नमस्कार दोस्तों ! भगवान को नारियल क्यों चढ़ाते हैं ; जानिए महत्वपूर्ण तथ्य! पृथ्वी का सबसे पवित्र फल नारियल है इसे श्रीफल भी कहते हैं . श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी अर्थात यह सौभाग्य व समृद्धि की निशानी है।
लक्ष्मी के बिना कोई भी शुभ कार्य पूरा नहीं होता । अतः किसी भी पूजा और शुभ कार्य के आरंभ में सबसे पहले नारियल चढ़ाया जाता है। इसके पीछे हमारे पुराणों में कुछ तथ्य बताए गए हैं आइए जानते हैं भगवान को नारियल क्यों चढ़ाते हैं।
भगवान को नारियल क्यों चढ़ाते हैं !
- नारियल का फल भगवान श्री गणेश को अत्यंत प्रिय है। इसीलिए सर्व प्रथम पूज्य देवता श्री गणेश जी की प्रसन्नता
- हेतु किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले नारियल को फोड़ा जाता है।
- इसका पवित्र जल सकारात्मक शक्तियों से पूर्ण होता है। यह आसपास की सभी नेगेटिव शक्तियों को दूर करता है।
- इसके ऊपरी सतह यह बताती है कि किसी भी कार्य की सफलता के लिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है।
- ऐसा कहते हैं कि पूर्व में मनुष्यों व पशुओं की बलि देना एक सामान्य बात थी ।
- और तभी आदि गुरु शंकराचार्य जी ने इस अमानवीय व अपवित्र प्रथा को तोड़कर मनुष्य और प्राणियों के स्थान पर
- नारियल चढ़ाने की शुरुआत की थी। नारियल को एक तरह से मनुष्य के मस्तिष्क से मिलता जुलता माना और
- इसकी जटाएँ मनुष्य के बालों की तरह तथा कड़ी सतह मनुष्य की खोपड़ी से तुलना कर,
- नारियल पानी को खून से तुलना की थी तथा नारियल के गूदे की तुलना मनुष्य के दिमाग से की जाती है ।
- नारियल तोड़ने का मतलब अपने अहम को तोड़ना है ।नारियल इंसान के शरीर को प्रदर्शित करता है।
- जब आप इसे तोड़ते हैं तो इसका मतलब होता है कि आपने स्वयं को ब्रह्मांड में सम्मिलित कर दिया है।
- नारियल में मौजूद तीन चिन्ह भगवान शिव की आंखें मानी जाती है।
- इसलिए यह कहा जाता है कि यह आपकी सभी मनोकामना ओ को पूरा करता है
- नारियल के पेड़ को संस्कृत में कल्पवृक्ष भी कहते हैं और कल्पवृक्ष सभी मनोकामना को पूर्ण करता है।
- अतः पूजा के बाद नारियल को फोड़ कर प्रसाद के रूप में सभी को वितरित करना चाहिए।
- नारियल की उत्पत्ति के संबंध में एक कथा इस प्रकार है।
नारियल की उत्पत्ति की कथा!
(भगवान को नारियल क्यों चढ़ाते हैं)
एक सत्यव्रत नाम के राजा थे ।वे बड़े ही धार्मिक थे और
उनकी यह इच्छा थी कि किसी भी तरह वह सशरीर स्वर्ग जाना चाहते थे।
लेकिन कैसे जाएं यह उन्हें समझ में नहीं आता था । एक बार जब ऋषि विश्वामित्र तपस्या करने वन में गए थे
तब पीछे से अकाल पड़ा जिससे उनका परिवार बहुत परेशानियों में पड़ गया।
तब राजा सत्यव्रत ने उनके परिवार की देखभाल की और संपूर्ण जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।
जब विश्वामित्र जी तपस्या से लौटे तब उनके परिवारजनों ने राजा की सेवा भावना व सहायता करने की बात बताई।
इससे विश्वामित्र जी अत्यंत प्रसन्न हुए और राजा के पास गए। राजा ने उनका स्वागत सत्कार किया ।
ऋषि ने कहा कि हम तुम्हारी सेवा से प्रसन्न हैं ,कुछ मांगो। तब राजा ने अपनी इच्छा उन्हें बताई कि
मुझे सशरीर स्वर्ग जाना है। विश्वामित्र जी ने अपने तपोबल से उसी समय राजा को सशरीर ही स्वर्ग भेज दिया।
(भगवान को नारियल क्यों चढ़ाते हैं)
स्वर्गलोक का निर्माण !
यह देखकर देवराज इंद्र को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने राजा को धक्का मारकर नीचे फेंक दिया।
इस पर राजा पुनः ऋषि के पास गए और उन्हें सारा दुख बताया। तब ऋषि ने देवताओं से बात की और
यह निर्णय हुआ कि स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक और स्वर्ग बनाएंगे जिसे सत्यव्रत को दिया जावेगा।
इस तरह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच स्वर्ग लोक बनाया गया। किंतु विश्वामित्र जी को डर था कि कहीं यह स्वर्ग
आंधी तूफान से डर मनाने डगमगाने ना लगे तो उन्होंने एक पिलर बनाया।
वह पिलर एक वृक्ष बन गया और उसमें जो फल लगे वही नारियल हैं। और यह पिलर नारियल का वृक्ष है।
इसमें लगे हुए नारियल ही सत्यव्रत हैं। अथवा जो भी पूजा में इसे रखते हैं उससे देवता, राजा सत्यव्रत और ऋषि तीनों
ही प्रसन्न होते हैं। इसीलिए श्रीफल अर्थात नारियल को पूजा में सर्वप्रथम रखा जाता है ।
नारियल से निकलने वाला जल अत्यंत पवित्र और चमत्कारिक होता है ।(भगवान को नारियल क्यों चढ़ाते हैं)
अतः इसकी एक भी बूंद नष्ट नहीं करनी चाहिए तथा सभी को प्रसाद के रूप में बांट देना चाहिए।
यह सभी मनोकामनाएं को पूरा करता है कई लोगों को तो यज्ञ में चढ़ी हुई श्रीफल के जल से ही संतान प्राप्ति तक हो जाती है।
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