श्री शिव लिंगाष्टकम स्त्रोतम हिंदी में अर्थ सहित! Total Post View :- 3212

श्री शिव लिंगाष्टकम स्तोत्रम हिंदी में अर्थ सहित !!

नमस्कार दोस्तों!! श्री शिव लिंगाष्टकम स्तोत्रम के गायन से भगवान भोलेनाथ बहुत प्रसन्न होते हैं। सावन माह में भगवान की तरह तरह से पूजा व भक्ति करके भक्त उन्हें रिझाने के प्रयास करते हैं। भगवान आशुतोष थोड़े में ही प्रसन्न हो जाते हैं।

इसीलिए छोटे से छोटा प्रयास आपको भगवान का आशीर्वाद दिला सकता है। अतः सावन माह में कम से कम एक बार भी श्री शिव लिंगाष्टकम स्तोत्रम का पाठ कर ले तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। लिंगाष्टकम के हिंदी अर्थ सहित प्रस्तुत किया जा रहा है। अतः अंत तक अवश्य पढ़ें।

श्री शिव लिङ्गाष्टकम स्तोत्रम हिंदी में अर्थ सहित। !

ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्ग,

निर्मल भासित शोभित लिङ्गम्।

जन्मज दुःख विनाशन लिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।१।।

देवमुनि प्रवरार्चित लिङ्ग

काम दहन करूणा कर लिङ्गम्।

रावण दर्प विनाशन लिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।२।।

सर्व सुगंधि सुलेपित लिङ्गं,

बुद्धि विवर्धन कारण लिङ्गम्।

सिद्ध सुरासुर वंदित लिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ।।३।।

कनक महा मणि भूषित लिङ्गम्,

फणि पति वेष्टित शोभित लिङ्गम्।

दक्ष सुयज्ञ विनाशक लिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ।।४।।

कुंकुम चंदन लेपित लिङ्गं,

पंकज हार सुशोभित लिङ्गम् ।

संचित पाप विनाशन लिङ्ग,

तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।५।।

देव गणार्चित सेवित लिङ्गं,

भावैर्भक्ति भिरेव च लिङ्गम्।

दिनकर कोटि प्रभाकर लिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।६।।

अष्ट दलो परि वेष्टित लिङ्ग.

सर्व समुद्भव कारण लिङ्गम्।

अष्ट दरिद्र विनाशित लिङ्गं ,

तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।७।।

सुरगुरु सुरवर पूजित लिङ्गं

सुखसे पुष्प सदार्चित लिङ्गम्।

परात्परं परमात्मक लिङ्गं

तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।८।।

लिगांष्टक मिद पुण्यं यः पठैच्छिव सन्निधौ ।

शिव लोकम वाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥६॥

॥ इति श्री शिव लिगांष्टक स्तोत्रं संपूर्णम्।।

श्री शिव लिंगाष्टकम स्तोत्रम (हिंदी में)

पद- 1

  • ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवगणों के इष्टदेव हैं;
  • परम पवित्र, निर्मल तथा सभी जीवों की मनोकामना को पूर्ण करते हैं;
  • जो लिंग के रूप में चराचर जगत में स्थापित हुए हैं, जो संसार के संहारक हैं;
  • जन्म और मृत्यु के दुःखों का विनाश करते हैं,
  • ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

पद-2 ( श्री शिव लिंगाष्टकम स्तोत्रम)

  • मुनियों और देवताओं के परम आराध्य देव हैं; देवताओं और मुनियों द्वारा पूजे जाते हैं;
  • काम (वह कर्म जिसमे विषयासक्ति हो) का विनाश करते हैं; जो दया और करुणा के सागर हैं;
  • जिन्होंने लंकापति रावन के अहंकार का विनाश किया,
  • ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

पद-3

  • स्वरूप जो सभी तरह के सुगन्धित इत्रों से लेपित है; जो बुद्धि तथा आत्मज्ञान में वृद्धि का कारण हैं;
  • जो शिवलिंग सिद्ध मुनियों, देवताओं और दानवों द्वारा पूजा जाता है,
  • ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

पद-4 ( श्री शिव लिंगाष्टकम स्त्रोतम)

  • लिंगस्वरूप भगवान शिव, जो सोने तथा रत्नजडित आभूषणों से सुसज्जित हैं;
  • चारों ओर से सर्पों से घिरे हुए है;
  • जिन्होंने प्रजापति दक्ष (माता सती के पिता) के यज्ञ का विध्वंस किया था,
  • ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

पद-5

  • जिनका लिंगस्वरूप कुंकुम और चन्दन से सुलेपित है;
  • कमल के सुन्दर हार से शोभायमान है;
  • जो संचित पापकर्म का लेखा-जोखा मिटने में सक्षम हैं,
  • ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

पद- 6

  • जिनकी देवगणों द्वारा अर्चना और सेवा होती है;
  • जो भक्ति भाव से परिपूर्ण तथा पूजित हैं।
  • जो करोड़ों सूर्य के समान तेजस्वी हैं,
  • ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

पद-7

  • जो पुष्प के आठ दलों (कलियाँ) के मध्य में विराजमान हैं;
  • सृष्टि में सभी घटनाओं (उचित-अनुचित) के रचियता हैं;
  • जो आठों प्रकार की दरिद्रता का हरण करते हैं, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

पद- 8

  • जो देवताओं के गुरुजन तथा सर्वश्रेष्ठ देवों द्वारा पूजनीय हैं।
  • जिनकी पूजा दिव्य उद्यानों के पुष्पों से की जाती है।
  • जो परब्रह्म हैं, जिनका न आदि है न ही अन्त है!
  • ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

पद- 9

  • जो कोई भी इस लिंगाष्टकम को शिव या शिवलिंग के समीप श्रद्धा सहित पाठ करता है,
  • उसे शिवलोक प्राप्त होता है। भगवान भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।

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