सोधन – झूठे अंधविश्वास की कहानी- (कहानीकार -श्रीमती मनोरमा दीक्षित)
आज मढ़िया में बड़ी भीड़-भाड़ थी। कल रात से ही भक्तों का आना जाना शुरू हो चुका था।
बेटा मनोहर का हाथ पकड़े, झोला में अगरबत्ती, नारियल रखे, लपकता “सुन्दर” मढ़िया के पास पहुँच चुका था।
“बागा” में नन्ही सुमती को बाँधे सुन्दर की घरवाली हिरिया भी पीछे आकर सुस्ताने लगी ।
मढ़िया के सामने लगे, पुराने पीपल की छाँव में बैठा सुन्दर बिड़ी का कश लेते ही खट-खट खाँसकर हाँफने लगा।
उसका बिड़ी पीना हिरिया को बहुत बुरा लगा, वह चिढ़कर बोली “तैं मोर कहा काहे मान ही, और पी बिड़ी।
थूक थसता लाल लाल खून दिखथै ।”
हिरिया की सीख से बीमार सुन्दर गुस्साकर बोला “तैं ही बन जाबे डाक्टरनी।
बीड़ी झैं पीवे, तमाकू झैं खावे, और कुछ भी बता देव का का कर हूँ…”
सुन्दर की हालत से दुःखी हिरिया चुपचाप हैण्डपम्प से पीने का पानी लेने चली गयी ।
दिन डूबे बैठक लगी। हाथ में मोरपंख और बहारी लेकर मढ़िया का पंडा मरीजों की झाड़फूंक करने लगा।
गेहूँ की बोनी करके सुन्दर जो खटिया में लगा था तो दुबारा खेत नहीं गया था।
जब देखो शरीर गरम हो जाता था और खाँसी है कि ठीक ही नहीं होती थी।
इधर बेटा मनोहर भी दिनोंदिन सूखता जाता था। हिरिया, सुन्दर और मनोहर के साथ लाइन में बैठ गयी।
वह पास बैठे सिमरन को बता रही थी “मोर बाल बच्चा ला भी नि छोडिस ए खर सत्यानाश होय,
बिन पानी के मरिही रांड । इन खर सफ्फा खून चुहुँक डारिस है हरामजादी।
गाँव के मनेरून ला चाटे डार थै। नाव बकरवा हूँ, फिर होही जूता पनही की।”
उसकी तेज बड़बड़ाहट से सुन्दर उसे चुप कराते हुए बोला ” चुप नहि रह सकै का जरा।
झाड़ लेन दे तबय सब खुल जाही।”
सोधन- झूठे अंधविश्वास की कहानी !
अब सुन्दर और मनोहर की बारी थी, पंडा उसे बहारी से झाड़ रहा था,
एक पन्द्रवाही कर करार हवय, नि आतिस तो, वां लय जातिस।
मनोहर ला मारे ला मूठ भेजिसे सब काम पन्द्रवाही के करार मा करिही।”
पंडा जी के पैर में गिरते हुए हिरिया रो रोके बोली “मोर मनोहर कैसे ठीक होही।
मोला रात रात भर नींद नि लगय ।
ओखर नाव सखरो पंडा मेहराज ।” “होही होही, तोर टपरिया के पाछू रहथे, ओही करतब करीसे।
आठवाही माँ सिन्दूर, निबुआ संग चींवा लेकर आबे, तब फेर सोधन उतार हूँ, वा नाचत नाचत आही रांड ।”
दूसरे ही दिन रात को सुन्दर की हालत बहुत बिगड़ गयी। खखार मे खून आया था।
इधर मनोहर का उठना बैठना बंद हो गया था।
हाथ पैर लकड़ी जैसे और पेट बढ़ता ही जाता था। आँखें अंदर धंस गयी थी।
आज गांव के अस्पताल में..
“पोलियो” ड्राप पिलायी जानी है। सिस्टर सुषमा ने हिरिया को आवाज लगायी।
उसकी नन्ही सुमरती को भी पोलियो ड्रॉप पिलाना था।
ठंडा पानी पीने की इच्छा से सिस्टर सुषमा हिरिया की टपरिया फरका खोलकर अंदर आयी।
सामने की परछी में सुन्दर को खाँसते सुनकर झाँका देखते ही रह गयी।
टोकनी की राख में सुन्दर की खून सनी खखार देखकर “हिरिया, हिरिया” घबराकर चिल्लायी।
अरे सुन्दर को टी. बी. है। पास ही एक खाट में मनोहर बेचैन पड़ा था।
जिसे देखकर सिस्टर सुषमा दंग रह गयी। अरे। यह कब से बीमार है इसे तो सूखा हो गया है।
हिरिया बोली- “नहीं बाई जी सोधन खा थय हम सबला ।”
नहीं हिरिया, सुंदर को..
नही हिरिया, सुन्दर को टी. बी. हो गयी है और मनोहर को सूखा।
डॉट विधि से सुन्दर का इलाज प्रारंभ हो गया था। उसे टी.बी. वार्ड में भरती किया गया था।
सिस्टर सुषमा की दौड़ धूप से अब सुन्दर की हालत में काफी सुधार हो गया
तथा मनोहर के लगातार इलाज से उसका पेट कम हो गया था।
आज तीन महीने से उन दोनों का मुफ्त इलाज हो रहा था,
पर अभी पूरे एक बरस तक लगातार दवाई कराने पर ही वे पूरे ठीक हो सकेंगे।
अब हिरिया सुमरती को हर बार पोलियो ड्राप पिलाने ले जाती थी। उसे अस्पताल के इलाज पर विश्वास हो गया
और सोधन (झूठे अंधविश्वास की कहानी) की बात तो वह भूल ही गयी थी ।
टी.बी. वार्ड में उसे भोजन, दूध, दवा और फल सभी मुफ्त मिलते थे।
आज हरियाली है, गांव के नौजवानों ने गैंडी खापी थी।
मनोहर भी अपने साथियों के साथ गैंडी में चढ़कर पूरे गांव में घूम रहा था
और सुन्दर, हिरिया के साथ हंस-हंसकर ‘परहा’ लगा रहा था। उसकी बाड़ी में हरे भरे भुट्टे लगे थे।
आसमान में काले बादल चहलकदमी कर रहे थे
और सुन्दर, हिरिया और मनोहर ‘साजा’ के पेड़ के नीचे “बड़ा देव” को होम धूप लगा रहे थे।
किसी ने सच ही कहा है “एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत ।”
सुन्दर और मनोहर की सेहत को देख आज गाँव से “सोधन” का अंधविश्वास दूर हो चुका था
और प्रगति के प्रकाश में ग्रामीण आशावान बन चुके थे।
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