यशोधरा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जयंती पर विशेष स्मरण! Total Post View :- 966

यशोधरा- राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जयंती पर विशेष स्मरण!!

नमस्कार दोस्तों !! यशोधरा- राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी का प्रसिद्व काव्य ग्रन्थ है। 3 अगस्त 1886 को ग्राम चिरगांव, जिला झांसी, उत्तरप्रदेश में जन्मे गुप्त जी की बचपन से ही काव्य लेखन में रुचि थी उन्होंने 12 वर्ष की उम्र से ही कवितायें लिखनी प्रारंभ कर दी थी। इनके पिता सेठ रामचरण कनकने व माता कौशल्याबाई वैष्णव भक्त थे तथा पिता कवि थे। जिनके सानिध्य से मैथिलीशरण गुप्त जी मे कविता के बीज और भगवत परायणता के गुण नैसर्गिक रूप से थे।

राष्ट्रप्रेम से सनी खड़ी बोली में लिखी गईं कवितायें बहुत लोकप्रिय हुईं। इन्होंने कविता का आधुनिकीकरण किया । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने इन्हें राष्ट्रकवि की पदवी से नवाजा। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी के जन्मदिवस को कवि दिवस के रूप में मनाया जाता है।

देश की समूचे कवि आज कवि दिवस मना कर मैथिलीशरण गुप्त जी को नमन करते हैं। इसी कड़ी में आप को जोड़ते हुए हम आज राष्ट्रकवि के प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ है यशोधरा के कुछ अंश बताते हैं।

यशोधरा- राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त!!

सखि, वे मुझसे कहकर जाते (यशोधरा)

सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?

मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में –
क्षात्र-धर्म के नाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

हुआ न यह भी भाग्य अभागा,
किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते?
गये तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से?
आज अधिक वे भाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,
रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
पर क्या गाते-गाते?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

यशोधरा – राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त !!

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