Baal kahaniyan Diya bhar pani ; श्रीमती मनोरमा दीक्षित, मण्डला ! बाल-कहानियाँ साहित्य लेखन का प्रमुख विषय होना चाहिए। क्योंकि कथा-कहानियाँ बच्चों को संस्कारित और प्रेरित कर उनके भविष्य निर्माण में सहायक होती है। जीवन से जुड़े साहसिक, आध्यात्मिक कथानकों पर आधारित कहानियाँ प्रेरक होती हैं।
राजा-रानियों की कहानियाँ बेताल कथाएँ, भूत-प्रेतों की, जादूगरों, ठगों की कहानियाँ प्राचीनकाल में बड़े-बूढे गांव की चौपालों में बैठकर सुनाते थे और हर आयु वर्ग के लोग इनको सुनते थे। कुछ कहानियाँ अलिखित होती थीं. जो परम्परागत रूप से प्रचलित हुई हैं।आज हम आपको श्रीमती मनोरमा दीक्षित जी द्वारा लिखित कथासंग्रह कथालोक की एक Baal kahaaniyan Diya bhar pani बताएंगे।
Baal kahaniyan Diya bhar pani
मगध देश के राजा की राजकुमारी ‘विजया’ अत्यंत रूपवती थी। ‘विजया’ अब सवानी हो चुकी थी।
अतः महाराज सत्यव्रत को उसके विवाह की चिन्ता हुई। महाराज इसलिए भी ज्यादा चिन्तित थे।
क्योंकि “विजया” बचपन से ही बड़ी जिददी थी।
आखिर राजा ने एक दिन मन की बात अपनी दुलारी बेटी से बतायी।
उत्तर में लाड़ली विजया ने कहा कि वह उसी नौजवान से विवाह करेगी जो एक ‘दिया”भर पानी में नहाकर बतायेगा।
उसकी इस विचित्र शर्त को सुनकर वे पति-पत्नी हैरान रह गये।
आसपास के सभी राज्यों में यह ढींडोरा पिटवा दिया गया कि जो राजकुमार उसकी शर्त को पूरा करेगा,उसका विवाह “विजया” से होगा एवं उसे आधा राज्य भी दिया जावेगा।
जिस मार्ग से राजकुमारों को आना था वहाँ खूब कीचड़ कर दिया गया।कई राजकुमारों ने अपना भाग्य आजमाना चाहा और वे आये भी ,
किन्तु कई तो उस फिसलन भरे मार्ग में रिपटकर कीचड़ से सन गये।
कुछ तो कीचड़ में फंसकर “दलदल” में घुसने लगे। अंतत जैसे तैसे एक: दूसरे का सहारा ले वे बाहर निकले
और “जान बची तो लाखों पाय’ सोचकर वापस चले गये।
राजकुमारी महल की छत से यह नजारा देखकर मुस्कुरा रही थी।
कुछ दिन तो सन्नाटा रहा परन्तु आज तो फिर एक बाका नौजवान तलवार रखकर आगे बढ़ता दिखा।उसने बड़े ही सधे कदमों से तलवार के सहारे कीचड़ पार किया।
उसने अपनी पोशाक को कुछ इस तरह व्यवस्थित कर लिया था कि
उसके कपड़ों में कीचड़ का एक छींटा भी नहीं पड़ा परन्तु उसकी जंघाओं में कीचड़ लगा हुआ था।
अब वह दलदल से सही सलामत निकल आया था। पास ही एक पुलिया के पास धूप में बैठ गया ।
एक दो घण्टे में ….
एक दो घण्टे में उसके पैरों का सारा कीचड़ सूखकर झड़ गया था।
उसके पैरों की सारी मिट्टी झड़ गयी थी परन्तु केवल निशान बाकी थे।
राजकुमारी महल की छत से इस बाँके नौजवान की चतुराई की निरख रही थी।
उसने राजा द्वारा दिये गये “दिया भर पानी में कुछ गुलाबजल डाल उसमें कपास को डुबा उसे निचोड़कर,
पहले अपने मुख और हाथों को स्वच्छ और सुवासित किया। अब बारी थी पेट पीठ और पैरों को साफ करने की ,
पुन: रूई को दिये के जल में भिगो, पेट और पीठ में फेरा अभी तो पानी काफी बचा था।
अब वह कपास को भिगा दोनों जाघों पैरों पंजा में फेर रहा था। वे पूर्णत स्वच्छ हो गये थे।
अभी दिया में गुलाब की खुशबू वाला जल बचा था। अत: उसे अपने बालों में फेरकर बचे पानी से अपनी संपूर्ण कमर को
स्वच्छ कर उसने कंघी की। अपने वस्त्रों को व्यवस्थित कर जब मुस्कुराते हुए वह राजमहल में पहुँचा तो ,
उसकी बुद्धिमानी एवं तात्कालिक सूझबूझ से अत्यंत प्रभावित हो राजकुमारी विजया ने,
उसे अपना जीवनसाथी बनाना स्वीकार किया। मजे की बात तो यह थी कि “दिया” में अभी भी पानी शेष था।
आज विश्व पानी की कमी से जूझ रहा है अत: आज ऐसे सोचवाले. युवा पीढ़ी की जरूरत है।
बच्चो तुम भी इस पर विचार करना और पानी की बर्बादी को रोकने का विचार जन-जन में फैलाना।
Baal kahaniyan Diya bhar pani ; Shrimati Manorama Dixit Mandla.
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