अजामिल की कहानी हिंदी में - श्रीमद्भागवत पुराण छठा स्कंध Total Post View :- 2894

अजामिल की कहानी हिंदी में – श्रीमद्भागवत पुराण छठा स्कंध

अजामिल की कहानी हिंदी में – श्रीमद्भागवत पुराण के छठे स्कंध के प्रथम अध्याय में अजामिल की कहानी बताई गई है।जिसमें श्री शुकदेवजी राजा परीक्षित को यमदूतों और देवदूतों के संवाद (बातचीत) को बता रहें हैं ।

जो व्यक्ति इसे पढ़ता, सुनता व दुसरो को सुनाता है, वह कभी यमलोक नहीं जाता है। आज हम आपको श्रीमद्भागवत के छठे स्कंध में लिखित अजामिल की कहानी बताने जा रहे हैं।

अजामिल की कहानी हिंदी में

श्री शुकदेव जी ने राजा परीक्षित से कहा –

कि मनुष्य मन वाणी और शरीर से जो पाप करता है। यदि वह उन पापों का इसी जन्म में प्रायश्चित नहीं करता, तो मरने के बाद उसे अवश्य ही इन भयंकर यातनापूर्ण नर्क में जाना पड़ता है।

राजा परीक्षित ने कहा-

कि मनुष्य कभी तो प्रायश्चित के द्वारा पापों से छुटकारा पा लेता है, और कभी फिर उन्हें ही करने लगता है ।

तब श्रीशुकदेव जी ने कहा –

कि जो पुरुष केवल सुपथ्य का ही सेवन करता है उसे रोग अपने वश में नहीं कर सकते। वैसे ही परीक्षित! जो पुरुष नियमों का पालन करता है, वह धीरे-धीरे पाप वासनाओं से मुक्त हो, कल्याण प्रद तत्व ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ होता है।

भगवान के शरण में रहने वाले भक्तजन विरले होते हैं । केवल भक्ति के द्वारा अपने सारे पापों को उसी प्रकार भस्म कर देते हैं जैसे सूर्य कोहरे को।

श्री शुकदेव जी ने कहा

कि जैसे कि परीक्षित! शराब से भरे घड़े को नदियां पवित्र नहीं कर सकती, वैसे ही बड़े-बड़े प्रायश्चित बार-बार किए जाने पर भी भगवत विमुख मनुष्य को पवित्र करने में असमर्थ है ।इस विषय में महात्मा लोग एक प्राचीन इतिहास कथा कहा करते हैं।

उसमें भगवान विष्णु और यमराज के दूतों का संवाद है। अजामिल की कथा इस प्रकार है।

कान्यकुब्ज नगर (कन्नौज) में एक दासी पति ब्राह्मण रहता था। उसका नाम था – अजामिल ! दासी के संसर्ग से दूषित होने के कारण उसका सदाचार नष्ट हो चुका था । वह पतित कभी बटोहिया को बांधकर उन्हें लूट लेता और कभी लोगों को जुए के चलते हरा देता।

किसी का धन धोखाधड़ी से ले लेता तो किसी का चुरा लेता। इस प्रकार अत्यंत निंदनीय वृत्ति का आश्रय लेकर वह अपने कुटुम्ब का पालन करता था और दूसरे ।

प्राणियों को बहुत ही सताया करता था और इसी प्रकार वह वहां रहकर दासी के बच्चों का लालन पालन करता रहा। इस प्रकार उसकी आयु का बहुत बड़ा भाग 88 वर्ष बीत गया ।अजामिल के 10 पुत्र थे। उनमें सबसे छोटे का नाम नारायण था।

मां-बाप उसे बहुत प्यार करते थे । वृद्ध अजामिल ने मोह के कारण अपना संपूर्ण ह्रदय अपने बच्चे नारायण को सौंप दिया था। वह अपने बच्चे की तोतली बोली सुन सुनकर तथा बाल सुलभ खेल देखकर फुला नहीं समाता था।

अजामिल पुत्र के मोह में बंध गया था। जब वह खाता तब उसे भी खिलाता, पानी पीता तो उसे भी पिलाता। इस प्रकार मूढ़ हो गया था। उसे इस बात का पता ही ना चला कि मृत्यु मेरे सिर पर आ पहुंची है।

वह मूर्ख इसी प्रकार अपना जीवन बिता रहा था, कि मृत्यु का समय आ पहुंचा । (अजामिल की कहानी हिंदी में)

अब वह अपने पुत्र बालक नारायण के संबंध में ही सोचने विचारने लगा ।

इतने में ही अजामिल ने देखा कि उस से ले जाने के लिए अत्यंत भयावनें 3 यमदूत आए हैं। उनके हाथों में फांसी है। मुंह टेढ़े टेढ़े हैं और शरीर के रोएं खड़े हुए हैं ।उस समय बालक नारायण वहां से कुछ दूरी पर खेल रहा था।

यमदूतो को देखकर अजामिल अत्यंत व्याकुल हो गया और उसने बहुत ऊंचे सर से पुकारा नारायण !! भगवान के पार्षदों ने देखा किया मरते समय यह हमारे स्वामी भगवान नारायण का नाम ले रहा है।

उनके नाम का कीर्तन कर रहा है अतः वे बड़े वेग से झटपट वहां पहुंचे। उस समय यमराज के दूत दासी पति अजामिल के शरीर में से उसके सूक्ष्म शरीर को खींच रहे थे।

यमराज व पार्षदों की बातचीत

पार्षदों ने उन्हें बलपूर्वक रोक दिया। उनके रोकने पर यमराज के दूतों ने उनसे कहा- कि अरे धर्मराज की आज्ञा का निषेध करने वाले तुम लोग हो कौन?

तुम किसके दूत हो? कहां से आए हो और इसे ले जाने से हमें क्यों रोक रहे हो ? क्या तुम लोग कोई देवता उप देवता या सिद्ध श्रेष्ठ हो ?

हम देखते हैं कि तुम सब लोगों के नेत्र कमल दल के समान कोमलता से भरे हैं । तुम पीले पीले रेशमी वस्त्र पहने हो। तुम्हारे सिर पर मुकुट कानों में कुंडल और गले में कमल के हार लहरा रहे हैं।

सब की युवा अवस्था है । सुंदर-सुंदर चार भुजाएं हैं। सभी के कर कमलों में धनुष, तलवार, गदा, शंख, चक्र, कमल, सुशोभित हैं । तुम लोगों की अंग कांति से दिशाओं का अंधकार और प्राकृत प्रकाश भी दूर हो रहा है ।

हम धर्मराज के सेवक हैं! हमें तुम लोग क्यों रोक रहे हो ? (अजामिल की कहानी हिंदी में)

श्री शुकदेव जी कहते हैं

परीक्षित जब यमदूत ओ ने इस प्रकार कहा- तब भगवान नारायण के आज्ञाकारी पार्षदों ने हंसकर मेघ के समान गंभीर वाणी से कहा-

भगवान के पार्षदों ने कहा- यमदूत यदि तुम लोग सचमुच में धर्मराज की आज्ञाकारी हो, तो हमें धर्म का लक्षण और धर्म का तत्व सुनाओ ।।

दंड किस प्रकार दिया जाता है? दंड का पात्र कौन है? मनुष्यों में सभी पापाचारी दंडनीय है अथवा उनमें से कुछ ही?

यमदूतो ने कहा वेदों ने जिन कर्मों का विधान किया है, वे धर्म है । और जिन का निषेध किया है, वह अधर्म है। वेद स्वयं भगवान के स्वरुप हैं। उनके स्वाभाविक और श्वास- प्रश्वास एवं स्वयं प्रकाश ज्ञान है, ऐसा हमने सुना है।

पाप कर्म करने वाले सभी मनुष्य अपने अपने कर्मों के अनुसार दंडनीय होते हैं । इसीलिए सभी से कुछ पाप और कुछ पुण्य होते ही हैं। (अजामिल की कहानी हिंदी में)

देहवान होकर कोई भी पुरुष कर्म किए बिना रह ही नहीं सकता।

इस लोक में सत्व, रज और तम – इन तीन गुणों के भेद के कारण इस लोक में भी तीन प्रकार के प्राणी होते हैं । उन्हें पुण्यआत्मा, पाप आत्मा और पुण्य पाप दोनों से युक्त, अथवा सुखी, दुखी और सुख-दुख दोनों संयुक्त।

वैसे ही परलोक में भी उनकी विविधता का अनुमान किया गया है । जीव का यह 16 कला और सतवादी तीन गुणों वाला लिंगशरीर अनादि है। जो जीव को बार-बार हर्ष, शोक, भय और पीड़ा देने वाले जन्म मृत्यु के चक्कर में डालता है ।

जो जीव अज्ञानवश काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद मत्सर इन शत्रुओं पर विजय प्राप्त नहीं कर लेता, उसे इच्छा ना होते हुए भी विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार अनेकों कर्म करने पड़ते हैं।

जीव अपने पूर्व जन्मों के पाप पुण्य में संस्कारों के अनुसार स्थूल और सूक्ष्म शरीर प्राप्त करता है, और उसकी स्वाभाविक प्रबल वासना ही कभी माता (स्त्रीरूप) के जैसा बना देती हैं, तो कभी पिता (पुरुष रूप) के जैसा बना देती है।

अजामिल कौन था?
अजामिल की कहानी हिंदी में

यमदूत ने कहा कि देवताओं आप जानते ही हैं कि यह अजामिल बड़ा शास्त्रज्ञ था । सील सदाचार और सद्गुण का खजाना ही था ।

ब्रह्मचारी, विनयी, जितेंद्रिय, सत्य निष्ठा मंत्र वेत्ता और पवित्र भी था। इसने गुरु, अग्नि, अतिथि और वृद्ध पुरुषों की सेवा की थी ।

अहंकार तो इसमें था ही नहीं। यह समस्त प्राणियों का हित चाहता और कार्य करता । आवश्यकता के अनुसार ही बोलता और किसी के गुणों में दोष नहीं ढूंढता था।

एक दिन यह ब्राम्हण अपने पिता के आदेशानुसार वन में गया और वहां से फल फूल समिधा तथा कुछ लेकर घर के लिए लौटा ।

लौटते समय उसने देखा कि एक भ्रष्ट शुद्र जो बहुत कामी है और निर्लज्ज है शराब पीकर किसी वेश्या के साथ विहार कर रहा है।

वेश्या भी शराब पीकर मतवाली हो रही है। नशे के कारण उसकी आंखें नाच रही है और वह अर्धनग्न अवस्था में हो रही है ।

वह शूद्र उस वेश्या के साथ कभी गाता कभी हंसता और तरह-तरह की चर्चाएं करके उसे प्रसन्न करता है ।

अजामिल उन्हें इस अवस्था में देखकर सहसा मोहित और काम के वश में हो गया , यद्यपि अजामिल ने अपने धैर्य और ज्ञान के अनुसार अपने काम वेग से विचलित मन को रोकने की बहुत कोशिश की।

परंतु पूरी शक्ति लगा देने पर भी यह मन को रोकने में असमर्थ रहा । वेश्या को निमित्त बनाकर काम पिशाच ने अजामिल के मन को ग्रस लिया ।

इसकी सदाचार और शास्त्र संबंधी चेतना नष्ट हो गई। अब वह मन ही मन उसी वेश्या का चिंतन करने लगा और अपने धर्म से विमुख हो गया।

अजामिल सुंदर सुंदर वस्त्र आभूषण आदि वस्तुएं जिनसे व प्रसन्न होती ले आता।

यहां तक कि इसने अपने पिता की सारी संपत्ति देकर भी उस वेश्या को रिझाया। वह ब्राह्मण उसी प्रकार की चेष्टा करता जिससे वह प्रसन्न हो ।

उस स्वेच्छाचारी तिरछी चितवन ने उसके मन को ऐसा मोह लिया, कि इसने अपने कुलीन नवयुवती और विवाहिता पत्नी तक का परित्याग कर दिया।

इसके पाप की भला कोई सीमा है! यह कुबुद्धि न्याय से अन्याय से, जैसे भी जहां कहीं भी धन मिलता, वहीं से उठा लेता और वेश्या के बड़े कुटुंब का पालन करने में ही मस्त रहता।

इस पापी ने शास्त्र आज्ञा का उल्लंघन करके स्वच्छंद आचरण किया है। यह सब पुरुषों के द्वारा निर्मित है । इसने बहुत दिनों तक वेश्या के अन्न् से अपना जीवन व्यतीत किया है।

इसका सारा जीवन ही पापमय है। उसने अब तक अपने पापों का कोई प्रायश्चित भी नहीं किया है। इसलिए अब हम इस पापी को दंडपानी भगवान यमराज के पास ले जाएंगे ।

वहां यह अपने पापों का दंड भोगकर शुद्ध हो जाएगा । (अजामिल की कहानी हिंदी में)

यह सुनकर भगवान के पार्षदों ने कहा-

कि यमदूतो इसने कोटि-कोटि जन्मों की पाप राशि का पूरा पूरा प्रायश्चित कर लिया है। क्योंकि इसने विवश होकर ही सही भगवान के परम कल्याण में मोक्ष प्रदान नाम का उच्चारण तो किया है ।

जिस समय इसने नारायण इन चार अक्षरों का उच्चारण किया उसी समय केवल उतने से ही इस पापी के समस्त पापों का प्रायश्चित हो गया ।

इसलिए यमदूत हो तुम लोग अजामिल को मत ले जाओ। इसने सारे पापों का प्रायश्चित कर लिया है । क्योंकि इस ने मरते समय भगवान के नाम का उच्चारण किया है।

बड़े-बड़े महात्मा पुरुष यह बात जानते हैं कि संकेत में, किसी दूसरे अभिप्राय से, परिहास में, तान अलापने में अथवा किसी की अवहेलना करने में भी यदि कोई भगवान के नामों का उच्चारण करता है, तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

जो मनुष्य गिरते समय, पैर फिसलते समय, अंग भंग होते समय और सांप के डर से, आग में जलते या चोट लगते समय भी विवशता से हरि हरि कहकर भगवान के नाम का उच्चारण कर लेता है, वह यम यातना का पात्र नहीं रह जाता।

जैसे जाने अनजाने में ईंधन से अग्नि का स्पर्श हो जाए तो वह भस्म हो ही जाता है, वैसे ही जानबूझकर या अनजाने में भगवान के नामों का संकीर्तन करने से, मनुष्य के सारे पाप भस्म हो जाते हैं ।

जैसे कोई परम शक्तिशाली अमृत को उनका गुण न जानकर अनजाने में भी पी ले, तो भी वह अवश्य ही पीने वाले को अमर बना देता है।

वैसे ही अनजान में उच्चारण करने पर भी भगवान का नाम अपना फल देता ही है ।

श्री शुकदेव जी कहते हैं –

कि राजन इस प्रकार भगवान के पार्षदों ने भागवत धर्म का पूरा पूरा निर्णय सुना दिया और अजामिल को यमदूतों के पास से छुड़ाकर मृत्यु के मुख से बचा लिया।

प्रिय परीक्षित पार्षदों की यह बात सुनकर यमदूत यमराज के पास गए और उन्हें सारा वृत्तांत ज्यों का त्यों सुनाया। अजामिल यमदूत के फंदे से छूटकर निर्भय और स्वस्थ हो गया ।

अजामिल का पश्चाताप

उसने भगवान के पार्षदों के दर्शन जनित आनंद में मगन होकर उन्हें सिर झुका कर प्रणाम किया। सर्व पापापहारी भगवान की महिमा सुनने से अजामिल के ह्रदय में शीघ्र ही भक्ति का उदय हो गया ।

अब उसे अपने पापों को याद करके बड़ा पश्चाताप होने लगा ।अजामिल मन ही मन सोचने लगा। अरे! मैं कैसा इंद्रियों का दास हू।

मैंने एक दासी के गर्भ से पुत्र उत्पन्न करके अपना ब्राह्मणत्व नष्ट कर दिया । बड़े दुख की बात है धिक्कार है, मुझे। बार-बार धिक्कार है। मैं संतो के द्वारा नंदित आत्मा हूं। मैंने अपने कुल में कलंक का टीका लगा दिया।

मैंने अभी जो अद्भुत दृश्य देखा क्या वास्तव में है अथवा जागृत अवस्था का ही प्रत्यक्ष अनुभव है । अभी-अभी जो हाथों में फंदा लेकर मुझे खींच रहे थे, वे कहां चले गए ।

अभी अभी भी मुझे फंडों में फंसाकर पृथ्वी के नीचे ले जा रहे थे परंतु चार अत्यंत सुंदर सिद्धों ने आकर मुझे छुड़ा लिया । वे अब कहां चले गए ।

शुकदेवजी कहते हैं कि परीक्षित –

उन्हें भगवान के पार्षद महात्माओं का केवल थोड़ी ही देर के लिए सत्संग हुआ था, इतने से ही अजामिल के चित्त में संसार के प्रति तीव्र वैराग्य हो गया।

वे सबके संबंध और मुंह को छोड़कर हरिद्वार चले गए। उस देवस्थान में जाकर वे भगवान के मंदिर में आसन से बैठ गए । और उन्होंने योग मार्ग का आश्रय लेकर अपनी सारी इंद्रियों को विषयों से हटाकर मन में लीन कर लिया।

और मन को बुद्धि में मिला लिया और इस प्रकार आत्म चिंतन के द्वारा उन्होंने बुद्धि को विषयों से पृथक कर लिया । भगवान के धाम अनुभव स्वरूप परम ब्रह्म में जोड़ दिया ।

इस प्रकार जब अजामिल की बुद्धि त्रिगुणमयी प्रकृति से ऊपर उठकर भगवान के स्वरुप में स्थित हो गई, तब उन्होंने देखा कि उनके सामने भी ही चारों पार्षद जिनमें उन्होंने पहले देखा था खड़े हैं।

अजामिल में सिर झुका कर उन्हें नमस्कार किया । उनका दर्शन पाने के बाद उन्होंने उस तीर्थ स्थान में गंगा के तट पर अपना शरीर त्याग दिया।

और तत्काल भागवत भगवान के पार्षदों का स्वरूप प्राप्त कर लिया । भगवान के पार्षदों के साथ स्वर्ण में विमान पर आरूढ़ होकर, आकाश मार्ग से भगवान लक्ष्मी पति के निवास स्थान वैकुंठ को चले गए।

अंत मे

अजामिल की कहानी अत्यंत गोपनीय और समस्त पापों का नाश करने वाली है। जो पुरुष श्रद्धा और भक्ति के साथ इसका श्रवण कीर्तन करता है , वह कभी यमलोक नहीं जाता ।

यमराज के दूत तो आंख उठाकर भी उसकी ओर नहीं देख सकते । उसका जीवन कितना भी पाप में क्यों ना रहा हो, वैकुंठ में उसकी पूजा होती है।

जैसे पापी ने पुत्र के बहाने भगवान के नाम का उच्चारण किया उसे भी वैकुंठ की प्राप्ति हो गई। जो श्रद्धा के साथ भगवान नाम का उच्चारण करते हैं, उनकी तो बात ही क्या है।

आज आपने श्रीमद्भागवत पुराण के छठे स्कंध के पहले व दूसरे अध्याय की अजामिल की कहानी पढ़ी। आशा है आपको प्रेरणादायक कहानी अवश्य अच्छी लगी होगी।

अपना कीमती समय निकालकर अजामिल की कहानी हिंदी में -श्रीमद्भागवत पुराण छठा स्कंध को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद ।

श्रीमद्भागवत कथा का महात्म्य – श्री जया किशोरी जी 👇🏼

https://youtu.be/eENjSM9g1ao

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