nirjala ekadashi vrat – भीमसेनी निर्जला एकादशी व्रत विधि एवं कथा |Bheemseni Nirjala Ekadashi Vrat Vidhi v Katha. भगवान विष्णु को प्रिय तिथि एकादशी है। सभी व्रतों में यह अत्यंत श्रेष्ठ व्रत माना जाता है।
इस व्रत के करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और भगवान की अनुपम कृपा प्राप्त होती है। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी (nirjala ekadashi vrat) या भीमसेनी एकादशी कहते हैं।
आज हम आपको भीमसेनी निर्जला एकादशी व्रत कैसे करें अर्थात व्रत करने की विधि एवं निर्जला एकादशी व्रत कथा बताएंगे। आइए जानते हैं कि उक्त निर्जला एकादशी (nirjala ekadashi vrat) को भीमसेनी एकादशी क्यों कहा जाता है । और इस व्रत को करने के क्या फायदे हैं।
निर्जला एकादशी व्रत के फायदे
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी (nirjala ekadashi vrat) कहलाती हैं। अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है। परंतु इस एकादशी को फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है।
अतः यह बिना जल के व्रत करने से निर्जला एकादशी कहलाती है। यह एकादशी गर्मी के दिनों में बड़ी कष्टप्रद और तपस्या से की जाती है।
इसीलिए इस एकादशी का महत्व सभी एकादशीयों से बहुत अधिक है। इस एकादशी के करने से आयु, आरोग्य की वृद्धि और उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है।
महाभारत के अनुसार अधिवास सहित 1 वर्ष की 26 एकादशीयाँ भी यदि कोई व्यक्ति ना करें, और केवल निर्जला एकादशी ( nirjala ekadashi vrat) का ही व्रत कर ले, तो उसे संपूर्ण वर्ष भर की एकादशी करने का फल प्राप्त होता है।
निर्जला एकादशी (nirjala ekadashi vrat) व्रत करने की विधि
- निर्जला व्रत करने वाले को अपवित्र अवस्था में आचमन के सिवा एक बूंद जल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
- पूर्व में यदि किसी भी प्रकार जल का उपयोग कर लिया जाता है तो यह व्रत भंग हो जाता है।
- निर्जला एकादशी (nirjala ekadashi vrat) को संपूर्ण दिन और रात निर्जल व्रत रहकर द्वादशी को प्रात स्नान करके करना चाहिए।
- सामर्थ्य के अनुसार स्वर्ण और जलयुक्त कलश का दान करना चाहिए।
- इसके बाद व्रत का पारायण कर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
भीमसेनी निर्जला एकादशी (nirjala ekadashi) व्रत की कथा
पांचों पांडवों में भीमसेन सबसे अधिक शक्तिशाली थे और शारीरिक शक्ति में भी बढ़-चढ़कर थे। उनके पेट (उदर) में वृक नाम की अग्नि थी इसीलिए उन्हें वृकोदर भी कहा जाता है।
वे बचपन से ही बहुत खाते थे। भीमसेन शक्तिशाली भी बहुत थी। उन्होंने नागलोक में जाकर वहां के 10 कुण्डों का रस पी लिया था ।
इस कारण उनमें 10000 हाथियों के समान शक्ति हो गई थी। इस रस के पान के प्रभाव से उनकी भोजन पचाने की क्षमता और भूख भी बढ़ गई थी। जिस कारण भी कोई भी व्रत नहीं रख पाते थे।
सभी पांडव तथा द्रोपदी एकादशी का व्रत करते थे, परंतु भीम के लिए एकादशी व्रत करना बहुत कठिन था। भीम की यह दशा देखकर व्यास जी ने उनसे जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत निर्जल रहते हुए करने को कहा।
व्यास जी ने बताया कि इस व्रत के प्रभाव से तुम्हें वर्ष भर के एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होगा। व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने इस एकादशी का व्रत किया ।
इसीलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है ।
भीमसेनी एकादशी अत्यंत पुण्यकारी एकादशी है। इस एकमात्र एकादशी को करने से संपूर्ण वर्ष भर की एकादशी का फल प्राप्त होता है।
यह अत्यंत कठिन होती है, क्योंकि इस एकादशी के समय भीषण गर्मी का मौसम रहता है । अतः यह व्रत अत्यंत दुष्कर और कठिन होता है।
निष्कर्ष
भीमसेनी निर्जला एकादशी (nirjala ekadashi vrat) व्रत करने की विधि अत्यंत आसान है। इसे करने के लिए किसी भी आडंबर की आवश्यकता नहीं है।
व्रत विधान अपने सामर्थ्य अनुसार ही करना चाहिए । इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की अपार कृपा प्राप्त होती है तथा व्यक्ति समस्त सुख वैभव को प्राप्त करता है।
अंत समय में एकादशी व्रती व्यक्ति भगवान के लोको को प्राप्त होता है।
आशा है आपको यह जानकारी उपयोगी लगी होगी ।अपना कीमती समय निकालकर ( nirjala ekadashi vrat) निर्जला भीमसेनी एकादशी व्रत विधि एवं कथा से संबंधित लेख पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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