Total Post View :- 513

Daan: आदर्श दान की महत्ता – श्रीगणात्रा दयालजी लक्ष्मीदास

Daan: आदर्श दान (adersh daan) की महत्ता – श्रीगणात्रा दयालजी लक्ष्मीदास – जो दान (daan) दिखावे के लिए दिया जाता है, वह आदर्श दान (adersh daan) नहीं है! जो दान (daan) कीर्ति के लोभ से दिया जाता है वह आदर्श दान नहीं है ! जो दान (daan) बहुत आडंबर पूर्वक दिया जाता है वह आदर्श दान (adersh daan) नहीं है !

तो फिर आदर्श दान (Adersh daan) किसे कहते हैं ?

आदर्श दान (adersh daan) वह है जो गुप्त रूप से दिया गया हो, दया की सच्ची प्रेरणा से दिया गया हो और जिसमें यथार्थत: त्याग हो। ऐसा आदर्श दान (adersh daan) अमूल्य है । ऐसे दान (daan) की महत्ता सोची ही नहीं जा सकती।

आज हम आपको श्रीगणात्रा दयालजी लक्ष्मी दास द्वारा लिखी गई एक कहानी बताएंगे । जिसमें दान के महत्व (importance of daan ) को अच्छी तरह समझाया गया है । कहानी थोड़ी लंबी जरूर है, लेकिन अत्यंत प्रेरणादाई है । जो आपके जीवन को निश्चित रूप से एक अमूल्य उपहार देगी। अतः इसे ध्यान से पढ़ें

1- एक करोड़पति सेठ थे। उनका नाम था बिहारी लाल जी । वे नगर सेठ थे । राजा के प्रमुख सहायक थे और बड़े दान वीर (daan veer) थे । उनके यहां आकर कोई भी याचक खाली नहीं लौटा था ।

नगर सेठ बिहारी लाल जी की पत्नी यमुनाबाई भी बड़ी पतिव्रता थी। वह सदा पति के अनुकूल ही व्यवहार करती थी।

प्रारब्ध बड़ा बलवान है। सबके दिन सदा एक जैसे नहीं रहते । नगर सेठ बिहारी लाल जी को अपने व्यापार में प्रचुर घाटा होने लगा । जिनको उन्होंने ऋण दे रखा था, उन्होंने वह धन लौटाया नहीं । बहुत सा कर्ज हो गया ।

अब बिहारी लाल जी ने देखा कि नगर में रहने से दरिद्रता के कारण अपमान सहना होगा ।उन्होंने अपने घर का सब सामान तथा स्त्री के आभूषण भी चुपचाप बेच दिए और जिन लोगों का ऋण चुकाना था, उनका ऋण चुका दिया।

उनका बड़ा भारी मकान भी ऋण चुकाने में दूसरे को लिख दिया गया । एक दिन रात को पत्नी के साथ वे चुपचाप नगर से निकले और वहां से दूर जाकर, उस गांव में रहने लगे जहां उनके पूर्वजों की भूमि थी । वहां से व्यापार के लिए आकर उनके पितामह नगर में बस गए थे ।

गांव में जाकर बिहारी लाल जी बीमार पड़ गये। बहुत चिकित्सा करने पर भी उनकी बीमारी बढ़ती ही गई । जो थोड़ा बहुत सामान नगर से वे अपने साथ लाए थे, वह भी उनकी चिकित्सा में समाप्त हो गया।

अब बेचारी सेठानी यमुनाबाई गांव में लोगों के घर कूटने पीसने का काम करने लगी । जो कुछ मजदूरी से मिल जाता था, उसी से वह अपने बीमार पति को पथ्य देने की व्यवस्था करती थी और स्वयं भी रूखा सूखा खाकर दिन काटती थी।

एक दिन जो नौकरानियों से घिरी, बड़े भारी महल में आभूषणों से लदी रहती थी, भाग्य के फेर से उसे अब स्वयं मजदूरनी बनना पड़ा था। ऊपर से यह विपत्ति थी कि, उसके पति का रोग असाध्य होता जा रहा था । वह अब चारपाई से उठ भी नहीं पाते थे।

2- उस गांव में एक ब्राह्मण एक दिन आए। ब्राम्हण गरीब थे। उनकी कन्या विवाह योग्य हो गई थी। वह गांव के लोगों से सहायता मांगने आए थे।

कुछ लोग दुष्ट प्रकृति के होते हैं। दूसरों की दयनीय दशा का उपहास करना उन्हें अच्छा लगता है।

ऐसे ही कुछ लोग ब्राम्हण को पहले मिल गए। उन लोगों ने ब्राह्मण से कहा हमारे गांव में सेठ बिहारी लाल जी ही सबसे बड़े दानी है। आप उनके घर जाएं।

ब्राम्हण बिहारी लाल जी का घर पूछते वहां पहुंचे । चारपाई पर विवश पड़े रोगी बिहारी लाल जी ने ब्राह्मण को प्रणाम किया। ब्राह्मण के घर आने का कारण जानकर उनके नेत्रों में आंसू आ गए।

वे समझ गए कि उनसे ईर्ष्या करने वाले उनकी जाति के लोगों ने उनका उपहास किया है। लेकिन घर पर आया ब्राम्हण निराश होकर चला जाए, यह बड़े दुख की बात थी ।

बिहारी लाल जी ने ब्राह्मण से थोड़ी देर बैठने की प्रार्थना की और कहा सेठानी को आने दीजिए ! ब्राह्मण बैठ गए ।

थोड़ी देर में सेठानी आई। ब्राम्हण बिहारी लाल जी के घर की दरिद्रता देख कर ही समझ गए थे कि उन्हें दुष्ट लोगों ने यहां भेजा है।

जब उन्होंने फटे मेले वस्त्र पहने, बाल बिखेरे, मजदूरनी के वेश में सेठानी को देखा, तो उनको बड़ा दुख हुआ। ऐसे गरीब से कुछ मांगना तो बड़ी निर्दयता का काम है । यह सोच कर वे उठकर चलने को तैयार हो गए ।

पतिव्रता सेठानी यमुनाबाई ने अपने घर में ब्राह्मण को बैठे देखा। पति की ओर देखा तो उनकी आंखों में आंसू भरे थे। वे समझ गईं कि ब्राह्मण कुछ मांगने आए हैं।

सेठानी के दोनों हाथों मे सोने की दो चूड़ियां सौभाग्य चिह्न के रूप में बच गई थी। झट उस देवी ने वे चूड़ियां निकालकर ब्राह्मण के हाथ पर धर दीं।

ब्राह्मण ने कहा –

‘ बेटी ! मैं तेरी यह चूड़ियां नहीं लूंगा । मैं तुम लोगों पर प्रसन्न हूं। लेकिन सेठ बिहारी लाल जी तथा यमुना बाई ने ब्राह्मण से बहुत आग्रह किया चूड़ियां स्वीकार करने के लिए।

3 ब्राह्मण ने उनके आग्रह को मान कर चूड़ियाँ स्वीकार कर ली और हृदय से हजारों सच्चे आशीर्वाद देते हुए चले गए। चूड़ियों को बेचकर ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह सानंद कर दिया।

ब्राह्मण देवता जिस दिन से सेठानी यमुनाबाई की चूड़ियों का दान स्वीकार करके गए, उसी दिन से सेठ बिहारी लाल की दशा सुधरने लगी। उनका रोग धीरे-धीरे अच्छा होने लगा । थोड़े दिनों में वह घूमने फिरने योग्य हो गए।

3- इतने समय में नगर के बूढ़े राजा परलोक वासी हो चुके थे। राजकुमार राजा हो गए थे । उनकी छोटी बहन को कोई योगी मिले थे । उन्होंने दो यंत्र राजकुमारी को दिए थे।

उन्हें यंत्रों में एक यंत्र यह बताता था कि किसके पास कितने पुण्य है। दूसरे यंत्र के दर्पण में कोई भी अपने पुण्य देख सकता था। राजकुमारी ने पूरे राज्य में घोषणा करा दी थी, कि जो कोई अपने पुण्य बेचना चाहे, उसे वे खरीद लेंगीं।

लाला बिहारी लाल जी ने भी यह घोषणा सुनी। उन्होंने सोचा कि नगर में अब इतने दिनों बाद उन्हें कौन पहचानेगा। बूढ़े राजा भी नहीं है। अतः नगर जाकर अपना कुछ पुण्य बेच देना चाहिए।

पतिव्रता पत्नी के भरण-पोषण का प्रबंध करना मेरा पहला कर्तव्य है । अपने मन की बात उन्होंने पत्नी से कहीं। पत्नी ने पहले तो पुण्य बेचने की बात स्वीकार नहीं की, किंतु पति का हठ देखकर वह चुप हो गई ।

पति के काम में बाधा देना उसे ठीक नहीं लगा । उसने थोड़ा सा सत्तू जो घर में था पति के वस्त्रों में बांध दिया, मार्ग में भोजन करने के लिए ।

सेठ बिहारी लाल जी सत्तू लेकर घर से चल पड़े । पैदल चलते चलते दोपहर हो गई। उन्हें भूख लगी। एक स्थान पर तालाब के पास वृक्ष के नीचे बैठ गए। कुछ देर आराम करके उन्होंने तालाब में स्नान किया।

सत्तू को पानी में घोलकर वह जैसे ही खाने बैठे, एक कुत्तिया कर उनके पास बैठ गई। कुत्तिया ने वहीं पास ही नाले में बच्चे दिए थे । वह बहुत भूखी जान पड़ती थी । बिहारी लाल जी को कुत्तिया पर दया आ गई ।

उनके पास बहुत थोड़ा सत्तू था । उन्हें बड़ी भूख भी लगी थी, पर दयावश वह सब सत्तू उन्होंने कुत्तिया को दे दिया और स्वयं केवल पानी पीकर आगे चल पड़े।

4- नगर में पहुंचकर बिहारी लाल जी सीधे राजमहल गए। पुराने बूढ़े सैनिक और चौकीदार उन्हें पहचानते थी। राजकुमारी की आज्ञा थी कि कोई पुण्य बेचने आए तो उसे उनके पास पहुंचा दिया जाए।

बिहारी लाल जी को सेवकों ने राजकुमारी के पास पहुंचा दिया। राजकुमारी ने उनके सामने योगी का दिया एक यंत्र रख कर कहा- आप अपने जो पुण्य बेचना चाहें, उनको मन में सोच कर इस यंत्र पर हाथ रखें।’

बिहारी लाल जी ने कुछ पुण्यों को सोचकर यंत्र पर हाथ रखा; किंतु यंत्र ने तो एक भी पुण्य नहीं बताया। उन्होंने और पुण्य सोचे, यंत्र फिर भी जैसे का तैसा ही रहा। बिहारी लाल जी ने अपने सब पुण्य सोच लिए, किंतु यंत्र हिला तक नहीं।

वे निराश हो गए। उनका मुख उदास हो गया। यंत्र पर से उन्होंने हाथ हटा लिया। वे सोचने लगे ‘इतने दान पुण्य ( daan punya) किए, वे सब क्या हुए !

राजकुमारी ने उन्हें उदास होते देखकर कहा- आप इस दूसरे यंत्र के दर्पण में देखिए। इसमें आपको अपने सच्चे पुण्य दिखाई पड़ेंगे। जो दान पुण्य (daan-punya) कीर्ति के लोभ से किए जाते हैं, वह पुण्य नहीं है। उनसे कीर्ति मिल जाती है। वह पुण्य इस यंत्र के द्वारा पुण्य में नहीं गिने जाते।

5- दूसरे यंत्र के दर्पण में बिहारी लाल जी को ब्राह्मण को चूड़ियां देती अपनी पत्नी दिखाई पड़ी और उनका दिया सत्तू चाटती कुत्तिया दिखाई पड़ी।

राजकुमारी भी दर्पण की ओर देख रही थी । उसने कहा- ‘ये दोनों आपके सच्चे पुण्य हैं। आप इन्हें बेचें तो मैं दो लाख सोने की मोहरे दूंगी।’

लाला बिहारी लाल जी को अब दान (daan) के सच्चे रूप का ज्ञान हुआ। उन्होंने कहा यह दोनों पुण्य मैं नहीं बेचूंगा।

राजकुमारी ने दस लाख मोहरें देने को कहा। बिहारीलाल बोले राजकुमारी जी यह पुण्य मैंने किसी इच्छा से नहीं किए हैं। इन्हें मैं 10 करोड़ या 10 अरब मुहरों में भी नहीं बेचूंगा।

6- इसी समय राजकुमारी के भाई राजा वहां आ गए। उन्होंने बिहारी लाल जी को पहचान लिया। दे बोले- ‘नगरसेठजी! मैं आपको बहुत दिनों से ढूंढ रहा था।

आपने मेरे पिता के साथ बहुत उपकार किए हैं। मुझे आपने गोद में खिलाया है। कठिन अवसर पर आपने राज्य को दस लाख मुहरे ऋण में दी थी। आपका ऋण ब्याज के साथ राज्य के कोष में जमा है ।

अब आप कृपा करके उसे ले लें और नगर में आ कर रहें। आप तो मेरे अच्छे नगर सेठ चाचा हैं। मैं आपको अब यहां से जाने नहीं दूंगा ।’

सेठ बिहारी लाल जी फिर नगर सेठ हो गए। उनकी पतिव्रता पत्नी अपने बड़े भवन में फिर आ गई। लेकिन अब नगर सेठ जी पहले के समान धूमधाम से दान (daan) नहीं करते।

वे गरीबों के घर की दशा का पता लगाते रहते हैं ।और इस प्रकार उनके घर सहायता भेजते रहते हैं, की सहायता कौन भेजता है, इसका पता सहायता पाने वालों को भी नहीं लगता!

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!