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Kahani- “mere mohan bhaiya”; Smt.Manorama Dixit.

Kahani- “mere mohan bhaiya” ; Smt. Manorama Dixit. आस्था और विश्वास के मजबूत धागे से बंधी कहानी। बालमन में आस्था के बीज बोती है। आज ऐसी ही एक कहानी श्रीमती मनोरमा दीक्षित जी द्वारा लिखित कथालोक कहानी संग्रह से हम आपके लिए लेकर आएं हैं। Kahani- “mere mohan bhaiya”

Kahani-“mere mohan bhaiya” ; Smt. Manorama Dixit.

दादी ने बच्चों से कहा ; बच्चों तुम इस कथा को ध्यान से सुनना और गुनना।

गरीबनी माँ सावित्री का एक बेटा था श्रवण । घरों घर झाडू पोंछा बर्तन कर वह अपने बेटे श्रवण को पाल रही थी।

श्रवण जब मात्र तीन वर्ष का था तभी उसके पिता का (जो शराबी था) का निधन सड़क में ही पड़े रहकर हो गया था।

नाम तो उसका “धेला” था पर सब उसे “बोतल” कहते थे, बोतल साथ में रखे रहने से।

घर से जो सुबह रोटी खाकर रिक्शा चलाने निकलता तो फिर रात भर घर नहीं आता,

जो पैसे कमाता उससे शराब पीकर, खाना होटल में खाकर वही रिक्शा में या होटल के दरवाजे में सो जाता।

बेचारी सावित्री उसे ढूँढ ढाँढकर लाती। कभी आता कभी उसे गाली देकर भगा देता।

उसका अन्तिम संस्कार कर सावित्री अपने नन्हें श्रवण की खातिर फिर काम में जुट गयी।

सावित्री की तत्परता और अच्छे व्यवहार के चलते उसकी मालकिन उससे बहुत खुश रहती थी।

उन्होंने उसकी पगार बिना कहे ही बढ़ा दी थी। वे हर त्यौहार में सावित्री और श्रवण को नये कपड़े भी देती थी।

उनकी मालकिन “अरूणा” श्रवण की कापी पुस्तक और फीस भी पटाती थीं।

Kahani-“mere mohan bhaiya”

सावित्री बार-बार हाथ जोड़ती थी कि आप जो पगार देती हैं वही काफी है,

पर इस पुण्य कार्य में वे पीछे नहीं रहती थीं। इस छोटे से गांव सिमरिया में केवल प्रायमरी स्कूल था।

इसके आगे की पढ़ाई करने के लिए एक छोटी सी नदी पार कर, घने जंगल से गुजरते हुए “श्रीपुर” जाना होता था ।

अब सावित्री चिन्तित रहने लगी कि कैसे उसे स्कूल भेजे।

दुबला पतला बड़ी आँखों वाले श्रवण को उस जंगल से अकेले स्कूल कैसे भेजे?

एक दिन काम से छुट्टी मांगकर वह बच्चे को विद्यालय में भर्ती करने गयी।

अपने धोती के छोर से पैसा निकाल उसने गुरूजी को दिया तथा सारी परिस्थति उन्हें बतायी।

बच्चे की आँखों में ज्ञान पिपासा देखकर गुरुदेव ने उसे प्यार से कक्षा में बैठाल लिया।

हेडमास्टर श्री तिवारी ने श्रवण को विद्यालय से पुस्तके दिलवा दी थी।

दिन बीतते रहे और कुछ दिनों में बरसात शुरू हो गयी तीन दिन तक मूसलाधार वर्षा हुई।

सूरज भगवान निकले ही नहीं। जंगल के मार्ग में घना अंधकार छा गया और

रास्ते से बहने वाली दूध धार नदी में भी बाढ़ आ गयी थी। श्रवण विद्यालय के लिए तैयार होकर निकला।

तेज हवा के कारण छाता पलटकर उड़ गया। अब भीजते हुए विद्यालय जा रहा था।

उसे बहुत डर लगने लगा। उसने घर पर ही माँ को बताया था कि उसे जंगल में बहुत डर लगता है।

सांप’ बिच्छू, सियार …

सांप, बिच्छू, सियार आदि तो उसे रोज ही दिख जाते हैं।

माँ ने कहा- “अरे बेटा, वहा तुम्हारे एक बड़े भैया मोहन रहते हैं उन्हें बुला लेना तो वे तुम्हे जंगल पार करा देंगे।

जंगल के बीचों बीच उसे रोना आने लगा। रोते-रोते वह चिल्लाया –

“मोहन भैया मुझे बहुत डर लग रहा है मुझे जंगल पार करा दो ।

वह सिसक रहा था और जोर-जोर से अपने मोहन भैया को बुला रहा था।

बिजली काँध रही थी, उसकी पुकार सुन अंत में पेड़ों के झुरमुट से मोहन भैया आये,

उसकी करुण पुकार सुन उसे गोद में उठा नदी पार करा, जंगल पार कराया और वापस चले गये।

जब वह विद्यालय पहुँचा, उस दिन बहुत ही कम बच्चे स्कूल आये थे।

कक्षा शिक्षक बर्मन आश्चर्यचकित हो गये कि मूसलाधार वर्षा में श्रवण कैसे आ गया।

पूछने पर उसने बताया कि उसके मोहन भैया पहुँचा गये हैं। बर्मन सर बड़े कठोर स्वभाव के थे।

वे उस भोले गरीब श्रवण को किसी न किसी बहाने से फटकारते रहते थे।

ये जहाँ ट्यूशन पढ़ाने जाते उन्हीं छात्रों को बढ़ावा देते थे।

कक्षा के छात्र….

कक्षा के छात्रों की भी आदत उसे तंग करने की होती जा रही थी ।

बर्मन सर के गंदे व्यवहार को देखकर वे सब कहने लगे कि श्रवण झूठ बोलता है,

इसका कोई भाई नहीं है। एक दिन तो शैतान पवन ने श्रवण की कमीज को पीछे से काट दिया

और सब ताली बजाकर हँसने लगे। खिड़की देखो खिड़की” उसकी ड्रेस की कमीज उनने बरबाद कर दी थी।

एक दिन श्रवण के बस्ते में अपनी पुस्तक चुपचाप से उसने छुपा दी

और कक्षा शिक्षक से जाकर शिकायत कर दी कि मेरी साइंस की पुस्तक को किसी ने चुरा लिया है।

गुरूजी ने कक्षा के छात्रों के बस्ते देखे और अंत में पुस्तक “श्रवण के बस्ते में मिली।

कक्षा शिक्षक ने उसे छड़ी से पिटायी की।

आज गुरुजी ने बताया कि कल विद्यालय में पूजन प्रसादी होगी, अतः सभी बच्चे एक- एक लोटा दूध लाना।

छात्रों में बड़ा उत्साह था, सभी दूध लाने को तैयार थे। अब श्रवण चिन्तित हो गया। वह क्या करेगा?

अपनी माँ को उसने शाम को यह बात बतायी और रोने लगा यह कहकर कि वह अब पढ़ने नहीं जावेगा।

माँ ने एक छोटी से लुटैया दी कि इसे लेकर चले जाओ। वहाँ अपने मोहन भैया से माँगकर दूध ले जाना।

Kahani mere mohan bhaiya

कई बार माँ के पूछने पर वह बता चुका था कि मोहन भैया बड़े अच्छे हैं, मुझे जंगल पार करा देते हैं।

आज वही लुटैया (छोटा लोटा) लेकर वह विद्यालय की ओर चला।

आज भी पानी गिर रहा था और वह छितरी ओढ़कर स्कूल जा रहा था।

तभी वहाँ से वन भैंसों का झुण्ड निकला। वह एक झाड़ी में दुबक गया और रोने लगा –

“भैया आओ मुझे डर लग रहा है।”

उसकी सच्चे विश्वास से की गई पुकार सुन उसे दूर से आते भैया की झलक दिखी।

धीरे धीरे वह झलक पास आने लगी। “अरे ये तो भैया ही हैं लिपटकर कहने लगा “जल्दी क्यों नहीं आते भैया?

भैया, मुझे आज स्कूल में दूध ले जाना है, माँ ने यह लुटैया दी है।”

भैया ने उसके बरतन में दूध भर दिया और उसे जंगल पार करवाने लगे।

“देखो श्रवण, मैं तुम्हारी पुकार पर नंगे पैर दौड़ा आया हूँ।”

श्रवण ने आश्चर्य से देखा कि सचमुच ही भैया के पैरों में कांटे गड़े थे जिसे वे कुछ पल ठहरकर निकाल रहे थे।

श्रवण जब दूध लेकर शाला पहुँचा तो बहुत से छात्र पहिले ही पहुँचकर स्टील टंकी में ढेर ढेर सारा दूध लाकर

खाली कर चुके थे। सभी ने बड़ी हेय दृष्टि से श्रवण के छोटे से लोटे को देखा।

श्रवण चुपचाप..

श्रवण चुपचाप खड़ा था। कक्षा शिक्षक ने दूर से ही चिल्लाकर कहा –

“खड़ा खड़ा क्या देख रहा है, डाल दे उसी में श्रवण ने दूध टंकी में डालना शुरू किया तो ,

पूरी टंकी जो अभी आधी भी नहीं भरी थी, दूध से लबालब भर गयी, पर लोटा ज्यों का त्यों भरा था।

उसने गुरूदेव के पास जाकर दूसरे खाली बरतन की मांग की। अब तो चौंकने की बारी गुरुदेव की थी।

उन सभी ने आकर देखा तो सचमुच ही पूरी टंकी भरी हुई थी। दूसरी टंकी लायी गयी।

श्रवण दूध उड़ेल रहा था। टंकी भर गयी और दूध लोटे में अब भी था।

कार्यालय से बड़े गुरूदेव तिवारी जी को बुलाया गया। दूध में चमत्कार को उन्होंने देखा।

अब वे कुछ समझ चुके थे। उन्होंने शाला के शिक्षक ठाकुर को श्रवण की माँ को लिवाने भेजा।

सावित्री बड़ी घबरायी, क्या कर दिया श्रवण ने जो बुलाया गया है।

बड़े गुरुजी श्री तिवारी ने जब सब कुछ बताया तो सुनकर सावित्री भी दंग रह गयी।

उसने बताया कि उसका तो केवल श्रवण ही है।

जंगल में उसके डरने की वजह से उसने उसे मोहन भैया की बात कही थी।

अंत मे…

अंत में सभी श्रवण के साथ जंगल गये। वे श्रवण के साथ जाकर “मोहन भैया” को देखना चाहते थे।

श्रवण के बहुत आवाज लगाने पर श्रवण एवं उसकी माँ को “मोहन भैया” दिखे

और बड़े गुरूदेव को एक तीव्र प्रकाश के रूप में उन्होंने दर्शन दिये।

अन्य शिक्षकों को, जो श्रवण को तंग करते थे, सूनी आँखों ही वापस आना पड़ा।

बच्चो, यदि तुम सच्चे हृदय से किसी भी विपत्ति आने पर प्रभु को पुकारोगे तो वे तुम्हें मदद करने अवश्य आवेंगे।

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