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कैसे करें स्नान ? जानिए स्नान के प्रकार व फायदे!

 

कैसे करें स्नान पवित्र शरीर मे पवित्र आत्मा निवास करती है।” इस उक्ति अर्थ है कि शुद्ध व स्वच्छ स्थान में ही पवित्रता का वास होता है।

श्रेष्ठ संकल्प, उच्च विचार,व सद्गुणों का उद्भवस्थल एक स्वछ शरीर ही हो सकता है।

अतः यदि श्रेष्ठता के परम लक्ष्य को पाना है तो शरीर को शुद्ध रखना होगा। शरीर को शुद्ध रखने में स्नान का विशेष स्थान है।

स्नान की महिमा वेदों में, पुराणों में बताई गई है, जिसे सभी बखूबी जानते भी हैं।

किन्तु हमारी सभ्यता ने करवट बदली है और हमारी संस्कृति की बहुत सी बातें पीछे छूट गईं हैं, जिन्हें पुनः याद करते रहना बहुत जरूरी है।

आइये जानते हैं स्नान कब, क्यों और कैसे करें ?

 
 

1-स्नान क्या होता है?

2-स्नान कब करना चाहिए?

3- स्नान क्यों करना चाहिए?

4- स्नान कैसे करना चाहिए?

5- स्नान के प्रकार !

6- स्नान के लाभ !

 
               

स्नान से क्या होता है?

हमारे शरीर मे 9 छिद्र होते है, और करोड़ों रोमछिद्र होते हैं, जो निरन्तर वायु, धूल आदि से संक्रमित व प्रदूषित होते रहते हैं। जिनकी स्वच्छता हेतु हमे नियमित स्नान करना चाहिए। शास्त्रों में स्नान के विभिन्न प्रकार बताएं गए हैं।

स्नान के प्रकार

वेद स्मृति में स्नान के 7 प्रकार बताए गए है।


(1). मन्त्र स्नान –

जल में मन्त्रों को बोलकर जो स्नान किया जाता है, उसे मन्त्र स्नान कहते हैं। स्नान के मंत्र भी होते हैं जिन्हें स्नान करते समय बोलना चाहिए।


(2). भौम स्नान –

भौम से तात्पर्य भूमि अर्थात मिट्टी स्नान जिसमे स्नान के पूर्व पूरे शरीर मे मिट्टी लगाकर फिर स्नान किया जाता है।


(3). अग्निस्नान –

हवन के पश्चात जो राख या भस्म तैयार होती है उस बची हुई भस्म को शरीर पर लगाकर स्नान किया जाता है।


(4). वायव्य स्नान –

गायों के खुर की धूल को शरीर मे लगाकर किया जाने वाला स्नान।


(5). दिव्य स्नान या सौर स्नान –

सौर स्नान अर्थात सूर्य स्नान,इसमें सूर्य की धूप में बैठकर जप किया जाता है । एवं प्रत्येक अंग पर सूर्य की धूप पड़े उसे दिव्यस्नान या सौर स्नान कहते हैं।


(6). वरुण स्नान-

वर्षा के जल में किया जाने वाला स्नान वरुण स्नान कहलाता है।


(7). मानसिक स्नान –

यह स्नान गंगाजल से आत्मचिंतन कर किया जाता है।

स्नान कब करना चाहिए?


विभिन्न समय मे किये जाने वाले स्नान अलग अलग फल देने वाले होतें हैं। और उसी समय के अनुसार उन स्नानों का भी नामकरण किया गया है, जो निम्न है…


(1). ब्रम्ह स्नान-

ब्रम्हमुहूर्त समय (3.30 से 5 बजे तक ) में किया जाने वाला स्नान ब्रम्ह स्नान कहलाता है।


(2). देव स्नान-

सूर्योदय के पूर्व देवनदियों में या देवनदियों का स्मरण कर किया जाने वाला स्नान देवस्नान कहलाता है।


(3).ऋषि स्नान –

आकाश में जब तारे हों तब स्नान ऋषि स्नान कहलाता है।


(4). मानव स्नान –

सूर्योदय के समय स्नान को मानव स्नान कहते है।


(5). दानव स्नान –

सूर्योदय के पश्चात 8, 9 बजे या उसके बाद , नाश्ता कर लेने के पश्चात किया जाने वाला स्नान दानव स्नान कहलाता है।


(6). स्नान दिन में दो बार अवश्य किया जाना चाहिए ।इससे शरीर की स्वच्छता के साथ ताप भी कम होता है व सात्विक प्रवृत्तियाँ बलवती होती हैं।


(7). जैसे दिन में सूर्योदय के पूर्व स्नान करना चाहिए वैसे ही शाम को सूर्यास्त से पूर्व स्नान श्रेष्ठ होता है।


पहले प्रत्येक व्यक्ति को स्नान के समय व उसके प्रभाव का ज्ञान होता था ,अतः कोई भी गलत समय का चुनाव स्नान हेतु नही करता था।

किंतु जहाँ जानकारी का अभाव है वहाँ स्नान को मात्र एक प्रक्रिया, फैशन , शौक, आदत, इच्छा आदि रूपों में देखा जाता है, और इसीलिए स्नान के महत्व को न जानने के कारण अनजाने में ही अपने दुर्भाग्य को आमंत्रित करते चले जातें हैं।


जैसा कि प्रत्येक स्नान के नाम से ही उक्त स्नान का फल दर्शित होता है। अर्थात ब्रम्हस्नान करने से ब्रम्हा के समान, देवस्नान से देवताओं के समान, ऋषि स्नान से ऋषियों के समान, मानव स्नान से मानव के समान, व दानव स्नान से दानव के समान स्वभाव ,वृत्ति, व गुण प्राप्त होते हैं।

इतनी विवेचना के पश्चात आपको स्नान कब करना चाहिए ये सवाल आप ही के तरफ करती हूं। आप जो गुण, कर्म, व स्वभाव चाहते हों वैसा स्नान का समय आप स्वयं निर्धारित करें।


स्नान क्यों करना चाहिए ?

यह भी जानने योग्य तथ्य है।


(1).स्नान से मात्र बाहरी शरीर की ही शुद्धि नही होती अपितु आत्मा की शुद्धि भी होती है ।


(2).स्नान से शरीर का ताप कम होता है। यही ताप अनेक मानसिक व शारीरिक विकृतियों व व्याधियों का जनक है। इस तरह स्नान से हम अनेक व्याधियों से मुक्त हो जाते हैं।


(3).स्नान से अदृश्य लाभ भी होते हैं , जैसे मानसिक तनाव, शारीरिक थकान, दूर होतें हैं।


(4).स्नान से स्मरणशक्ति तीव्र होती है, व मन की दशा को बदलने में भी स्नान की बहुत बड़ी भूमिका होती है।


(5). स्नान से मन मे पवित्र व शुद्ध भावनाओं का उदय होता है।


(6). स्नान से हमारी पाचन क्रिया भी प्रभावित होती है , इसीलिए अक्सर स्नान के पश्चात जोरों से भूख लगती है।


(7).स्नान से शरीर के समस्त रोमछिद्र साफ होकर खुल जाते है जिससे हमारा शरीर ऑक्सीजन लेता है।


(8). स्नान से आयु ,बल व तेज में वृद्धि होती है।
अतः स्नान क्यों करना चाहिए ये आप अच्छी तरह समझ गए होंगे।


स्नान कैसे करें ?


स्नान के बारे में इतनी जानकारी के पश्चात ये जानना भी जरूरी है।


(1).उपरोक्त स्नान के प्रकारों में से हमें ब्रम्हस्नान, देवस्नान, व ऋषिस्नान को ही चुनना चाहिए।


(2).इसके पश्चात स्नान के जल में कुछ न कुछ अच्छी चीजें जरूर डालना चाहिए,


जैसे- इत्र की कुछ बूंदे, आधी कटोरी दूध, चुटकी भर हल्दी, कुछ बूंदे गुलाबजल, कोई भी सुगन्धित तेल की कुछ बूंदे, टेसू के फूल, गेंदा , गुलाब, मोंगरा आदि खुशबू वाले कोई भी फूलों को पीसकर डालें ।

तुलसी, नीम , पुदीना, एलोवेरा पत्तियों को डालें, गड़ा नमक , पवित्र नदियों का जल कुछ बूंदे( गंगाजी,नर्मदाजी)आदि में से कुछ भी स्नान के पानी मे जरूर डालें।


(3).स्नान के समय मुख उत्तर या पूर्व की दिशा में रखें।


(4). खड़े होकर स्नान कभी न करें, पटे पर सुखासन में बैठकर या कोई परेशानी हो तो कुर्सी य स्टूल पर बैठकर स्नान करें।


(5). स्नान करते समय एक मोटे सूती कपड़े या छोटे टॉविल को गीला कर, उससे शरीर के प्रत्येक अंग को रगड़कर पानी से धोएं व पुनः स्वच्छ जल से स्नान करें ।

इससे शरीर की त्वचा चमक उठेगी व शरीर का तापमान उतरेगा, साथ ही रक्तसंचार होगा जिस कारण बहुत से मानसिक व शारीरिक व्याधियों से आप मुक्त हो जाएंगे।

कम से कम 30 से 40 मिनट तक जल से अच्छी तरह स्नान करना चाहिए। केवल पानी ऊपर से डालना स्नान नही है।

आज कल स्नान को इतना औपचारिक कर दिया है की कहते है बस अभी दो लोटा पानी डालकर आया , तो ये सचमुच पानी डालना ही है, ऐसा स्नान , स्नान नही करने जैसा है।


(6).स्नान करते समय मन्त्र बोलने चाहिए, जैसे-

{1}.”गंगे च यमुनेचेव गोदावरी सरस्वती !
नर्मदे, सिंधु, कावेरी , जलेस्मिन सन्निधि कुरु !!”


{ 2}. “हर हर महादेवशम्भू , काशी विश्वनाथ गंगा,”


{3}. ” हर हर नर्मदे,”
” नमामि देवी नर्मदे त्वदीय पाद पंकजम,”


{4}. ” पवित्रो अपवित्रो व , सर्वा वस्थानगतोपि व
य स्मरेत पुण्डरीकाक्ष, स बह्याभ्यंतरे शुचि”


{5}. “ॐ नमो भगवते वासु देवाय ,”


{6}. “ॐ नमः शिवाय,”


{7}. कार्तिक मास में स्नान करते समय यह मन्त्र बोलें
“कार्तिक अर्घ्य मया दत्तम प्रात स्नान जनार्दनम!
नित्य के निमित्त के सर्व पाप नाशनम!! “


{8}. स्नान करते समय गंगाजी का नाम लेकर उनका ध्यान अवश्य करना चाहिए, गंगाजी ने कहा है कि जो भी मुझे पुकारेगा या मेरा नाम स्मरण करेगा मैं वहां अवश्य उपस्थित होउंगी।
इस प्रकार घर बैठे ही तीर्थ स्नान का फल प्राप्त हो जाता है।


स्नान के प्रकार – कौन सा स्नान कैसे करें


उपरोक्त वैदिक व शास्त्रोक्त स्नान के अतिरिक्त भी स्नान के विभिन्न प्रकार होते है।जैसे –


(1). विभिन्न प्रकार के तेल मालिश पश्चात कैसे करें स्नान –

तैल स्नान शरीर मे तरावट लाकर मांसपेशियों को मजबूत करता है।


(2). विभिन्न प्रकार के उबटन लगाकर स्नान –

उबटन लगाकर स्नान करने से शरीर मे कांति ओर निखार बढ़ता है।


(3). गर्म जल से स्नान –

जब शरीर मे दर्द हो तो हल्के गर्म जल से स्नान करने से दर्द में आराम मिलता है, किन्तु सिर में कभी भी गर्म पानी का उपयोग नही करना चाहिए।


(4). ठंडे जल से स्नान –

ठंडे जल से स्नान करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।


(5). कटि स्नान कैसे करें –

कटि स्नान चिकित्सकिय स्नान की श्रेणी में आता है, जिसमें कमर से नीचे ( नाभि से नीचे) के भाग को जांघ तक एक टब में डुबोकर पैर नीचे लटकाकर आरामकुर्सी की तरह बैठा जाता है ।

यह कम से कम 5 मिनट करने से नियमित करने से आंत सम्बन्धी सभी रोग दूर होते हैं तथा पाचन सम्बन्धी रोग दूर होते हैं।


(6). गौण स्नान कैसे करें –

गौण स्नान में हाथ , पैर व चेहरे को अच्छी तरह पानी से धोना व मुंह मे पानी भरकर कुल्ला करने को कहते हैं।


(7). भाप स्नान कैसे करें –

भाप या वाष्प स्नान इसमें एक कमरा या बॉक्स होता है जिसमे छोटे छोटे छिद्रों से या पाईप से भाप पहुचाई जाती है।


(8). स्पंज स्नान या कायिक स्नान –

स्पंज या कायिक स्नान में शरीर को गीले कपड़े से रगड़कर पोंछा जाता है। ये अक्सर बुखार आने पर करने से शरीर का सारा ताप उतर जाता है।


(9). रीढ़ स्नान कैसे करें –

रीढ़ स्नान इसमें मात्र रीढ़ की हड्डी को गीला कर रगड़कर साफ किया जाता है।


(10).पैर स्नान कैसे करें –

पैर स्नान इसमें मात्र पैरों को गर्म व ठंडे जल में डुबोकर 10, 12 मिनट रखा जाता है।


यह सभी चिकित्सकीय स्नान के प्रकार जिसे विशेष सलाह और देखरेख में रोगानुसार किये जाते हैं।

इस प्रकार शरीर की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार स्नान किया जाता है। विषय अत्यंत विस्तृत है।

इस तरह स्नान कैसे करें, के महत्व , प्रकार व प्रक्रिया को समझना बहुत ज्यादा जरूरी है।

समाज मे जितनी भी नकारात्मकता फैली है उसमें आज की जीवन शैली और अपनी सभ्यता संस्कृति के नियमो को भूल जाने के ही कारण है।

अतः इन नियमो को सभी जाने व एकदूसरे को प्रेरित करें ताकि सकारात्मकता का प्रसार हो सके।


आज स्नान एक ओपचारिकता है, नहाते समय फिल्मी गीत सुनना व गुनगुनाना फैशन हो चुका है।

इसका गहरा दुष्प्रभाव समाज मे युवाओं की विकृत मानसिकता को देखकर समझा जा सकता है।

सम्पूर्ण समाज मे न सही किन्तु अपने अपने घरों में अकेले हम स्नान कैसे करें सम्बन्धी नियमों को लागू करें तो निश्चित ही हम उन दुष्प्रभाव से काफी हद तक दूर रह सकते हैं।


ऐसी ही छोटे छोटे संस्कारो को लेकर मैं आपके सामने उपस्थित होती रहूँगी ।


कुछ महत्वपूर्ण बिंदु या स्नान के लाभ

स्नान कैसे करें से सम्बंधित कुछ आवश्यक नियम इस प्रकार हैं।


(1). कभी भी सीधे ठंडा पानी सिर पर न डालें , नीचे से ऊपर की ओर अर्थात पहले पैर में फिर पिण्डलियो में , जांघो पर, कमर पर, कंधों पर अंत मे सिर पर पानी डालना चाहिए।

शॉवर लेते समय भी खास ध्यान रखें , सीधे सिर पर शॉवर न लें , नीचे से ऊपर क्रमशः शॉवर लें।


(2). स्नान के समय जिस पात्र में हम जल लें उसमें अपनी तर्जनी से त्रिभुज की आकृति बना कर उस त्रिभुज के बीचोंबीच “ह्रीं” या “ॐ” लिखें, इसका तीन बार उच्चारण करें। फिर उस जल से स्नान करें।

जीवन मे लक्ष्मी, सफलता व कर्मठता का समावेश होने लगेगा जीवन के विघ्न दूर होने लगेंगे।


(3). इसी तरह नदी में स्नान करते समय अपनी तर्जनी से जल में ॐ लिखकर उसमे डुबकी लगाने से नदी स्नान का पूर्ण फल प्राप्त होता है।


(4). मन्त्रों का जप करते हुए स्नान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।


(5). सूर्योदय के पूर्व स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। एवं ऋषिस्नान व ब्रम्हस्नान से प्रजापत्य यज्ञ का फल प्राप्त होता है।


(6). भोजन के तुरंत बाद कभी भी स्नान नही करना चाहिए। भोजन के कम से कम 2 घण्टे बाद स्नान करना चाहिए।


(7). निर्वस्त्र होकर कभी भी स्नान नही करना चाहिए ।


(8). स्नान से हमारे शरीर की गर्मी व विषैले तत्व जल में घुलकर शरीर से बाहर निकल जाते हैं। अतः स्नान के पश्चात एक गिलास पानी अवश्य पीना चाहिए।


(9). यह धर्मभीरुता या धर्मान्धता नही है यह आयुर्विज्ञान है, मनोविज्ञान है, चिकित्सा विज्ञान है । स्नान कैसे करें सम्बन्धी सभी प्रश्नों के जवाब आपको मिल गए होंगे।

निष्कर्ष

आशा है हमारा यह लेख ” कैसे करें स्नान ” आपको अवश्य अच्छा लगा होगा। जो भी नियम हमारे पूर्वजों ने बनाये थे व बहुत ही युक्तिसंगत व उचित थे।

आज समाज का पतन इन्ही नियमों व ज्ञान के अंत का परिणाम है। अतः सतर्क रहें , सजग रहें ,धार्मिक बनें।

अपना कीमती समय निकालकर ” स्नान कैसे करें से सम्बंधित यह लेख पढ़ने के लिये आपका धन्यवाद।

 

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7 thoughts on “कैसे करें स्नान ? जानिए स्नान के प्रकार व फायदे!

  1. वाह.. बहुत बहुत सुन्दर जानकारी भाभी.. बहुत धन्यवाद आपका..🙏👑💐💞

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