कलियुग में दान कैसे या किस प्रकार करें।सफल एवं समृद्धि जीवन जीने के लिए दान का भाव मन में होना अत्यंत आवश्यक है। दान तो हम सभी करते हैं। किन्तु कलियुग में दान कैसे करें, हमारे शास्त्र इस बारे में क्या कहते हैं। आज हम इस सम्बंध में चर्चा करेंगे ।
- दान के कितने प्रकार के होते हैं?
- दान क्यों किया जाना चाहिए ? या कारण!
- दान के नाश के कारण ?
- दान किस प्रकार किया जाना चाहिए ?
- बिना धन के दान कैसे करें?
- दान में महत्वपूर्ण तथ्य !
- दान में निषेध बातें !
- कलियुग में दान कैसे करें !
कलियुग में दान कैसे करें !
- ऐसे बहुत सारे प्रश्न दिमाग में उत्पन्न होते हैं, उन्हीं का समाधान लेकर के अपने विचार आप तक प्रेषित करना चाहती हूँ।
- संभवतः इन विचारों से आपके दान की प्रवृत्ति शुद्ध और परिष्कृत होने में मदद मिलेगी । हम सभी दान करना तो चाहते हैं । दान के सुपरिणाम भी जानते हैं । किंतु जब प्रत्यक्ष रूप में देखते हैं, तब दान का उतना प्रभाव देखने को नहीं मिल पाता।
- जब दान का कोई विशेष प्रभाव हमारे जीवन पर हमको नहीं देखने को मिलता तब हमारा मन दान से उचट जाता है ।और एक संकुचित मानसिकता जन्म लेती है।
- ऐसा क्या होता है कि हम सब कुछ दान करते हुए भी सुखी संतुष्ट और प्रसन्न नहीं रह पाते। जबकि दान का तत्काल प्रतिफल मन की प्रसन्नता और आत्मा की संतुष्टि होती है।
- तो चलिए उन बिंदुओं पर विचार करते हैं कि दान किस प्रकार किया जाए जिससे मन प्रसन्न हो आत्मा संतुष्ट हो, और परलोक और इस लोक में मार्ग प्रशस्त हो।
- हमारे धर्म शास्त्रों में दान के विषय में बताया गया है की सत्य युग में तप, त्रेता युग में ज्ञान , द्वापर युग में यज्ञ और कलियुग में एकमात्र दान ही मानव के कल्याण का साधन है।
दान कितने प्रकार का होता है?
(कलियुग में दान कैसे करें) !
दान के चार प्रकार बताए गए हैं जैसे
1- नित्य दान!
- इसके अनुसार प्रतिदिन मनुष्य को दान करते रहना चाहिए । जिसने की ग्रहस्थ के लिए पांच प्रकार के ऋण सेे मुक्त होने के लिए प्रतिदिन पंच महायज्ञ करने की विधि बताई गई है ।
- जिसमें देव ऋण हवन पूजन करना यह देव यज्ञ कहलाता है । जिससे देव ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है। नंबर दो पितृ ऋण में श्राद्ध तर्पण करना पितृ यज्ञ कहलाता है जिससे पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है।
- तीसरा ऋषि ऋण अध्ययन तथा अध्यापन ब्रम्ह यज्ञ कहलाता है जिससे ऋषि ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है ।
- चौथा भूत ऋण इसमें बली वैश्वदेव करना भूत यज्ञ कहलाता है बलि वैश्वदेव का तात्पर्य सारे विश्व को भोजन देना है। बलि वैश्वदेव करने से गृहस्थ पापों से मुक्त होता है।
- इन सब की गणना नित्यदान में है। बली वैश्य देव करना भूत यज्ञ कहलाता है जिससे भूत ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है। और पांचवा मनुष्य ऋण है । जिसमें अतिथि सत्कार करना मनुष्य यज्ञ कहलाता है ।
- जिससे मनुष्य ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है । अतः गृहस्थ को यथा शक्ति प्रतिदिन पांच महायज्ञ की पूर्ति हेतु प्रयास अवश्य करना चाहिए।
2- नैमित्तिक दान
- जब हम जाने अनजाने में किए जाने वाले पापों के शमन हेतु अमावस्या पूर्णिमा या विभिन्न अवसरों पर जैसे संक्रांति काल या सूर्य ग्रहण चंद्र ग्रहण इत्यादि पुण्य कालों में किसी सुयोग्य पात्र को दान करते हैं तो यह नैमित्तिक दान कहलाता है।
3- काम्य दान
कामना की पूर्ति के लिए अपनी अभिलाषा की पूर्ति के लिए या किसी कार्य की सिद्धि के लिए, ईश्वर से प्रार्थना करते हुए दान करते हैं तो वह दान काम्य दान कहलाता है।
4- विमलदान
यह दान सभी दान में सर्वश्रेष्ठ दान कहलाता है । इस दान में भगवान की प्राप्ति के लिए निष्काम भाव से बिना किसी स्वार्थ के किसी सुपात्र को किया जाने वाला दान विमल दान कहलाता है । यह दान अत्यंत ही शुभ और मंगलकारी होता है।
दान के कारण ! (कलियुग में दान कैसे करें) !
1- श्रद्धा
- अर्थात दान में श्रद्धा का बहुत महत्व होता है जब हम किसी सत पात्र को दान करते हैं तो उसमें पूर्ण श्रद्धा के साथ दान किया जाना चाहिए ।ऐसा दान भगवान को प्राप्त होता है और उससे भगवान प्रसन्न होते हैं ।
2- शक्ति या सामर्थ्य
हमारी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार अपने आश्रितों और कुटुंबी जनों का पालन करने के पश्चात जो धन बचता है, उसको दान में लगाना चाहिए। किंतु जो दान अपने कुटुंबी जनों के संकट में पड़े होने के बाद भी यदि हम दूसरों को वह धन दान करते हैं तो उस दान का कोई प्रतिफल नहीं होता और वह व्यर्थ हो जाता है।
दान नाश के तीन कारण !
(कलियुग में दान कैसे करें) !
पहला पश्चाताप
अर्थात जो दान करने के बाद हमें पश्चाताप हो कि यह हमारे प्रिय वस्तु थी हमको किसी कारणवश दूसरे को देनी पड़ी।इस प्रकार पश्चाताप होने से वह दान आपके नाश का कारण बनता है और ऐसा दान असुर दान होता है, जिसका कोई फल प्राप्त नहीं होता ।
दूसरा पात्रता
अर्थात किसी भी व्यक्ति को जो अपात्र हो उसे किया जाने वाला दान पिशाच दान की श्रेणी में आता है। ऐसा व्यक्ति जो दुराचारी हो विद्या हीन हो जाति से ब्राह्मण होने पर भी कुपात्र होता है, वह स्वयं भी नष्ट होता है और दानकर्ता को भी नष्ट कर देता है। अतः अपात्र को दान कभी ना करें।
तीसरा अश्रद्धा
- अर्थात बिना श्रद्धा भाव के जो दान किया जाता है वह राक्षस दान कहा जाता है । ऐसा दान प्राप्त करने वाले को डांट कर या कटु वचन कहकर जो दान किया जाता है, वह भी पिशाच दान कहलाता है।
- अतः दान देते वक्त विशेष बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है।
दान किस प्रकार करना चाहिए ?कलियुग में दान कैसे करें !
- 1- दान देते समय हमेशा चित्त को स्थिर करते हुए श्रद्धा के साथ मन में मधुरभाव लाते हुए वाणी में मधुरता लाते हुए पूरे सम्मान के साथ दान करना चाहिए ।
- 2- दान देते समय कभी भी अहंकार मन में नहीं लाना चाहिए ।और इस भाव के साथ दान किया जाना चाहिए कि यह तो सब ईश्वर का है और मैं तो केवल निमित्त मात्र हूं। ऐसी भावना के साथ दान किया जाना चाहिए ।
- 3- दान में पात्र का बड़ा महत्व है और पात्र या सुपात्र वह व्यक्ति होता है कि जिसे हम जो चीज दे रहे हैं उसकी आवश्यकता उस व्यक्ति को हो ।
- जिसको पाने के बाद उसकी आवश्यकता की पूर्ति हो और उसका मन प्रसन्न हो । तब वह दान श्रेष्ठ कहलाता है ।
ऐसे दान जिनमें कुछ धन खर्च नहीं करना पड़ता
इनका अपने आप में एक विलक्षण महत्व है ।तथा इनका तात्कालिक प्रतिफल भी हमें प्राप्त होता है
1 मधुर वचनों का दान
- कलयुग में सभी व्यक्ति परेशान, दुखी तथा अपने आप में खिन्न है । तब ऐसी स्थिति में यदि आपके द्वारा मधुर वचनों से किसी व्यक्ति के पीड़ा को कम किया जा सकता है।
- तो यह दान मधुर वचनों का दान कहलाता है जिससे हम पीड़ित व्यक्ति को मानसिक सुख और संतोष प्रदान करते हैं दूसरा है ।
2- प्रेम का दान
- जहां प्रतिक्षण व्यक्ति स्वयं को अकेला अनुभव करता हो, एवं दुखी हो वहां दूसरों के प्रति प्रेम भाव रखते हैं उनके दुखों को बांटना ही प्रेम दान कहलाताहै।
3- आश्वासन दान
- यदि कोई व्यक्ति किसी संकट में पड़ा हो निराश हो तथा विपरीत परिस्थितियों से घबराकर , आत्महत्या के लिए उद्वेलित हो रहा हो ।
- उस व्यक्ति को प्रेरणा स्वरूप किसी भी विपरीत परिस्थितियों में उसकी मदद का आश्वासन देते हुए तथा सकारात्मक बातों के साथ उसको प्रेरणा देते हैं तो यह दान आश्वासन दान कहलाता है।
4- आजीविका दान
- किसी भी व्यक्ति के जीवन यापन के लिए और परिवार पालन के लिए यदि हमारे द्वारा कोई कृत्य कोई मदद या
- कोई व्यवस्था की जाती है तो वह दान आजीविका दान की श्रेणी में आता है ।
5- छाया दान
- आजकल जो वृक्षारोपण किया जा रहा है जगह-जगह इसमें भी हम अपना सहयोग करके तथा बड़े बड़े वृक्ष पीपल, बड़ आदि लगाकर छायादार वृक्ष राहगीरों को सुख पहुंचाते हैं तो यह भी छाया दान कहलाता है है
6- श्रमदान
- श्रमदान में हम अपने शारीरिक क्षमता के अनुसार अपनी मेहनत के द्वारा दूसरों को जो सुख प्रदान करते हैं।
- बुजुर्गों की सेवा करना या पड़ोसियों की सेवा करना या किसी व्यक्ति के लिए शारीरिक श्रम द्वारा हम किसी का कार्य करते हैं तो वह श्रमदान कहलाता है।
7- समय दान
- किसी भी सेवा कार्य में यदि हमारे द्वारा समय दिया जाता है तो वह समय दान कहलाता है।
8- क्षमादान
- यदि किसी व्यक्ति ने हमारे प्रति कोई अपराध किया और हमारे द्वारा उसे क्षमा कर दिया गया तो यह क्षमा दान कहलाता है ।
- यह दान बहुत ही सहनशील और उत्तम चरित्र का व्यक्ति ही कर सकता है अतः यह श्रेष्ठ दानों में कहलाता है।
9- शरीर के अंगों का दान
- यदि जीवित अवस्था में रहते हुए हम अपने शरीर के अंगों का दान करते हैं तो यह दान अंगदान कहलाता है ।
- जैसे कि नेत्रदान किडनी दान रक्तदान इत्यादि यह अत्यंत ही श्रेष्ठ दान कहलाते हैं।
- जिन्हें की स्वयं के जीवन काल में अवश्य करना चाहिए।
10- सम्मान दान
- सामान्यतः शिष्टाचार की श्रेणी में आने वाला यह कार्य हमारे व्यक्तित्व को भी निखारता है ।
- साथ ही जिस व्यक्ति का हम सम्मान करते हैं, उसकी आत्मा प्रसन्न हो जाती है ।
- जिसका प्रतिफल भी हमें तत्काल सम्मान के रूप में ही प्राप्त होता है अतः सम्मान दान भी श्रेष्ठदान है।
11- विद्यादान
- विद्या दान के अंतर्गत हम अध्यापन के द्वारा तथा विद्यार्थियों की आवश्यक सामग्री के द्वारा किसी बच्चे की स्कूल फीस,
- उसकी कॉपी, पुस्तक, पेंसिल, अध्ययन से संबंधित समस्त आवश्यक चीजों को देकर भी विद्यादान कर सकते हैं ।
- इसके साथ ही विद्यालय इत्यादि खोलकर या खोलने में विद्यालय महाविद्यालय आदि में,
- अपनी सहयोग राशि प्रदान कर के भी हम विद्यादान में सम्मिलित हो सकते हैं ।
12- पुण्य दान
- जैसा कि शब्द से ही प्रमाणित है पुण्य दान से मतलब हमारे द्वारा जीवन में जो भी अच्छे कार्य किए गए ,
- उनका जो पुण्य हमारे खाते में संचित हुआ है।उस पुण्य को हम अपने किसी प्रिय व्यक्ति या किसी जरूरतमंद व्यक्ति को
- उसके जीवन की श्रेष्ठता के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और अपने पुण्यों का दान करते हैं ।तो वह दान पुण्य दान कहलाता है।
- जैसे अक्सर माताएं अपनी संतान के लिए कुछ व्रत करती हैं । कुछ संकल्प करती हैं कोई दान करती हैं तो यह पुण्य दान की श्रेणी में आता है ।
13-जप दान
- जप दान भी पुण्य दान की श्रेणी में ही आता है। जब हम अपने द्वारा किए गए जप का दूसरे की बेहतरी के लिए दान करते हैं तो वह दान जप दान कहलाता है ।
14- भक्ति दान
- भक्ति दान ऐसा दान है जिसमें हम अन्य को भगवान की भक्ति के लिए प्रेरित करते हैं।
- तथा हमारे प्रेरणा के द्वारा दूसरा व्यक्ति भक्ति मार्ग को अपनाता है।
- या सरलता से प्राप्त करता है वह भक्ति दान कहलाता है ।
15- आशीष दान
- आशीष दान जब हम साधु संतों बुजुर्गों को प्रणाम करते हैं अभिवादन करते हैं।
- तो उनके द्वारा जो आशीर्वाद दिया जाता है वह ही आशीष दान कहलाता है।
- हम अपने से छोटों को आशीर्वाद देकर भी आशीष दान प्रदान कर सकते।
दान के महत्वपुुर्ण तथ्य! कलियुग में दान कैसे करें !
- इस धरती पर जितनी भी वस्तुएं हैं उन सभी वस्तुओं के अधिकारी देवता भी होते हैं।
- अतः जब हम उन वस्तुओं का दान करते हैं तो दान करते समय उन अधिकारी देवता का स्मरण करते हुए
- दान देने से हमारा दान सफल होता है। तथा दान की वस्तु के अधिकारी देवता भी प्रसन्न होते हैं ।
- वे वस्तु्ये और उनके अधिकारी देेेवता इस प्रकार हैैं….
दान में निषेध बातें !
कलियुग में दान कैसे करें !
- 1- दान की चर्चा से दान का फल नष्ट हो जाता है। अर्थात यदि हम कोई दान करते हैं, तो उसके संबंध में लोगों को बताना प्रचारित करना कि हमारे द्वारा अमुक दान किया गया है, तो इस प्रकार प्रचारित करने से वह दान का फल नष्ट हो जाता है।
- 2- दान के संबंध में मुख्य बात यह है कि जिस से वस्तु का हमने दान कर दिया, उस वस्तु के प्रति हमारी आसक्ति उस दान को नष्ट कर देती है ।
- इसके संबंध में एक उदाहरण बताना चाहूंगी कि जैसे हमने किसी व्यक्ति को कोई वस्तु दान की और दान करने के पश्चात दान लेने वाले ने वस्तु अपने किसी प्रिय पात्र को दे दी ।
- तब हमारे द्वारा यह कहना कि अरे हमने तो यह चीज आप के उपयोग के लिए दी थी, इसे आपको उपयोग करना चाहिए था दूसरे को नहीं देना चाहिए था।
- तो इस प्रकार की आसक्ति से वह दान निष्फल हो जाता है क्योंकि हमने दान जिस व्यक्ति को कर दिया अब उस वस्तु पर उस व्यक्ति का अधिकार है, तो वह व्यक्ति उस वस्तु को चाहे जिसे दे सकता है ।
- किंतु आपके द्वारा निर्देशित किए जाने का तात्पर्य कि आपका उस वस्तु पर से आसक्ति हटी नहीं है । अतः ऐसा आसक्तिपूर्ण दान निष्फल हो जाता है ।
कलियुग में दान कैसे करें !
- कलयुग में अन्न दान व जल दान विशेष महत्वपूर्ण और लाभकारी है। क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार के सुपात्र देश काल परिस्थिति आदि का ध्यान करने की आवश्यकता नहीं होती।
- कोई भी व्यक्ति चाहे वह अपवित्र चाहे पवित्र हो किसी भी प्रकार का व्यक्ति हो किंतु यदि वह भूखा और प्यासा हो तो उसको अन्न व जल दान करने से भी दानदाता को उतना ही फल मिलेगा ,
- जितना किसी से ज्ञानी व्यक्ति को दान करने से प्राप्त होता है। इसीलिए हमारे धर्म शास्त्रों में कलियुग में अन्न दान व जल दान का विशेष महत्व बताया गया है।
निष्कर्ष
अंत में यही निवेदन करूंगी…
- प्रगट चारि पद धर्म के, कलि महुँ एक प्रधान ।
- जेन केन विधि दीन्हें, दान करे कल्यान।।
ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए आप पढ़ते रहें।
अंत तक आर्टिकल को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।
https://www.jagran.com/haryana/ambala-12505763.
नमस्कार! मैं रेखा दीक्षित एडवोकेट, मैं एडवोकेट ब्लॉगर व युट्यूबर हूं । अपने प्रयास से अपने पाठकों के जीवन की समस्याओं को दूर कर ,जीवन में उत्साह लाकर खुशियां बांटना चाहती हूँ। अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर मैंने अपने ब्लॉक को सजाया संवारा है, जिसमें आपको योग ,धार्मिक, दर्शन, व्रत-त्योहार , महापुरुषों से संबंधित प्रेरक प्रसंग, जीवन दर्शन, स्वास्थ्य , मनोविज्ञान, सामाजिक विकृतियों, सामाजिक कुरीतियां,धार्मिक ग्रंथ, विधि संबंधी, जानकारी, स्वरचित कविताएं एवं रोचक कहानियां एवं स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां उपलब्ध हो सकेंगी । संपर्क करें : info.indiantreasure@gmail.com
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