे परसादी ने फिर से नन्हीं “पूनम” को पोदीना अर्क देकर कुछ शांत किया ।

और सभी बीमारों को मंडला ले जाकर दवा कराने की तैयारी करने लगे।

उसी समय अस्पताल की सफेद गाड़ी के तेज हार्न से वे भी उसी ओर देखने लगे ।

सिस्टर मालवीय “मधू” को, जो पंचायत में पंच भी है, बुला रहीं थीं। गाँव में 15 तारीख को केम्प लगने वाला था।

उनके ही समझाने से गाँव की बहुत सी औरतें परिवार नियोजन को तैयार हुई थीं।

दो बेटियों वाली माताओं को परिवार नियोजन करवाने पर शासन की ओर से पुरस्कार राशि भी दी जाने वाली थी।

वैसे सभी ऑपरेशन वाली औरतों को कम्बल भी बाँटे जा रहे थे। मधू भाभी की नौकरानी सुधिया की दो बेटियाँ थीं।

उसका घरवाला एक बेटे की रास्ता देख रहा था, पर मधू भाभी के यह कहने पर कि

“बेटी तो बेटों से ज्यादा समझदार होती हैं ” वह भी तैयार हो गया था परिवार नियोजन के लिए।

सिस्टर मालवीय ने आवाज लगायी

‘कहाँ छिप गयीं है भाभी जी” पर जब वे सामने नहीं दिखी तब वह परछी में पहुंची तो देखा कि

यहाँ तो बीमारों का डेरा पड़ा है। नन्ही पूनम चुपचाप आँख बन्द किये लस्त सी पड़ी थी।

तुरंत ही सिस्टर ने ‘ओरस’ का पैकेट निकालकर उबले पानी में घोल, पूनम को पिलाया।

ओरस के चार पैकेट परसादी दादा को पकड़ाते हुए सिस्टर ने एक गिलास पानी में एक चम्मच शक्कर

और एक चुटकी नमक डाल तुरंत ‘ओरस’ बनाने की विधि भी बतलायी। दादा ही ‘पूनम’ की देखरेख कर रहे थे।

“दादा जी, इसी घोल से उल्टी-दस्त से मरीज की जीवन रक्षा होती है” सिस्टर मालवीय ने अपनी बात पूरी की।

बातों-बातों में सिस्टर सिसोदिया, दादाजी से पूछ बैठी-

“दादाजी, स्वतंत्रता दिवस पर आपने और हमने जो वृक्षारोपण किया था, वे पौधे कैसे हैं ?”

दादा बोले- अरे यह सब आप अपनी मधू भाभी से पूछो, वे ही तो रोज़ “मोदिन काकी” और “राठौर बऊ” के साथ उसे सींचने जाती थीं।

वे तो छोटे बच्चों की तरह उन पौधों को पाल रही हैं। पौधों को जानवरों से बचाने के लिये ढुलगा भी “सगुनी चाची” ने बनाया था।

मोतीझिरा से बीमार सीमा को दवा देते हुए सिस्टर ने “फिटकरी” से पानी स्वच्छ करने की विधि भी

उनकी नौकरानी रमिया को बतायी और पीने के पानी में रोज एक गुच्छा तुलसी पत्नी डालने को भी कहा।

रमिया को सिस्टर सिसोदिया की बात अच्छी लगी। अब वह अपने आस-पड़ोस में भी पानी की सफाई करना बताती है।

इतनी देर हो गयी पर…(कहानी घर का डॉक्टर)

मधू भाभी अभी तक बाहर नहीं आ पायी थीं। सब यहाँ सोच रहे थे तभी हींग की बधार से पूरा घर महमहा गया।

साहू दादा आखिर बोल ही पड़े “ऐसी हींग बघरी दाल में दो रोटी ज्यादा खब जाती है और सब कुछ हजम”।

तभी चौके का काम पूरा कर चाय की ट्रे ले मधू बहू आ पहुँची।

तुलसी काली मिर्च की खुशबूदार चाय का दौर चल ही रहा था कि परसादी दादा के मित्र प्रेमलाल यादव आ। पहुंचे।

परसादी जी रमण का पसीना पोंछ रहे थे, पर मलेरिया से बीमार रमण को बड़ी बैचेनी तथा सिरदर्द था ।

अभी उसे मलेरिया की गोलियाँ दूध के साथ दी गयी थी। दादा जी मेरी बात ध्यान से सुनिए,क्या बात है सिस्टर जी?

दादाजी, रमण को मलेरिया का पूरा कोर्स कराना वरना उसे बार बार मलेरिया होता रहेगा, सिस्टर

सिसोदिया ने समझाइश दी। “ठीक है, में खुद अपने हाथ से दवा देकर उसका कोर्स पूरा कराऊँगा” दादा संतुष्ट होकर बोले।

इधर यादव जी रमण के सिर पर पानी की पट्टी रखने लगे। अब रमण झपकने लगा था।

“मधू” की बनायी तुलसी काली मिर्च वाली चाय सभी को बड़ी अच्छी लगी।

“रमण भी यदि यह चाय पीता तो क्यों आज बिस्तर में होता” यादव जी बोले ।

परसादी साहू के मित्र यादव..

“आयुर्वेद रत्न” पास थे तथा बहुत दिनों से अपने गाँव में मुफ्त इलाज करते थे, केवल जड़ी बूटियों से।

अरे यादव जी, सबका दुःख दूर करते हो, पर मुझसे तो सुख दुख पूछते ही नहीं।

उनकी बात पर हंसते हुए यादव जी ने पूछा- अरे भैया, क्या हो गया आपको ?

” यहाँ बात चल ही रही थी, कि घर की नौकरानी रमिया “खाज” से फदके अपने लड़के को यादव जी के पास ले आयी।

दादाजी यह तो रात-दिन परेशान करता है। “अरे घर में ही तो डॉक्टर है”

आँगन में लगे नीम के झाड़ की ओर इशारा कर साहू जी बोले- “रमिया, नीम की पत्ती पानी में उबालकर रुई से

इसके घाव रोज सुबह-शाम साफ कर नीम की छाल को चंदन सा घिसकर, उसमें तुलसी पत्ती का रस मिला,

रुई से घाव में हर दो घंटे में लगाओ। रात को नारियल तेल में कपूर और गंधक पीस मलहम तुम खुद बनाकर

एक डबिया में रख लो और जब तक खाज ठीक न हो जाय, रोज लगाओ।” रमिया यादव जी के पैरों में गिर गयी।

अभी बातें खतम भी नहीं हुई थी कि रमण का दोस्त सुभाष आँगन में गिर जाने से खून बहाते चला आया।

अरे अरे! देख सुन के चला करो, कहकर सोहन ने गेंदा की पत्ती पीसकर उसकी चोट पर लगायी।

अब सुभाष के माथे से खून बहना बंद हो चुका था। इधर पान बनाकर लाई मधू बहू ने भी बड़े संकोच से

अपनी “भूख’ म लगने और कब्ज की शिकायत कह डाली। (घर का डॉक्टर- कहानी)।

अरे बहूरानी, ऐसी बढ़िया..

चाय पिलाती रहो फिर तुम्हें तो हम चंगा ही रखेंगे, यादव जी बोले- “मधू बहू तुम भाग्यशाली हो,

तुम्हारे आँगन में लगी नीम में ये देखो “गुरबेल” चढ़ी है, यह अमृत है अमृत !

गुरबल का 6 इंच का टुकड़ा एक किलो पानी में पकाकर दो कप बच रहने पर यह काढा तुम भी पिओ

और घर के सभी लोगों को पिलाओ । मौसमी बुखार और हाथ-पैर सिर दर्द सभी ठीक हो जायेगा।

भूख नहीं लगती, इसकी चिन्ता मत करो। तुम सबका भला करती हो इसलिए भगवान तुम्हारा भला जरूर करेंगे।

बाड़ी में लगे आंवला और हर्रा को सुखा लेना बहेरा हमारे घर मे है, हम भेज देते हैं।

आँवला से आधा हर्रा और उससे आधा बहेरा पीसकर त्रिफला बना लो,

फिर देखो सुबह ठंडे जल से और सोते समय गुनगुने पानी से लेने पर कितना अच्छा लगेगा ।

इसे तीन महीने तक रोज फाँको, हम तो कहत हैं कि बारों महिना खाव,

ओई को रात में फुलाकर सबेरे ओके छने पानी से आँखी धोव, ओई से अपने बाल धोव फिर हमसे कहियो कि हमने का कई थी।”

ज्यादा खुश होने पर यादव दादा जी घरु बोली बोलने लगते थे। मधू तुम्हारी सास का होमोग्लोबिन गेहूँ के जबारों से बढ़ा लो।

चलो अब डायरी में ऐहे लिख लो…(घर का डॉक्टर-कहानी)

चैत में गुड, वैशाख में तेल,

जेठ में पंथ, अषाढ़ में बेल

सावन में साग, भादों में मही,

क्वांर में करेला, कातिक में दही।

अगहन में जीरा, पूस में धना,

माघ में मिश्री, फागुन में चना

मत खाना इनको तुम मान लेव भाई,

न माने तो पड़ोगे, होय जग हंसाई।

यादव जी की इस सीख से अब गाँव में कोई डाक्टर नहीं ढूंकता ।

मधू ने भी रामायण मंडली में सब दीदी, काकी, बुआ को यह गीत समझाकर लिखवा दिया है।

और प्रौढ़ शिक्षा की कक्षा में भी। अब तो “घर का डाक्टर” सबके पास है। गाँव में सभी भले चंगे हैं।

समय मिलते ही गांव के नवयुवक जंगल से हर्रा, बहेरा, आंवला इकट्ठाकर त्रिफला बनाकर रखते हैं,

जो उन्हें निरोग रखता है। यादव दादा की चमचमाती बत्तीसी देखकर, अब सभी नीम की दातौन ही करते हैं।

घर का डॉक्टर-कहानी (श्रीमती मनोरमा दीक्षित)

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