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कैसे करें जीवन मे मौन का वरण ?

 आइये आज हम अपने भीतर की शक्तियों से स्वयं का परिचय कराएं। वो शक्ति है मौन की शक्ति। मौन एक शस्त्र है, मौन एक ओषधि है। मौन का हमारे जीवन मे बड़ा महत्व है। ये सारी बातें हम सभी अपने जीवनकाल में अपने से बड़ों से बचपन से ही  सुनते आ रहें हैं, किन्तु कभी इस बारे में विचार ही नही किया कि मौन कैसे रहा जाए,  कब रहा जाए , क्यों रहा जाए।                         

आइये आज इस मौन की व्याख्या करते हैं ,जानते हैं कि मौन हमें किस तरह से प्रभावित करता है……

1. मौन क्या है?  

                  मौन का सामान्य अर्थ है चुप रहना,किन्तु मैं ये कहूंगी की मौन चुप रहना नही, बल्कि स्वयं को चुप रखना है। चुप रहने का मतलब है कि हमारे मस्तिष्क में चल रहे विचारों को दबाकर अपनी आवाज को बंद करना चुप रहना है, पर इस चुप में हमारा मन व मस्तिष्क बोलता रहता है, तो ये मौन नही हुआ ये हुआ चुप रहना। अब बात करतें हैं स्वयं को चुप रखने की ।  चुप रखने का मतलब है कि बाहरी वातावरण एवं किसी भी प्रकार के विचारों पर अंकुश लगाना अर्थात मन को एकदम शांत रखना ही चुप रहना या मौन रहना है।

2. मौन कैसे रहा जाए?   

                       मौन रहने का अभ्यास करना पड़ता है। इसके लिए सर्वप्रथम हम ये संकल्प लें कि हमें आज से मौन का अभ्यास करना है शुरुवात करें सुबह से। आप ये निश्चित कर लें कि सुबह एक घण्टे आपको किसी से कोई बात नही करनी है। इसके लिए आप अपने समय से एक घण्टे पूर्व उठ जाएँ और स्वयं के कार्यों में लग जाएं, किसी से भी कुछ भी न कहें, न किसी को उठायें, न बात करें,बिल्कुल मौन रहकर अपने नित्य के नियमित कार्यों को करते रहें। आप समय से पूर्व उठें है इसलिये किसी को भी इस समय आपकी कोई आवश्यकता नही होगी, ये पूरा एक घण्टे का समय सिर्फ आपका है अतः केवल स्वयं व स्वयम के कार्य के बारे में ही विचार करें।जैसे ही एक घंटा पूरा हो आप बोलना शुरू कर सकते हैं। किंतु हर 1 या 2 घण्टे के अंतराल में 15 मिनट का मौन रखें। कितना भी आवश्यक हो उस मौन के समय मे मौन ही बने रहने की कोशिश करें।इस तरह शुरुआत में थोड़ा कठिन जरूर लगेगा पर धीरे धीरे मौन का अभ्यास होने लगेगा और आप मौन रहना सीख जाएंगे।

3.मौन कब रहा जाए?

                             मौन रहने की कुछ परिस्थितियां होती है जिनमे आप सफलतापूर्वक मौन रहने का अभ्यास कर सकते हैं, जैसे जब कुछ लोग एकसाथ हों , उनमे होने वाली बातों को केवल सुने, उसके प्रति कोई भी प्रतिक्रिया अपने मन मे न आने दें, न ही उसका कोई उत्तर दें,अर्थात उस वार्तालाप को अनसुना करने का प्रयास करें।                          दूसरे जहां कुछ लोग एकसाथ काम कर रहे हों वहीं पर आप भी काम करें किन्तु किसी को भी कोई सलाह न दें,मौन रहकर अपना काम करें, किसी के कुछ भी कहने पर आवश्यक न हो तो कुछ न बोंलें मौन रहें, किसी के द्वारा किये कार्य पर क्रोध आने पर मौन रहें, दुःख होने पर मौन रहें, अचानक उपलब्धि पर कुछ देर मौन रहें,विपत्तिकाल में मौन रहें, विपरीत व अनुकूल दोनों ही परिस्थितियों में मौन रहें, इसके अतिरिक्त अन्य परिस्थितियाँ जो आपको उद्विग्न करती हो उनमे भी मौन रहें। मन को विचार शून्य कर दें। मौन का अभ्यास निरन्तर हर परिस्थितियों में करें।

4. मौन क्यों रहा जाए ?     

                        मौन एक शक्ति है। जब हम मौन होते हैं तो सामने हो रही घटनाएं व परिस्थितियाँ हमारे नियंत्रण में होती हैं,इसके साथ ही अन्तर्मुखी होने से हमारे भीतर की शक्तियाँ जागृत होती हैं जैसे क्षमा, दया, प्रेम, विवेक, इत्यादि।     

                         जहां किसी की निन्दा हो, जहां किसी की प्रशंसा हो मौन रहने का प्रयास करें,  मौन जीवन की सर्वश्रेष्ठ साधना है जो हमे सफलता के शिखर तक ले जाता है। जिस प्रकार आँखें ज्ञान का द्वार होती हैं उसी प्रकार जिव्हा ऐसी ज्ञानेन्द्रिय है, जो हमारे भीतर की शक्तियों को ज्ञान को हमारे मस्तिष्क से बाहर कर देती है ,इसलिए कहा भी गया है कि जिसने अपनी जीभ पर नियंत्रण कर लिया उसने संसार को जीत लिया। अतः मौन का अभ्यास करें ताकि आप विश्व विजेता बनें, बुद्ध बनें,तथा अपने जीवन में असीम शांति और सौंदर्य का अनुभव करें।                         

 जिस भी व्यक्ति को अपने जीवन में कुछ सफलता, शांति, प्रेम, सद्भाव लाने हो , अपने जीवन के दुःखद पलों को सुख में बदलना हो वे मौन का पालन करें। सारी परिस्थितियों को देखें, व चुप रहें, होने दे जो हो रहा है, जिन परिस्थितियों को देखकर आप विचलित, दुःखी व उत्तेजित हो जाते थे, और अपनी प्रतिक्रिया देने लगते थे, किन्तु फिर भी उन परिस्थितियों को आप कभी भी नियंत्रित नही कर पाए, वहीं केवल मौन रहने से वे परिस्थितियां अपने आप समाप्त हो गईं, वो चाहे बच्चों का उपद्रव हो, या किसी की उपेक्षा या विपरीत दशाएं। इसलिए कुछ देर मौन रहकर जरूर देखें, ये भाव मन से हटा दें कि संसार की सारी घटनाएं आपके नियंत्रण में है, लेकिन आप स्वयम को नियंत्रित कर संसार को नियंत्रित जरूर कर सकते हैं।                          सामान्यतः हमारे शरीर मे एक समय मे एक ही इन्द्रिय काम करती है अर्थात बोलते समय हम कुछ भी सुन नही पाते, और यदि कोई बात हमे सुननी हो तो हमें मौन रहना जरूरी होता है। जब तक हम बातों को सुनेंगे नहीँ तब तक हमारी समझ  सूझ बूझ विकसित नही होगी। और जीवन मे किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए समझ व सूझबूझ का होना बहुत आवश्यक है। अतः मौन रहकर अपने विषय व परिस्थितियों का समझने का प्रयास करें। कोई भी विषय या परिस्थिति का अर्थ जब हमें समझ मे आ जाता है तब उस विषय या परिस्थिति पर विजय या सफलता पाना आसान हो जाता है।       

                 अतः मौन का अभ्यास कर अपने जीवन को निखारें।आप पाएंगे की इस मौन साधना से आपके अंदर दृढ़ता, आत्मविश्वास, धैर्य, बुद्धि , विवेक आदि गुणों का विकास होना शुरू हो गया है और आप सुख का अनुभव करने लगें हैं, आप मे आत्मविश्वास पैदा होने लगा है, क्योंकि आप मौन है, अपने परिस्थितियों को सुनना शुरू कर दिया है, पूरा ध्यान सुनने में लगाएं, जितना ज्यादा ध्यान से विषयों को सुनेंगे समस्याएं खत्म होती जाएंगी। क्योंकि जब हम मौन नही रहते तब मुखर होते हैं उस समय हम सुनते भी वही हैं जो हम स्वयं बोल रहे होते हैं और इस कारण हम सामने से आने वाली बातों को नही सुन पाते, जिनसे जीवन मे विवाद व निराशा की स्थितियां पैदा हो जाती हैं। कई बार अपने देखा होगा कि हम जो बोल रहे होते हैं वही सामने वाला भी बोल रहा होता है किंतु हमने सुना नही और एकमत होते हुए भी विवाद हो गया, वहीं आपका मौन सौहार्द्र पैदा कर सकता था। अतः प्रयास करें व मौन से जीवन में सफलता की ओर कदम बढ़ावें।

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