श्री दुर्गा सप्तशती पाठ की हिंदी व्याख्या; नवरात्रि में करें माता भगवती का ध्यान और पाएं सभी क्षेत्रों में सफलता Total Post View :- 3006

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ (प्रथम अध्याय)(प्रथम चरित्र)की हिंदी व्याख्या: नवरात्रि में करें माता भगवती का ध्यान और पाएं सभी क्षेत्रों में सफलता!

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ में 700 श्लोक हैं जिसमें माता रानी के नौ रूपों का वर्णन किया गया है। नवरात्रि का प्रथम दिन माता शैलपुत्री का ध्यान करें।

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ करने की विधि यह है कि सम्पूर्ण पाठ को तीन भागों में बांटा गया है। पहला प्रथम चरित्र, दूसरा मध्यम चरित्र व तीसरा उत्तर चरित्र।

आज के इस व्यस्ततम दौर में आइए हम सब मिलकर मां भगवती से प्रार्थना करें । यह श्री दुर्गा सप्तशती पाठ प्रथम चरित्र के संस्कृत की हिंदी व्याख्या है। इस तरह हम श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ का लाभ उठा सकते हैं।

और पूरे संसार में जो निराशा और दुख का माहौल व्याप्त है उसे शांत करने में हम सभी माता भगवती से प्रार्थना करें। हमारा यह प्रयास है कि विचलित मानसिकता में भी हम सभी माता भगवती को याद कर सकते हैं।

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ (प्रथम अध्याय) में विनियोग करें!Do appropriation in Durga Saptashati (first chapter)!

  • श्री दुर्गा सप्तशती पाठ प्रथम अध्याय में विनियोग ॐ प्रथम चरित्रस्य, ब्रह्मा ऋषि:, महाकाली देवता, गायत्री छंद:, नंदा शक्ति:,
  • रक्तदंतिका बीजम, अग्निस्तत्त्वम, ऋग्वेद: स्वरूपम, श्री महाकाली प्रीत्यर्थे प्रथम चरित्र जपे विनियोग:।
  • हाथ में जल लेकर “ॐ प्रथम चरित्रस्य जपे विनियोग:” तक पढ़कर जल छोड़ दें।
  • विनियोगार्थ प्रथम चरित्र के ब्रह्मा ऋषि, महाकाली देवता, गायत्री छंद, नंदा शक्ति, रक्तदंतिका बीजम, अग्नि तत्व और ऋग्वेद स्वरूप हैं।
  • श्री महाकाली रूपी देवता के प्रसन्नार्थ प्रथम चरित्र के जप (पाठ) में विनियोग करने का विधान है।

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ में अब दुर्गाजी का ध्यान करें!Now pay attention to Durgaji in Shri Durgasaptashti!

  • श्री दुर्गा सप्तशती पाठ के पूर्व ध्यान करें कि ; भगवान विष्णु के छीर सागर में शयन करने पर महा बलवान दैत्य
  • मधु और कैटभ के संहार निमित्त पद्मिनी ब्रह्मा जी ने जिन की स्तुति की थी। उन महाकाली देवी का मैं स्मरण करता हूं।
  • वे अपनी 10 भुजाओं में क्रमशः खडग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुसुंडि, मस्तक और शंख धारण करती हैं।
  • वह तीन नेत्रों से युक्त हैं और उनके संपूर्ण अंगों में दिव्य आभूषण पड़े हैं।
  • नीलमणि के सदृश उनके शरीर की आभा है एवं वे दशमुखी तथा 10 पदों वाली हैं।

श्री दुर्गा सप्तशती (पाठ) कथा प्रारंभ !Shri Durgasaptashti Katha started!

  • मार्कण्डेयजी ने कहा- सूर्य के पुत्र सावर्णि जिनकी गणना अष्ट मनु में की गई है, के उत्पन्न होने की कथा का सविस्तार वर्णन करता हूं सुनो।
  • सूर्यपुत्र महाभाग सावर्णि भगवती महामाया की कृपा से जैसे मन्वंतर के स्वामी हुए, मैं वहीं घटना कहता हूं। (श्री दुर्गा सप्तशती पाठ)
  • प्राचीन काल में स्वारोचिष नामक मन्वंतर में सुरथ नामक एक बहुत ही प्रतापी राजा हुए थे।
  • उनकी उत्पत्ति चैत्रवंश में हुई थी और सारी पृथ्वी पर उनका एक क्षेत्र राज्य था।
  • वे राजाओं को अपनी संतान के समान पालन पोषण करते थे।
  • इतना होने पर भी कोलविध्वंशी नामक क्षत्रिय उनके शत्रु बन बैठे थे।
  • राजा सुरथ दंड नीति का अत्यंत कड़ाई से पालन करते थे। राजा के विपक्षियों के साथ युद्ध हुआ।
  • यद्यपि कोलविध्वंशी लोग अल्पसंख्यक वर्ग के थे फिर भी उन लोगों ने राजा सुरथ पर विजय पा ली थी।
  • राजा शत्रु से पराजित होकर अपने नगर को लौट आए और उनके देश तक ही उनका राज्य सीमित हो गया।
  • किंतु इस पर भी विद्रोहियों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और राजा सुरथ पर उन्हें आक्रमण कर दिया।
  • राजा के बल पौरुष का ह्रास हो चुका था, इसलिए ऐसे सुयोग को मंत्रियों ने हाथ से जाने देना उचित न् समझा।
  • और उन दुरात्मा मंत्रियों ने राजकीय सेना, वाहन, कोषागार आदि पर अपना पूर्ण आधिपत्य जमा लिया।

राजा सुरथ का वन गमन! Raja Surath’s forest movement!

  • राजा का स्वामित्व छिन गया था, इसीलिए वे घोड़े पे सवार होकर,अकेले ही आखेट के बहाने घने वन के भीतर चल दिये।
  • उस वन में पहुंचकर राजा सुरथ को विप्रों में श्रेष्ठ मेधा मुनि का आश्रम दिखाई पड़ा।
  • उनके आश्रम में अनेकों मांसभक्षी हिंसक पशु, अपनी हिंसा वॄत्ति को छोड़कर अत्यंत शांत भाव से विचरण करते थे।
  • मुनि के शिष्यगणों से उस आश्रम तथा वन का सौंदर्य खिल उठा था। आश्रम में राजा के उपस्थित होने पर मुनि ने उनका सत्कार किया।
  • राजा भी कुछ दिनों तक मुनि के आश्रम में रहकर विहार करते रहे।
  • मोह माया से ग्रस्त होकर एक बार वहां राजा अपने मन में इस प्रकार चिंतन करने लगा-
  • ” जो नगर पूर्व काल में मेरे पूर्वजों द्वारा शासित और पालित था।
  • आज वही अगर मुझसे हीन होकर वीरान हो रहा है। ना जाने मेरे अधम कर्मचारी उसकी धर्म परायणता के साथ रक्षा करते हैं या नहीं।
  • मेरा हाथी जो सदा अपने शरीर से मद बहाया करता था और वीर था । ना जाने वह किस अवस्था में होगा?
  • जो लोग मेरी कृपा दृष्टि धन और भोजन के लिए लालायित रहकर मेरा अनुगमन करते थे,
  • वे लोग अब निश्चय ही अन्य राजाओं के आश्रित होंगे। मेरे धन का उन लोगों के द्वारा दुरुपयोग किए जाने से अब कोष निश्चय ही रिक्त हो चुका होगा।
  • इस प्रकार की अनेक चिंताएं राजा के मन में उथल-पुथल मचा रही थी ।

राजा सुरथ से एक वैश्य का मिलना। Seeing a Vaishya from King Surath.

  • एक दिन मेधा मुनि के आश्रम के निकट एक वैश्य को देखकर राजा उससे पूछ बैठे-
  • ” भाई तुम कौन हो? इस स्थान में तुम्हारे आने का क्या अभिप्राय है? तुम तो बहुत ही शोकाकुल और अन्यमनस्क से लग रहे हो।
  • राजा के इस प्रेम पूर्ण प्रश्न को सुनकर वह वैश्य राजा को नमस्कार करके विनीत स्वर में बोला –
  • वैश्य ने राजा से कहा- राजन में धनिक वर्ग में वर्ग में उत्पन्न एक वैश्य हूं । मेरा नाम समाधि है।
  • मेरे दुष्ट स्त्री पुत्रों ने धन के लोभ से वशीभूत होकर मुझे घर से निकाल दिया है ।
  • इस समय मैं स्त्री पुत्र और धन से रहित हो गया हूं । मेरे स्वजनों ने ही मेरे धन का अपहरण कर मुझे उसके अधिकार से अलग कर दिया है।
  • इसलिए मैं खिन्नचित्त से वन में आ गया हूं। इस समय मैं नहीं जानता कि मेरे कुटुम्बियों की क्या दशा है?
  • वह लोग घर में सब कुशल हैं या नहीं ? मुझे इसके संबंध में कोई ज्ञान नहीं है ?
  • मैं विचार कर रहा हूं कि मेरे वह पुत्र कैसे हैं ? वे सदाचारी हैं या दुराचारी ? ( श्री दुर्गा सप्तशती पाठ प्रथम अध्याय)

राजा और वैश्य की बातचीत! The conversation between the king and the Vaishya!

  • राजा ने वैश्य से प्रश्न किया- जिन स्वजनों ने धन के लोभ में पड़कर तुम्हें घर से बाहर निकाल दिया।
  • उन स्वार्थी बंधुओं के प्रति तुम्हें इतनी ममता किस लिए है?
  • वैश्य ने उत्तर दिया -.आपका मेरे संबंध में इस प्रकार पूछना उचित ही है। मैं क्या करूं?
  • मेरा मन कुटुम्बियों के प्रति निर्दय व्यवहार का नहीं हो रहा है।
  • जिन लोगों ने धन की आकांक्षा से आदर प्रेम और आत्मीयता की भावना का परित्याग करके,
  • मुझे इस दशा में पहुंचा दिया है, उन्हीं लोगों के प्रति मेरे मन में अगाध स्नेह तथा ममत्व का भाव है।
  • हे महानुभाव! यह सब जानकर भी बंधु बांधव के प्रति मेरे मन में जो प्रेम का समुद्र हिलोरे ले रहा है,
  • यह क्या है ? जानने का प्रयत्न करने पर भी मैं इस बात के रहस्य को नहीं समझ पा रहा हूं।
  • उन लोगों के वियोग में मैं उसांसे ले रहा हूं, जिसके फलस्वरूप मेरा हृदय अत्यंत व्यथित हो रहा है।
  • उन लोगों में मेरे प्रति प्रेम का नितांत अभाव है तो भी मेरा मन उनके लिए तड़प रहा है। इसलिए मैं क्या करूं?

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ प्रथम अध्याय में मार्कण्डेय मुनि कहते हैं ! Shri Durgasaptashati says Markandeya Muni in the first chapter!

  • मार्कंडेय मुनि ने कहा- हे ब्राम्हण! राजा और समाधि नामक वैश्य एक साथ ही मेधा मुनि की सेवा में उपस्थित हुए ।
  • और उनके प्रति उचित सम्मान दिखाकर वहीं बैठ गए। तब वैश्य और राजा ने परस्पर बातचीत प्रारंभ की।
  • राजा बोले- भगवान मैं आपसे एक निवेदन करना चाहता हूं आप उसे कृपा करके बताइए।
  • मेरा मन स्ववश में ना रहने के कारण बहुत ही क्लेषित है। जो राज्य मेरे हाथ से छिन गया है।
  • उसके लिए अभी तक मेरे मन में पहले की ही तरह ममता बनी हुई है।
  • हे मुनियों में श्रेष्ठ यह बात मैं समझता हूं कि अब उस पर मेरा स्वत्व नहीं रह गया है ।
  • उसे अन्य लोगों ने हस्तगत कर लिया है फिर भी अज्ञानियों की तरह से उसी के मोह में लिप्त हूं।
  • यह सब क्या है? मेरे समान ही यह वैश्य भी अपने घर से अनादृत हो ।
  • पुत्र स्त्री और सेवकों द्वारा परित्यक्त होकर निष्कासित कर दिया गया है।
  • इसके स्वजनों ने भी इस का परित्याग कर दिया है ।यह जानते हुए भी यह वैश्य उन्हीं लोगों के स्नेहपास में आबद्ध है ।
  • हम दोनों का हृदय इन सब बातों से अत्यंत क्षुब्ध है। दोष युक्त विषय में भी अभी तक मेरा मन ममता वश आकर्षित हो रहा है।
  • हे महाभाग! हम दोनों ही समझदार हैं। फिर भी हममें जो मोह की प्रबल धारा उमड़ पड़ी है। वह क्या है ?
  • हम दोनों में प्रत्यक्ष रुप से अज्ञान के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं।

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ में राजा के प्रश्न का उत्तर देते हुए ऋषि ने कहा! While answering the king’s question in Sri Durgasaptashati, the sage said!

  • ऋषि ने कहा- हे महाभाग विषय मार्ग का ज्ञान सभी प्राणियों में विद्यमान होता है।
  • इस प्रकार विषय भी सभी जीवो के भिन्न-भिन्न होते हैं। कुछ प्राणियों को दिन में नहीं दिखाई पड़ता है।
  • ठीक इसके विपरीत कुछ जीव रात्रि में नहीं देख पाते। इसके अतिरिक्त कुछ जीव ऐसे भी होते हैं,
  • जो समान रूप से दिन और रात्रि में देख सकते हैं। यह बात सत्य है, कि सभी प्राणियों में मनुष्य वर्ग अधिक समझदार होते हैं।
  • किंतु केवल वे ही इस प्रकार समझदार नहीं होते उनके अतिरिक्त पशु पक्षी भी समझदार होते हैं।
  • मनुष्य की बुद्धि पशु पक्षियों आदि जीवो के समान ही होती है। जैसे मनुष्यों की समझ होती है,
  • वैसी ही मृगादि जीवो की भी होती है। साथ ही साथ अन्य बातें भी प्रायः इन दोनों में समान रूप से पाई जाती हैं।
  • इन पक्षियों को ही देखो समझदार होते हुए भी स्वयं भूखे रहकर अपने बच्चों के चोंच में अन्न के कण डाल देते हैं।
  • हे राजन् क्या तुम नहीं जानते कि यह मनुष्य समझदार होते हुए भी लोभ वश अपने उपकार के बदले उपकृत होने के निमित्त पुत्रों की इच्छा रखते हैं।

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ में महामाया भगवती के प्रभाव का वर्णन! Sri Durgasaptashati describes the impact of Mahamaya Bhagwati!

  • यद्यपि उन सब में समझदारी का भाव होता है । फिर भी वे संसार की स्थिति को बनाए रखने वाली महामाया भगवती के प्रभाव द्वारा मोह रूपी भंवर में डाल दिए जाते हैं।
  • और उसी में वे जीव डूबते उतराते रहते हैं। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है।
  • जगत पिता विष्णु भगवान की योगनिद्रा रूपिणी महामाया से ही यह सारी सृष्टि मुग्ध हो रही है।
  • महामाया ज्ञानियों के चित्त को भी बलात आकर्षित करके मोह सागर में डाल देती है।
  • समस्त सृष्टि की जगतधात्री हैं । जब वे प्रसन्न होती हैं तब मनुष्यों के उद्धार के लिए मुक्तिलाभ का वरदान भी देती हैं।
  • वे ही पराविद्या संसार बंधन और मोह ममता उत्पन्न करने वाली सनातनी देवी हैं। तथा समस्त ईश्वरों की अधिष्ठात्री हैं।
  • तब राजा ने प्रश्न किया- भगवान जिन्हें आप महामाया कहकर संबोधित कर रहे हैं , वे देवी कौन सी हैं?
  • हे ब्रह्मन्! उनका प्रादुर्भाव किस प्रकार से हुआ ? उनके चरित्र कौन-कौन से हैं ?
  • ब्रह्मविदों में श्रेष्ठ मुनि ! उन देवी की उपरोक्त कथाएं मैं आपके श्री मुख से श्रवण करना चाहता हूं।(श्री दुर्गा सप्तशती पाठ प्रथम अध्याय)

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ में देवी के चरित्र का वर्णन इस प्रकार है! The description of the goddess in Sri Durgasaptashati is as follows!

  • ऋषि ने कहा- हे राजन ! यथार्थ में देवी का स्वरूप नित्य और सनातन है।
  • यह समस्त जगत उन्हीं का स्वरूप है और वही देवी समस्त विश्व के चराचर प्राणियों में व्याप्त हैं ।
  • उनकी उत्पत्ति अनेक प्रकार से होती है वह मैं तुम्हें सुनाता हूं।
  • यद्यपि वे जन्मरहित और नित्यस्वरूप हैं तो भी जब देवताओं की कार्य सिद्धि के निमित्त अवतार ग्रहण करती हैं।
  • उस समय उन्हें लोक में अवतरित होना माना जाता है। कल्पांत में जब समस्त विश्व महासमुद्र में विलीन हो रहा था
  • और सब जीवो के पालनकर्ता भगवान विष्णु शेष शैया पर योग निद्रा में अभिभूत हो रहे थे,

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ में मधु और कैटभ की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है! Sri Durgasaptashati describes the origin of Madhu and Catabh!

  • उस समय उनके कानों की मैल से दो भयंकर दानवों की उत्पत्ति हुई ।
  • वे असुर मधु कैटभ नाम से जगत में विख्यात हुए।
  • जन्म लेने के बाद ही वे दानव, सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी का वध करने को उद्यत हो गए ।
  • उस समय ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के नाभि कमल में अवस्थित थे।
  • अपने पास राक्षसों के उपस्थित होने पर वे निद्रामग्न भगवान को जगाने के लिए भगवान के नेत्रों में योगनिद्रा की स्तुति करने के लिए।
  • भगवान की वह अद्वितीय शक्ति ही जगद्धात्री विश्व की अधिष्ठात्री है। तथा संसार का पालन और संहार करने वाली मानी गई है।
  • उन्हीं योग माया भगवती निद्रा देवी की ब्रह्माजी आराधना करने लगे। (श्री दुर्गा सप्तशती पाठ प्रथम अध्याय)

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ में ब्रह्मा जी द्वारा की स्तुति ! Praise by Lord Brahma in Shri Durgasaptashati!

  • ब्रह्माजी बोले देवी तुम ही स्वाहा, स्वधा और वषट्कार हो। स्वर भी तुम्हारा ही रूप है। तुम्हीं प्राणदात्री अमृत रूपा हो।
  • नित्य अक्षर प्रणव में अकार उकार और मकार इन तीनों मात्राओं में तुम्हारा ही अवस्थान है।
  • इन 3 मात्राओं से भिन्न जो बिंदु रूपा नित्य अर्धमात्रा है जिसका उच्चारण विशेष रूप से नहीं हो सकता।
  • वह भी तुम ही हो। हे देवी तुम ही संध्या सावित्री तथा परम जननी स्वरूपा हो।

तुम ही इस संपूर्ण ब्रह्मांड को धारण किए हो। तुम्हारे ही द्वारा इस विश्व की उत्पत्ति होती है। तुम ही पालन करती और अंत में सब जीवो का संहार करती हो।

जगत की उत्पत्ति में तुम सृष्टि रूपा पालनकाल में स्थिति स्वरूपिणी तथा कल्पान्त में संहार स्वरूपा हो। तुम ही महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोह रूपा, महादेवी और महा सुंदरी हो।

तुम्हीं 3 गुण सत्व रज और तम की उत्पन्न कारिणी हो। तुम ही भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि हो।तुम ही श्री, ईश्वरी, ह्रीं और बोध स्वरूपा बुद्धि भी हो। लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शांति और समाधि तुम ही हो।

तुम ही खडगधारिणी, शूलधारिणी, घोररूपा, गदा, चक्र, शंख और धनुष धारिणी भी हो। बाण भूसुंडी, परिघ आदि तुम्हारे ही अस्त्र हैं। तुम सौम्य और सौम्य तर हो। (श्री दुर्गा सप्तशती पाठ प्रथम अध्याय)

अवश्य पढें।

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ब्रम्हाजी द्वारा देवी का स्तवन! Devi’s eulogy by Bramhaji!

  • इतना ही नहीं वरन विश्व में जितने भी सौम्य एवं सुंदर पदार्थ हैं, उन सब में तुम्हारी सुंदरता कहीं अधिक है।
  • पर तथा अपर इन दोनों विधाओं से परे रहने वाली परमेश्वरी भी तुम ही हो।
  • हे देवी विश्व के सभी सत असत पदार्थों में पाई जाने वाली शक्ति भी तुम ही हो। ऐसी अवस्था में तुम्हारी स्तुति अवर्णनीय है।
  • इस विश्व के रचयिता पालन करता और संहारक भगवान विष्णु को भी जब तुमने निद्रा के वशीभूत कर दिया है।
  • तब तुम्हारी स्तुति के योग्य इस ब्रम्हांड में कौन है ? मुझे, भगवान शिव तथा विष्णु को भी तुम्हीं ने शरीर धारण करने में बाध्य किया है।
  • अतएव तुम्हारी स्तुति की सामर्थ्य किसमें है ? हे देवी! तुम तो अपने इन उदार प्रभावों से ही प्रशंसित हो गई हो ।
  • इन दोनों अजेय असुरों को तुम मोहग्रस्त करके भगवान विष्णु की निद्रा भंग कर दो।
  • इसके साथ ही भगवान के भीतर इन मधु और कैटभ नाम की महा असुरों के संहार की बुद्धि भी उत्पन्न करो ।

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ में देवी की स्तुति से देवी का प्रकट होना! The appearance of the goddess in Sri Durgasaptashati with praise to the goddess!

  • ऋषि ने कहा- हे राजन ! भगवान विष्णु को जगाने के लिए जिस समय ब्रह्मा जी ने उस तमोगुण की अधिष्ठात्री देवी का स्तवन किया।
  • उस समय भी महामाया भगवान के नेत्र मुख नासिका बाहु ह्रदय और वक्ष स्थल से बाहर आकर, अव्यक्त जन्मा ब्रह्मा जी के सम्मुख आ उपस्थित हुईं।
  • योग निद्रा से रहित होकर जगतपति भगवान जनार्दन उस एकार्णव के जल में शेष शैया से जागृत हो गए।
  • नींद से मुक्त होते ही भगवान ने उन दोनों दैत्यों को देखा। वे दोनों ही दुरात्मा मधु और कैटभ अत्यंत पराक्रमी और बलशाली थे।
  • वे दोनों क्रोध से आंखें लाल करके ब्रह्मा जी को निगल जाना चाहते थे।
  • ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु ने उन दोनों राक्षसों के साथ 5000 वर्ष तक लगातार बाहु युद्ध किया।
  • वे दोनों बल के दर्प से दर्पित हो रहे थे। महामाया ने उन दोनों को अपने प्रभाव से मोहग्रस्त कर दिया था।
  • तब उन राक्षसों ने विष्णु भगवान से कहा हम तुम्हारे शौर्य से अत्यंत प्रसन्न है। तुम हम लोगों से कोई इक्षित वर मांग लो ।
  • उनकी बात सुनकर भगवान विष्णु ने कहा- यदि तुम दोनों मुझसे प्रसन्न हो तो तुम्हारी मृत्यु मेरे हाथों से हो।
  • मुझे यही वर चाहिए। इसके सिवाय मुझे अन्य किसी प्रकार के वरदान की आवश्यकता नहीं है। (श्री दुर्गा सप्तशती पाठ प्रथम अध्याय)

श्री सिध्दकुंजिका स्तोत्र सुनने व पढ़ने से श्री दुर्गासप्तशती पाठ का फल प्राप्त होता है। अतः अवश्य सुनें।

https://youtu.be/H3mpJgDpHEc

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ प्रथम अध्याय में मधु कैटभ का वध ! Slaughter of Madhu Catabh in the first chapter of Sri Durgasaptashati!

  • ऋषि कहने लगे- जब उन राक्षसों ने संपूर्ण पृथ्वी को भ्रम वश जलमग्न समझा ।
  • तब भगवान से कहा -मेरा वध किसी शुष्कस्थल अर्थात जिस स्थान पर पृथ्वी जल में ना डूबी हो में करो।
  • ऋषि ने कहा- तब तथास्तु कहकर शंख, चक्र, गदा, पद्म धारी भगवान विष्णु ने उन दोनों दैत्यों के मस्तक,
  • अपनी जांघों पर रखकर सुदर्शन चक्र के द्वारा काट दिए। यह महामाया देवी ब्रह्मा जी की स्तुति से संतुष्ट होकर स्वयं ही प्रकट हुई थी ।
  • अब मैं तुमसे उनके प्रभाव की महिमा का वर्णन करता हूं उससे श्रवण करो।
  • इस प्रकार श्री मार्कंडेय पुराण की सावन एक मन्वंतर कथा के अंतर्गत देवी महात्म्य में वर्णित मधु कैटभ वध नामक प्रथम अध्याय समाप्त हुआ।

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का यह हिंदी अनुवाद अनुवादक आचार्य पंडित श्री शिवदत्त मिश्र शास्त्री द्वारा किया गया है ।

जिसे शुद्धता की दृष्टि से यथावत प्रस्तुत किया गया है ताकि सभी इसे पढ़कर उसका संपूर्ण लाभ प्राप्त कर सकें।

हमारा यह प्रयास आपको अच्छा लगा हो तो इसे अपने मित्रों और परिजनों में भी प्रेषित करें ।

इसी प्रकार श्री दुर्गा सप्तशती पाठ के संपूर्ण अध्याय क्रमशः देखने के लिए इस लिंक पर आएं।

http://Indiantreasure.in

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