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एकादशी व्रत के नियम व उद्यापन की विधि !Ekadashi fasting rules..

नमस्कार दोस्तों ! एकादशी व्रत के नियम व उद्यापन की विधि ! व्रत का अर्थ है संकल्प ! मन मे दृढ़ता लेन व संयम पैदा करने का तरीका ही व्रत कहलाता है। भारतीय संस्कृति में व्रतों की लम्बी शृङ्खला है।

हमारे ऋषि-मुनियों ने धार्मिक व्रतों के अनुपालन का आदेश दिया है ताकि मानव मात्र व्रतों के पालन से अनेक प्रकार के रोगों से मुक्त होकर स्वस्थ जीवन यापन करते हुए भगवत्प्राप्ति का सहज सुलभ साधन कर सके।

सभी व्रतों का विधान अलग होते हुए भी ध्येय सबका समान ही है। मन पर नियन्त्रण और शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य की प्राप्ति व्रत का प्रतिफल है। मन सभी क्रियाकलापों का आधार है, संकल्प-विकल्प का जन्मदाता है। व्रत के विधान के अनुसार लंघन या स्वल्पाहार से आँतों की सफाई होती है। फलस्वरूप आँतें अधिक सक्रिय हो जाती हैं जो स्वास्थ्य का आधार है।

व्रत के परिणाम में व्यक्ति में परमात्मा के गुण प्रकट होने लगते हैं। आत्मा परमात्मा की निकटता की ओर आगे बढ़ती है। व्रत में शुद्ध सात्त्विक आहार लिया जाता है जिससे मन शुद्ध होता है, सत्त्वकी शुद्धि होती है। सत्त्वकी शुद्धि से अखण्ड भगवत्स्मृति बनी रहती है और यही ध्रुवास्मृति सभी ग्रन्थियों के विमोचन में हेतु बनती है—

‘अहरसुधौ सत्त्वसुधि: सत्त्वसुधौ ध्रुवा स्मृति: स्मृतिलंभे सर्वग्रंथिनां विप्रमोक्ष:’।

(छान्दोग्योपनिषद ७|२६|२)

एकादशी व्रत के नियम !

व्रत इस शुद्धि क्रम की पहली सीढ़ी है। आत्मशुद्धि के लिये व्रतों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।

ऋषि-मुनियों के विचार हैं कि यदि महीने में मात्र दोनों एकादशियों का व्रत विधि विधान से किया जाय

तो मनुष्य की प्रकृति पूर्णतया शुद्ध एवं सात्त्विक हो जाती है।

काम्पिल्य नगर के राजा वीरबाहु के पूछने पर महर्षि भारद्वाज ने एकादशी व्रत के नियम उन्हें बताये थे। जो संक्षेपमें इस प्रकार है ।

1- जो व्यक्ति एकादशी व्रत करना चाहता है तो दशमी को शुद्ध मन होकर सूर्यास्त के पूर्व भोजन कर ले, रात में भोजन न करे।

2- दशमी को कांसे बर्तन में भोजन, उड़द, मसूर, चना, कोदो, साग, शहद, दूसरे का अन्न, दो बार भोजन, भोगो को त्याग दे।

मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को मन और इन्द्रियों को वश में करते हुए देवपूजन के बाद जल से अर्घ्य देते हुए

प्रार्थना करे- ‘कमल के समान नेत्रों वाले भगवान् अच्युत! मैं एकादशी को निराहार रहकर दूसरे दिन । भोजन करूँगा,

मेरे आप ही रक्षक हैं।’ ऐसी प्रार्थना कर क रात्रि में ‘ॐ नमो नारायणाय’ मन्त्र का जप करे।

3- एकादशी के दिन बार-बार जलपान, हिंसा, अपवित्रता, असत्य भाषण, पान चबाना, दातुन करना, दिनमें सोना, मैथुन,

जुआ खेलना, रात में सोना और पतित मनुष्यों से वार्तालाप जैसी ग्यारह क्रियाओं को त्याग दे।

एकादशी व्रत के नियम !

4- स्नान-पूजन आदि नित्यकर्म से निवृत्त होकर भगवान् से प्रार्थना करे – ‘हे केशव! आज आपकी प्रसन्नता के लिये

दिन और रात में संयम-नियम का मेरे द्वारा पालन हो। मेरी सोयी हुई इन्द्रियोंके द्वारा कोई विकलता, भोजन या भोग की

क्रिया हो जाय या मेरे दाँतों में पहले से अन्न लगा हुआ हो तो हे पुरुषोत्तम ! आप इन सब बातों को क्षमा करें।’

5- एकादशी की रात्रि में जागरण कर एकादशी कथा का श्रवण करना चाहिये।

आलस्य त्यागकर प्रसन्नता पूर्वक, उत्साह सहित, षोडशोपचार से भगवान का पूजन, प्रदक्षिणा, नमस्कार करे।

प्रत्येक पहर में आरती करे। गीत, वाद्य तथा नृत्य के साथ जागरण कर ‘गीता’ और ‘विष्णुसहस्रनाम का पाठ करे।

6- दशमी और एकादशी को त्यागी हुई क्रियाओं सहित द्वादशी को शरीरमें तेल भी न लगावें।

7- द्वादशी को शुद्धचित्त होकर भगवान् से प्रार्थना करे – ‘हे गरुडध्वज! आज सब पापों का नाश करनेवाली, पुण्यमयी

पवित्र द्वादशी तिथि मेरे लिये प्राप्त हुई है, इसमें मैं पारण करूँगा। आप प्रसन्न होइये।’

8- इसके बाद ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन कराकर स्वयं भोजन करे ।

9- इस प्रकार वर्ष पर्यन्त एकादशी का व्रत करना चाहिए। वर्ष की चौबीस एकादशी व्रत के नाम और नियम में

थोड़ा अन्तर अवश्य है। जैसे आमला एकादशी को आँवले की पूजा होती है और देवशयनी को जलशायी विष्णु भगवान की ।

परंतु सभी एकादशी में सामान्य विधि समान है।

एकादशी व्रत के उद्यापन के नियम !

  • एक वर्ष पूरा होने पर एकादशी व्रत का उद्यापन किया जाता है । एकादशी व्रत के उद्यापन के नियम इस प्रकार हैं।
  • मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में इसका उद्यापन किया जाता है
  • उद्यापन में बारह विद्वान् ब्राह्मणों को पत्नी सहित आमन्त्रित करना चाहिये।
  • स्नान आदि से शुद्ध होकर श्रद्धा से सभी का पूजन करे।
  • ब्राम्हण को चाहिये कि उत्तम रंगों से चक्र कमल संयुक्त सर्वतो भद्र मण्डल बनाये।
  • जिसे श्वेत वस्त्र से ढंक। फिर पञ्चपल्लव एवं पञ्चरत्न से युक्त कर्पूर और अगरु की सुगन्ध से वासित जल से भरे
  • कलश को लाल कपड़े से बांध करके उसके ऊपर ताँबे का बर्तन रखे। उस कलशको पुष्पमालाओं से भी सजाएं ।
  • इस कलशको सर्वतो भद्र मण्डल के ऊपर स्थापित करके कलश पर श्री लक्ष्मी नारायण की मूर्तिकी स्थापना करे।

भगवान विष्णु की प्रतिमा की स्थापना करें।

  • सर्वतो भद्र मण्डल में बारह महीनों के अधिपतियों की स्थापना करके उनका पूजन करना चाहिये।
  • मण्डल के पूर्व भाग में शुभ शङ्ख की स्थापना करे और कहे-‘हे पाञ्चजन्य ! आप पहले समुद्रसे उत्पन्न हुए,
  • फिर भगवान् विष्णु ने अपने हाथों में आपको धारण किया, संपूर्ण देवताओं ने आप के रूप को संवारा है
  • आपको नमस्कार है।
  • सर्वतो भद्र मण्डल के उत्तर में हवन के लिये वेदी बनाये और संकल्प पूर्वक वेदोक्त मन्त्रों से हवन करे।
  • फिर भगवान् विष्णु की प्रतिमा की स्थापना, पूजन और परिक्रमा करे।
  • ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराकर नमस्कार करे। इसके बाद ब्राह्मणो को वैदिक मन्त्रों का जप करना चाहिये।
  • जपके अन्तमें कलश के ऊपर भगवान् विष्णु की स्थापना करनी चाहिये और विधिपूर्वक पूजा तथा स्तुति करे।
  • घी युक्त हवन सामग्री से आहुति देने के बाद एक सौ पलाश की समिधाएँ (लकड़ी) घी में डुबोकर हवन करे
  • पलाश की समिधाएं (लकड़ी) अँगूठे के सिरे से तर्जनी के सिरे तक लम्बाई की हों।
  • इसके बाद तिल की आहुतियाँ दी जानी चाहिये। इस वैष्णव होम के बाद ग्रह यज्ञ करे, इसमें भी इसी प्रकार हवन करें।
  • फिर ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराकर दक्षिणा और दान दे।
  • जिसमें अन्न, वस्त्र, गाय, धन, कलश एवं स्वर्ण का यथाशक्ति दान किया जाय।

अंत मे ।

इस प्रकार एकादशीव्रतका विधान है। इस अखण्ड एकादशी व्रत के नियम पूर्वक करने से मनुष्य की सौ पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है। जागरण की रात्रि जागरण करते समय नृत्य करने से भगवान् स्वयं भक्तके साथ नृत्य करते हैं।

किन्तु यदि उपरोक्त एकादशी व्रत के नियम न कर सकें तो कम से कम एकादशी को लहसुन, प्याज का परहेज करते हुए

मन, वचन और कर्म से पूर्णतः संयम का पालन कर विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ भगवान के सामने घी का दिया जलाकर अवश्य करें।

ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए देखते रहें आपकी अपनी वेबसाइट

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