
पितृपक्ष में क्या करें, क्या न करें। गणपति विसर्जन के पश्चात पित्र तर्पण या पितृपक्ष प्रारंभ होता है। यह 15 दिन अमावस्या तक पितृपक्ष कहलाता है। यह हिंदुओं में अत्यंत महत्वपूर्ण एवं स्मृतियों के दिन कहलाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि हमारे पूर्वज जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं और पितर लोक में विचरण कर रहे हैं उन्हें इन 15 दिनों में जिन्हें कि पितृपक्ष कहा जाता है अपने स्नेही जनों एवं संबंधियों से मिलने की अनुमति होती है और इसी कारण इस पितृपक्ष में अपने-अपने स्नेही स्वजनों के पास जाकर उनका कुशलक्षेम प्राप्त करते हैं और सुख अनुभव करते हैं।
इन 15 दिनों में घर का मुखिया पुरुष सदस्य अपने पूर्वजों को जल अर्पित करता है जो तर्पण क्रिया कहलाती है । जिसमें अंगुलियों में कुशा की अंगूठी पहन कर काले तिल को जल मैं मिलाकर अर्पित किया जाता है उसे तर्पण कहते हैं ।
इससे हमारे पितर तृप्त होते हैं और जिस भी तिथि में पूर्वजों का स्वर्गवास हुआ होता है, उन उन तिथियों में वह पूर्वज हमारे घर आकर के अपना व अपने परिवार का कुशल क्षेम प्राप्त करते हैं तथा भोजन ग्रहण करते हैं।
पितृपक्ष में क्या करें
- एक विचारणीय प्रश्न होता है जिससे हम सभी उत्सुकता से जानना चाहते हैं।
- यह अत्यंत पवित्र काल होता है जिसमें हमसे बिछड़े हुए हमारे पूर्वज इस धरती पर आते हैं
- और किसी न किसी रूप में , कभी ब्राम्हण के रूप में , कभी भिक्षुक के रूप में, कभी पक्षी के रूप में,
- कभी पशुओं के रूप में, किसी भी रुप में आ कर के अपने परिवार जनों का हाल-चाल जानते हैं एवं प्रसन्न होते हैं।
- अतः इस अवसर पर हमें विशेष रुप से ध्यान देना चाहिए कि हमारे घर में किसी भी प्रकार की कलह,
- दुख, दरिद्रता और नकारात्मकता न रहने पाए । यह अत्यंत ही पवित्र काल है ।
- ताकि हमारे पूर्वज जो हमसे बिछड़ चुके हैं उन्हें इस बात का पूरा संतोष हो कि हम सुख से जीवन जी रहे हैं ,
- तभी उनकी आत्मा भी पितृलोक में तृप्त , सुखी और संतुष्ट रह पाती है।
पितृपक्ष में खरीदी करना
- हमारे पूर्वज यह देखते हैं कि हमने कोई नई वस्तु इन दिनों में खरीदी है तो
- उन्हें इस बात से प्रसन्नता और संतुष्टि होती है कि हमारा परिवार अत्यंत संपन्न एवं समृद्ध है
- तथा उसे किसी बात की कोई कमी नहीं है ।
- इसीलिए किसी भी प्रकार की कोई वस्तु खरीदना या ना खरीदना कुछ भी अशुभ नहीं होता है ।
- अतः पितृपक्ष में इस प्रकार का कोई दोष नहीं होता।पितृ पक्ष अत्यंत ही पवित्र और स्मृतियों का काल कहलाता है
- क्योंकि इस समय हम अपने पितरों को अपने पूर्वजों को बड़े ही प्रेम से याद करते हैं और उनका आवाहन करते हैं।
पितरों को प्रिय भोजन
- पितृपक्ष में अक्सर अपने प्रिय दिवंगत पूर्वजों के लिए और पितरों के लिए उनके ही पसंद के पकवान मिष्ठान
- भोजन इत्यादि बनाए जाते हैं । विशेषकर पितरों को नमकीन भोजन कराना चाहिए।
- देवताओं को मीठा भोजन पसंद होता है ।
पितृपक्ष में क्या करें
- इन 15 दिनों में पितृपक्ष के इन 15 दिनों में हमें घर में विशेष पवित्रता का ख्याल रखना चाहिए
- एवं सुंदरता बनाए रखनी चाहिए। जिस प्रकार किसी अतिथि के आने के पूर्व
- हम अपने घर को सुंदर और सुव्यवस्थित स्वच्छ और पवित्र बनाते हैं
- उसी प्रकार पितृपक्ष में हमारे पूर्वज हमारे पितर हमारे घर आते हैं
- अतः उनके स्वागत में हमें विशेष रूप से घर में शांति और सुंदरता का ख्याल रखना चाहिए।
- इन 15 दिनों में किसी भी अतिथि के आगमन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए विशेष रुप से
- आग्रह करके भोजन अवश्य कराएं एवं भोजन में अपने पितरों के पसंद की वस्तुओं को बनाकर खिलाएं
- तथा विशेष सम्मान और आदर के साथ स्वागत सत्कार करके अतिथि को विदा करना चाहिए।
- क्योंकि हमारे पूर्वज हमारे पितर किसी भी रूप में हमारे द्वार पर आकर हमें आशीर्वाद देते हैं।
अतिथि के रूप में आते हैं पितर
- इन 15 दिनों में द्वार पर आए हुए किसी भी अतिथि का निरादर नहीं करना चाहिए
- क्योंकि उस अतिथि के रूप में हमारे पूर्वज ही हमें आशीर्वाद देने के लिए हमारे घर आते हैं
- और हमारे व्यवहार से हमारे सम्मान से प्रसन्न होकर के हमारे समस्त कुटुंब को अपना आशीर्वाद देते हुए
- विदा हो जाते हैं। इस सम्मान को पाकर संतुष्ट हुए हमारे पितर पितरलोक में संतुष्ट और सुखी रहते हैं।

- पितृपक्ष एक अनदेखा और भावपूर्ण काल है जिन्हें हम अपनी स्मृति के झरोखों से
- अपने पूर्वजों को याद कर उनके प्रेम और स्नेह का पखवारा मनाते हैं
- तथा उन्हें याद कर अपने घर आमंत्रित करते हैं और उनसे अपने स्नेह के तारों को जोड़ते हैं।
- इसमें किसी भी प्रकार के विशेष आयोजन की आवश्यकता नहीं होती यह केवल भावनाओं का समय है।
- इसके अलावा कौवा को, कुत्तों को, गायों को, और भिक्षुक तथा
- ब्राह्मणों को विशेष रुप से इन 15 दिवस में खिलाना पिलाना चाहिए।
- अक्सर ऐसी भी चमत्कार होते हैं कि जब पितृपक्ष के उन खास दिनों में जिस तिथि पर
- हमारे पितर स्वर्ग लोक सिधारे थे उन तिथियों पर अक्सर मुंडेर पर कौआ आकर कांव-कांव की ध्वनि कर
- हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं और जब तक उन्हें कुछ खिलाया ना जाए तब तक वह चिल्लाते रहते हैं।
- यह कोई अनजानी घटना नहीं है प्रायः बहुत से लोगों के साथ यह घटना हुई होगी।
पितृपक्ष में ना करें
- इन पितृपक्ष में हमें किसी प्रकार का कोई शादी विवाह या अन्य ऐसे आयोजन नहीं करनी चाहिए!
- जिससे हमारा ध्यान अपने पितरों से भटक करके और उस आयोजन में केंद्रित हो जाए।
- इसीलिए यह कहा जाता है कि इन दिनों कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते।
- इसका मतलब यह नहीं है कि यह पखवारा अशुभ दिनों का सूचक है।
- अपितु इसका मतलब यह है कि जब कोई मुख्य या बड़ा व्यक्ति हमारे लिए परम पूज्य व्यक्ति
- हमारे घर आ रहा हो तो हमें सम्मान संपूर्ण रूप से उसका आदर और सत्कार करना चाहिए ।
- उस समय किसी और कार्य में अपने ध्यान को लगाकर हम उनके आदर सत्कार में कोई कमी ना कर दें
- इसलिए ऐसे आयोजनों का निषेध किया जाता है। अतः यह पखवारा अत्यंत ही सुख समृद्धि दायक है
- क्योंकि इन्हीं दिनों में हमारे पूर्वज धरती पर आकर हमें देखकर प्रसन्न होते हैं ।
- हमें आशीर्वाद देते हैं जिनके आशीर्वाद से हमारी उत्तरोत्तर उन्नति होती रहती है।
- पितृपक्ष में हम अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनकी तिथियों पर
- व्यक्ति विशेष को आमंत्रित कर सादर भोजन करा कर व वस्त्र देकर सम्मानित करते हैं।
जिन पूर्वजो की तिथि याद न हो तो क्या करें ?
- किंतु यदि किसी को अपने पूर्वजों की तिथि का ज्ञान ना हो तो
- ऐसी स्थिति में अष्टमी तिथि को पुरुष पितर का
- एवं नवमी तिथि को स्त्री पितर का दिन माना जाता है।
- इस प्रकार अष्टमी और नवमी तिथि में क्रमशः पुरुष और स्त्री पितरों को याद कर सम्मानित कर
- पितृपक्ष अमावस्या पितृपक्ष की समाप्ति तिथि अमावस्या के दिन समस्त भूले बिसरे सभी पितरों को याद करते हुए ब्राह्मण को भोजन करा कर संतुष्ट करा दें।
- इस प्रकार पितृपक्ष को अत्यंत प्रेम सद्भाव एवं यादगार समय के रूप में पूर्ण करते हुए
- अपने पितरों की प्रसन्नता के लिए उनसे संबंधित वस्तुएं अतिथि एवं आमंत्रित व्यक्ति को समर्पित करें ,
- इससे यह माना जाता है कि उक्त वस्तु हमारे पितरों को प्राप्त हो चुकी हैं।
- इस प्रकार यह पितृपक्ष हमारे पूर्वजों से आशीर्वाद प्राप्त करने का वह महत्वपूर्ण समय है,
- इस समय सुख समृद्धि शांति और उन्नति का आशीर्वाद देने के लिए हमारे पितर धरती पर हमारे द्वार पर अतिथि रूप में आते हैं।
- यह एक भावनात्मक समय होता है, उन पूर्वजों से जुड़ने उन्हें याद करने का ।
- अपनी भावी पीढ़ी को यह स्मरण कराने का कि हमें अपने पूर्वजों के प्रति किस प्रकार कृतज्ञ होना चाहिए ।
- उन्हें स्मरण करते रहना चाहिए, ताकि हम अपनी पीढ़ियों दर पीढ़ियों को स्मृति में बनाए रख सकें।
सतुवाई अमावस्या में करें पितृदोष निवारण ! Remove Pitru-dosha in satuwai Amavasya!
नमस्कार! मैं रेखा दीक्षित एडवोकेट, मैं एडवोकेट ब्लॉगर व युट्यूबर हूं । अपने प्रयास से अपने पाठकों के जीवन की समस्याओं को दूर कर ,जीवन में उत्साह लाकर खुशियां बांटना चाहती हूँ। अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर मैंने अपने ब्लॉक को सजाया संवारा है, जिसमें आपको योग ,धार्मिक, दर्शन, व्रत-त्योहार , महापुरुषों से संबंधित प्रेरक प्रसंग, जीवन दर्शन, स्वास्थ्य , मनोविज्ञान, सामाजिक विकृतियों, सामाजिक कुरीतियां,धार्मिक ग्रंथ, विधि संबंधी, जानकारी, स्वरचित कविताएं एवं रोचक कहानियां एवं स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां उपलब्ध हो सकेंगी । संपर्क करें : info.indiantreasure@gmail.com
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