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गणेश चतुर्थी व्रत पूजनविधि, व्रतकथा व आरती !

गणेश चतुर्थी व्रत पूजनविधि, व्रतकथा व आरती ! तृतीया के दूसरे दिन गणेश चतुर्थी व्रत प्रारंभ हो जाता है। यह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चौथ को किया जाता है ।

गणेश चतुर्थी व्रत पूजनविधि !

पूजनविधि गणेश चतुर्थी व्रत में गणेश जी की मिट्टी की बनी हुई मूर्ति की पूजा की जाती है ।

पूजन के समय में मोदक का भोग लगा कर, हरि दूर्वा के 21 अंकुर लेकर गणेश जी के 10 नामों पर चढ़ाना चाहिए।

जो नाम इस प्रकार हैं-

गणाधिपः, गौरी सुमन् अघनाशक, एकदंत।
ईशपुत्र, सर्वसिद्धिप्रद, विनायकः, भगवन्तः।।


कुमार गुरु, इभवक्त्राय मूषक वाहन संत।
करो कृपा मुझ दास पर पाप के भार अनंत।।

इसके बाद 10 लड्डू ब्राह्मणों को दान देकर 10 लड्डू स्वयं खाने चाहिए।

श्रीगणेश जी की प्रिय वस्तुएं

गणेशजी विघ्नविनाशक, विद्या के दाता है। ये 4 चीजें गणेशजी को चढ़ाना कदापि न भूलें।

1, जो व्यक्ति गणेश जी को दूर्वा चढ़ाता है वह विष्णु के समान एशवर्यशाली हो जाता है।

2, जो 100 मोदक चढ़ाता है उसकी सभी मनोकामना पूरी होती है।

3, इलायची चढ़ाने से दीर्घायु , सुखी व निरोगी होता है।

4, धान की लाई चढ़ाने से यशवान व मेधावान होता है।

गणेश चतुर्थी व्रतकथा

किसी समय भगवान शंकर स्नान हेतु कैलाश पर्वत से भोगवती नामक स्थान पर गए।

उसी समय घर पर पार्वती ने स्नान करते समय अपने मैल से एक पुतला बनाकर सजीव कर दिया ।

उसी का नाम देवी ने गणेश रखा था।

देवी ने गणेश जी को आज्ञा दी थी कि तुम द्वार पर पहरा दो ताकि कोई भी अंदर प्रवेश ना कर सके।

किंतु थोड़ी ही देर में भगवान शंकर जी आ गए और घर के अंदर आना चाहा, श्री गणेश ने उन्हें आने से मना किया,

तो कुपित होकर भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया।

अत्यंत कुपित होकर भगवान शिव अंदर पहुंचे । यह देख माता पार्वती ने शीघ्र ही भोजन के लिए आग्रह किया,

तब दो पात्रों में भोजन लगा देख कर के शिवजी ने पार्वती से पूछा कि यह दूसरा पात्र किसके लिए लगाया है।

तब पार्वती बोली कि बाहर द्वार पर मेरे लाड़ले पुत्र गणेश पहरा दे रहे हैं, यह पात्र उन्हीं के लिए है।

यह सुनकर भगवान शिव ने कहा कि मैंने तो उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी है।

पार्वती बहुत दुखी हुई और पुत्र के पुनर्जीवन के लिए भगवान शिव से आग्रह किया।

देवी का रुदन देख कर , उन को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने ,

तुरंत ही अपने गणों को भेजकर नवजात बच्चे का सर मंगाया ,

जो हाथी के बच्चे का सर उपलब्ध होने पर गणेश जी के धड़ से उक्त हाथी के सिर को जोड़ दिया ,

तब माता पार्वती ने प्रसन्न होकर स्वयं और पति पुत्र के साथ भोजन किया ।

यह घटना भाद्र शुक्ल चतुर्थी को घटित हुई थी, इसी से इसका नाम गणेश चतुर्थी कहा जाता है।

गणेश जी का एक नाम अनन्त भी है अतःइसे अनन्त चतुर्दशी भी कहतें है।

यह नाम के अनुसार अनन्त फलों को देने वाली है।

गणेश चतुर्थी के दिन ना करें चन्द्र दर्शन !

आज चन्द्र दर्शन नही करना चाहिए। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी का चंद्र नहीं देखना चाहिए ।

ऐसी मान्यता है कि आज के दिन चंद्रमा के दर्शन करने से निश्चय ही झूठा कलंक लगता है।

किंतु यदि गलती से उक्त चंद्र दर्शन हो जाता है तब ऐसी स्थिति में निम्न मंत्र का जाप करने से ,

दोष से मुक्ति हो जाती है।

सिंहः प्रसेनमवधित सिंहो जाम्बवता हतः।

सुकुमारक मारोदी स्तव ह्येष: स्यमन्तकः।।

अर्थात- सिंह ने प्रसेन को मारा, जाम्बवान ने सिंह को मारा। अतः हे सुकुमारक (सत्राजित ) मत रोवो।

तुम्हारी स्यमन्तक मणि यह है।

स्यमन्तक मणि की कथा

श्री गणेश चतुर्थी व्रत को चंद्रमा के दर्शन से कलंक निवारण के लिए स्यमन्तक मणि की कथा सुननी चाहिए।

कथा इस प्रकार है – भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका पुरी में सत्राजित ने सूर्य की उपासना से सूर्य के समान

प्रकाशवाली और प्रतिदिन आठ भार सुवर्ण देने वाली ‘स्यमन्तक’ मणि प्राप्त की थी।

उसे एक बार संदेह हुआ कि श्रीकृष्ण इस मणि को छीन लेगें।

इस बात को सोचकर उसने वह ‘स्यमन्तक’ मणि अपने भाई प्रसेन को पहना दी।

एक दिन प्रसेन वन मे शिकार करने गया था, उसी दौरान एक सिंह ने उसे अपना निवाला बना लिया।

इस तरह वह ‘स्यमन्तक’ मणि उस सिंह के पास चली गई। सिंह से वह मणि ‘जाम्बवान’ ने छीन लिया।

इससे श्रीकृष्ण पर यह कलंक लग गया कि ‘स्यमन्तक’ मणि के लोभ से उन्होंने प्रसेन को मार डाला।

अन्तर्यामी श्रीकृष्ण को पता चला कि वह मणि जाम्बवान के पास है, तो वह जाम्बवान की गुफा में चले गए।

उस मणि के लिए दोनों में 21 दिनों तक घोर युद्ध हुआ।श्रीकृष्ण ने जाम्बवान को पराजित कर दिया।

इसके परिणाम स्वरूप श्रीकृष्ण स्यमन्तक मणि और जाम्बवान की पुत्री जाम्बवती प्राप्त हुईं।

यह देख कर सत्राजित ने वह मणि उन्हीं को अर्पण कर दी। इससे श्रीकृष्ण पर लगा कलंक दूर हो गया।

श्री गणेशजी की आरती !

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी। माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी॥ जय गणेश …

पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥ जय गणेश…

अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥ जय गणेश…

‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय गणेश….

दीनन की लाज राखो शंभु सुत वारी । कामना को पूरी करो जग बलिहारी ।।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

अंत में

इस प्रकार विधिवत श्रद्धाभाव से पूजन कर आरती करें।
इस प्रकार समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला व्रत एवम अनन्त फलों को देने वाली यह तिथि अत्यंत कल्याणकारी है ।

तथा भगवान शिव एवं विघ्नहर्ता श्रीगणेश दोनों शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं। अतः जो भी श्रद्धा व भक्ति से भगवान की पूजन करता है उसपर शिव परिवार की पूर्ण कृपादृष्टि रहती है।

http://Indiantreasure. in

https://youtu.be/ZYxdhMAF4F0

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