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शरद पूर्णिमा व्रत महत्व ; लक्ष्मी की प्रसन्नता हेतु जाने अचूक उपाय!

 

         शरद पूर्णिमा व्रत  महत्व

शरद पूर्णिमा व्रत महत्व व पूजनविधि जानने के लिए  यह जानकरियों भरा लेख  अवश्य पढ़ें।  

यह अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। 

धर्म शास्त्रों में इस दिन “कोजागर व्रत माना गया है इसी को “कौमुदी व्रत” भी कहते हैं।

  1. शरद पूर्णिमा कब है!
  2.  महत्व!
  3.  पूजा विधि!
  4.  कथाएं! 
  5. लक्ष्मी की प्रसन्नता हेतु अचूक उपाय!

शरद पूर्णिमा कब है!

  • शरद पूर्णिमा, या कोजागरी व्रत कहते है।
  • यह स्नान दान पूर्णिमा है।
  • कार्तिक स्नान दान व नियम आज से ही प्रारम्भ हो जावेंगे। (लाला रामस्वरूप पंचांग अनुसार)

व्रत का महत्व!

रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है।

ऐसा कहा जाता है कि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा (अमृत) झरता है।

शरद ऋतु में मनुष्यों को पित्त भी उत्पन्न होता है।चरक संहिता में लिखा है

वर्षाशीतोचितांगानां शसेवारकरश्मिभिः।
तप्तानामर्चितं पित्तं प्रायः शरदि कुप्यति।।
                      (चरक सूत्रस्थान)


अर्थात वर्षा से ही शरीर शीत सहन करने में सक्षम रहता है ।

वह जब शरद कालीन सूर्य की तप्त किरणों से संतप्त होता हैं । तो इकट्ठा पित्त अवश्य ही दूषित हो जाता है।

इस दोष को नष्ट करने वाली शरद पूर्णिमा की चंद्रकिरण ही हैं।( शरद पूर्णिमा व्रत महत्व )

चिकित्सीय महत्व!

एक अध्ययन के अनुसार आज के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता बढ़ जाती है।

ऐसा बताया जाता है,

” लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों को दर्पण से अपनी नाभि में ग्रहण करता था।

और इस प्रक्रिया से उसे पुनरयौवन की शक्ति प्राप्त होती  थी।     

अतः चांदनी रात में 10:00 से 12:00 के बीच जो व्यक्ति कम वस्त्रों में चंद्रमा के नीचे रहता है । या घूमता है, उसे ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के नीचे खीर रखने का विधान इसलिए है। 

क्योंकि दूध में लैक्टिक अम्ल होता है, तथा अमृत तत्व पाया जाता है। एवं चावल में स्टार्च होता है ।

दूध में लैक्टिक अम्ल होने के कारण उसकी चंद्र किरणों की अवशोषण क्षमता अधिक होती है।

वैसे ही चावल में स्टार्च होनेे के कारण दूध के साथ मिलकर अवशोषण प्रक्रिया को बढ़ा देता है ।

इसी कारण रात्रि में चंद्रमा के नीचे खुले में खीर बनाकर रखी जाती है।

अस्थमा के रोगियों के लिए यह खीर औषधि के समान कार्य करती है।

तथा शरीर में शरद ऋतु मैं पित्त के कारण उत्पन्न हुए समस्त शारीरिक बीमारियों को दूर करती है।

पूजन विधि!

शरद पूर्णिमा के दिन प्रातः स्नान करके व्रत का प्रारंभ किया जाता है ।

माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी देवताओं का पूजन करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है ।

इसीलिए रात्रि में खीर , घी , दूध आदि बाहर रखकर दूसरे दिन प्रातः उसे खाया जाता है।

पूर्णिमा के दिन पूरे दिन व्रत रहें। किसी पवित्र पीढ़े पर एक लोटा शुद्ध जल रखें। पास में एक गिलास में गेहूं रखें।

तथा दोनों पात्रों की रोली से पूजा करें। दक्षिणा चढ़ाएं ।फिर तेरह दाने गेहूं के लेकर कथा का श्रवण किया जाता है।

वृत्त की कथाएं!

पहली कथा इस प्रकार है! 

पौराणिक कथा है , कि एक बार भगवान विष्णु को पृथ्वी पर भ्रमण करने की इच्छा हुई ।

उन्होंने अपनी इच्छा लक्ष्मी जी से कही तब लक्ष्मी जी ने भी साथ चलने की इच्छा व्यक्त की।

जिस पर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी के सामने एक शर्त रखी कि तुम्हें उत्तर दिशा की ओर नहीं जाना है।

              कोजागरी लक्ष्मी (शरद पूर्णिमा व्रत महत्व )

यह सुनकर माता लक्ष्मी ने उक्त शर्त को सहर्ष स्वीकार कर लिया।

और पृथ्वी पर भ्रमण के लिए भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी चल पड़े।

धरती की शोभा देखकर माता लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हुई तथा चकित होकर इधर-उधर देखने लगी।

इसी में वह उत्तर दिशा की ओर घूम गई तथा वहां लगे हुए फूलों के सुंदर बगीचे में पहुंच गइं।

और एक फूल तोड़ लिया फूल तोड़ कर भगवान विष्णु के पास आ गई

उस समय वह भूल गई थी कि उन्हें उत्तर दिशा की ओर नहीं जाना था।

जैसे ही विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को उत्तर दिशा की ओर से आते हुए देखा तो बहुत दुखी हुए ।

और उन्होंने माता लक्ष्मी से कहा कि आपने वचन भंग किया एवं उत्तर दिशा की ओर चली गई।

तथा फूलों के बगीचों से आपने बिना पूछे फूल भी थोड़े हैं जो कि गलत है।

अतः इसकी सजा आपको भोगना हीं पड़ेगी। और ऐसा कहकर भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा;

माधव के घर लक्ष्मी का आना!

कि यह जिसका बगीचा है उसके घर जाकर सेविका बनकर आप वहां 3 वर्ष तक रहो।

यह सुनकर माता लक्ष्मी उक्त बगीचे के मालिक जो कि अत्यंत निर्धन था ।

और बड़ी मुश्किल से फूल बेचकर अपने रोजी कमाता था। और अपने परिवार का पेट पालता था।

उसका नाम माधव था उसके घर पहुंची। उस घर में उसकी पत्नी और दो बच्चियां भी रहती थी ।

वहां द्वार पर पहुंचकर माता लक्ष्मी ने एक गरीब स्त्री का वेश बनाकर दरवाजे पर दस्तक दी।

दरवाजा माधव ने खोला और द्वार पर खड़ी गरीब स्त्री को देखकर माधव ने पूछा;

की बहन तुम्हें क्या चाहिए?  तब गरीब स्त्री ने कहा कि मैं अत्यंत गरीब हूं।  मेरा कोई नहीं है ।

मुझे आप अपने घर में जगह दे दे , तो मैं आपके घर के कार्य करूंगी और आप सब की सेवा करूंगी।

जिस पर माधव ने कहा की बहन में अत्यंत निर्धन हूं मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है।

किंतु जैसे मेरी दो बेटियां हैं यदि उसी तरह तुम मेरे साथ रहकर रुखा सुखा खाकर अपना निर्वाह कर सकती हो।

तो तुम मेरी बेटी बनकर रह सकती हो। ऐसा करके माधव ने उस गरीब स्त्री को अपने घर में जगह दी।

लक्ष्मीजी का प्रभाव!

दूसरे दिन ही माधव के फूलों की बहुत ज्यादा बिक्री हुई ।

उसके बगीचे में खूब फूल खिल गए थे, जिन्हें बेचकर माधव ने गाय खरीदी ।

इस प्रकार दूध का धंधा किया और धीरे-धीरे उसकी प्रगति होने लगी ।

उसके घर में सभी प्रकार की सुख सुविधाएं धन- संपत्ति एकत्रित हो गई और माधव अत्यंत धनवान हो गया।

माधव मन ही मन यह बात जानता था ।

कि जिस दिन से इस गरीब स्त्री ने मेरे घर में कदम रखा है उसी दिन से मेरे घर में धन-धान्य संपत्ति बढ़ने लगी है।

इसी तरह लगभग 3 वर्ष बीत गए अब माधव के घर से गरीबी दूर हो चुकी थी,उसके घर में अत्यंत संपन्नता थी।

एक दिन द्वार पर एक स्त्री को स्वर्ण आभूषण से युक्त अत्यंत सुंदर देश में देखकर माधव चकित हो गया ।

फिर ध्यान से देखने पर समझ पाया कि यह तो वही गरीब स्त्री है जो उसके घर में रहती थी।

उसे देखकर माधव और उसकी पत्नी चकित हुए और पूछा कि तुम कहां जा रही हो ।

लक्ष्मीजी का माधव को वरदान!

तब माता लक्ष्मी ने विधिवत वृतांत बताया किस प्रकार से थे पृथ्वी पर आई थी।

और भगवान विष्णु के आज्ञा से माधव के घर में सेविका बनकर रहीं।

3 वर्ष पूर्ण होने के बाद उनके अपराध का मोचन हो चुका था । भगवान विष्णु ने उनको बुलाने के लिए भेजा था।

और वह जा रही हैं। यह सुनकर माधव अत्यंत दुखी हो गया ।

तब माता लक्ष्मी ने कहा कि के तुम बहुत सरल , उदार और मेहनती हो । मैं तुम्हें संपन्नता का वरदान देती हूं ।

कि आजीवन तुम्हारे घर में कभी भी धन की कोई कमी नहीं होगी ।

जो व्यक्ति उदार ,मेहनती व दूसरों की मदद करने में ततपर रहते हैं। मैं ( लक्ष्मी) उन्ही के पास रहती हूं।

इस प्रकार कहकर माता लक्ष्मी रथ पर बैठकर विष्णु लोक को चली गई।


दूसरी कथा इस प्रकार है! 

                 महारासलीला ( शरद पूर्णिमा व्रत महत्व )

शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने महारास किया था।

जिसमें देखने के लिए चंद्रमा 6 माह तक एक ही जगह स्थिर हो गया था।

आज के दिन का चन्द्रमा अपनी सम्पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त पूर्णचंद्र होता है।

महारास के समय चंद्रमा से अमृत वर्षा होने लगी थी। जो एक सरोवर में मिल गई । जिसे चंद्र सरोवर भी कहा जाता है।

आश्विन मास के इस पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं।क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन महारास किया था।

गोवर्धन पर्वत के पास बसे बारसोली ग्राम में सूरश्याम सरोवर हैै।

जिसके किनारे शरद पूर्णिमा की रात्रि में श्री कृष्ण गोपियों के साथ बैठे हुए थे और बांसुरी बजा रहे थे ।

 बांसुरी की धुन को सुनकर समस्त गोपियां अपने कार्य छोड़कर श्री कृष्ण के पास आ गई । 

श्रीकृष्ण ने इतनी रात को आने पर गोपियों को वापस जाने कहा।

गोपियां बुरा मान गईं। जिन्हें मनाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोपियों से ही उपाय पूछा।

महारासलीला!

सभी ने एक-एक करके श्रीकृष्ण के साथ नृत्य करने की इच्छा प्रकट की। अतः भगवान श्रीकृष्ण ने अनेकों रूप धारण किया।

तथा प्रत्येक गोपियों के साथ एक ही समय मे एक साथ  महारासलीला किया था ।

जितनी गोपियाँ उतने ही श्रीकृष्ण! यह अद्भुत दृश्य देख  चंद्रमा 6 माह तक एक ही स्थान पर स्थिर हो गया था ।

तथा महारास के समय चंद्रमा से अमृत रस के वर्षा होने लगी थी ।

जो अमृत रस एक सरोवर में मिल गया था उसे चंद्र सरोवर भी कहते हैं।


श्री कृष्ण के महारास को देखने के लिए समस्त देवी देवता पृथ्वी पर आ गए ।

भगवान शंकर का गोपेश्वर रूप!

और भगवान शंकर स्वयं श्री कृष्ण के साथ रास नृत्य करने के लिए पहुँचे।

तब गोपियों ने उन्हें आने से ऐसा कहकर मना कर दिया कि यहां केवल गोपियां आ सकती हैं।

तब भगवान शिव ने गोपी का रूप धारण करके श्री कृष्ण के साथ रास किया था।

इस रूप को ही भगवान शिव का गोपेश्वर रूप कहा जाता है।

इस दिन चंद्रमा से जो अमृत रस वर्षा हुई उससे चंद्र सरोवर का निर्माण हुआ।

ऐसा माना जाता है कि इस चंद्र सरोवर में जो व्यक्तिआचमन करता  है ।

उसे श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।

एवं जो व्यक्ति इस सरोवर में शरद पूर्णिमा के दिन स्नान करता है उसके सारे रोग दूर हो जाते हैं।

तीसरी कथा इस प्रकार है!

एक साहूकार था। उसकी दो बेटियां थी। बड़ी बेटी का नाम सावित्री था, छोटी का चन्द्रिका।

 सावित्री हमेशा पूर्णिमा का व्रत पूर्ण रूप से करती थी तथा दूसरी बेटी इस व्रत को आधा ही करती थी।

दोनों बेटियां विवाह योग्य होने के पश्चात विवाह पश्चात पुत्रवती हुई ।

सावित्री के पुत्र जन्म हुआ और बहुत सुंदर और स्वस्थ बालक ने जन्म लिया ।

वहीं चन्द्रकला के पुत्र के जन्म लेते ही उसकी मृत्यु हो गई।

इस प्रकार अनेकों बार चन्द्रिका के पुत्र प्राप्त होते ही संतान नष्ट हो जाती थी ।उसने ऋषि-मुनियों को दिखाया ।

उन्होंने कहा कि तुम शरद पूर्णिमा का व्रत रखो । जिससे तुम्हारी संतान स्वस्थ होंगी और जीवित भी रहेंगी।

शरद पूर्णिमा व्रत महत्व

ऐसा जानकर चन्द्रकला ने  पूर्णिमा का वृत रखा।

चन्द्रकला को पुनः पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । किंतु पुत्र कुछ समय तक ठीक रहकर और मृत्यु को प्राप्त हो गया।

वह दिन शरद पूर्णिमा का दिन था शोकाकुल मां ने अपने बेटे को एक पटे पर लेटाया।

और दुखी भाव से अपनी बहन को बुलाया । उसने पुत्र को लेटा देखकर उसके शरीर पर प्यार से हाथ फेरा।

जिससे अचानक ही पुत्र जीवित हो गया। और उठ कर बैठ गया। जिसे देखकर चन्द्रिका अत्यंत प्रसन्न हुई ।

व्रत का प्रभाव!

यह सब शरद पूर्णिमा व्रत का फल और पुण्य प्रताप समझ कर अपनी बहन को बहुत धन्यवाद किया।

गले लगाया और हमेशा पूर्णिमा व्रत करने का निश्चय किया।

इस प्रकार शरद पूर्णिमा का व्रत सन्तान की कुशलता की कामना के लिए किया जाता है।

शरद पूर्णिमा से ही कार्तिक स्नान और व्रत प्रारंभ हो जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा पूजन किया जाता है ।

भगवान को रात्रि के नैवेद्य के लिए खीर अथवा दूध दिया जाता है।

चांदनी में भगवान को विराजमान करके और श्वेत वस्त्रों से श्रृंगार व सज्जा करके उनके दर्शन किए जाते हैं।

इसके साथ ही शरद पूर्णिमा के साथ ही कार्तिक मास का प्रारंभ हो जाता है।

जिसमें कार्तिक स्नान व्रती लोग शरद पूर्णिमा के दिन से ही कार्तिक स्नान प्रारंभ करते हैं।

लक्ष्मी की प्रसन्नता हेतु अचूक उपाय! 

शरद पूर्णिमा के दिन जीवन में सम्पन्नता पाने हेतु अवश्य करें निम्न उपाय;

आज के दिन रात्रि पूजा के पश्चात घी या तेल (अपनी सुविधानुसार) लें तथा लाल धागे की बत्ती व चार लौंग लें।

अब माता लक्ष्मी व कुबेर का ध्यान करते हुए घर के मंदिर में माता के समक्ष अखण्ड ज्योति जला लें।

अखण्ड ज्योति के दीपक में दो लौंग डालकर बची दो लौंग लाल कपड़े में बांधकर धन रखने के स्थान पर रखें।

ऐसा करने से कर्ज से मुक्ति होकर अपार धन सम्पदा प्राप्त होती है।

इस लेख में आपको व्रत व पूजन विधि ,कथाएं, व महारासलीला के बारे में जानकारी प्राप्त हुई ।

आपको जानकारी अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों को भी शेयर करें।

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17 thoughts on “शरद पूर्णिमा व्रत महत्व ; लक्ष्मी की प्रसन्नता हेतु जाने अचूक उपाय!

  1. जिस प्रकार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से अमृत वर्षा होती है उसी तरह आपके समस्त लेखों से भी ज्ञान रूपी अमृत की वर्षा होती है।

  2. इस तरह की जानकारी जो हर पीढी के लिए कारगर है, प्रेषित करने के लिए धन्यवाद ???

  3. Great blog and very interesting stories!!
    Never knew about Shiv ji ka Gopeshwar avtar!!
    Thank you for sharing!!??

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