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विवाह की आयु क्या होनी चाहिए ?

विवाह संस्कार

?️वर्तमान समय की अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता विवाह के संबंध में आयु का निर्धारण है। इसे जानने के लिए सर्वप्रथम हमें अपनी पुरातन आश्रम व्यवस्था की ओर जाना होगा जिसे हमारे पूर्वजों ने व्यवस्थित रूप से जीवन जीने के लिए बनाया था। उस समय मनुष्य की आयु 100 वर्ष की पूर्ण आयु कहलाती थी जिसमें 4 विभाग किए गए थे जिन्हें आश्रमों का नाम दिया गया था ।

ब्रम्हचर्य आश्रम

गृहस्थ आश्रम

वानप्रस्थ आश्रम

सन्यास आश्रम

समाज में आश्रम व्यवस्था

?️ इन चारों आश्रमों को कार्यों के हिसाब से बांटा गया ताकि मनुष्य अपने पूर्ण आयु 100 वर्ष के जीवनकाल को व्यवस्थित ढंग से बिता सकें। इसमें सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य आश्रम में 25 वर्ष तक के शिक्षा अध्ययन का कार्य किया जाता था एवं 25 वर्ष के पश्चात विवाह एवं संतानोत्पत्तिएवं धन उपार्जन जीविकोपार्जन के कार्य किए जाते थे।

?️ तत्पश्चात वानप्रस्था आश्रम में संतान को शिक्षित कर जीवन के तौर तरीके सिखाने के पश्चात ब्रम्हचर्य का पालन करा कर 25 वर्ष की आयु के पूर्ण होने पर संतान के विवाह को संपन्न किया जाता था तथा वानप्रस्थ में रहते हुए हैं अपनी संतान के वैवाहिक जीवन एवं जीविकोपार्जन में पूरी मदद करते हुए उन्हें गृहस्थी के कार्य संभालने के लिए तैयार किया जाता था ताकि वह स्वयं अपना गृहस्थ आश्रम पालन करें और इस प्रकार जैसे ही बच्चे सुदृढ़ हो जाते थे उन्हें स्वयं का जीवन जीने के लिए धीरे धीरे उनसे अलग होना पड़ता था ।

?️ समाज में और परिवार में रहते हुए भी वानप्रस्थ के 25 वर्ष बिताने के पश्चात सन्यास आश्रम में प्रवेश करते हुए आयु के अंतिम शेष 25 वर्ष भगवत भजन आराधना और ध्यान संयम के साथ व्यतीत किए जाते थे। जिसमें किसी से कोई भी अपेक्षा नहीं की जाती थी। इस प्रकार यह 100 वर्ष की आयु मनुष्य अपने जीवन की उन्नति के लिए व्यतीत करता था।

आयु सीमा 70 से 80 वर्ष तक सीमित

?️समय बदला शिक्षा बदली हमारा रहन-सहन बदला संस्कृति बदल गई संस्कार ही बदल गए आज इतने सब बदलाव के साथ ही हमारी आयु सीमा भी बदल गई। अब आयु सीमा घटकर के 70 से 80 वर्ष की पूर्ण आयु हो चुकी है। इतने बदलाव होने के बाद भी हमने अपने जीवन को इन 80 वर्षों के बीच में व्यवस्थित नहीं किया।

?️आज आवश्यकता है कि पुनः जीवन के उन चार आश्रमों को 80 वर्ष की आयु में चार भागों में बांटने की। आप देखेंगे कि सरकार ने भी विवाह की आयु 21 वर्ष के पश्चात निश्चित की है। अतः 21 वर्ष तक ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन किया जाए और 21 वर्ष के पश्चात से गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया जाए फिर 21 वर्ष गृहस्थ आश्रम में समय व्यतीत करते हुए, आगे के 21 वर्ष से वानप्रस्थाश्रम का जीवन जीना चाहिए,इसके पश्चात अंतिम पड़ाव 21 वर्ष के, उसमें संन्यास आश्रम की विधियों का पालन किया जाना चाहिए।

उच्च शिक्षा व रोजगार

?️आज समस्या यह है कि हमने अपने जीवन को शिक्षा और रोजगार के चारों ओर केंद्रित कर लिया जीवन का उद्देश्य मात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करना एवं उच्च नौकरियां पाना ही रह गया है।

?️यहां ध्यान देने की बात यह है की हमारी चारो आश्रम व्यवस्था डगमगा गई है एवं कार्यकाल अनिश्चित हो गए हैं। अध्ययन का कार्य पूर्व अनुसार 25 वर्ष से बढ़कर 28 वर्ष हो गया है। बच्चे 28 वर्ष होने पर भी विवाह नहीं करना चाहते ।  माता-पिता स्वयं कहते हैं कि जब तक वह पैरों पर ना खड़ा हो जाए तब तक हम विवाह नहीं कर सकते।

?️यह अत्यंत गंभीर विषय है! ध्यान देने की आवश्यकता है कि आज हम किस ओर जा रहे हैं ? सोचिए ! यदि मनुष्य की आयु 84 वर्ष की है तब ऐसी स्थिति में कल्पना कीजिए के जीवन के 28 वर्ष आप अध्ययन करते हैं 30 वर्ष में आप विवाह करते हैं तब 42 वर्ष की आयु में आपकी संतान मात्र 12 वर्ष की होगी। 42 वर्ष अर्थात गृहस्थ आश्रम की समाप्ति।

?️गृहस्थाश्रम की समाप्ति तक आपके बच्चे की उम्र मात्र 12वर्ष है , तब वानप्रस्थ की समाप्ति पर अर्थात 21 वर्ष और उसमें जोड़ दे तब आपके बच्चे की उम्र होगी मात्र 33 वर्ष । आपकी उम्र 63 वर्ष होने पर आपके बच्चे की आयु मात्र 33 वर्ष और उसका भी विवाह नहीं हुआ है तब आप संयास आश्रम में कैसे प्रवेश करेंगे। फिर दो बच्चे तो कम से कम होंगे ही, तब क्या पूरा जीवन बच्चों की शादी करते रहेंगे या फिर उनके धन उपार्जन की ही चिंता करते रहेंगे। इस तरह यह मनुष्य योनि समाप्त हो जाएगी और आप इस जीवन के लक्ष्य तक कदापि नहीं पहुंच पाएंगे।

?️ आजनई पीढ़ी को भी यह बात समझनी होगी कि वह स्वयं क्या कर रहे हैं ? क्या समाज के प्रति उनका कोई दायित्व नही है ? अध्ययन किस लिए किया जाता है ? अध्ययन हमारे आत्मिक विकास का एक जरिया है । हमने अध्ययन के मायने बदल दिए , अध्ययन को हमने अपना जीविकोपार्जन का जरिया बना लिया है । अध्ययन का मतलब है स्वयं को शिक्षित करना । अपने कौशल से हम धन उपार्जन करते हैं । यह दोनों चीजें अलग अलग हैं । यह साथ में भी चल सकती हैं, लेकिन इसकी परिणति ऐसी नहीं है कि अध्ययन करते करते आप जीविकोपार्जन नहीं कर सकते। जिन्हें धन की आवश्यकता नहीं है, या जीविका की आवश्यकता नहीं है वह निरंतर अध्ययन करते चलें, उनका तो एकमात्र मकसद हो जाता है कि हमें अध्ययन करना है।

?️ किंतु यदि आपको अपने चरम लक्ष्य को पाना है, मानव जीवन के चारों आश्रमों को सुख पूर्वक व्यतीत करना है तो एकमात्र अध्ययन आपको कहीं नहीं ले जा सकता । अध्ययन तो कभी ना खत्म होने वाली चीज है । शिक्षा अलग है ।

?️ इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए चार वर्णों का निर्माण किया गया था, इसमें जो भी व्यक्ति जिस तरह भी जीवन जीना चाहता था, वह अपने वर्ण का चुनाव स्वयं कर सकता था । जिसे अध्ययन अध्यापन करना होता था वह ब्राह्मण , जो क्षत्रिय कर्म करते थे अर्थात राज्य के कार्य संभालना समाज में व्यवस्था करना आदि कार्य करते थे। कुछ लोग समाज में व्यवसाय करते थे जिन्हें वैश्य वर्ण में रखा गया था कुछ लोग समाज में सेवक के कार्य किया करते थे उन्हें सेवक वर्ग में नियत किया गया था।

समाज मे वर्ण व्यवस्था

?️ किंतु जैसे ही यह व्यवस्था चरमराई सभी लोग एक दूसरे के कार्यों को करने लग गए या यूं कहें कि सभी लोग कई कार्यों को एक साथ करने लग गए। इससे समाज में एक प्रतिस्पर्धा पैदा हुई और वर्ण व्यवस्था का अवमूल्यन हो गया अब कोई वर्ण व्यवस्था समाज में नहीं पाई जाती।

?️ कुछ न्यून मानसिकता के कारण समाज में वर्ण व्यवस्था के प्रति लोगों मैं दुर्भाव पैदा किया गया और आधुनिकता की आड़ लेकर के इस वर्ण व्यवस्था को समाप्त किया गया। जब भी कोई व्यवस्था निर्धारित की जाती है तो निश्चित ही उसमें कुछ अपवाद स्वरूप घटनाएं भी घटती है जिनके दुष्परिणाम में अच्छे सिद्धांतों का हनन हो जाता है । उसी रूप में हम वर्ण व्यवस्था एवम आश्रम व्यवस्था को देखते हैं।

?️ उपरोक्त व्यवस्थाओं में कहीं भी शिक्षा को जीविका से नहीं जोड़ा गया था। लोग अपनी रूचि के अनुसार अपने कौशल के अनुसार एवं अपने पैतृक जीविका के कार्य के अनुसार ही अपनी जीविका चुन लिया करते थे और इस तरह से समाज व्यवस्थित रूप से चलता था । सभी एक दूसरे पर निर्भर थे,सबका बराबर सम्मान था, कोई छोटा या बड़ा नहीं था । ब्राह्मण ,क्षत्रिय , वैश्य , शूद्र सभी की एक निश्चित आवश्यकता समाज में हुआ करती थी और एक निश्चित सम्मान भी सभी को मिला करता था ।

?️ किंतु आडंबरो के बढ़ने से समाज में कुव्यवस्था फैलती गई। अल्प बुद्धि लोग उस व्यवस्था में कमियां निकालते हुए दोषारोपण करते रहे और अंततः आश्रम व्यवस्था के साथ ही वर्ण व्यवस्था भी लुप्त हो गई ।

मनुष्य के सोलह संस्कार

?️इसी तरह धीरे धीरे संस्कारों का भी अंत होने लगा और मानव जीवन की सोलह संस्कारों की श्रंखला में से सबसे महत्वपूर्ण संस्कार विवाह संस्कार ही मुश्किल में आ पड़ा। विवाह संस्कार इस बात की सूचना थी कि अब मनुष्य का एक पड़ाव समाप्त हुआ और जीवन के दूसरे पड़ाव में उसका पहला कदम विवाह संस्कार के रूप में प्रवेश करना था। किंतु जब से समाज में शिक्षा का महत्व बड़ा रोजगार को महत्व दिया जाने लगा तब से सभी संस्कार खास तौर से विवाह संस्कार बुरी तरह प्रभावित हो गया है ।

?️ इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि समाज में दुष्ट प्रवृत्तियां बढ़ने लगी। स्त्रियों की सुरक्षा खतरे में आन पड़ी। जीवन में और अस्थिरता आ गई है। जो बच्चा 28-30 साल तक केवल पढ़ाई कर रहा हो, वह अपने जीवन में स्थिर कब होगा ? यह सोचने वाली बात है ! माता-पिता स्वयं अपने बच्चों को पंगु बना रहे हैं। शिक्षा पूर्ण होने एवं नोकरी लग जाने के पश्चात भी , वेतन कम होने की दुहाई देकर विवाह नही करते। उन्हें जीवन के संघर्षों से दूर करके निकम्मा बना रहे हैं ।

लिव इन रिलेशनशिप

           ?️यही कारण है कि बेरोजगारी भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है , लोगों का ब्रम्हचर्य नष्ट हो रहा है, लिव-इन-रिलेशनशिप जैसी परम्पराओं ने जन्म ले लिया हैं जिससे एक पतिव्रता व एकपत्नीव्रता जैसी सामाजिक व पवित्र धारणा धूमिल हो रहीं हैं , लोगों का तेज नष्ट हो रहा है,और इसी कारण लोग आत्महत्या करने पर विवश हैं। डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। कई तो पूरे जीवन अविवाहित ही रह जाते।

?️अभी समय है सचेत हो जाएं। उचित समय पर विवाह का प्रबंधन करें। अपने अंदर योग्यता पैदा करें। विवाह एक संस्कार है जिसका निश्चित समय पर होना आवश्यक है। रोजगार अलग चीज है । जीविका उपार्जन करना और उसको विवाह से जोड़ना यह दोनों ही अलग-अलग बातें हैं।

            ?️अपनी सोच को बदलें। अन्यथा आने वाला समय समाज को और नीचे ले जाएगा। अतः रोजगार की प्रतीक्षा ना करें। बच्चों में कौशल पैदा करें उन्हें कर्मठ बनाएं और सही समय पर विवाह संस्कार पूर्ण करके एक सुव्यवस्थित समाज की रचना में अपना योगदान दें, साथ ही बच्चों के जीवन को सहयोग करते हुए उन्हें अपने पैरों पर आप स्वयं खड़ा करें, शिक्षा के भरोसे पर न छोड़ें।

             ?️ आज उच्च शिक्षित बच्चे ज्यादा बेरोजगार व अविवाहित घूम रहे है। कोमल आयु की विनम्रता नष्ट कर जब बच्चे परिपक्व  स्त्री या पुरुष बन जाते हैं तब हम उन्हें विवाह बंधन में बांधकर उम्मीद करतें हैं कि वह अपनी जमीन से अलग होकर दूसरे के बगीचे को सुंदर बनाएं, जो सम्भव नही होता, जिससे परिवार बिखर जातें है , हमे मात्र बच्चे की शिक्षा व रोजगार को अकेले न देखकर , बच्चे के सम्पूर्ण जीवन के बारे में सोचना होगा ।

   ?️ यह क्रांतिकारी कदम होगा , पुरानी आश्रम व्यवस्था को हमें आयु के विघटन के अनुसार नवीनीकृत करना होगा। एवं विवाह संस्कार को महत्वपूर्ण स्थान देना होगा। आइये मिलकर विचार करें और आने वाले बदलाव का स्वागत करें। समाजहित में इस विषयलेख को सभी को शेयर करें व समाज को इस विषय पर जागरूक करने का प्रयास करें।</pre>

० यह आलेख स्वरचित एवं मौलिक है।
✍️श्रीमती रेखा दीक्षितएडवोकेट?
सहस्त्रधारा रोड, देवधरा,मंडला?

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12 thoughts on “विवाह की आयु क्या होनी चाहिए ?

  1. बहुत अच्छा व समसामयिक लेख.व देर से विवाह के चलन से आने वाली समस्या पर पूरी तरह प्रकाश डाला गया.

  2. बिल्कुल सही सारे संस्कार सही समय मैं होना बहुत जरूरी है// नाइस पोस्ट

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