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Baal kahani bhukdu bhoon; Smt. Manorama Dixit,

Baal kahani bhukdu bhoon ; Smt. Manorama Dixit, कहानी एक स्वस्थ मनोरंजन होने के साथ साथ जीवन के सबक भी सिखाती है। बालमन पर बड़ी बड़ी बातों का ज्यादा बोझ न डालते हुए छोटी छोटी कहानियां सुनाते हुए उनका बौध्दिक स्तर बढ़ाया जा सकता है। इससे बच्चों का नैसर्गिक विकास होता है साथ ही सूझबूझ भी पैदा होती है।

जिससे वे कठिन कार्यों को भी आसानी से कर लेते हैं। उनके भीतर नैतिकता जन्म लेती है, सही गलत का निर्णय लेने की क्षमता आती है। अतः अवश्य पढ़ें व बच्चों को सुनाएं। आज आपको बताते हैं Baal kahani in hindi- bhukdu bhoon ; Smt. Manorama Dixit,

Baal kahani bhukdu bhoon भूकडू भूं !

पुराने समय की बात है। विध्याचल की ढलान में बसा ग्राम राम्हेपुरा में अधिकांश परिवार अहीरों के थे ।

जिनका जीवन गाय भैंस पालन कर दूध बेचकर तथा खेती से चलता था।

सात-आठ सौ की आबादी में दो परिवार नाई, तीन-चार किराना दुकान तीन धोबी परिवार और

सूपा टोकनी बनाने वाला दो परिवार बसोरों के रहते थे। गांव में दूध-दही की नदियां बहती थी.

एक तालाब में सिंघाड़ा लगाये गये थे, दूसरे में मछलियां पली थी। हरे-भरे खेतों में फसल लहलहाती थी।

बस कमी थी तो केवल शिक्षा की। इस छोटे से गांव में न तो कोई स्कूल था और न ही पढ़े लिखे लोग।

पास के शहर से पढ़कर आये एक पंडित जी यहां सपरिवार रह रहे । पंडित दीनदयाल ज्यादा पढ़े लिखे तो न थे ,

परन्तु चालाक बहुत थे। बहुधा कहावतें कहकर शर्त पंडितों को हरा,उनकी पोथी पत्रा और जेब सभी लूट लिया करते ।

धीरे धीरे…

धीरे-धीरे यह खबर पास के कस्बे में फैल गयी। वहां बनारस से पढ़े पंडित मुरलीधर ने जब यह खबर सुनी तो

वेदपुराण में पारंगत युवा पंडित राम्हेपुर आ पहुंचे आव-भगत के पश्चात पंडित दीनदयाल ने अपनी शर्त रखी,

“भुक्डू भू” का अर्थ समझाओ ? इस प्रश्न को सुनकर युवा पंडित जो केवल किताबी ज्ञान रखते थे को पसीना छूटगया

उन्होंने ऐसा विचित्र शब्द तो कभी नहीं सुना था। उन्होंने जो सिर झुकाया तो उनकी दशा से प्रसन्न

पंडित दीनदयाल ने उनकी पोथी पत्रा और जेब खाली करा ली। पंडित मुरलीधर अपना सा मुह लेकर लौट आये ।

पराजित भाई की हालत देख उनके छोटे भाई धरनीधर ने बदला लेने की ठानी और दो दिनों बाद राम्हेपुर जा पहुंचा।

अच्छा शिकार फंसा सोचकर पंडित दीनदयाल जी ने फिर कहा “भुक्डू भू” का अर्थ बताओ?

धरनीधर बोला- “आपका तो शब्द ही अधूरा है। दीनदयाल बोले- अच्छा तो तुम्ही बताओ।

वे बोले- “पहिले सर्रा पीछे सूं, उसके पीछे भुक्डू भूं”। सो कैसे? घबराये से दीनदयाल बोले ।

‘अरे पंडित जी जब भैंस दुही जाती है तो पहिले सर्र- सर्र की आवाज होती है,

बरतन में कुछ दूध इकट्ठा की ध्वनि होती है, जब दूध की मात्रा काफी हो जाती है तब भुक्डू मूं की आवाज होती है।

Baal kahani in hindi ; इस सवाल जवाब को..

इस सवाल जवाब को सुनने गांव की भारी भीड़ आयी थी, उनमें से ज्यादा अहीर लोग थे।

धरनीधर ने उनकी ओर देखकर कहा- “क्यों भाई. मैं जो कह रहा हू ठीक है?” भीड़ ने जोर से चिल्लाकर कहा- हाँ।

अब तो पंडित धरनीधर ने मैदान मार लिया था और लुटने की बारी दीनदयाल की थी।

उनकी विद्वता को सुनकर सारी भीड़ नये पंडित जी के चरणों में आ गिरी।

पोथी पत्रा और रूपया पैसा ले जाते जाते विद्वान पंडित जी ने गांव के लोगों को घिसटन पर्वी के विषय में सभी

जजमानों को आशीर्वाद देते हुए बताया। उन्होंने कहा कि आज घिसटन पर्वी है,

अतः तुम्हारे गुरूदेव का एक-एक बाल जो नोंचकर अपनी तिजोरी में रख लेगा उसे कभी धन की कमी न होगी।

वे सब गांव वाले पंडित दीनदयाल के बाल तोड़कर ले जाने लगे।

इस खींचातानी में धूर्त पंडित के सिर से खून बहने लगा। वे सबको मना करते रहे परन्तु गांव वालों ने न सुनी और

लगे उनके बाल नोचने। अन्त में वे जोर-जोर से रोने लगे,

तब हल्ला सुनकर वापिस लौट आये पंडित धरनीधर ने उन्हें बचाया।

बच्चों दूसरों को ठगने, अपमान करने वाले को कभी न कभी इसका सामना अवश्य करना पड़ता है।

तभी तो कहा गया है कि जो दूसरों के लिये गड्ढा खोदता है वह स्वयं ही पहिले उसमें गिरता है।

उस दिन से पंडित दीनदयाल ने ठगी का यह धंधा सदा के लिये छोड़ दिया। बच्चो तुम कभी ऐसा न करना।

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