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जीवन मे असफलता का सबसे बड़ा कारण ? लिखें सफलता की कहानी!!

नमस्कार दोस्तों ! जीवन मे असफलता का सबसे बड़ा कारण क्या है ? सफलता में सबसे बड़ी बाधा क्या है ? पृथ्वी पर आया हर इंसान बहुत कुछ पाना चाहता है। वह एक सुखी, समृद्ध और सफल जीवन जीना चाहता है। इसके लिए वह पहले बड़ी-बड़ी कल्पनाएँ करता है, फिर उन्हें पूरा करने के लिए योजनाएँ बनाता है और फिर उन्हें क्रियान्वित करता है।

मगर कुछ इंसानों की उड़ान कल्पनाओं और योजनाओं तक ही सीमित रहती है। कार्य करने का समय ओनपर वे पीछे रह जाते हैं और उनका जीवन असफलता की कहानी बनकर रह जाता है। आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे। कभी कभी कहीं पढ़ी, सुनी और कही गई एक बात भी व्यक्ति के पूरे जीवन को बदल देती है। अतः इसे अंत तक अवश्य पढ़ें ।

जीवन मे असफलता का कारण !

इंसान की असफलता के पीछे जिस विकार का सबसे बड़ा हाथ होता है, वह है तम, तमोगुण । तमोगुण यानी आलस्य,

सुस्ती, अति निद्रा, तंद्रा… एक सुस्त इंसान देख रहा होता है कि सब काम पड़े हैं, यह होना है, वह होना है…

बिस्तर छोड़कर उठना है मगर उस पर ऐसी सुस्ती हावी रहती है कि वह चाहकर भी क्रियाशील नहीं हो पाता।

फिर उसे काम न होने का अपराधबोध आता है, फिर भी वह क्रियाशील नहीं होता।

उसका तमोगुणी मन काम न कर पाने के अनेक कारण खोज निकालता है

और अपराधबोध से कुछ देर के लिएमुक्त होकर खुश हो जाता है ।

काम हुए बिना भी ऐसे रिलैक्स हो जाना जैसे काम हो गया हो, तमोगुणी की खास पहचान है।

तमोगुणी इसान की पसंदीदा कहावत है

‘आज करे सो काल कर, काल करे सो परसों, इतनी भी क्या जल्दी है जब जीना है बरसों।’

आपने कुछ लोगों को बात बात में इस कहावत का इस्तेमाल करते हुए देखा होगा।

वे दुनिया के दर्शन (फिलॉसफी) और कहावतों को अपने हिसाब से गढ़कर खुश हो जाते हैं।

एक प्रसिद्ध कहानी है।

एक इंसान हमेशा पेड़ के नीचे आलस्य के कारण लेटा रहता था।

उस रास्ते से रोज गुजरनेवाला एक राहगीर अक्सर उसे देख कर सोचता था कि यह हमेशा ऐसे ही सुस्त पड़ा रहता है,

इसका क्या जीवन है? एक दिन उस राहगीर ने रुककर उससे पूछा कि

‘तुम हमेशा ऐसे ही निठल्ले की तरह लेटे रहते हो, कुछ काम क्यों नहीं करते?”

उस इंसान ने पूछा, ‘काम करने से क्या होगा ?’ राहगीर ने जवाब दिया, ‘काम करने से तुम्हें पैसे मिलेंगे,

जिससे तुम घर बना सकते हो, सुख-सुविधाओं की चीजें जुटा सकते हो,

अपनी सभी जिम्मेदारियाँ अच्छे से पूरी कर सकते हो।’ निठल्ले इंसान ने पूछा, ‘उससे क्या होगा?’

राहगीर ने जवाब दिया ‘फिर तुम अपना जीवन आराम से व्यतीत कर सकते ‘हो।’

इस पर उस इंसान ने कहा, ‘यह तो मैं अभी भी कर रहा है फिर इतना सब करने की क्या जरूरत है।

तो तमोगुणी की विचारधारा इस तरह की होती है कि जब बिना कुछ किए ही काम चल रहा है

तो क्यों बेवजह शरीर को कष्ट दिया जाए। वे हर काम से बचने के कारण और बहाने ढूंढ लेते हैं। यही इंसान के जीवन मे असफलता का सबसे बड़ा कारण होता है।।

जीवन मे असफलता का कारण तमोगुण की अधिकता होने पर …

आलस्य या सुस्ती की अधिकता से हमारे सिस्टम में कुछ अतिरिक्त बुराइयां भी प्रवेश कर जाती हैं।

जैसे बात बात पर झूठ बोलना, आराम में व्यवधान पड़ने पर क्रोध, चिड़चिड़ापन आना,

शरीर का निष्क्रिय होकर बीमारियों से घिर जाना, समय से काम पूरे न होने पर असफलताओं का मिलना

जिस कारण जीवन में दुःख और दरिद्रता का आना आदि।

आपके भीतर छिपा अतिरिक्त तमोगुण न सिर्फ सांसारिक उन्नति में बाधा बनता है बल्कि

यह आध्यात्मिक उन्नति में भी बहुत बड़ी रुकावट है क्योंकि यह आपको ध्यान में नहीं बैठने देता।

यह विचारों और कोरी कल्पनाओं को चलायमान रखता है। तमोगुणी वृत्ति संस्कार में आ जाती है,

जिस कारण से यह न सिर्फ पृथ्वी के जीवन (पार्ट वन) पर नकारात्मक असर डालती है बल्कि

मृत्यु उपरांत जीवन (पार्टटू) में भी आपके साथ बनी रहती है। यही जीवन मे असफलता का कारण है।

इसलिए आपको इसी जीवन में सुस्ती से मुक्ति के उपाय करने होंगे ताकि

इस जीवन के साथ-साथ आगे की यात्रा में भी बाधा न आए।

इस में आपको सुस्ती से मुक्ति के लिए क्रमबद्ध एक-एक कदम उठाने से की वृत्ति रूपी दीवार पर कड़े प्रहार होंगे

और लगातार प्रहार से यह दीवार बिखर जाएगी।

सुस्ती की आदत से मुक्ति पाने पर आपके भीतर से अतिरिक्त तम निकलकर उतना ही तम बचेगा,

जितना आपके लिए आवश्यक है।

फिर आवश्यक तम का प्रयोग सत्य की साधना और अव्यक्तिगत अभिव्यक्ति (सबके मंगल) के लिए होगा।

जीवन में असफलता का त्याग ,सत्य के साधक का उद्देश्य …

साधक का उद्देश्य गुणातीत अवस्था को प्राप्त करना होना चाहिए। यह एक ऐसी अवस्था है,

जिसमें आप हर चीज का समय पर मगर जितनी जरूरत है मात्र उतना ही इस्तेमाल करते हैं।

एक गुणातीत इंसानतम, रज और सत् को संतुलित कर सही तरीके से सत्य की अभिव्यक्ति करता है।

जब उसे आराम की जरूरत महसूस होती है, तब वह आराम करता है और जरूरत पूरी होने पर आराम को

सहजता से छोड़ पुनः काम पर लग जाता है। काम पूरा होने पर वह उससे भी सहजता से अलग हो जाता है,

उसके परिणाम या क्रेडिट में उलझता नहीं गुणातीतइंसान साधन का इस्तेमाल तो करता है

मगर उससे चिपकता (अटैच) नहीं और जरूरत पूरी होने पर उससे आसानी से अलग भी हो जाता है।

शरीर की जरूरत पर तम का उपयोग होता है और शरीर के पुनः ऊर्जावान होते ही सुस्ती को दूर करदिया जाता है।

इस का यही उद्देश्य है कि आपके भीतर छिपकर बैठा तमोगुण आलस्य प्रकाश में आए। आप इसे और इसके दुष्प्रभावों को जान पाएँ । आप स्वयं से चिपके अतिरिक्त सुस्ती व आलस्य को हटा सकें। जीवन में बाधा बनी सुस्ती से मुक्त होकर गुणातीत अवस्था प्राप्त कर सकें ताकि आपका जीवन पृथ्वी पर बोझ नहीं बल्कि सत्य की अभिव्यक्ति करे।

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