Baal kahaniyan in hindi ; झारे आई, बहारे आई, मैं न जाऊँ !! श्रीमती मनोरमा दीक्षित, मण्डला ! बालमन को संस्कृति, संस्कार और आदर्शों से जोड़ने में बाल कहानियों का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान होता है।
माँ की गोद में सुनी ये कहानियाँ जीवन भर मन मस्तिष्क पर छाई रहती हैं। बाल और किशोर मन को संस्कार पथ पर गतिशील बनाने वरिष्ठ सृजन साधिका, चिंतन साधना से जुड़ी विदुषी श्रीमती मनोरमा दीक्षित जी ने “कथालोक” में ऐसी ही प्रेरणास्पद कहानियाँ सृजित की हैं, जिनको पढ़ने-सुनने से मन में सुंदर विचार सृजित होने लगते हैं।
अतः अवश्य पढ़ें व बच्चों को सुनाए जिससे उनका सर्वांगीण विकास हो सके। आज हम आपको Baal kahaniyan in hindi की 26 कहानियों की इस कड़ी में अगली कहानी बताते हैं जिसका शीर्षक है – झारे आई, बहारे आई, मैं न जाऊँ !!
Bal kahaniyan in hindi
झारे आई, बहारे आई, मैं न जाऊँ !!
सफेद ऊन के गोले सी सुन्दर गुदगुदी चुनिया गीता को बहुत प्यारी थी।
दूध में डूबे रोटी के छोटे टुकड़े ही चुनिया का प्रिय भोजन था।
गीता कभी-कभी उसे ककडी, टमाटर, मटर, गोभी के छोटे टुकड़े भी खिलाती थी।
सब्जी में डूबे रोटी के स्वादिष्ट टुकड़े भी “चुनिया” बड़े चाव से खाती थी।
नन्हीं गीता स्कूल से आते ही, बस्ता एक ओर पटक सीधे कोने में डुबकी “चुनिया” को हथेली में रख घर भर में घूमती
उसकी इस आदत से उसकी माँ शान्ति देवी भी बड़ी चिन्तित रहने लगी।
उसका भाई उदय और बहन सुशीला भी परेशान रहते थे “चुनिया’ की शैतानी से।
वह मौका पाते ही पुस्तक की आलमारी में घुस उनकी कापी किताबों को कुतर देती।
अब तो सभी ने उसे घर से भगाने की ठान ली तथा उन दोनों ने माँ से शिकायत की।
माँ भी गीता की इस सनक से परेशान हो गयी थी। उसकी पढ़ाई की ओर से लापरवाही से वे चिन्तित थीं।
आखिर उन्होंने एक पिंजरे में रख “चुनिया को कहीं छुपा दिया। वे जानती थी कि “चुनिया” गीता की जान है।
एक मूक जीव नन्हीं गीता का खिलौना थी। गीता घर में पले “करन” मिट्ठू को भी बिही के टुकड़े और मिर्च खिलाती थी।
आज जब वह …
आज जब वह विद्यालय से आयी तो घर का कोना-कोना छान मारने पर भी उसे “चुनिया” नहीं दिखी।
फिर क्या था, गीता का रोना -गाना शुरू हो गया। धीरे-धीरे शाम हो चली पर आज गीता ने न तो चाय पी थी
और न ही भोजन लिया। माँ ने उसे दुलार से गोद में बिठा अपने हाथों से खाना खिलाने का प्रयास किया
परन्तु यह क्या? कुछ देर बाद वह रोते-रोते जमीन पर सो गयी। उसकी यह हालत देख माँ बहुत दुखी हुई।
उसे उठाकर गोद में सुलाया। आधी रात के बाद उनकी नींद खुली तो क्या देखती है कि गीता लाइट जलाकर पूरे घर में
चुनिया चुनिया चिल्लाती घूम रही थी। दूसरे दिन वह न तो स्कूल गयी और न ही कुछ खाया पिया।
आज उसका माथा तप रहा था, और गुलाब सा खिला रहने वाले मुख में आँसू की लकीरें स्पष्ट दिख रही थीं।
शाम को जब पिताजी दौरे से लौटे तो गीता के बुखार से तपती हालत को देखकर उसका कारण जानना चाहा।
उन्हें इसका कारण जानकर बड़ी हैरानी हुई।
आखिर उसकी माँ ने कोने में जाकर पिंजरा खोल दिया पर “चुनिया” टस से मस नहीं हुई।
वह कहने लगी…
वह कहने लगी- “झारे आई, बहारे आई, मै ना जाऊँ” एक एक करके गीता के भाई-बहन भी उसे मनाने गये
पर चुनिया” पिंजड़े से बाहर जाने को तैयार न थी।आखिर हार कर सभी ने गीता को उसे मनाने भेजा।
बुखार से तपते शरीर में भी डगमगाते कदम से गीता “चुनिया” को अपनी हथेली में बैठा ले आयी।
अब चुनिया और गीता दोनों ही अपना भोजन कर रहे थे।अब गीता पढ़ने में ध्यान देने लगी थी।
चुनिया ने कापी पुस्तक कपड़े आदि कुतरना बन्द कर दिया था।
अब घर के सभी सदस्य चुनिया के खाने पीने की फिकर करने लगे थे। किसी ने सच ही कहा है कि
स्नेह प्रेम का भाव सिर्फ मानव में नहीं बल्कि अबोध जीव-जन्तु जो मानव समाज का ही एक हिस्सा हैं ,
उनमें भी होता है। काश कि सभी जीव -जन्तु मिलजुलकर रहें तो यह धरा, यह प्रकृति स्वर्ग बन सकती है।
Baal kahaniyan in hindi ; झारे आई, बहारे आई, मैं न जाऊँ !! श्रीमती मनोरमा दीक्षित मण्डला !!
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