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Panchtantra ki kahani – Do sir wala Julaha.

Panchtantra ki kahani – Do sir wala Julaha. किस्से कहानी प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का हिस्सा है। हर व्यक्ति कहानियों से कुछ न कुछ अवश्य सीखता है। फिर बच्चों का मन तो बहुत ही कोमल होता है उनके लिए सब कुछ नया नया होता है। सीखने की क्षमता बच्चों में ज्यादा होती है। कहानियों का माध्यम अत्यंत रोचक होता है। सारगर्भित व अच्छे सन्देश देने वाली कहानियां यदि बच्चों को सुनाई जाय तो वे सन्देश उनके बालमन पर गहरी छाप छोड़ते हैं।

आज ऐसी ही रोचक और सारगर्भित Panchtantra ki kahani – Do sir wala Julaha. प्रस्तुत करते हैं। जो बच्चों के साथ साथ आपका भी मनोरंजन करेगी। अवश्य पढें।

Panchtantra ki kahani – Do sir wala Julaha.

बहुत समय पहले की बात है। एक गांव में मनोहर नाम का एक जुलाहा (कपड़े सिलने वाला) रहा करता था।

उसकी कपड़े सिलने वाली मशीन के ज्यादातर उपकरण लकड़ी से बने हुए थे।

एक दिन बहुत ज्यादा बारिश होने से बारिश का पानी उसके घर में भर जाता है।

जिससे उसकी मशीन पूरी तरह से खराब हो जाती है। मनोहर बहुत परेशान हो जाता है।

वह दुखी होकर सोचने लगता है कि अगर जल्द ही उसने अपनी इस मशीन को ठीक नहीं किया,

तो वह कपड़े सिलने का काम नहीं कर पाएगा और उसके परिवार को भूखा रहना पड़ेगा।

Panchtantra ki kahani – Do sir wala Julaha.

यह सोचकर मनोहर जंगल जाने का फैसला कर लेता है,

ताकि वह अपनी मशीन को ठीक करने के लिए अच्छी लकड़ी काट कर ला सके।

फिर मनोहर इस विचार के साथ जंगल की ओर चल देता है। मनोहर पूरा दिन चलता रहता है,

लेकिन उसे अपनी मशीन के लिए अच्छी लकड़ी वाला कोई भी पेड़ नजर नहीं आता है।

फिर भी मनोहर हार नहीं मानता है और अच्छे पेड़ की तलाश में आगे बढ़ता रहता है।

काफी देर चलने के बाद अचानक मनोहर की नजर एक पेड़ पर पड़ती है,

जो काफी ऊंचा, मोटा और हरा-भरा था। उस पेड़ को देख मनोहर बेहद खुश होता है और कहता है,

हां यह पेड़ काफी अच्छा है। इसकी लकड़ी से मैं अपनी मशीन को फिर से ठीक कर सकता हूं।

इस विचार के साथ मनोहर कुल्हाड़ी उठाकर जैसे ही पेड़ के तने पर मारने के लिए अपना हाथ ऊपर उठाता है,

तभी पेड़ की डाल पर एक देवता प्रकट हो जाते हैं। देवता मनोहर से कहते हैं,

“मैं इस पेड़ पर रहता हूं और आराम करता हूं। इसलिए, तुम्हारा इस पेड़ को काटना उचित नहीं होगा।

वैसे भी किसी भी हरे पेड़ को काटना ठीक नहीं है।”

Panchtantra ki kahani – Do sir wala Julaha.

देवता की बात सुनकर मनोहर क्षमा मांगते हुए कहता है, “हे देव, मैं मजबूर हूं।

मुझे इस पेड़ को काटना ही पड़ेगा। इस पेड़ की लकड़ी मेरी मशीन के लिए उत्तम है।

बहुत ढूंढने के बाद मुझे यह पेड़ मिला है। अगर मैं इस पेड़ को नहीं काटूंगा, तो मेरी मशीन खराब रह जाएगी

और मैं कपड़े सिलने का काम नहीं कर पाऊंगा। इस वजह से मैं और मेरा परिवार भूखों मर जाएगा।”

मनोहर की बात सुनकर देवता कहते हैं, “मनोहर मैं तुम्हारे जवाब से खुश हूं,

तुम इस पेड़ को न काटो। इसके बदले तुम्हें जो वरदान चाहिए वो मांग सकते हो,

मैं तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी करूंगा।” देवता से वरदान की बात सुनकर मनोहर कुछ देर विचार करके कहता है,

“हे देव! मैं वर के लिए अपने मित्र और पत्नी से राय लेना चाहता हूं।

इसलिए, आप मुझे एक दिन का समय दीजिए।” मनोहर के आग्रह को देवता मान लेते हैं

और उसे एक दिन विचार करने के लिए दे देते हैं।

एक दिन का समय…

एक दिन का समय लेकर मनोहर अपने घर की ओर चल देता है।

रास्ते में उसे उसका मित्र नाई मिलता है। नाई से मिलकर मनोहर उसे देवता की वरदान वाली बात बताता है।

उस पर नाई मनोहर को एक राज्य मांगने की सलाह देता है।

नाई कहता है कि तुम देवता से वरदान में एक राज्य मांग लो।

तुम उस राज्य के राजा बन जाना और मैं उस राज्य का मंत्री बन जाऊंगा।

फिर हमें कोई कष्ट नहीं होगा और हम आराम से अपनी जिंदगी बिता पाएंगे।

नाई मित्र की बात पर मनोहर कहता है, “मित्र तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो।

इस बारे में एक बार मैं अपनी पत्नी से भी पूछ लूं, फिर मैं देवता से वरदान मांग लूंगा।”

पत्नी से राय मांगने की बात पर नाई कहता है, “मित्र तुम्हारी पत्नी काफी घमंडी और मूर्ख है।

इसलिए, तुम्हें उससे राय नहीं लेनी चाहिए। ऐसी स्त्री केवल अपने लाभ के बारे में ही सोचती है।”

इस पर मनोहर ….

इस पर मनोहर कहता है, “मित्र फिर भी वह मेरी पत्नी है, इसलिए मैं उसकी राय एक बार जरूर लूंगा।”

इतना कहते हुए मनोहर अपने घर की ओर बढ़ जाता है।

घर पहुंच कर मनोहर जंगल में घटी पूरी घटना अपनी पत्नी को बताता है।

देवता से वरदान मिलने की बात सुनकर मनोहर की पत्नी कहती है, “राज्य मांग कर कोई लाभ नहीं।

राजा की कई जिम्मेदारियां होती हैं। वह कभी सुख से अपना जीवन नहीं बिता पाता है।

राजा राम और नल भी राज्य होते हुए जिंदगी भर दुःख में जिए।

आप दो हाथ से इतने अच्छे कपड़े सिलकर ठीक-ठाक कमा लेते हैं।

ऐसे में अगर आपके दो सिर और चार हाथ हो जाएं, तो आप दोगुने कपड़े सिल पाएंगे।

इससे कमाई भी दोगुनी हो जाएगी और आपका मान भी समाज में बढ़ेगा।”

पत्नी की बात…

पत्नी की यह बात मनोहर को समझ आ जाती है और वह देवता से वरदान मांगने जंगल की ओर चल देता है।

जंगल पहुंचकर वह दोबारा देवता से मिलता है। देवता मनोहर को देखकर कहते हैं कि

मनोहर मांगों क्या वर मांगना है तुम्हें ! मनोहर देवता से कहता है,

“हे देव! आप मुझे दो सिर और चार हाथ दे दीजिए।”

देवता मनोहर की यह बात सुनकर पूछते हैं कि तुम दो सिर और चार हाथ का क्या करोगे?

मनोहर ने कहा; कि दो सिर और चार हाथ होने पर वह दोगुना कपड़े सिल पाएगा,

जिससे उसकी कमाई पहले से अधिक हो जाएगी।

मनोहर की यह बात सुनकर देवता मुस्कुराकर उसे दो सिर और चार हाथ का वरदान दे देते हैं।

देवता के वरदान से …

देवता के वरदान से मनोहर को दो सिर और चार हाथ हो जाते हैं।

वरदान पाकर मनोहर बहुत खुश होता है और अपने घर की ओर चल देता है।

मनोहर जैसे ही अपने गांव पहुंचता है, तो गांव में खेल रहे बच्चे उसे देखकर डर जाते हैं।

वह सब उसे एक राक्षस समझते हैं।।तभी कुछ गांववाले हाथों में हथियार लेकर मनोहर पर हमला कर देते हैं

और मनोहर की मौत हो जाती है। जब मनोहर की मौत की खबर मनोहर की पत्नी को होती है,

तो वह फौरन मनोहर को देखने वहां पहुंच जाती है। मनोहर की लाश देख उसकी पत्नी रोने लगती है

और कहती है कि यह सब मेरी गलती है। मैंने ही उनसे देवता से दो सिर और चार हाथ मांगने के लिए कहा था।

अगर ऐसा न होता तो आज मनोहर को कोई राक्षस न समझता और वे जिंदा होते।

कहानी से शिक्षा

बिना सोचे-विचारे किया गया कोई भी काम हमेशा दुखदाई होता है।

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