नमस्कार दोस्तों !! पुरानी ग्रामीण लोक कहावतें जो हमारे स्वास्थ्य की ओर इशारा करती हैं। और बातों बातों में ही हमारा इलाज भी कर देती हैं। प्राचीन समय में इन्हीं कहावतों को याद रख के लोग अपने जीवन शैली का निर्माण करते थे । और स्वस्थ रहते थे। इसीलिए तब डॉक्टर और वैद्य कि इतनी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती थी। और घर का प्रत्येक सदस्य स्वस्थ भी रहता था।
किंतु आज यह कहावतें लुप्त हो चुकी है और हम पूरी तरह से चिकित्सकों पर निर्भर हो चुके हैं। आज हम आपको उन्हीं पुरानी कहावतो की याद दिलाते हैं । और ले चलते हैं पुरानी कहावतों के स्वस्थ संसार में, जो हमें बैठे-बिठाए स्वास्थ्य भी प्रदान करती हैं । यह अत्यंत मनोरंजक और शिक्षाप्रद है। अतः इसे अंत तक अवश्य पढ़िएगा।
स्वास्थ्य संबंधी पुरानी ग्रामीण लोक कहावतें !
- यह कहावतें पुराने अनुभवी लोगों द्वारा स्वस्थ रहने की प्रक्रिया को आधार बनाकर बनाई जाती थी।
- जो अत्यंत लाभप्रद हुआ करती थी। जैसे- स्वस्थ रहने के लिये शुद्ध हवा कितनी आवश्यक है तभी तो कहा है
‘सौ दवा एक हवा’
- पहले सभी प्राकृतिक चिकित्सा में विश्वास रखते थे, तभी तो सभी उन्मुक्त स्वर से कहते थे।
“सब रोगों की यही दवा,
माटी पानी धूप हवा”
- इसी प्रकार पौष्टिक आहार की महिमा गान हुए कहा गया है।
‘करे आहार तोड़े पहार “
- अर्थात – जो स्वस्थ भोजन करता है वह पहाड़ भी तोड़ सकता है।)
- आजकल छोटे छोटे बच्चों को चश्मे का शिकार बनते देख कोई आश्चर्य नहीं होता ।
- क्योंकि हम उन कहावतों के ज्ञान से वंचित है जिनमें इन समस्याओं से उबरने का उपाय बताया गया है।
- बड़े व पुराने लोग अक्सर अपने से छोटों को समझा कर कहते रहते हैं
‘सूर्य, सिनेमा, बीड़ी, बिजली,
सूखा भोजन, चश्मा नकली,
सूरजदय तक जो ना जागे ।
नैन दृष्टि आप ही भागे ।
- अर्थात – सूर्य के प्रकाश, सिनेमा, धूम्रपान, बिजली, सूखा और बाजारू, बासी भोजन, सस्ते चश्मे और
- देर तक सोते रहने वाले अपने आंखों की रोशनी आप ही खोते हैं। इसलिये इन कामों से बचते रहना आवश्यक है।
पुरानी ग्रामीण लोक कहावतें
- पर यदि दृष्टि कमजोर हो गई से किस तरह से बढ़ायें। यह निम्न कहावतों दर्शाया है
‘मिट्टी के नव पात्र में,
त्रिफला निशि में डारि,
प्रातः काल ही धोय के,
आंख रोग को टारि ।”
- मिट्टी के नये बर्तन में त्रिफला को पानी में रात को भिगोदें। उस पानी से प्रातः आंखों को धोवें।
- इससे नेत्र रोग दूर हो जायेंगे ।
- इसी प्रकार गिद्ध दृष्टि (तेज दृष्टि) बनाने का उपाय भी इस प्रकार बतलाया है-
‘कारी मिरच को पीस अरु घी बूरे संग खात ।
नैन रोग सब दूर हो, गिद्ध दृष्टि हो जात ॥”
- अर्थात- काली मिर्च को खूब महीन पीस कर घी और शक्कर के साथ खाने से आंखों की रोशनी खूब बढ़ती है।
- छोटी उमर में आज लोगों के बाल खूब सफेद हो जाते हैं ।अतः बाल काले करने का उपाय बताया गया है।
‘ ” बाल सफेद न बाके होवे,
जो त्रिफला जल से सिर धोवे ।। “
- अर्थात -जो त्रिफला के जल से सिर धोता है। उसके बाल कभी सफेद नहीं होते हैं।)
ग्रामीण पुरानी लोक कहावतें
- गांव में किसानों को यदि किसी बिच्छु ने काट लिया तो वे किसी डाक्टर के पास नही जाते ,
- बल्कि यह उपचार करते हैं-
लहसन, दूध मदार को दोनों सङ्ग मिलाय ।
बिच्छू काटे पर घरे, विष तुरन्त मिट जाय ।।”
- अर्थात – लहसुन और आक का दूध मिला कर बिच्छू के डंक लगने वाली जगह पर लगाने से
- जहर तुरन्त मिट जाता है ।
- इसी तरह यदि खांसी का रोग हो जाये तो यह कहते हैं
‘कारी मिरच महीन पिसावें,
आक पुष्प अरु शहद मिलावें ।
चटनी भोजन प्रथम हि खावें,
सूखी खांसी झट मिट जावे || “
- अर्थात – काली मिर्च, आक के फूल और शहद मिला कर चटनी बना के तथा
- भोजन से पूर्व खाने से खांसी ठीक हो जाती है।
- लड़ाई-झगड़े , मारपीट में यदि अचानक चोट आ गइ तो तुरन्त यही उपचार करते थे
‘किसी शस्त्र से तन कट जावे ।
चूना भरे पकन नहीं पावे ॥’
- यदि शरीर में प्रहार का घाव हो जावे तो चूना लगाने से कोई पकने का डर नहीं रहता है ।
पुरानी ग्रामीण लोक कहावतें
- आंखों में यदि फुली पड़ जावे तो वह बहुत दुखदायी हो जाती है ।
- परन्तु लोक कहावत में निर्देशित यह अचूक औषधि है –
‘भुनी फिटकरी लॉजिये,
जल गुलाब में घोर,
जलन और जाली मिटे,
वैद्यन के ये बोल ”
- फिटकरी को भून कर गुलाब जल में घोल लीजिये। इसके प्रयोग से आंखों की जाली और जलन मिट जाती है।
- इसी प्रकार एक और अनुभूत प्रयोग बतलाया गया है।
‘अजयपाल के दूध में घिस कपूर जो नैन।
फुली मिटे छोटी बड़ी परे हाल ही चैन ।’
- बरगद के दूध में कपूर घिस कर आंखों में आंजने से जाला फुली और रोहे शीघ्र दूर हो जाते हैं ।
- कभी कभी कानों में दर्द होने लगता है, एक कभी कीड़ा कान में घुस जाता है । ऐसे समय में
‘अर्क सुदर्शन पत्र का गर्म कान में डाल ।
कानन के तो दर्द को मेटत है तत्काल | “
- सुदर्शन के पत्तों का रस गरम करके कान में डालने से कान का दर्द तुरन्त बन्द हो जाता है।
- लेकिन यदि आप चाहते हैं कि आपकी श्रवण शक्ति सौ वर्ष तक आप का साथ देती रहे तो
‘कान में कड़वा तेल डालो ।
जो सौ बरस सुनना चाहो || ”
- नित्य कानों में सरसों का तैल डालो, इससे वे साफ रहेंगे और श्रवण शक्ति अच्छी बनी रहेगी।
- नाक के रोगों से बचने का उपाय यह है-
‘कडुवा तेल नित नाक लगावे ।
ताको नाक रोग मिट जावे || “
- कडवा तैल सरसों का लगाते रहने से नाक के रोग मिट जाते हैं।
कुछ अन्य पुरानी ग्रामीण लोक कहावतें
- अनिद्रा सब रोगों की जड़ है। शरीर को विश्राम देने के लिये नींद गहरी आनी चाहिए।
- अतः गहरी निद्रा के ये अनुभूत प्रयोग तो आप अपना कर देख सकते हैं ।
‘गुड सङ्ग मिलाय के पीपर मूल जो खात ।
कहै भंडरी भाई जी गहरी निद्रा आत ॥”
- भंडरी कहती है कि भरा पीपमूल को गुड में मिलाकर खा लीजिये आपको गहरी नींद आवेगी ।
- यदि यह प्रयोग आपको नहीं जंचे तो यह कर देखिये।
‘जाहि नींद नहीं आवे,
वे नर रहे उदास ।
भांग भून तलवा मले,
नींद आबे पास ॥”
- पैरों के तलवों में भांग भूनकर लगाने से गहरी नींद आती है।
कुछ अन्य लोके कहावतें
- दांतों का दर्द दूर करने के लिए भी यह प्रयोग कीजिये
‘नमक महीन लीजिये और सरसों का तेल |
नित्य मलेरीसन मिटे छूट जाय सब मैल ||
- बारीक पिसे नमक में सरसों का तेल मिलाइये, नित्य मलने से सब दांतों के रोग मिट जाते हैं।
- यदि अब भी आपके दांत कमजोर हो और कुछ खाने में दर्द अनुभव करते हो तो यह अनुभूत प्रयोग कर देखिये –
त्रिफला, त्रिकुटा, तूतिया, पांचों नमक पतङ्ग, ।
दांत बज्रसम होत हैं, माजूफल के संग।
पुनि छिलका बादाम का,डारे साथ खलाय,
पिपरमेंट कपूर की, मंजन लेओ बनाय ||
- त्रिफला, त्रिकुटा और तूतिया का चूर्ण बनावें और माजूफल तथा बादाम के छिलके (जले हुये) उसका मंजन बनावें।
- उसमें पिपरमेंट और कपूर भी मिला लें।
- इस मंजन के प्रयोग से आपके दांत मोती के समान श्वेत और पत्थर के समान कठोर हो जायेंगे ।
अंत में
इस तरह इस तरह के की अनेक अद्भुत कहावतें जो स्वास्थ्य के नियमों की ओर इशारा करती थी पहले अधिकांशत कही सुनी जाती थी आज भी गांवों में इन कहावतों का बहुत महत्व है किंतु आधुनिकता के दौर में धीरे-धीरे सभी इन्हें भूलते जा रहे हैं।
हमारा उद्देश्य अपनी प्राचीन कहावतों को आप लोगों तक पहुंचाना है। पुरानी ग्रामीण लोक कहावतों से संबंधित यह जानकारी आपको अच्छी लगी हो तो इसे अवश्य अपने मित्रों और परिजनों को भी शेयर करें।
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