तू खुद अमिट निशानी थी ! श्रीमती मनोरमा दीक्षित (पूर्व प्राचार्या) मण्डला । आज अचानक कानपुर से आये फोन ने हमें खुशी से भर दिया था।
तू खुद अमिट निशानी थी…
मेरी भतीजी मानवी का विवाह पांच फरवरी उन्नीस को होना था और वह भी हमारे नजदीक ही होशंगाबाद में ।
लड़का भी अच्छा मिला था, वह भोपाल में रेंजर था आज 25 जनवरी है।
काफी दिनों पहिले ही उन्होंने हमें खबर दी थी ताकि हम अपनी पूर्व व्यवस्था बना विवाह समारोह में अवश्य शामिल हो सकें।
मेरी दोनो बेटियों आद्या और आर्या की कल्पना को मानो पंख लग गये थे।
शीघ्र ही उन्हें झांसी घूमने का अवसर जो मिलने वाला था। कानपुर से झांसी बमुश्किल ढाई घंटे का सफर था।
जब से उन्होंने अपनी पुस्तक में “झांसी की रानी” कविता पढ़ी थी,
कई बार झांसी का किला देखने की इच्छा व्यक्त कर चुकी थीं। चलो अच्छा ही है,
लगे हाथ हम भी बहती गंगा में हाथ धो लेंगे।
आद्या और आर्या ने मानवी दीदी की मेंहदी पर खूब नाचने का इरादा बना लिया था ।और रंग बिरंगे कई सेट कपड़ों और ज्वेलरी के खरीद लायी थी।
कहती हैं कि आखिर हमारी फोटो भी तो सुन्दर आनी चाहिए।
मेरी साड़ियाँ और हमारे साहबजी के सूट भी ड्राईवाश होकर आ गये थे।
मानवी और नए दामाद…
मानवी और नये दामाद अरविन्द जी की गिफ्ट भी आ चुकी थी।
दूसरे ही दिन हमारी सहेजी आकांक्षा पूर्ण होने जा रही थी क्योंकि हमें झांसी के बस स्टेण्ड पर पहुंचते हीलक्ष्मीबाई का बहुत ही भव्य पोर्ट्रेट देखने को मिला जबकि वहां से मात्र एक फर्लांग पर एक ऊंचे टीले पर
लाल पत्थरों से बना झांसी का किला था। उस भव्य किले की स्वच्छता और रखरखाव के परिणामस्वरूप
वह अपनी गौरव गाथा के अनुकूल मस्तक उठाये खड़ा था ।
किले के बाहर शासन की ओर से पट्टिका में उसका सम्पूर्ण इतिहास अंकित थाजिसमें सब तथ्यपूर्ण जानकारी भारत सरकार की ओर
से अंकित थी।
बस स्टैण्ड में बनी…
बस स्टैण्ड में बनी लक्ष्मीबाई की प्रस्तर निर्मित प्रतिमा के नीचे लिखा था
“तेरा स्मारक तू होगी, तू खुद अमिट निशानी थीखूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।”
किले के अंदर लक्ष्मीबाई के पूर्वजों द्वारा निर्मित भगवान राम का (सम्पूर्ण सजावट के साथ) भव्य मंदिर हैजिसकी सजावट और स्वच्छता श्लाघनीय है। वहां संभवतः पुजारी (शासन की ओर से) लगा है।
अन्दर रेजीमेंट के लिए कमरे, रानी लक्ष्मीबाई का निवास, सुन्दर बगीचा और लॉन अत्यंत ताजी खुशबू बिखेरता है।
कई एकड़ में बने इस विशाल किले में तोपें और कुछ अन्य शस्त्र पर्यटकों के दर्शनार्थ रखे हुए हैं।
प्रस्तर की बेंच पर बैठकर हमने लंच किया और कुछ देर चर्चायें करते हुए विश्राम किया।
तू खुद अमिट निशानी थी ..
हमारी सारी मेहनत सफल हो गयी थी, क्योंकि हमने इस किले के विषय में जितना सुन रखा थाउससे कहीं बढ़चढ़ कर पाया। प्रति 30 मिनट में कानपुर के लिए बसें छूटती हैं ।
अतः पिकनिक को निपटा अब हम कानपुर जा पहुंचे। बस में बैठे-बैठे मैंने उन्हें (आद्या आर्या को) बताया कि
रानी लक्ष्मीबाई की यशकीर्ति को प्रसारित करने की सूत्रधार हमारे जबलपुर (हमारा गृहनगर) की बहू थीं ।
श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान |
हमारे जबलपुर के नगर निगम परिसर में श्रीमती सुभद्राकुमारी की अत्यंत सजीव प्रतिमा लगी है।अब हमारी सम्पूर्ण चर्चा झांसी से जबलपुर की ओर मुड़ चुकी थी।
दोनों बेटियाँ कुरकुरे और नमकीन का आनंद लेते हुए बड़े ध्यान से सारी बातें सुन रही थीं।
बेटी, भारत के मुक्त गगन में हमारे राष्ट्रीय ध्वज को लहराने और फहराने वाले अमर शहीदों के मध्य वीरांगनासुभद्राकुमारी चौहान नारी जगत की प्रेरणास्त्रोत एवं गौरव हैं।
भारत के प्रथम स्वातंत्र्य समर के जीवन्त स्मारक झांसी के किले में उकेरी इबारत-“खूब लड़ी… ..झांसी वाली रानी थीआज भी वीरांगना लक्ष्मीबाई और अमर कवियत्री सुभद्राकुमारी चौहान को महिमामंडित करने वाली हैं।
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