मत्स्यासन करने की विधि व लाभ ; इस आसन को सर्वांगासन करने के बाद करना बहुत लाभकारी होता है। मत्स्यासन से चेहरे में ग्लो आता है। मत्स्यासन करने के दो तरीके हैं।
जिन्हें मत्स्यासन करने में दिक्कत होती है वे सरल मत्स्यासन कर सकते हैं। इसे करना बहुत ही आसान है। आइए जानते है -मत्स्यासन व सरल मत्स्यासन करने की विधि व लाभ ।
मत्स्यासन करने की विधि
- सर्वप्रथम ‘पद्मासन’ को स्थिति में बैठे अर्थात् दाएं पैर को बाईं जाँघ पर तथा बाँये पाँव को दायाँ जाँघ पर रखें।
- दोनों घुटने भूमि का स्पर्श करते रहें।
- रीढ़ की हड्डी एकदम तनी रहे तथा दोनों हथेलियाँ नितम्ब के दोनों ओर भूमि पर रहें।
- अब स्वाभाविक रूप से श्वास लेते हुये अपनी हथेलियों को थोड़ा पीछे की ओर खींच लें तथा
- शरीर के भार को सहारा देने के लिये अपनी कुहनियों को मोड़ लें।
- फिर एक-एक कुहनी को बारी से आगे की ओर बढ़ायें, ताकि पूरी पीठ भूमि (फर्श) पर आ जाये।
- इस स्थिति में जाँघों तथा घुटनों को पृथ्वी पर अथवा उससे कुछ ऊपर भी रखा जा सकता है।
- बाँहों को सटाकर भूमि पर रखें तथा स्वाभाविक रूप से साँस लें।
- फिर हथेलियों को नितम्ब तथा कूल्हों के नीचे ले जाते हुए कुहनियों को मोड़ लें।
- सिर को उठाकर उसे भूमि की ओर झुकाएं, ताकि उसका ऊपरी भाग फर्श पर टिक सके ।
- तत्पश्चात् दोनों हथेलियों से कूल्हों को सहारा देते हुए नितम्ब तथा कमर के ऊपरी भाग को धनुषाकार बनाने का प्रयत्न करें तथा
- हथेलियों को पैरों के समीप ले जाकर पाँव के अंगूठों को दृढ़तापूर्वक पकड़ते हुए स्वाभाविक रूप से साँस लें।
- इस स्थिति में 6 से 7 सैकिण्ड तक रहें।
- फिर, पाँव के अंगूठों को मोड़कर हथेलियों को नितम्बों पर ले आएं तथा कुहनियों को मोड़कर, उन पर शरीर के भार को टिका दें।
- एवं नितम्बों को खींचते हुए सिर को ऊपर की ओर उठायें तथा गर्दन को सीधा करते हुए उसे पुनः पृथ्वी पर टिकायें।
- इसके बाद दोनों पाँवों को खोलकर फैला दें तथा हाथों को भूमि पर ले आयें।
- उक्त विधि से अभ्यास का एक चक्र पूरा होगा।
- इसके 6 से 8 सैकिण्ड तक स्वाभाविक साँस लेकर विश्राम करने के बाद ,
- दूसरा चक्र आरम्भ करें। इस अभ्यास को अधिकतम 4 बार दुहराना चाहिए।
सरल मत्स्यासन करने की विधि
- जिन लोगों को मत्स्यासन का पूर्वोक्त अभ्यास कठिन प्रतीत होता हो अथवा जो ‘पद्मासन’ न लगा सकते हो,
- उन्हें ‘सरल-मत्स्यासन’ का अभ्यास करना चाहिए। विधि इस प्रकार है।
- पीठ के बल भूमि पर लेटकर, पाँवों को फैला दें। हथेलियाँ भूमि पर तथा दोनों बगल में शरीर के एकदम समीप रहनी चाहिएं।
- अब दोनों पाँवों को घुटनों के पीछे से मोड़कर, एड़ियों को कूल्हों के अधिक समीप ले आयें तथा
- घुटनों को एक साथ सटाकर एड़ियों को एक-दूसरी के अधिक समीप रखते हुये,
- बाँहों तथा हथेलियों को भूमि पर रखें।
- फिर, हथेलियों को कूल्हों के नीचे लाकर, कुहनियों को मोड़ लें तथा शरीर का भार उन पर डालते हुये,
- सिर को फर्श से थोड़ा ऊपर उठायें।
- फिर सिर की चोटी को भूमि पर रखें तथा नितम्बों को पीछे खींचते हुए तथा कुहनियों को सहारा देते हुये,
- सिर एवं नितम्ब- प्रदेश के बीच धनुषाकार स्थिति बनाने का प्रयत्न करें।
- ऐसी स्थिति में सिर पर कुछ भार आ जाने पर, 6 से 8 सैकिण्ड तक रहें।
- इस सम्पूर्ण अवधि में स्वाभाविक रूप से श्वास लेते रहें।
- फिर अपनी हथेलियों को पुनः कूल्हों के नीचे लाकर कुहनी मोड़ लें तथा
- पहले सिर को ऊपर उठाये दुपरान्त नितम्ब का सहारा लेते हुए
- (सिर को पुनः भूमि पर ले आयें। जब सिर तथा पीठ भूमि पर आ जायें,
- तब हथेलियों तथा बाँहों को पुनः भूमि पर लाकर उन्हें शरीर के दोनों और बगल में फैला दें तथा
- पाँवों को भी फैलाकर सीधा कर लें। इस प्रकार ‘सरल मत्स्यासन’ का एक चक्र पूरा हो जायेगा।
- 6 से 8 सैकिण्ड तक विश्राम करने के उपरान्त उक्त प्रक्रिया को पुनः दुहराएं।
- पहले दिन केवल एक ही बार तथा बाद में बढ़ाते हुए नित्य तीन बार तक इसे दुहराना चाहिए।
- ‘सरल मत्स्यासन’ में दक्षता प्राप्त हो जाने पर पूर्ण ‘मत्स्यासन’ का अभ्यास करना चाहिए।
मत्स्यासन करने के लाभ
- – इस आसन का मुख मण्डल के तन्तुओं पर प्रभाव पड़ता है।
- यह सम्पूर्ण मेरुदण्ड को प्रभावित करता है। तथा उसकी हड़ियों को दूर कर देता है।
- गर्दन के तनाव तथा उसकी अन्य तकलीफों को हटाने एवं कन्धों की तकलीफें दूर करने में भी यह प्रभावकारी है।
- इस अभ्यास से पेट की मांस पेशियाँ सक्रिय होती है तथा
- छोटी आंत एवं मलद्वार आदि आन्तरिक अवयव भी अपना कार्य सुचारू रूप से करने लगते हैं।
- यह कब्ज को दूर करता, भूख को बढ़ाता, भोजन को हजम करता तथा गैस को नष्ट करता है।
- इसके प्रभाव से शरीर में शुद्ध रक्त का निर्माण एवं सम्वरण होता है,
- जिसके कारण चेहरे पर चमक आ जाती है। यह दिमागी कमजोरी को भी दूर करता है तथा
- टाँगों एवं बाँहों की माँस-पेशियों को सशक्त बनाता है।
- कई महीनों के निरन्तर अभ्यास से यह दमा रोग में भी लाभ प्रदर्शित करता है।
- इसके प्रभाव से श्वास नली का शोष दूर होता है थाइराइड एवं पैराथाइराइड ग्रन्थियाँ लाभान्वित होती है
- खाँसी तथा टॉन्सिल रोग में हितकर है।
- लगभग तीन गिलास पानी पीकर यह आसन करने से शौच-शुद्धि में तत्कालिक लाभ मिलता है।
- इस आसन को ‘सर्वाङ्गासन’ के बाद करना हितकर रहता है।
- क्योंकि सर्वाङ्गासन में शरीर का जो क्षेत्र निष्क्रिय रह जाता है, यह इस आसन से सक्रिय हो उठता है
- अतः इन दोनों आसनों को बारी-बारी से करना शरीर के लिए आनुपातिक तथा विशेष लाभप्रद रहता है
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