श्रीमद्भागवत कथा (पंचम स्कन्ध) Total Post View :- 10253

श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध)

मन की शुद्धि के लिए श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध) से बढ़कर कोई साधन नहीं है। जब मनुष्य के जन्म जन्मांतर का पुण्य उदय होता है। तभी उसे भागवत शास्त्र की प्राप्ति होती है।

कलियुग में इस भगवदरूप भागवतशास्त्र को पढ़ने सुनने से तत्काल मोक्ष की प्राप्ति होती है। सप्ताह विधि से श्रवण करने पर यह निश्चय ही भक्ति प्रदान करता है।

इस आर्टिकल में आप पाएंगे-

  1. प्रियव्रत व आग्नीध्र चरित्र
  2. राजा नाभि का चरित्र
  3. ऋषभदेव का चरित्र
  4. भरत चरित्र
  5. भरत जी का पुनर्जन्म
  6. जड़ भरत की कथा
  7. राजा रहुगण को उपदेश
  8. भवाटवी वर्णन
  9. गंगा जी की उत्तपत्ति कैसे हुई।
  10. विभिन्न वर्ष क्या है ।
  11. भारतवर्ष का महत्व
  12. सात लोक कौन-कौन से हैं
  13. संकर्षण किसे कहते हैं
  14. नरक कितने प्रकार के हैं।

1-प्रियव्रत चरित्र Priyvrat charitra

  • राजा परीक्षित के द्वारा महाराज प्रियव्रत के बारे में पूछने पर श्री सुखदेव जी ने उन्हें बताया।
  • राजकुमार प्रियव्रत बड़ी भगवतभक्त थे। समाधि योग के द्वारा स्वयं को भगवान वासुदेव के चरणों में समर्पित कर चुके थे।
  • किंतु उनके पिता स्वयंभू मनु ने उन्हें राज्य शासन के लिए आज्ञा दी। जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया।
  • ब्रह्मा जी ने उन्हें समझाया कि तुम 6 शत्रुओं को जीतकर भगवान के चरणो में स्वयं को जीत चुके हो।
  • तो भी पहले उन पुराणपुरुष के दिए हुए भोगों को भोगो। इसके बाद अपने आत्मस्वरूप में स्थित हो जाना।
  • तब राजकुमार प्रियव्रत ने ब्रह्मा जी की आज्ञा का पालन किया।
  • और प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मति से विवाह किया। जिससे उन्हें 10 पुत्र हुए।
  • आग्नीध्र, इध्र्मजिव्ह,यज्ञबाहु, महावीर, हिरण्यरेता, घृतपृष्ठ, सवन, मेधातिथि, वीतिहोत्र और कवि थे। यह सब नाम अग्नि के भी हैं।

राजा प्रियव्रत का संकल्प King Priyavrat’s resolve

  • एक बार इन्होंने देखा की सूर्य सुमेरु की परिक्रमा करते हैं। जिससे आधा भाग प्रकाश और आधा अंधकार ही रहता है।
  • तब उन्होंने यह संकल्प लिया कि मैं रात को भी दिन बना दूंगा।
  • और सूर्य के समान ही पृथ्वी की सात परिक्रमा कर डाली।
  • उन के रथ के पहिए से जो लीके बनी, वे ही सात समुद्र हुए।
  • उनसे पृथ्वी में सात द्वीप हो गए। जिनके नाम हैं जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, क्रौंच,शाक, और पुष्कर द्वीप है।
  • इसके पश्चात उन्होंने सारी पृथ्वी अपने पुत्रों में बांट दी। और अपनी स्वयं वैराग्य धारण कर लिया।

आग्नीध्र चरित्र Agnidhra charitra

  • राजकुमार आग्नीध्र ने पिता प्रियव्रत के चले जाने पर प्रजा का धर्मानुसार पालन किया।
  • तथा पितृलोक की कामना व पुत्र प्राप्ति के लिए ब्रह्माजी की आराधना करने लगे।
  • प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने पूर्वचित्ती अप्सरा को उनके पास भेज दिया।
  • पूर्वचित्ती के गर्भ से, नाभि, किंपुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्यक, हिरण्मय,कुरु, भद्राश्व और केतुमाल हुए।
  • जब पूर्वचित्ति के ब्रम्हाजी के पास लौट गईं। तब आग्नीध्र नौ पुत्रों में राज्य को बांट स्वयं परलोक सिधार गए।

2- राजा नाभि का चरित्र Character of Raja Nabhi

  • राजा नाभि की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने पत्नी मेरुदेवी सहित पुत्रकामना से भगवान की आराधना की।
  • जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दर्शन दिए। चतुर्भुज मूर्ति भगवान को प्रकट हुआ देखकर सभी बहुत प्रसन्न हुए।
  • राजा के पूज्य ऋत्विजों ने प्रभु के चरणों की वंदना की।
  • और कहा आपके समान पुत्र पाने की कामना से ही आपका आवाहन किया है।
  • अतः आप प्रसन्न हों।श्री भगवान ने कहा कि आपने यह बड़ा दुर्लभ वर मांगा है ।
  • क्योंकि मेरे समान तो मैं ही हूँ। इसीलिए मैं स्वयं ही अपनी अंशकला से अवतार लूंगा।
  • इस प्रकार महारानी मेरुदेवी के गर्भ से भगवान ऋषभदेव जी का जन्म हुआ। श्रीमद्भागवत कथा (पंचम स्कन्ध)

3- ऋषभदेवजी का चरित्र Character of Rishabhdev

  • श्रीमद्भगवत कथा के पंचम स्कन्ध में श्री शुकदेव जी कहते हैं कि नाभिनंदन भगवान के चिन्हों से युक्त थे।
  • उनके गुणों के कारण ही महाराज नाभि ने उनका नाम ऋषभ (श्रेष्ठ) रखा।
  • तथा ऋषभदेवजी का राज्याभिषेक कर स्वयं मेरुदेवी सहित बद्रिकाश्रम चले गए।
  • भगवान ऋषभदेव ने अपने देश अजनाभखंड को कर्मभूमि मान गुरुकुल में शिक्षा ली।
  • तथा गृहस्थधर्म की शिक्षा देने के लिए देवराज इंद्र की कन्या जयंती से विवाह किया।
  • और अपने ही समान गुणों वाले सौ पुत्र उतपन्न किये।उनमे महायोगी भरतजी सबसे बड़े व सबसे गुणवान थे।
  • उन्ही के नाम से अजनाभखण्ड का नाम भारतवर्ष पड़ा। श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध)

ऋषभजी का पुत्रों को उपदेश Rishabhji’s preaching to his sons

  • श्रीमद्भगवत कथा के पंचम अध्याय में ऋषभदेवजी ने अपने पुत्रों को उपदेश दिया।
  • वे कहते हैं कि इस शरीर से दिव्य तप ही करना चाहिए । जिससे अंतःकरण शुध्द हो।
  • इसीसे ब्रम्हानंद की प्राप्ति होती है।जब तक आत्मतत्त्व जानने की इच्छा नहीं होती तभी तक उसका स्वरूप छिपा रहता है।
  • जीव को सभी योनियों में दुख ही उठाना पड़ता है। मेरे अवतार शरीर का रहस्य उनकी समझ से परे है।
  • तुम सम्पूर्ण चराचर को मुझे समझ कर उनकी सेवा करो। यही मेरी सच्ची पूजा है।
  • ततपश्चात अपने बड़े पुत्र भरत को राजगद्दी में बिठा दिया। और स्वयं सन्यासी हो गए।

श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध

श्रीमद्भगवत कथा चतुर्थ स्कंध

ऋषभदेवजी का देहत्याग The death of Rishabhdev

  • जब भगवान ऋषभदेवजी ने देखा कि लोग उनकी योगसाधना में विघ्नरूप हैं।
  • तब उन्होंने अजगरवृत्ति धारण कर ली । वे लेटे-लेटे ही खाने-पीने तथा मल-मूत्र त्यागने लगे।
  • तथा उसी में लोटकर अपने शरीर को उसमें सान लेते थे।ऋषभदेवजी ने कई तरह की योगचर्याओं का आचरण किया।
  • अन्त मे योगियों को देहत्याग विधि सिखाने हेतु देहत्यागना चाहा।
  • और देह के अभिमान से मुक्त होकर दिगम्बररूप में कुटकाचल के वन में घूमने लगे।
  • दैववश उसी समय बांसों के घर्षण से दावाग्नि धधक उठी।
  • और ऋषभदेवजी सहित सारे वन को अपनी लपटों में लेकर भस्म कर दिया।
  • इस प्रकार श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध) ऋषभदेवजी का विशुध्द चरित्र सभी पापों को हरने वाला है।

4- भरत चरित्र Bharat charitra

  • महाराज भरत ने विश्वरूप की कन्या पँचजनी से विवाह किया। जिससे उनके पांच पुत्र हुए।
  • सुमति, राष्ट्रभृत, सुदर्शन, आवरण, और धूम्रकेतु। अजनाभवर्ष को राजा भरत के समय से ही “भारतवर्ष “ कहते हैं।
  • इस प्रकार उन्होंने एक करोड़ वर्ष तक शासन किया। ततपश्चात अपने पुत्रों को राज्यकार्य सौंप पुलहाश्रम (हरिहरक्षेत्र) में चले गए।
  • वहीं पुलहाश्रम के वन में गण्डकी नदी के किनारे रहकर भगवान की आराधना करने लगे। श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध)

भरतजी को मृगयोनि कैसे मिली How did bharatji get mrigayoni

  • जिस समय भरतजी गण्डकी नदी के किनारे बैठे हुए जप कर रहे थे।
  • उसी समय एक हिरणी प्यास से व्याकुल होकर नदी के तीर पर आई।
  • अभी वह जल पी ही रही थी कि सिंह की दहाड़ सुनाई पड़ी।
  • डर के मारे उसका कलेजा धड़कने लगा। अभी उसकी प्यास भी नही बुझी थी।
  • किन्तु सिंह के डर के कारण उसने एकाएक नदी पार करने के लिए छलाँग लगा दी।
  • उसके पेट मे गर्भ था । अतः उछलते समय उसका गर्भ गिरकर नदी में बह गया।
  • जिससे दुखी हो तथा सिंह के डर के कारण गुफा में उसने प्राण त्याग दिये। श्रीमद्भगवत कथा (पंचम अध्याय)

भरतजी का हरिणी के बच्चे से प्रेम Bharatji’s love for Harini’s child

  • हिरणी का बच्चा नदी की धारा में बहता हुआ भरतजी के सामने से निकला। जिसे देखकर उन्हें दया आ गई।
  • वे उसे अपने साथ आश्रम ले आये। और उसकी देखभाल करने लगे।
  • भरतजी का हिरनी के बच्चे से प्रेम बढ़ने लगा। धीरे धीरे वे यम, नियम,भगवतपूजा सभी भूलने लगे।
  • आसक्ति बढ़ने से सोते-जागते, उठते-बैठते सब समय उन्हें उसी मृगछौने का ध्यान होने लगा।
  • प्रारब्धकर्मो के कारण वे भगवत आराधना व योगकर्म अनुष्ठान से दूर हो गए थे।
  • मृत्यु के समय भी हिरनी का बच्चा उनके सामने बैठा कातर नेत्रों से देख रहा था।
  • उनका चित्त भी उसी में लगा हुआ था। और इसी अवस्था मे उनके प्राण पखेरू उड़ गये।
  • अतः अंत समय की भावना के कारण उन्हें मृग शरीर मिला। श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध)
  • पूर्वजन्म की स्मृति के कारण उनमें वैराग्य भावना जागृत हुई। वे पुलह ऋषि के आश्रम में आ गए।
  • तथा काल की प्रतीक्षा करने लगे। अंत मे गण्डकी नदी में ही आधा शरीर डुबोकर मृग शरीर को छोड़ दिया।

5-भरतजी का पुनर्जन्म कहाँ हुआ Where was Bharatji reborn

  • श्रीमद्भगवत कथा के पंचम स्कन्ध में भरतजी का जन्म अंगिरस गोत्र में हुआ।
  • वे मृगशरीर का त्याग कर अंतिम जन्म में ब्राम्हण हुए थे।
  • पूर्वजन्म का ध्यान होने से वे परिवार से विरक्त ही रहते थे।
  • दूसरों की दृष्टि में वे अपने को पागल, मूर्ख, अंधे और बहरे के समान दिखाते थे।
  • ब्रम्हणदेवता अपने पागल पुत्र को बहुत चाहते थे। अतः वे उसे ब्रम्हचर्य आश्रम के नियमो की शिक्षा देते रहते थे।
  • किन्तु काल के प्रभाव से उनकी मृत्यु हो गई। तथा भरतजी की माता, पिता के साथ सती हो गईं।
  • भरतजी के भाई उन्हें निरा मूर्ख समझते थे। उन्होंने उन्हें खेत की क्यारियाँ ठीक करने में लगा दिया।
  • किसी समय डाकुओं के सरदार ने पुत्रकामना से भद्रकाली को नरबलि देने का संकल्प लिया।
  • उसने जो पुरुष-पशु मंगाया था । वह फंदे से निकलकर भाग गया था।
  • उसे ढूंढने के लिए उसके सेवक चारों ओर दौड़े।
  • दैवयोग से ब्राह्मणकुमार को रस्सियों से पकड़कर चंडिका मंदिर में ले आये। श्रीमद्भगवत (पंचम स्कन्ध)

देवी चंडिका ने की भरतजी की रक्षा Devi Chandika protects Bharatji

  • उन चोरों ने उन्हें बलि हेतु विधिवत तैयार किया। और भरतजी को सिर नीचा कर बैठा दिया।
  • बलि देने के लिए देवीमन्त्र से अभिमंत्रित एक खड्ग उठाया।
  • यह भयंकर कुकर्म देख कर देवी भद्रकाली मूर्ति फोड़कर एकाएक प्रकट हो गईं।
  • उन्होंने क्रोध में भरकर भीषण अट्टहास किया। और उछलकर, उसी अभिमंत्रित खड्ग से उन सारे पापियों के सिर उड़ा दिये।
  • इस प्रकार देवी चंडिका ने भरतजी की रक्षा की। श्रीमद्भगवत कथा का यह देवी चरित्र परम् पुण्य दायक है।

6- जड़ भरत की कथा क्या है What is the story of Jada Bharat

  • एक बार सिन्धुसौवीर देश का स्वामी राजा रहूगण कहीं जा रहा था।
  • उसकी पालकी उठाने के लिए एक कहार की जरूरत थी। कहारों के जमादार कहार की खोज करने लगे।
  • तभी ये ब्रम्हणदेवता(भरतजी) उसे दिख पड़े। उसने बेगार में पकड़े कहारों के साथ उन्हें भी पालकी पकड़ा दी।
  • वे राह में चलते हुए भूमि में पड़े हुए कीड़ों मकोड़ों की सुरक्षा करते हुए चलने लगे।
  • जिससे पालकी ऊपर नीचे डोल जाती थी। तब राजा ने कहारों को क्रोध में आकर डांटा।
  • कहारों ने राजा से भरतजी की शिकायत की। और उनके साथ पालकी उठाने से मना कर दिया।
  • राजा ने भरतजी को बहुत बुरा भला कहा। तथा बहुत ही फटकार लगाई।
  • भरतजी ने बड़े शांत भाव व स्थिरता से राजा को यथार्थ तत्व का उपदेश दिया।
  • राजा ने जब यह गम्भीर व गूढ़ बातें सुनी तो वह तत्काल पालकी से उतर गया।
  • नतमस्तक हो राजा ने ब्रम्हणदेवता से क्षमा मांगी। श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध)

7- राजा रहूगण को भरतजी ने कौन सा उपदेश दिया What lesson did Bharatji preach to King Rahugan

  • जड़भरत ने कहा: पांच कर्मेन्द्रिय, पांच ज्ञानेन्द्रिय और एक अहंकार हैं। ये ग्यारह मन की वृत्तियाँ हैं।
  • पांच प्रकार के कर्म हैं। पांच तन्मात्र और एक शरीर है। ये ग्यारह उसके आधारभूत विषय कहे जाते हैं।
  • गन्ध, रूप, स्पर्श, रस और शब्द ये पांच ज्ञानेद्रियों के विषय हैं।
  • मलत्याग ,सम्भोग, गमन, भाषण,और लेनादेना आदि व्यापार हैं। ये पांच कर्मेन्द्रिय के विषय हैं।
  • तथा मैं या मेरा का भाव अहंकार का विषय है। अहंकार बारहवीं वृत्ति तथा शरीर बारहवां विषय है।
  • मन की ग्यारह वृत्तियाँ विषय, संस्कार , कर्म,काल के कारण अनेक रूपों में बदल जाती हैं।
  • जब तक मनुष्य कामक्रोधादि छः शत्रुओं को नहीं जीत लेता।
  • तब तक वह इस लोक में यूं ही भटकता रहता है। अतः तुम श्रीगुरु और हरि की उपासना करो।

रहुगण का प्रश्न व समाधान Rehugan’s question and solution

  • जब भरतजी से अध्यात्म योगमय उपदेश की विस्तृत व्याख्या राजा रहूगण ने जानना चाहा।
  • जिस पर जड़भरत ने बताया कि जो कुछ भी इस संसार मे है, सब भगवान की माया ही है।
  • वह सबके अंदर रहने वाला, और सदा निर्विकार रहने वाला है। उसी का नाम “भगवान” है।
  • उसी को “वासुदेव कहते हैं। अतः महापुरुषों की चरणधूलि से अपने को नहलाये।
  • केवल जप, तप,दान धर्म,व अध्ययन से परमात्म ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता।
  • क्योंकि महापुरुषों के बीच हमेशा भगवान की ही चर्चा होती रहती है।
  • और जब भगवतकथा का नित्यप्रति सेवन किया जाता हैं तब बुध्दि वासुदेव में लग जाती है।
  • विरक्त महापुरुषों के सत्संग से ज्ञान प्राप्त होता है। जिससे इस लोक में ही अपने मोहबन्धन को काट डालना चाहिए।
  • अन्यथा अंत समय की भावना के अनुसार पुनर्जन्म लेकर विभिन्न योनियों में भटकना पड़ता है। श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध )

8- भवाटवी क्या है (वर्णन) What is Bhawatvi (description)

  • श्री शुकदेवजी कहते हैं कर्म तीन प्रकार के होते हैं।शुभ, अशुभ, और मिश्र कर्म।
  • इन्ही कर्मो के द्वारा सुख-दुखादि संसार जीव को प्राप्त होता है।
  • इस संसार में मन सहित छः इन्द्रियाँ कर्मों की दृष्टि से डाकुओं के समान है।
  • जो जीव को लूटते रहते हैं। पूर्व पुण्य क्षीण हो जाने पर यह मुर्दे के समान हो जाता है ।
  • प्रवृत्ति मार्ग में लौकिक और वैदिक दोनों प्रकार के कर्म जीव को संसार की प्राप्ति कराते हैं।
  • इससे जहां-तहां दूसरों के हाथों बहुत अपमानित होना पड़ता है।
  • इस प्रकार संसार रूपी वन में जीव भटकता ही रहता है। और इसकी यात्रा कभी भी पूर्ण नहीं होती।
  • अनेकों यत्न करने पर भी उससे परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो पाती। इसे ही भवाटवी मायाजाल कहते हैं।
  • राजर्षि भरतजी का यह चरित्र बड़ा ही कल्याणकारी है ।यह आयु और धन की वृद्धि कराने वाला है।
  • लोक में सुयश बढ़ाने वाला है। एवं अंत में स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति कराने वाला है।
  • जो इसे पढ़ता सुनता है और सुनाता है उसकी सारी कामनाएं स्वयं ही पूर्ण हो जाती हैं।
  • उसे दूसरों से कुछ भी नहीं मांगना पड़ता। श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध)

9- गंगाजी की उत्तपत्ति कैसे हुई How Ganga Ji was born

  • जब राजा बलि की यज्ञशाला में भगवान विष्णु ने त्रिलोकी को नापने के लिए अपना पैर फैलाया।
  • उनके बाएं पैर के अंगूठे के नाखून ब्रह्मांड का ऊपर का भाग फट गया।
  • उस क्षेत्र में होकर जो ब्रह्मांड से बाहर जल की धाराएं निकली।
  • वह उस चरण कमल को धोने से उसमें लगी केसर के मिलने से लाल हो गई।
  • उस निर्मल धारा के स्पर्श होते ही संसार के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । इसे भगवतपदी कहते थे।
  • हजारों युग बीतने पर यह स्वर्ग के शिरोभाग में स्थित ध्रुव लोक में उतरी जिससे विष्णुपद भी कहते हैं।
  • वहां से गंगा जी आकाश में होकर उतरती है और मेरु के शिखर पर ब्रम्हपुरी में गिरती है।
  • वहां यह सीता, अलकनंदा, चक्षु और भद्रा नाम से चार धाराओं में बट जाती हैं।
  • तथा अलग-अलग चारों दिशाओं में बहते हुए समुद्र में गिरती है।

10- विभिन्न वर्ष क्या हैं। What are the different years.

  • विभिन्न वर्ष एक समय अवधि है। जिसमें भगवान ने विभिन्न अवतार लिए थे।
  • भद्राश्ववर्ष में भद्रश्रवा द्वारा भगवान वासुदेव की हयग्रीव संज्ञक मूूर्ति की स्थापना की गई।
  • हरिवर्ष में भगवान नरसिंह रूप से रहते हैं। केतु माल वर्ष में कामदेव रूप से निवास करतेेे हैं।
  • रम्यकवर्ष में भगवान ने मत्स्य रूप दिखाया था।
  • हिरण्मयवर्ष में भगवान कच्छप रूप धारण करके रहते हैं।
  • उत्तर कुरुवर्ष में भगवान यज्ञ पुरुष वराह मूर्ति धारण करके विराजमान हैं।

11- भारतवर्ष का महत्व Importance of Bharatvarsha

  • भारतवर्ष में भगवान नर नारायण रूप धारण कर अव्यक्त रूप से कल्प के अंत तक तप करते रहते हैं।
  • देवता भी भारतवर्ष में उत्पन्न हुई मनुष्यों की महिमा गाते हैं।
  • ब्रह्म लोक आदि की अपेक्षा भी भारत भूमि में थोड़ी उम्र लेकर जन्म लेना अच्छा है।
  • यहां मनुष्य एक क्षण में ही, शरीर से किए संपूर्ण कर्म, भगवान को अर्पण कर, अभय पद प्राप्त कर सकता है।
  • इसी तरह अन्य छह द्वीप बताए गए हैं । जो जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप है।
  • श्रीमद्भगवत कथा के पंचम स्कन्ध में सूर्य के रथ , विभिन्न ग्रहों व शिशुमार चक्र का वर्णन भी है।

12- सात लोक कौन कौन से हैं। Which are the seven loke?

  • सूर्य से नीचे राहु है। राहु से दस हजार योजन नीचे सिध्द,चारण, विद्याधर आदि हैं।
  • उसके नीचे अंतरिक्ष लोक है। यह यक्ष राक्षस पिशाच प्रेत और भूतों का विहार स्थल है ।
  • उससे नीचे सौ योजन की दूरी पर यह पृथ्वी है।
  • जहां तक हंस, गिद्ध, बाज,गरुड़ आदि प्रधान पक्षी उड़ सकते हैं। वहीं तक इसकी सीमा है।
  • इसके भी नीचे अतल, वितल, सुतल, तलाताल, महातल, रसातल और पाताल नाम के सात लोक हैं।
  • यह एक के नीचे एक 10-10 हजार योजन की दूरी पर स्थित है।
  • इनमें पृथ्वी का क्षेत्रफल 10-10 हजार योजन ही है। यह भूमि के बिल भी एक प्रकार के स्वर्ग ही

13- संकर्षण किसे कहते हैं What is sankershan?

  • पाताल लोक के नीचे 30000 योजन की दूरी पर अनंत नाम से विख्यात भगवान की तामसी नित्य कला है।
  • यह अहंकार रूपा होने से दृष्टा और दृश्य को खींचकर एक कर देती है।
  • इसीलिए पाँचरात्र आगम के अनुयाई भक्तजन इसे संकर्षण कहते हैं। भगवान अनंत के 1000 मस्तक हैं ।
  • उनमें से एक पर रखा हुआ यह सारा भूमंडल सरसों के दाने के समान दिखाई देता है ।
  • प्रलय काल होने पर विश्व का उप संहार करने की इच्छा होती है ।
  • तब इनकी क्रोधवश घूमती हुई मनोहर भौंह के मध्य भाग से संकर्षण नामक रूद्र प्रकट होते हैं।
  • इनकी व्यूहसंख्या 11 है । सभी तीन नेत्रों वाले होते हैं। हाथ में तीन नोंको वाले शूल लिए रहते हैं।

श्री ज्याकिशोरी जी श्रीमद्भगवत का महात्म्य👇👇

14- नरक कितने प्रकार के होते हैं। What are the types of hell

  • त्रिलोकी के भीतर दक्षिण की ओर, पृथ्वी से नीचे, जल के ऊपर, नरक लोक स्थित है ।
  • इसी दिशा में अग्निश्वात आदि पितृगण रहते हैं। और वे अपने वंशधरों के लिए मंगल कामना किया करते हैं।
  • नरक लोक में सूर्यपुत्र भगवान यम अपने सेवकों के साथ रहते हैं। नरकों की संख्या 21 बताई जाती है।
  • उनके नाम तामिस्र, अन्धतामिस्र, रौरव, महारौरव, कुम्भीपाक, कालसूत्र, असिपत्रवन, सुकरमुख, अंधकूप हैं।
  • तथा शेष कृमिभोजन, संदंश, तप्तसूरमी, वज्र कण्टक शाल्मलि, वैतरणी,पूयोध, प्राणरोध, विशसन हैं।

श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध) में पृथ्वी, द्वीप, वर्ष , लोको की स्थिति का वर्णन दिया गया है।

इसमें राजा प्रियव्रत, आग्नीध्र, ऋषभदेवजी, भरत चरित्र (जड़भरत की कथा), पूर्वजन्म, गंगाजी की उत्तपत्ति की कथा है।

इस प्रकार श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध) गहन ज्ञान का भण्डार है। भक्ति का समुद्र है।

आत्मा की पवित्रता के लिए इससे उत्तम कुछ हो ही नही सकता। अंत तक साथ मे बने रहने के लिये धन्यवाद।

मेरा यह प्रयास आपको अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों तक अवश्य पहुंचाए।

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4 thoughts on “श्रीमद्भगवत कथा (पंचम स्कन्ध)

  1. बहुत बहुत धन्यवाद मेम..👑✨🌹
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय…💐

  2. बिल्कुल सही बात है भाभी जन्मों के पुण्य से ही भगवत शास्त्र का ज्ञान प्राप्त होता है..👍👌

    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय..🙏💝

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