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कौन सा तेल लगाएं या खाने में कौन सा तेल उपयोग करें !

सभी यह जानना चाहते हैं कि कौन सा तेल लगाएं और कौन से तेल का खाने में उपयोग करना चाहिए । तरह-तरह के तेल उपयोग में लाए जाते हैं किंतु मुख्यतः 3 तेलों का ज्यादा उपयोग किया जाता है । उसमें नारियल तेल, तिल का तेल और सरसों का तेल मुख्य हैं ।

आयुर्वेद के अनुसार तेल का उपयोग खाने और लगाने में शरीर की प्रकृति के अनुसार किया जाता है। शरीर में तीन तरह की प्रकृति पाई जाती है वात, पित्त और कफ प्रकृति। और इनके उपचार में मुख्यतः नारियल का तेल, सरसों का तेल और तिल के तेल का ही उपयोग अधिकतर किया जाता है। तो आइए जानते हैं इन 3 तेलों की प्रकृति क्या है और इनका उपयोग कैसे व कब किया जाना चाहिए।

कौन से तेल की प्रकृति कैसी है !

  • वैसे तो सभी तेल गर्म प्रकृति के ही होते हैं किंतु इनमें गर्मी की मात्रा अलग-अलग पाई जाती है।
  • तेलों का कलर देख करके इस से पहचाना जा सकता है।

नारियल तेल !

  • इसका कलर सफेद होता है या ट्रांसपेरेंट हल्का रंग कहलाता है।
  • यह अन्य तेलों की अपेक्षा कम गर्म होता है। यह पित्त प्रकृति वालों के लिए ठीक रहता है।
  • वात और पित्त प्रधान प्रकृति के लोगों के लिए यह उपयोग में लिया जा सकता है।
  • ठंड में यह जमने लगता है इसका मतलब होता है कि अब इसे गर्म करके ही उपयोग में लिया जाए।

तिल का तेल !

  • यह हल्के रंग का और गर्म प्रकृति का होता है।
  • अतः वात प्रकृति के लोगों के लिए यह उत्तम माना जाता है।
  • यह तेल वात, पित्त और कफ तीनों प्रकृति के लोगों के द्वारा उपयोग में लिया जा सकता है।

सरसों का तेल !

  • यह गाढ़ा और गहरे रंग का होता है तथा अत्यंत गर्म प्रकृति का होता है।
  • यह कफ प्रकृति के लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी होता है। यह खाने के लिए उत्तम माना जाता है।
  • इसे मालिश के उपयोग में भी लिया जाता है ।

कौन सा तेल खाएं और लगाएं !

  • तेलों की प्रकृति जान लेने के बाद इसका उपयोग करना अत्यंत ही सरल है।
  • यह तीनों ही तेल खाने और मालिश करने के काम में लिए जाते हैं।
  • गर्मी के दिनों में या पित्त प्रकृति वाले लोगों को जिनमें पहले से ही गर्मी शरीर में पैदा हो रही है।
  • उन्हें नारियल तेल का उपयोग खाने और लगाने में करना चाहिए।
  • इसी प्रकार वात रोगों से पीड़ित व्यक्ति को या ठंड के दिनों में अधिकतर तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए ।
  • इसे मालिश करने और खाने दोनों ही उपयोग में लिया जाता है ।
  • इसी प्रकार अत्यधिक ठंड व बारिश के दिनों में तथा कफ प्रकृति वालों के लिए सरसों का तेल बहुत उपयुक्त होता है।
  • अतः इसे लगाने तथा खाने के उपयोग में लिया जाता है।
  • सरसों का तेल भोजन बनाने के लिए उपयुक्त माना जाता है क्योंकि यह गर्म होता है ।
  • और शरीर में वसा और चिकनाई को एकत्रित नहीं होने देता तथा कफ को भी पिघला कर बाहर कर देता है।

तेल चिकित्सा कैसे करें ( कौन सा तेल लगाएं व खाएं) !

  • आयुर्वेद में तेल की प्रकृति और शरीर की प्रकृति के अनुसार तेल चिकित्सा की जाती है।
  • तेल की प्रकृति के अनुसार जिस व्यक्ति को पित्त की (अर्थात शरीर में गर्मी बढ़ने की समस्या हो ) ,
  • और वात भी हो तब ऐसी स्थिति में नारियल तेल का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • शरीर में यदि वात रोगों की अधिकता हो और वात प्रकृति का व्यक्ति हो तो उसे तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
  • तिल का तेल वात पित्त और कफ तीनों दोषों को शांत करता है।
  • यदि किसी व्यक्ति ने तीनों दोषों की प्रचुरता हो तो भी तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
  • कफ प्रकृति वालों को तथा कफ की प्रधानता में सरसों के तेल का प्रयोग करना चाहिए ।
  • इस प्रकार आयुर्वेद में प्रदत्त तेल चिकित्सा से घर बैठे ही आप अपनी चिकित्सा कर सकते हैं।
  • यह एकदम निरापद है इसमें कोई भी साइड इफेक्ट नहीं है।

आजकल बहुत से तेल मार्केट में आ चुके हैं लेकिन कोई भी तेल इन मुख्य तेलों की बराबरी नहीं कर सकता। अतः अपने जीवन में इन तीन तेलों को प्रमुखता से उपयोग में रखना चाहिए।

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