हरतालिका व्रत, तीजा, सौभाग्य प्रदान करने वाला यह व्रत सभी स्त्रियां करतीं है।
देहि सौभाग्य आरोग्यम देहि में परमं सुखम।
रूपम देहि जयम देहि यशो देहि द्विषो जही।।
माता पार्वती की कृपा पाने के लिए उक्त मंत्र का निरन्तर जप करना चाहिए। माता भगवती की पूजन करने से जीवन मे सौभाग्य, आरोग्य, सुख, रूप, यश, सफलता, व सिद्धि सभी प्राप्त होती है।
आज हम आपको हरतालिका व्रत तीजा तीज कब मनाते हैं, पूजा का संकल्प लेने की विधि, हरतालिका की पूजन विधि, पूजन सामग्री, व्रत कथा, विसर्जन विधि सब कुछ विस्तार से बताएंगे। इस व्रत का हरितालिका नाम क्यों पड़ा इसके बारे में भी बताएंगे।
आइए शुरू करते हैं-
हरतालिका व्रत, तीजा, तीज कब मनाते हैं ?
- तीजा, हरतालिका व्रत, तीज भाद्र शुक्ल पक्ष तृतीया को किया जाता है, इसे तीजा भी कहते हैं ।
- इस व्रत को सुहागन स्त्रियां सुहाग की कामना के लिए करती हैं ।
- तथा कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को श्रेष्ठ वर की प्राप्ति की कामना के लिए करती हैं।
- इस दिन शिव पार्वती की बालू से मूर्ति बनाकर पूजा करनी चाहिए।
- यह पूजा तीज के दिन सुबह से प्रारंभ होकर चौथ की सुबह तक चलती है।
पूजा का संकल्प लें!
- आज के दिन सुबह से ही मौनी स्नान करके शंकर पार्वती के समक्ष हाथों में जल, पुष्प ,दूर्वा और सिक्का अक्षत,
- लेकर व्रत का संकल्प इस प्रकार लें की
- “हे शिव पार्वती में आपकी प्रसन्नता हेतु आज के दिन हरतालिका तीज का व्रत का संकल्प लेती हूं ,
- जिसे आप पूर्ण करें एवं मेरे व्रत को स्वीकार करें।
- इस प्रकार संकल्प लेकर पहली पूजा भगवान शिव की और माता पार्वती की सामान्य पूजा कर लेते हैं ।
- मौनी स्नान का मतलब है कि जिस समय प्रकृति पूर्णतया मौन रहती है,
- एक पक्षी भी न बोले उस समय के स्नान अर्थात ब्रह्म मुहूर्त का स्नान किया जाना चाहिए।
तीजा व्रत तीज या हरतालिका की पूजनविधि !
पूजा सामग्री
पूजन सामग्री में भगवान शिव को चढ़ाने के लिये पीला चंदन, सफेद चंदन, हल्दी, अक्षत, इत्र, गुलाल,
भभूति, भांग, बेल पत्री, दूब, सफेद फूल, जनेऊ, धोती, नारियल लें
एवं माता पार्वती को चढ़ाने के लिए हल्दी, कुमकुम, लाल रंग के फूल, अक्षत, दूब, बेल पत्री,
सुहाग की समस्त सामग्री, (सोलह श्रृंगार), महावर से लेकर के सिंदूर तक एवं नए वस्त्र इत्यादि लें।
मंडप या फुलेरा बनाये
आज शिव पार्वती के मिलन का एवं विवाह का दिन भी माना जाता है,
आज के दिन शिव और पार्वती की पूजा के लिए एक मंडप बनाकर के एक चौकी पर शिव पार्वती को विराजित करके
उसके ऊपर एक मंडप फूल पत्तियों से बनाकर सजाया जाता है जिससे फुलेरा भी कहते हैं।
खूब सुंदर ढंग से फूलों से पत्तियों से फुलेरा को सजा कर जैसे शादी का मंडप सजाया जाता है
इस तरह से सजा कर हरतालिका की पूजा की जाती है ।
एवं तरह-तरह के पकवान बनाये जा कर भोग लगाया जाता है ।
हरतालिका तीज या तीजा व्रत कैसे करना चाहिए ?
तीजा के दिन सुबह से ही स्त्रियां संपूर्ण सुहाग के चिन्हों से सुसज्जित होकर के इस व्रत को बड़े भाव से करती हैं।
इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं एवं कठिन साधना के साथ व्रत को पूर्ण करती हैं।
किंतु व्रत सुरक्षा एवं शरीर की क्षमता के अनुसार ही किया जाना चाहिए ।
अन्यथा जो व्रत सुख समृद्धि और ऐश्वर्य देने वाले होते हैं, वही कष्टदायक प्रक्रिया के कारण
अनेकों रोगों को भी जन्म दे देते हैं । अतः व्रत की धारणा अपनी क्षमता अनुसार पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति के साथ करें।
यह सुहाग का पर्व है अतः सौभाग्य की कामना करते हुए इस व्रत को प्रसन्नता पूर्वक करें।
वर्तमान समय के कोरोना काल को देखते हुए अपनी इम्युनिटी को बनाये रखें ।
कई स्थानों में इस व्रत को नींबू पानी, चाय, फलाहार आदि से भी किया जाता है।
हरतालिका तीजा व्रत (तीज) के दिन समस्त सुहाग की सामग्री भी माता पार्वती को चढ़ाएँ
एवं जनेऊ और धोती शिव जी को चढ़ाया जाता है ।
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प्रसाद व भोग
तीजा के दिन सुबह एवं शाम के समय चार प्रहर में 4 पूजा की जाती है।
प्रत्येक पूजा के पश्चात आरती की जाकर केवल फल ककड़ी, सेवफल, कच्चा नारियल आदि चढ़ाए जाते हैं,
एवं सुबह की पूजा में जब व्रत का पारण होता है, तब बेसन से बने हुए पकवान गुजिया, पापड़ी, खाखरी,
खुरमी इत्यादि भोग में चढ़ाए जाते हैं । पार्वतीजी को बेसन से गहने बनाकर भी चढ़ाते हैं।
तीजा या तीज व्रत का नाम हरतालिका क्यों पड़ा ?
सहेली के द्वारा माता पार्वती को हरण करके जंगल में रखा गया था इसीलिए इस व्रत का नाम हरितालिका पड़ा।
हरित याने हरण करना व अलीका माने सहेली,
सहेली के द्वारा हरण करने के कारण इस व्रत का नाम हरितालिका व्रत पड़ा।
आज ही भाद्रपद शुक्ल की तृतीया के दिन भगवान शिव ने पार्वती जी की पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था,
तथा माता पार्वती जी ने आज ही के दिन भगवान शिव को पति रूप में पाया था,
इसीलिए भाद्रपद शुक्ल की तृतीया तिथि को शिव पार्वती का पूजन करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सुहागवती स्त्रियों को अचल सुहाग की प्राप्ति होती है , तथा कुँवारी कन्याओं को श्रेष्ठ वर की प्राप्ति होती है।
हरतालिका तीजा व्रत (तीज) की कथा इस प्रकार है।
हरतालिका व्रत, तीजा, तीज की कथा !
एक बार जब माता पार्वती ने हिमालय पर्वत पर गंगा के किनारे शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए,
घोर तपस्या कर रहीं थी, उसी समय श्री नारद जी ने हिमालय के पास जाकर कहा कि
विष्णु भगवान आपकी कन्या के साथ विवाह करना चाहते हैं , और इस कार्य के लिए मुझे भेजा है,
तब पार्वतीजी के पिता हिमालयराज ने उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया ।
किंतु नारद जी के द्वारा यह एक बनावटी प्रस्ताव था ,अब नारद जी विष्णु जी के पास गए और कहा कि
आपका विवाह हिमालय ने पार्वती जी से तय कर दिया है , अतः इसकी स्वीकृति दें।
इस प्रकार नारद जी के चले जाने के पश्चात पार्वती जी को उनके पिता हिमालय ने बताया कि
तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु के साथ निश्चित कर दिया गया है।
यह बात सुनकर माता पार्वती अत्यंत दुखी हुई और विचलित होकर रोने लगी।
सखी द्वारा पार्वती का हरण
उनका विलाप सुनकर उनकी सहेली ने उनके रोने का कारण पूछा तब माता पार्वती ने विष्णुजी से विवाह संबंध
एवं शिव को पति रूप में पाने के लिए की गई तपस्या के बारे में अपनी सहेली को बताया।
कि मैं भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती हूं और जिसके लिए मैंने तपस्या प्रारंभ की है ।
किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णु जी से निश्चित कर दिया है। यदि तुम मेरी कुछ सहायता कर सकती हो तो करो,
अन्यथा मैं अपने प्राण त्याग दूंगी। तब उनकी सहेली ने पार्वती जी से कहा कि तुम दुखी मत हो,
मैं तुम्हें ऐसे वन में ले चलूंगी जहां तुम्हारे पिता को भी तुम्हारा पता नहीं चल पाएगा।
जहां पर रहकर तुम अपनी तपस्या पूर्ण कर सकोगी।
इस प्रकार माता पार्वती अपनी सखी के साथ एक निर्जन वन में चलीं गई।
इधर पार्वती के पिता हिमालय पार्वती जी को जब घर में नहीं पाए तो बहुत चिंतित हुए,
क्योंकि उन्हें विष्णु से विवाह संबंध में वचन भंग होने की चिंता सता रही थी।
अतः वे सभी पार्वती जी को खोजने में लग गए।
शिव जी द्वारा पार्वती को वरदान
उधर पार्वती जी अपनी सहेली के साथ नदी के किनारे एक गुफा में भगवान शिव के नाम से घोर तपस्या करने लगी।
भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को उपवास रहकर पार्वती ने बालू से शिवलिंग स्थापित करके पूजन किया तथा
रात्रि जागरण भी किया। इस कठिन तप और व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव पार्वती जी के पूजन स्थल पर आए
और पार्वती जी को यह वरदान दिया कि आज के दिन जो भी स्त्री तुम्हारी व मेरी पूजा करेगी उसे तुम्हारी ही तरह
अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होगी, ऐसा कहकर शिवजी ने पार्वतीजी की मांग और इच्छा के अनुसार उनको
अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करने का वरदान देकर वापस कैलाश आ गए ।
दूसरे दिन जब पूजा की समाप्ति कर सुबह समस्त पूजन सामग्री को नदी में विसर्जित करने के लिए,
पार्वती जी गुफा से बाहर आई तब उन्हें वहां हिमालय राज उनके पिता ने देखा और उनसे पूछा बेटी
तुम यहां कैसे आ गई। तब पार्वती जी ने रोते हुए अपनी सारी व्यथा अपने पिता हिमालय राज को बताई कि
वह विष्णु जी से विवाह नहीं करना चाहती एवं शिवजी से विवाह करना चाहती हैं
इसलिए उन्होंने तपस्या की थी और शिव जी ने उन्हें वरदान दिया। यह बातें सुनकर हिमालय राज ने पार्वती जी को
अपने घर लाकर शास्त्रोक्त विधि के अनुसार शिव जी के साथ पार्वती जी का विवाह किया।
विसर्जन विधि
पूजा के बाद शिवजी की आरती व कपूर जलाकर आरती की जाती है ।
इस प्रकार चार प्रहर पूजा और आरती करने के पश्चात दूसरे दिन प्रातः शिव पार्वती की विधिवत पूजा की जाकर,
उनका विसर्जन किया जाता है तथा शुद्ध बहते हुए जल में उक्त बालू के शिव पार्वती को विसर्जित कर दिया जाता है।
अथवा घर पर ही शुद्ध जल में गंगाजल डालकर विसर्जन करें व उक्त जल को घर के बगीचे में डाल दें।
नमस्कार! मैं रेखा दीक्षित एडवोकेट, मैं एडवोकेट ब्लॉगर व युट्यूबर हूं । अपने प्रयास से अपने पाठकों के जीवन की समस्याओं को दूर कर ,जीवन में उत्साह लाकर खुशियां बांटना चाहती हूँ। अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर मैंने अपने ब्लॉक को सजाया संवारा है, जिसमें आपको योग ,धार्मिक, दर्शन, व्रत-त्योहार , महापुरुषों से संबंधित प्रेरक प्रसंग, जीवन दर्शन, स्वास्थ्य , मनोविज्ञान, सामाजिक विकृतियों, सामाजिक कुरीतियां,धार्मिक ग्रंथ, विधि संबंधी, जानकारी, स्वरचित कविताएं एवं रोचक कहानियां एवं स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां उपलब्ध हो सकेंगी । संपर्क करें : info.indiantreasure@gmail.com
सत्य सनातनधर्म की जय
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Jai Parvati Maiyya!!??
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